शहीद देवेंद्र मिश्र: बुंदेलखंड के लाल से खौफ खाते थे बदमाश
देवेंद्र मिश्र का कांस्टेबल से सीओ तक का सफर उनकी दिलेरी की दास्तान है. देवेंद्र की बहादुरी की बानगी थी कि वर्ष 2012 में चर्चित ट्रेन डकैती के बदमाशों को दबोचकर उन्होंने लूट का माल भी बरामद किया था.

कानपुर में 2 जुलाई की रात कुख्यात बदमाश विकास दुबे और उसके साथियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस उपाधीक्षक (सीओ) देवेंद्र मिश्र बुंदेलखंड के बांदा जिले के अतर्रा ब्लाक के गिरवा क्षेत्र के सहेवा गांव के रहने वाले थे. बेहद साधारण परिवार से आने वाले देवेंद्र मिश्र के पिता महेश प्रसाद गांव के ही जूनियर हाइस्कूल में शिक्षक थे. देवेंद्र ने मिडिल तक पढ़ाई गांव में ही की थी. उन्होंने हाइस्कूल खुरहंड के जनता इंटर कालेज और इंटर बांदा के आदर्श बजरंग इंटर कालेज से किया था. महेश प्रसाद के तीन बेटों में सबसे बड़े देवेंद्र काफी पहले पुलिस में भर्ती हो गए थे.
कांस्टेबल से सीओ तक का सफर देवेंद्र की दिलेरी की दास्तान है. विभागीय परीक्षा पास कर वे एसआई बने और कानपुर की अहिरवां चौकी इंचार्ज का पद संभाला था. इसके बाद वर्ष 2004-05 में वह उन्नाव जनपद के आसीवन थाना इंचार्ज रहते हुए एक शातिर का एनकाउंटर किया था. वे आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाकर इंस्पेक्टर बने थे. देवेंद्र की बहादुरी की बानगी थी कि वर्ष 2012 में चर्चित ट्रेन डकैती के बदमाशों को दबोचकर लूट का माल भी बरामद किया था. उस वक्त देवेंद्र इंस्पेक्टर थे. इसके बाद तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ने देवेंद्र को 15 हजार रुपए का इनाम और प्रशस्तिक पत्र देकर सम्मानित किया था. वर्ष 2013 में वाराणसी में कैंट जीआरपी निरीक्षक के रूप में तैनाती के दौरान देवेंद्र ने जहरखुरानी गिरोह को नेस्तनाबूद करने में मुख्य भूमिका निभाई थी. वर्ष 2016 में देवेंद्र आउट आफ टर्न प्रमोशन पाकर पुलिस उपाधीक्षक बने थे. वे मार्च 2021 में सेवानिवृत्त होने वाले थे.
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