बेबाकः हर शादी में क्यों फूफा बेगाना!

राजनीति हो या घरेलू समारोह, कुछ लोग सदैव नाराज रहते हैं. सियासी संदर्भों में आजकल फूफाओं पर खासकर व्हाट्सऐप पर कई जोक बन रहे हैं. लेकिन लगता है फूफाओं के कभी-कभार भड़क उठने के कारणों पर सही तरीके से विचार नहीं किया है. फूफाओं और मौसाओं को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. रामायण-महाभारत में भी कायदे से फूफाओं का जिक्र नहीं मिलता. सुशांत झा इस व्यंग्य में भारतीय फूफाओं के अक्सर भड़क उठने के कारणों की चुटीली पड़ताल कर रहे हैं. 

तस्वीर सौजन्यः मेल टुडे
तस्वीर सौजन्यः मेल टुडे

बेबाक/व्यंग्य

आजकल फूफाओं पर खासकर व्हाट्सऐप पर कई जोक बन रहे हैं और इसकी पृष्ठभूमि मेरे विचार से राजू श्रीवास्तव ने अपने टीवी कार्यक्रमों में दशक भर पहले तैयार कर दी थी. यों तो हिंदू परिवारों में वे दामाद के रूप में विष्णु स्वरूप हैं, लेकिन कई बार दुर्वासा की तरह भड़क उठते हैं. हालांकि विद्वानों ने उनके कभी-कभार भड़क उठने के कारणों पर सही तरीके से विचार नहीं किया है. फूफाओं और मौसाओं को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. रामायण-महाभारत में भी कायदे से फूफाओं का जिक्र नहीं मिलता. 

खैर, मेरे हिसाब से भारतीय फूफाओं के अक्सर भड़क उठने के निम्नलिखित कारण हैं-

1. उम्र के साथ ससुराल में वैल्यू डाउन होते जाना और चाय-पानी तक का बार-बार आग्रह न होना. दरअसल, शादी के समय जो जलवा होता है वो समय के साथ फीका पड़ जाता है और शादी के दशक भर बीतने के बाद उनकी स्थिति यूपीए-2 जैसी हो जाती है. उनकी आदतें और उनकी खूबियां और कमजोरियां सबके सामने साफ हो जाती हैं और घर का पुराना नौकर भी तीन बार कहने पर रजनीगंधा-तुलसी लाता है.

2. जो पत्नी उनके लिए शुरुआत में छुई-मुई सरीखी होती थी वह भी समय बीतने के साथ-साथ दु:साहसी होती जाती है. बच्चे जवान हो जाते हैं और ससुराल में पत्नी, साला और बच्चों का गठबंधन भारी पड़ जाता है. बेचारे बुजुर्ग ससुर बहादुरशाह जफर सा टुकुड़-टुकुड़ ताकते रहते हैं और फूफाजी अपने ही दल में आडवाणी जैसे हो जाते हैं.

3. पचास के नजदीक पहुंच रहे फूफाओं को मुख्य कंपीटिशन एक पीढ़ी नीचे से जीजाओं से मिलता है. सरकारी नौकरी वाले या रिटायरमेंट की दहलीज पर पहुंच चुके फूफाओं के सामने जब सजीले, चमकदार और आइआइटी टाइप के जीजा आते हैं, तो स्वाभाविक है सारा फोकस लूट ले जाते हैं. मिथिला में दामादों को छप्पनभोग मिलता था, प्रतीक रूप में अभी भी बीसियों तरह के व्यंजन मिलते हैं. लेकिन, फूफा की उमर तक आते-आते भात-दाल-तरकारी पर आ जाते हैं. चपाती में घी यह कहकर मना कर दिया जाता है कि सेहत के लिए ठीक नहीं है. ऐसे में फूफाओं का यशवंत सिन्हा की तरह भड़कना स्वाभाविक है.

4. शादी-विवाह या किसी ऐसे ही बड़े समारोह में पहले कमरों की संख्या कम पड़ जाती थी. गांव देहात में नए दामादों को कमरा मिल जाता था लेकिन फूफाजी को पड़ोस में किसी के यहां या कहें कि निर्मल वर्मा की कहानियों में वर्णित दिल्ली की बरसाती-नुमा जगहों में टिका दिया जाता था. पता चला कि फूफाजी का टॉयलेट मग्गा ढूंढ रहे हैं जिसे चिंटू ने गायब कर दिया है.

