काशी-मथुरा के लिए संतों की लामबंदी

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद हिंदुत्व का मुद्दा कमजोर नहीं पड़े, इसके लिए एक बड़ी रणनीति बन रही है.

प्रयागराज में आयोजित अखि‍ल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक में मौजूद साधु-संत ( फोटो: गगन जैन)
प्रयागराज में आयोजित अखि‍ल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक में मौजूद साधु-संत ( फोटो: गगन जैन)

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद प्रयागराज के बाघंबरी गद्दी मठ परिसर में 7 सितंबर को अखि‍ल भारतीय अखाड़ा परिषद की पहली बैठक आयोजित हो रही थी. बैठक में सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि‍ शामिल थे. बैठक में अखाड़ा परिषद के सदस्यों ने काशी और मथुरा के मंदिरों को मुक्त कराने के लिए विश्व हिंदू परिषद  (विहिप) और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के साथ अन्य हिंदूवादी संगठनों की मदद से एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने का निर्णय लिया गया. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने बैठक में मांग की कि द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि से अविलंब मस्जिद हटाई जाए. नरेंद्र गिरी ने संतों के बीच यह भी कहा कि भाईचारा कायम करने के‍ लिए मुस्लि‍म समुदाय स्वयं मस्जिद हटाकर माफी मांगे कि उनके पूर्वजों ने अनैतिक काम किया है. नरेंद्र गिरी कहते हैं, “काशी और मथुरा के मुद्दे पर आम सहमति न बनने पर संविधानिक तरीके से कोर्ट के माध्यम से कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी.”

यह कोई पहला मौका नहीं था जब संतों ने काशी-मथुरा के लिए लामबंदी शुरू करने की कोशि‍श की हो. अखि‍ल भारतीय संत समिति की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी सभा की बैठक गुजरात के 'कैवल ज्ञानपीठ गरुगादी सरसापीठ' में 4 जनवरी को शुरू हुई थी. इस बैठक में भी संत समिति ने मुसलमानों से काशी मथुरा का दावा छोड़कर बड़ा दिल दिखाने का आग्रह किया था. काशी-मथुरा के मुद्दे पर हिंदूवादी संगठनों की सक्रियता को 'ऑल इंडिया मुस्लि‍म पर्सनल ला बोर्ड' के वरिष्ठ सदस्य जफरयाब जिलानी हिंदू-मुस्लिीम के बीच विवाद को बढ़ाने की कवायद बताते हैं. जफरयाब जिलानी कहते हैं, “अखाड़ा परिषद को काशी-मथुरा का मुद्दा उठाने पर किसी प्रकार का राजनीतिक फायदा हिंदूवादी संगठनों को मिलने की आशा नजर आती होगी इसलिए वे कानून से इतर की बात कर रहे हैं. हालांकि मुसलमान अपनी मस्जिद को इनके सामने सरेंडर नहीं करेगा. ऐसे में अगर हि‍न्दूवादी संगठनों ने काशी-मथुरा के मुद्दे पर अकारण सक्रियता बढ़ाई तो सांप्रदायिक सौहार्द के लिए खतरा पैदा करेगा.”

अखाड़ा परिषद भले ही काशी-मथुरा के मुद्दे पर संत समाज की गोलबंदी की कोशि‍श कर रहा हो लेकिन संघ इस मुद्दे पर सीधे तौर पर अपनी सक्रि‍यता दिखाने से बच रहा है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर कार्यवाह सुरेश भैया जी जोशी और सह सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले 17 अगस्त को वाराणसी में बन रहे काशी विश्वनाथ धाम का निरीक्षण करने पहुंचे थे. संघ के इन पदाधि‍कारियों ने अपने काशी प्रवास के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तार में आयी चुनौतियों और भव्य दरबार निर्माण के प्रचार-प्रसार की रणनीति भी बनाई. यह भी तय हुआ कि संघ अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के साथ ही काशीपुराधि‍पति बाबा विश्वनाथ की मुक्तिय का इतिहास दुनिया को बताएगा. संघ के सहयोगी संगठन विश्व हिंदू परिषद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के साथ-साथ हिंदुत्व की अलख जगाए रखने के लिए भी रणनीति तैयार की है. हिंदुओं में धार्मिक एकता को बढ़ाने के लिए परिवार सत्संग की योजना तैयार की गई है. आने वाले दिनों में विहिप कार्यकर्ता हिंदुओं के घर-घर जाकर उन्हें परिवार सत्संग के लिए प्रेरित करेंगे. विहिप के प्रांत संगठन मंत्री मुकेश कुमार बताते हैं, “भागदौड़ की जिंदगी में एक छत के नीचे रहते हुए भी परिवार के सभी सदस्य एक साथ नहीं बैठ पाते हैं. ऐसे में अगर सप्ताह में किसी एक दिन परिवार के लोग सत्संग के माध्यम से अपने घर में एकत्र हों और धार्मिक कार्यक्रम करें तो अच्छा रहेगा.” जाहिर है, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद हिंदुत्व का मुद्दा कमजोर नहीं पड़े, इसके लिए एक बड़ी रणनीति बन रही है. 

क्या है अखाड़ा परिषद 
वास्तव में अखाड़ा परिषद का वजूद केवल चार कुंभ नगरों से जुड़ा हुआ है. नासिक,  उज्जैन, हरिद्वार और प्रयाग में जब भी कुंभ मेले होते थे, तत्कालीन व्यवस्थाएं कराने के लिए स्थानीय स्तर पर अखाड़ों की परिषद का गठन किया जाता था. यह परिषद कुंभ मेले तक सक्रिय रहती थी और उसके बाद भंग हो जाती थी. अगली बार जहां कुंभ होता था वहां के स्थानीय अखाड़े और संत मिलकर फि‍र से अखाड़ा परिषद बना लेते थे. वर्ष 1990 के दशक में जब राम जन्मभूमि आंदोलन आगे बढ़ा तब विश्व हिंदू परिषद ने संतों की इस अखाड़ा परिषद को भंग न करके इसे एक संगठन का रूप दिया. अखाड़ा परिषद के जरिए न केवल संतों की आचार संहिता तय हुई बल्कि‍ राम जन्मभूमि आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने के लिए संत भी एक प्लेटफार्म के जरिए सक्रिय हुए. वर्तमान में अखाड़ा परिषद में कुल 13 अखाड़े हैं और इनके अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि‍ हैं.

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