गोरखनाथ मंदिर से नाम मिला है नेपाल की राजधानी काठमांडू को
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार 20 मार्च को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में बतौर अध्यक्षीय संबोधन में नाथ संप्रदाय के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अनुसार नेपाल की राजधानी काठमांडू का मूल नाम काष्ठ मंडप था. काठमांडू को यह नाम कहीं ओर से नहीं बल्कि गोरखनाथ मंदिर से मिला है, जो काष्ठ मंडप पर आधारित था. काठमांडू के पशुपति नाथ मंदिर और पास की एक पहाड़ी के बीच बाबा गोरखनाथ का मंदिर आज भी मौजूद है. इसी क्रम में मुख्यमंत्री ने नेपाल के एक राज्य दांग के राजकुमार रत्नपरिक्षित का जिक्र किया, जो बाद में रतननाथ के नाम से नाथ पंथ के बहुत सिद्ध योगी हुए. उन्होंने बताया कि बलरामपुर के देवीपाटन में जिस आदि शक्ति पीठ की स्थापना गुरु गोरक्षनाथ ने की, वहां पूजा करने के लिए योगी रतननाथ प्रतिदिन दांग से आया जाया करते थे. आज भी चैत्र नवरात्र पर एक यात्रा दांग से आती है और प्रतिपदा से लेकर चतुर्थी तक नाथ अनुष्ठान होता है. पंचमी से नवमी तक पात्र देवता के रूप में गोरखनाथ का अनुष्ठान होता है. मुख्यमंत्री योगी आदित्नाथ ने शनिवार 20 मार्च को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में बतौर अध्यक्षीय सम्बोन्धन में यह बातें कही. वह “नाथ पंथ का वैश्विक प्रदेय” विषय बोल रहे थे.
सेमिनार में योगी आदित्यनाथ ने बताया कि नेपाल के दांग के राजकुमार राजा रतन ने नाथ परंपरा को नेपाल में फैलाया. उनके नाम की एक दरगाह अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में है. उनका एक मठ दिल्ली में भी है. एक बांग्लादेश के ढाका में ढाकेश्वरी देवी का मंदिर स्थित है. इसके अलावा वहां पर आदिनाथ भगवान का मंदिर मौजूद है. नाथ पंथ की परंपरा राजस्थान से भी जुड़ी है. जोधपुर में नाथ पंथ से जुड़ा हुआ लाइब्रेरी मौजूद है. जहां नाथ पंथ से जुड़े साहित्य है, जो 400 साल पुराने हैं.
योगी ने बताया कि जोधपुर में नाथ पंथ बेहद समृद्ध है. वहां नाथ पंथ से जुड़ी लाइब्रेरी है, जो 17वीं शताब्दी में जोधपुर में नाथ पंथ के साहित्यकारों ने श्रीनाथ तथा आवली की रचना की. इसमें नाथ पंथ से जुड़े सभी तीर्थ स्थलों का विस्तृत विवरण है. उनके महत्व की जानकारी है. योगी के मुताबिक, नाथ पंथ के सिद्धांतों के साथ ही उसका व्यवहारिक पक्ष भी बेहद मजबूत है. यह जीवन चर्या का सिद्धांत है. नाथ पंथ के सिद्धांतों का पालन करके व्यक्ति सामाजिक कुरीतियों के साथ ही शारीरिक बीमारियों से भी बच सकता है. यह खानपान जीवन संयम रहन-सहन सब की शिक्षा देता है. नाथ पंथ के संन्यासी वंदे मातरम गीत से भी जुड़े रहे हैं. हिंदी, सहित अन्य भाषाओं में नाथ पंथ की साहित्य की किताबें उपलब्ध हैं. युवा पीढ़ी इसे पढ़कर नाथ पंथ के बारे में जान सकते हैं.
सेमिनार में मुख्यमंत्री योगी ने राजस्थान के सपेरा समुदाय की एक पद्म पुरस्कार प्राप्त महिला और बद्रीनाथ में नाथ योगी सुंदरनाथ से जुड़ा वह प्रसंग सुनाया, जिससे नाथ पंथ के विस्तार और महिमा की जानकारी मिलती है. बद्रीनाथ के नाथ योगी सुंदरनाथ से जुड़ा प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने बीते दिनों केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा की वजह भी बताई. उन्होंने बताया कि दीवाली पर दीपोत्सव के लिए अयोध्या प्रवास के दौरान जब वह ध्यान कर रहे थे तो उन्हें पहाड़ों से किसी के बुलाने और ध्यान रखने की अपील सुनाई दी. इस कौतूहल को शांत करने के लिए जब केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा की तो बद्रीनाथ में नाथ योगी सुंदरनाथ की गुफा मिली. तब उन्हें एहसास हुआ कि वह आवाज योगी सुंदरनाथ की ही थी. उन्होंने आगे कहा कि नाथ पंथ की परंपरा आदिनाथ भगवान शिव से शुरू होकर नवनाथ और 84 सिद्धों के साथ आगे बढ़ती है. यही वजह है कि पूरी दुनिया में इस संप्रदाय के मठ, मंदिर, धूना, गुफा, खोह देखने को मिल जाएंगे. अपने इस प्रसंग को मुख्यमंत्री ने परंपरा, संस्कृति और इतिहास से जोड़ा. उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी परंपरा और संस्कृति को विस्मृत करके अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता. ऐसा व्यक्ति त्रिशंकु बनकर रह जाता है और उसका कोई लक्ष्य नहीं होता.
समाज में व्यापक परिवर्तन के लिए उन्होंने शिक्षा केंद्रों से अपील की कि वे अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़कर अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं. सेमिनार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि तिब्बत से श्रीलंका पाकिस्तान से बांग्लादेश तक नाथ पंथ फैला है. सामाजिक विकृतियों एवं कुरीतियों के विरोध में नाथ पंथ के अनुयायियों ने आवाज उठाई. झोपड़ी से लेकर राजमहल तक नाथ पंथ की परंपरा मिलेगी. नाथ पंथ की परंपरा बेहद समृद्ध है. यह तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक पाकिस्तान के पेशावर से लेकर बांग्लादेश के ढाका, अफगानिस्तान तक को एक सूत्र में जोड़ता है.
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