आप जो कपड़े पहनते हैं उनसे भी कैंसर होने का खतरा है!

एक नई रिसर्च में देश के टेक्सटाइल सेक्टर में इस्तेमाल किए जाने वाले उन केमिकलों का पता लगाया गया है जो कैंसर सहित गंभीर बीमारियों की वजह बनते हैं

How India shops: Customers still prefer malls, in-person purchases over online shopping
सांकेतिक तस्वीर

क्या आपने कभी सोचा है कि हम जो नए कपड़े खरीदते हैं, उससे कैंसर का भी खतरा हो सकता है! और ये सिर्फ सामान्य कपड़ों की बात नहीं है, 'ब्रांडेड' कपड़े भी इस जोखिम के बराबर जद में आते हैं.

दरअसल, नॉनिलफेनॉल (एनपी) और नॉनिलफेनॉल इथॉक्सिलेट्स (एनपीई), ये कुछ ऐसे केमिकल हैं जिनका इस्तेमाल देश के टेक्सटाइल मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में धड़ल्ले से हो रहा है, ये केमिकल कैंसर सहित कई बीमारियों की वजह बन सकते हैं.

पहली दफा सुनने में एनपी और एनपीई शायद जटिल वैज्ञानिक शब्दों जैसे लगें, लेकिन ये ऐसे केमिकल हैं जिनके बारे में हर उपभोक्ता को जानना जरूरी है.

असल में, ये एंडोक्राइन-विघटनकारी केमिकल हैं जो बहुत कम मात्रा में भी इंसानों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं. ये यौगिक एस्ट्रोजन (महिलाओं में प्रमुख सेक्स हार्मोन) की नकल कर सकते हैं और भ्रूण, गर्भस्थ शिशु और बच्चों में विकास संबंधी दिक्कतें पैदा कर सकते हैं. इसके अलावा, इनमें कार्सिनोजेनिक गुण हैं, जो पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर और महिलाओं में स्तन कैंसर को बढ़ावा देते हैं.

एनपी और एनपीई का इस्तेमाल चमड़ा, डिटर्जेंट और क्लीनिंग प्रोडक्ट, कागज और लुगदी, खाद्य पैकेजिंग सामग्री, सौंदर्य प्रसाधन और कंस्ट्रक्शन जैसे कई उद्योगों में होता है. हालांकि, खास तौर पर चिंताजनक बात यह है कि भारत के टेक्सटाइल मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में इनका व्यापक इस्तेमाल होता है, जहां ये वेटिंग एजेंट, डिटर्जेंट और इमल्सीफायर के रूप में काम करते हैं, जैसे कि धुलाई, स्कौरिंग, लुब्रिकेशन, ब्लीचिंग, डाई लेवलिंग और सफाई प्रक्रियाओं में.

हाल में नई दिल्ली स्थित नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन टॉक्सिक्स लिंक ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसका शीर्षक है: 'टॉक्सिक थ्रेड्स: असेसिंग नॉनिलफेनॉल इन इंडियन टेक्सटाइल्स एंड द एनवायरनमेंट'. इसके मुताबिक, भारत भर में खुदरा दुकानों और ऑनलाइन प्लेटफार्मों से खरीदे गए 40 कपड़ा प्रोडक्ट में से 15 में एनपीई पाए गए.

इन 15 प्रोडक्ट में से ज्यादातर अंडरवियर और बच्चों के कपड़े थे. ये ऐसे प्रोडक्ट हैं जो त्वचा के साथ लंबे समय तक और निकट संपर्क में रहने के कारण जोखिम को बढ़ाते हैं, क्योंकि इनके जरिए शरीर में अवशोषण आसान होता है. चिंताजनक रूप से, सबसे अधिक कॉन्सेंट्रेशन अंडरवियर में पाई गई, जो 22.2 mg/kg से 957 mg/kg तक थी. सबसे उच्च स्तर (957 mg/kg) एक फीमेल होजरी (महिलाओं का अंडरगार्मेंट) में पाया गया.

इसके अलावा, 60 फीसद शिशु और बच्चों के प्रोडक्ट में एनपीई की मौजूदगी पाई गई, जिनका कॉन्सेंट्रेशन 8.7 mg/kg से 764 mg/kg तक था.

रिपोर्ट में चेन्नई के कूम और अदयार, लुधियाना (पंजाब) के बुद्धा नाला, पाली (राजस्थान) के बांदी और अहमदाबाद के साबरमती नदियों के सतही जल में भी एनपी की मौजूदगी पाई गई. रिसर्च में पाया गया कि देश के टेक्सटाइल हब के आसपास पानी में एनपी का कॉन्सेंट्रेशन काफी बढ़ जाता है.

जबकि यूरोपीय यूनियन (EU) सहित कई देशों ने कपड़ा और सौंदर्य प्रसाधनों में इन रसायनों के इस्तेमाल को रेगुलेट किया है, भारत अब भी इस मामले में पीछे है. EU ने एनपीई युक्त कपड़ों के निर्माण और आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. हालांकि, एशिया-प्रशांत क्षेत्र और खास कर भारत में नियमों की कमी के कारण ये जहरीले केमिकल व्यापक रूप से इस्तेमाल में हैं.

टॉक्सिक्स लिंक के सहायक निदेशक सतीश सिन्हा ने कहा, "पर्यावरणीय मैट्रिक्स और टेक्सटाइल प्रोडक्ट में एनपी की मौजूदगी आम लोगों के लिए बड़ी चिंता की बात है." उन्होंने कंज्यूमर प्रोडक्ट में एनपी और एनपीई की मौजूदगी को सीमित करने और औद्योगिक उत्सर्जन के जरिए इन रसायनों के पर्यावरण में रिलीज को रोकने के लिए नियामक मानकों की जरूरत पर जोर दिया. मौजूदा समय में, भारत में इनके इस्तेमाल पर सिर्फ सौंदर्य प्रसाधनों में ही प्रतिबंध है.

टॉक्सिक्स लिंक ने कई कपड़ा निर्यातकों से भी बात की, जिन्होंने इस बात की पुष्टि की कि वे उन देशों के ग्राहकों के लिए एनपीई के बिना कपड़े बनाते हैं जहां इस केमिकल पर बैन है. सिन्हा ने कहा, "विकल्प मौजूद हैं. हमें सुरक्षित रसायनों को अपनाने के लिए नियमों की जरूरत है."

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