भारत के सीरिया के साथ कैसे संबंध रहे हैं, आगे क्या हो सकता है?

भारत और सीरिया के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध दशकों पुराने हैं. अब बदला हुआ सीरिया अरब देशों और मध्य पूर्व के देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित कर सकता है

सीरिया में एक विद्रोही लड़ाका
सीरिया में एक विद्रोही लड़ाका.

सीरिया में इस्लामी विद्रोहियों ने बशर अल-असद को सत्ता से बेदखल कर दिया है और दिल्ली से पश्चिम में 4000 किमी दूर चल रही इस उथल-पुथल का असर भारत पर भी पड़ने की संभावना है.  

दरअसल भारत और सीरिया के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध दशकों पुराने हैं. अब बदला हुआ सीरिया अरब देशों और मध्य पूर्व के देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित कर सकता है. 

भारत और सीरिया के बीच ऐतिहासिक रूप से मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं. दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से उच्चतम स्तर पर नियमित द्विपक्षीय आदान-प्रदान हुए हैं. साथ ही, भारत ने असद शासन और विपक्षी विद्रोहियों दोनों द्वारा की गई हिंसा की निंदा की है. 

भारत ने कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सीरिया का समर्थन किया है, जिसमें फिलस्तीन का मसला और गोलान हाइट्स पर सीरिया का दावा शामिल है. दूसरी तरफ सीरिया ने भी कश्मीर मामले पर भारत की स्थिति का समर्थन किया है. सीरिया हमेशा से कश्मीर को भारत का घरेलू मामला बताता रहा है.   संयुक्त राष्ट्र में भारत ने सीरिया के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन करने से इनकार कर दिया था और कोविड महामारी के दौरान, मानवीय चिंताओं का हवाला देते हुए प्रतिबंधों में ढील देने का आह्वान किया था. भारत ने सीरिया में विदेशी ताकतों के दखल का भी विरोध किया था.  

सीरिया में 2011 में शुरू हुए गृहयुद्ध के दौरान भारत एक गैर-सैन्य और समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया के जरिए समाधान निकालने की वकालत करता रहा है. गृहयुद्ध के चरम पर भी, जब कई देशों ने सीरिया को अलग-थलग कर दिया था और इसे अरब लीग से निष्कासित कर दिया गया था, भारत ने अपने संबंधों को जारी रखा और दमिश्क में अपना दूतावास बनाए रखा.

ताजा घटनाक्रम के बाद विदेश मंत्रालय ने 9 दिसंबर को जारी अपने बयान में पुराना रुख दोहराया है, "हम मानते हैं कि सीरिया की एकता, संप्रभुता और अखंडता को संरक्षित करने की दिशा में सभी पक्षों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है. हम सीरिया के सभी वर्गों के हितों और आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए एक शांतिपूर्ण और समावेशी सीरियाई नेतृत्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया की वकालत करते हैं."

नई दिल्ली ने सीरिया के विकास में कई पड़ावों पर अहम भूमिका निभाई है, जिसमें बिजली संयंत्र के लिए 24 करोड़ अमरीकी डालर की ऋण सहायता, आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में निवेश, इस्पात संयंत्र आधुनिकीकरण, तेल क्षेत्र और चावल, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्स्टाइल का महत्वपूर्ण निर्यात शामिल है.

सीरिया 2023 में फिर से अरब लीग में शामिल हुआ था. उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने सीरिया के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊर्जा लाने की कोशिश की. इसी के तहत जुलाई 2023 में, तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने दमिश्क की एक महत्वपूर्ण मंत्री-स्तरीय यात्रा की थी.

असद की सत्ता जाने का भारत पर क्या असर पड़ेगा

असद के पतन और उसके बाद की अनिश्चितता क्षेत्र में भारत के राजनीतिक और आर्थिक हितों के लिए चिंता का विषय है. एक प्रमुख खतरा हयात तहरीर अल-शाम (HTS) द्वारा सीरियाई शासन पर संभावित कब्ज़ा है. यह एक कट्टरपंथी इस्लामी समूह है जो पहले आतंकवादी संगठन अल-कायदा से जुड़ा हुआ था. माना जा रहा है कि HTS में एकजुटता की कमी है और ऐसे में क्षेत्र में आतंकवादी संगठन ISIS फिर से ताकतवर हो सकता है जिसका नतीज क्षेत्रा में अस्थिरता में देखने को मिल सकता है. 

भारत ने सीरिया के तेल क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण निवेश किए हैं. भारत की सरकारी क्षेत्र की कंपनी ONGC ने इस देश में तेल और प्राकृतिक गैस की खोज के लिए अंतरराष्ट्रीय समूह IPR के साथ एक समझौता किया है. इसके अलावा सीरिया में काम करने वाली एक कनाडाई फर्म में 37 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए ONGC और चीन की CNPC ने संयुक्त निवेश किया है.

साथ ही तिशरीन थर्मल पावर प्लांट परियोजना के लिए 24 करोड़ अमेरिकी अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता, तथा आईटी और उर्वरक क्षेत्र में निवेश सीरिया में भारत की प्रमुख कारोबारी गतिविधियों में से हैं. माना तो यह भी जा रहा है कि भारत-खाड़ी-स्वेज नहर-भूमध्यसागरीय/लेवेंट-यूरोप कॉरिडोर के निर्माण में भारी निवेश की योजना बना रहा है, जिसमें सीरिया भी शामिल है.

विशेषज्ञों के अनुसार, दमिश्क के साथ भारत के मजबूत संबंध नई दिल्ली को अन्य मध्य पूर्व के देशों के साथ अपने संबंधों को और व्यापक रूप से आगे बढ़ाने का मौका देते हैं.

फिलहाल असद की सत्ता को जिन विद्रोहियों ने उखाड़ा है उन्हें तुर्की का समर्थन हासिल है. रैचप तैयप एर्दोआन हमेशा से इस क्षेत्र में अपनी भूमिका देखते रहे हैं इसलिए माना जा रहा है कि फिलहाल सीरिया की राजनीति को उसका यह पड़ोसी देश ज्यादा प्रभावित करेगा. तुर्की लंबे अरसे से कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को समर्थन करता रहा है लेकिन संयुक्त राष्ट्र की पिछली बैठक में एर्दोआन ने आपने भाषण में इसका जिक्र नहीं किया. इससे माना जा रहा है कि तुर्की भारत के साथ अपने संबंध बेहतर करने की कोशिश कर रहा है. 
 
फिलहाल सीरिया में राजनीतिक हालात धुंधलके में हैं क्योंकि खुद विद्रोही ताकतों के बीच मतभेद हैं. जाहिर है कि ऐसे में भारत स्थिति पर बारीक नजर रखेगा और सीरिया में उभर रही नई राजनीतिक परिस्थितियों के हिसाब से हो सकता है उसके साथ संबंधों में नए सिरे से तालमेल बिठाने की जरूरत पड़े.

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