पुस्तक समीक्षाः दो युगों की अंतर्कथा है बिसात पर जुगनू

यह उपन्यास चीन के केंटन , चांदपुर और पटना के त्रिभुज में फैला है. कथा की शुरुआत फतेह अली खान के रोजनामचे से शुरू होती है. फिर ली ना के भारत आने की कथा और अंत उसे चीन लौटने की घटना से होता है. बीच मे 1857 के विद्रोह की घटना का भी जिक्र है और इसमे बहादुर शाह जफर बेगम हजरत महल और बाबू वेरा कुंवर सिंह की भी चर्चा है।कोलकाता जरनल की कतरने भी बीच बीच मे हैं.

 बिसात पर जुगनू
बिसात पर जुगनू

विमल कुमार

उपन्यास केवल वृतांत नहीं होता और वह घटनाओं का महज़ कोलाज भी नही होता. वह उस कैमरे की मानिंद नही होता जो डॉक्यूमेंयरी फ़िल्म के निर्माण प्रयुक्त होती है. यानी एक फीचर फिल्म और डॉक्यूमेंट्री में जो फर्क होता है वही फर्क वृतांत और उपन्यास में होता है. उपन्यास लेखन भी एक कला है.

यह कला इस बात पर निर्भर करती है कि लेखक घटनाओं पात्रों और अपने समय को किस तरह अन्तर्संयोजित करता है यानी कैसी औपन्यासिक अन्विति बनाता है. ऐतिहासिक उपन्यासों के साथ यह खतरा अधिक होता है खासकर तब जब आप उसमे प्रयोग करने लगते है. हिन्दी की सुपरिचित कथाकार का नया उपन्यास" बिसात में जुगनू" इन सारे सवालों को उठाता है।इसमे कोई शक नही कि यह हिंदी का पहला प्रायोगिक ऐतिहासिक उपन्यास है.

अब तक जो ऐतिहासिक उपन्यास लिखे गए उन्हें वर्तमान की घटनाओं से नही जोड़ा गया था लेकिन इस उपन्यास में 1857 की क्रांति स लेकर 2001 में भारत आनेवाली चीनी लड़की ली न की भी कथा है.

दरअसल इसमे कई कथाओं की आवाजाही है और दो युग की भी अंतर्कथा तो है ही. दो देशों चीन और भारत से जुड़ी कथा है. इसके मुख्य किरदार फतेह अली खान, सुमेर सिंह, खदीजा बेगम, परगासो दुसाधन, विलियम, रुकुंदीन, समर्थ लाल और ली ना हैं.

यह उपन्यास चीन के केंटन , चांदपुर और पटना के त्रिभुज में फैला है. कथा की शुरुआत फतेह अली खान के रोजनामचे से शुरू होती है. फिर ली ना के भारत आने की कथा और अंत उसे चीन लौटने की घटना से होता है. बीच मे 1857 के विद्रोह की घटना का भी जिक्र है और इसमे बहादुर शाह जफर बेगम हजरत महल और बाबू वेरा कुंवर सिंह की भी चर्चा है. कोलकाता जरनल की कतरने भी बीच-बीच में हैं.

इस तरह इस उपन्यास का ताना बाना विकसित होता है. इसमे कोई शक नहीं कि वन्दना राग ने बहुत मेहनत धैर्य और शोध कार्य से यह उपन्यास लिखा है. उन्होंने इस उपन्यास में अपनी जबरदस्त प्रतिभा का परिचय भी दिया है. लेकिन यह उपन्यास पूरी तरह स्ट्रक्चर्ड नजर आता है. इसके तीनों अध्याय और उपकथाओं को एक खांचे में फिट किया गया है.

इस उपन्यास में एक नयी प्रविधि का इस्तेमाल किया गया है जो अब तक नहीं देखा गया और यह उपन्यास इतिहास से वर्तमान में आवाजाही भी करता है. लेखिका ने इस उपन्यास में वृतांत का बड़ा शामियाना खड़ा किया है लेकिन इस शामियाने में इतनी चीजें डाल दी है कि यह कृति एक वृतांत अधिक पेश करती है उपन्यास कम. इसका कारण है कि लेखिका के पास इतनी उप-कथाएं है कि हर पात्र के साथ वह पूरा समय नहीं देती और दूसरी उप- कथा शुरू कर देती हैं.

और हर उपकथा एक बड़ी सम्भावनाए लिए है.

पाठक को बहुत जल्दी-जल्दी एक उपकथा से निकलकर दूसरी उपकथा में प्रवेश करना पड़ता है और फिर उसे यह देखना पड़ता है कि इन सारी उपकथाओं को आपस में जोड़ने वाला सूत्र किधर है. जब दुकानदार ग्राहक के सामने अपने बहुत सारे सामान दिखाने लगता है तो ग्राहक के लिए चयन मुश्किल हो जाता है.

वन्दना राग ने यही किया है. वह बहुत सारी चीजें दिखाने लगी हैं. यह उपन्यास सब कुछ प्रस्तुत करता है उसकी आत्मा दिखाई नहीं देती क्योंकि लेखिका ने संवेदना पर ध्यान कम दिया है उनका इतिहासकार अधिक हावी है. उन्होंने अपने कौशल से इस उपन्यास को अधिक लिखा है भावों का इस्तेमाल कम किया पर विषय की दृष्टि से यह हिंदी का उल्लेखनीय उपन्यास माना जायेगा।निसंदेह उन्होंने हिंदी उपन्यास को समृद्ध किया है.

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