चार साल के कोर्स में आगे बढ़ें या छोड़ दें? DU स्टूडेंट्स की क्या है उलझन?
दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) नई शिक्षा नीति के तहत अगस्त से अपना चार वर्षीय अंडर ग्रेजुएट कोर्स शुरू करने जा रहा है

दिल्ली विश्वविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुरूप अगस्त से अपना चार वर्षीय अंडर ग्रेजुएट कोर्स शुरू करने की तैयारी कर रहा है, ऐसे में छात्रों के सामने एक गंभीर दुविधा है - क्या उन्हें रिसर्च ओरिएंटेड चौथे वर्ष के लिए रुकना चाहिए या तीसरे वर्ष के बाद दूसरा विकल्प देखना चाहिए.
नए ढांचे के तहत, छात्रों को एक वर्ष के बाद सर्टिफिकेट, दो वर्ष के बाद डिप्लोमा और तीन वर्ष के बाद अंडर ग्रेजुएट की डिग्री मिलेगी. चौथे वर्ष में शोध विशेषज्ञता के साथ डिग्री प्रदान की जाती है, जिससे छात्र एक वर्षीय मास्टर कार्यक्रम या सीधे पीएचडी भी कर सकते हैं, बशर्ते उनके पास पर्याप्त शैक्षणिक क्रेडिट हों.
विश्वविद्यालय का कहना है कि इस कदम से लचीलापन और उद्योग जगत में शुरुआती अनुभव मिलता है, लेकिन छात्र और शिक्षक अभी भी विभाजित हैं.
मिरांडा हाउस में फिजिक्स ऑनर्स की तीसरे वर्ष की छात्रा अनुभूति ने आगे नहीं पढ़ने का फैसला किया है. वे कहती हैं, "मैं इसलिए पढ़ाई छोड़ रही हूं क्योंकि मैंने डीयू में मास्टर कार्यक्रम में दाखिला ले लिया है और मुझे लगता है कि यह मेरे पाठ्यक्रम के लिए ज़्यादा उपयुक्त है और मुझे बेहतर समझ मिलेगी."
उनकी सहपाठी, नेहा अग्रवाल ने भी इसी तरह की चिंता जताई, "मैं इसलिए पढ़ाई छोड़ रही हूं क्योंकि कॉलेजों में शोध के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा नहीं है, और एक साल के मास्टर प्रोग्राम का कोई ख़ास महत्व नहीं होता, और एक समस्या यह भी है कि हमें ठीक से पता नहीं है कि चौथे साल में कोर्स कैसा होगा."
हालांकि, मिजोरम की ह्यूजेला जैसे अन्य लोग भी इसमें शामिल हो रहे हैं. वे कहती हैं "मैं चौथे साल तक पढ़ाई जारी रख रही हूं क्योंकि चार साल का प्रोग्राम मुझे विदेश में मास्टर प्रोग्राम के लिए आवेदन करने में मदद करता है. कोर्स की संरचना अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन मैं फिर भी चौथे साल की पढ़ाई जारी रखूंगी."
लेकिन संकाय सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताई है. डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की सचिव डॉ. आभा देव ने कहा, "हम चौथे साल के पक्ष में कभी नहीं थे. सरकार ने इस बदलाव के लिए अतिरिक्त धन या कर्मचारी उपलब्ध नहीं कराए हैं. बिना समर्थन के, यह गुणवत्तापूर्ण बदलाव नहीं हो सकता."
उन्होंने इस उम्मीद की भी आलोचना की कि छात्र एक ही साल में किताब के अध्याय या पेटेंट जैसे शोध कार्य तैयार करें, और इसे अवास्तविक और प्रतिकूल बताया. उन्होंने चेतावनी दी, "पीएचडी स्कॉलर्स को भी शोध प्रकाशित होने में सालों लग जाते हैं. इससे संस्थान फर्जी नतीजे पेश कर सकते हैं."
हालांकि, विश्वविद्यालय के अधिकारी आशावादी बने हुए हैं. रिसर्च डीन प्रोफ़ेसर राज किशोर शर्मा ने कहते हैं, "हमने छात्रों को मास्टर प्रोग्राम में मिलने वाले शोध की झलकियां दी हैं. उन्हें उद्योगों में शामिल किया जा सकता है या जल्दी रोज़गार मिल सकता है. चौथे वर्ष के छात्रों को समायोजित करने की तैयारी चल रही है. हम छात्रों को प्रयोगशालाओं में समायोजित करने के लिए तैयार हैं, शिक्षक उत्साहित हैं."
शिक्षकों के कार्यभार को लेकर चिंताओं पर, प्रोफ़ेसर शर्मा ने कहा, "ये शुरुआती चिंताएं हैं. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा."
डीयू के छात्र पहली बार सातवें सेमेस्टर में भाग लेने की तैयारी कर रहे हैं, ऐसे में इस पहल को वैश्विक शिक्षा मानकों की दिशा में एक साहसिक कदम माना जा रहा है. हालांकि यह सवाल अभी जवाब के इंतजार में रहेगा कि क्या इसके समर्थन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा और स्पष्टता मौजूद है.