5. मिथिला में फूफाजी (पीसाजी) को अक्सर ऐसे नॉन-प्रोडक्टिव कार्यों में लगा दिया जाता है जिसे करने को आमतौर पर कोई राजी नहीं होता. कुछ कार्यों पर गौर फरमाइए. मसलन, हलवाई के पास बिठा देना ताकि भोजन के इंतजाम की देखरेख करें! हाल तक दुल्हन को लिवाने के लिए जो एक या दो लोग जाते हैं, फूफा को उसके लिए उपयुक्त समझा जाता था. उसे मैथिली में ‘दुरगमनिया बरयाती’ कहते थे-यानी ऐसा बाराती जो गौना कराने जा रहा हो. जब फूफा वहां दुल्हन वालों के घर पहुंचते थे तो उनको नाश्ता-पानी करवा कर घराती लोग दूल्हा-दुल्हन में व्यस्त हो जाते थे. उस जमाने में न तो डेटा सस्ता था और न ही जियो का नेटवर्क था, फूफा अकेले कुढ़ते रहते थे. बीच में कोई चाय के लिए पूछ गया तो पूछ गया नहीं तो फूफा उस चार-छह घंटे को ऐसे बिताते थे मानो रेलवे स्टेशन पर शीतलहर के समय में देर से चल रही रेलगाड़ियों के इंतजार कर रहे मुसाफिर हों.

6. कुछ फूफा ऐसे होते हैं जो अक्सर अपने ससुराल में अपने सालों या सालों के बच्चों की शादी करवाने की जुगत में लगे रहते थे. उन्हें गुमान होता है कि वे इस कार्य के लिए सबसे उपयुक्त हैं. जब उनकी राय नहीं ली जाती या नजरअंदाज की जाती है, तो वे भड़क उठते हैं. एक फूफा तो बस इस बात के लिए नाराज हो गए क्योंकि उनके हिसाब से मार्केटिंग बनारस में न करके पटना में कर ली गई.

7. एक फूफा इसलिए नाराज हो गए क्योंकि उन्हें भीड़-भीड़ में टेंट हाउस का मरियल-सा गद्दा और पतला-सा तकिया दे दिया गया. जबकि उन्होंने एक सप्ताह पहले अपने बड़े साले के बेटे को कहा था कि उन्हें घर का तकिया चाहिए.

8. एक फूफा सिर्फ इसलिए नाराज हो गए क्योंकि नब्बे के दशक में उन्हें थोड़ा कम ठंडा कोल्ड ड्रिंक मिल गया था.

9. मेरे एक दोस्त के एक फूफा इसलिए नाराज हो गए क्योंकि बड़े भैया की शादी में बारात जाते समय उन्हें औसत-सी गाड़ी में बिठा दिया गया जबकि नए दामाद को अच्छी गाड़ी दी गई. 

10. मुगलिया इतिहास में अगर गौर से देखें तो कहते हैं कि बादशाह अकबर ने फूफाओं की इन्हीं कारगुजारियों से तंग आकर शाहजादियों की शादी पर रोक लगा दी थी. दरअसल ये फूफा, बगावत को भी उकसाते थे.

कुल मिलाकर देखा जाए तो फूफाओं की मन:स्थिति को उचित तरीके से समझने की जरूरत है. भले ही उन्हें मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया जाए पर कभी-कभार चाय-पानी पूछते रहने से, जन्मदिम में बधाईयां देते रहने से फूफाओं का भी मन बहलता रहता है. ऐसा करके हम अपनी बुजुर्ग होती आबादी की बड़ी समस्या को भी ठीक से देख पाएंगे. 

(सुशांत झा, इंडिया टुडे ग्रुप से जुड़े हैं और वरिष्ठ कॉपी संपादक हैं. यहां व्यक्त की गई राय उनकी निजी है और उससे इंडिया टुडे की सहमति आवश्यक नहीं है.)

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