गंभीर विषय पर सधी हुई फिल्म है ‘बिस्कुट’

इटली, अमेरिका, चिले, इंग्लैंड, और कनाडा समेत भारत के दर्जनों फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई जा चुकी फिल्म ‘बिस्कुट’ का स्क्रीनप्ले वर्जीनिया में रहने वाले अमिष श्रीवास्तव ने लिखा है. पेश हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंशः

'बिस्कुट' फिल्म का पोस्टर और (दाएं) स्क्रीनप्ले लेखक अमिष श्रीवास्तव
'बिस्कुट' फिल्म का पोस्टर और (दाएं) स्क्रीनप्ले लेखक अमिष श्रीवास्तव

इटली, अमेरिका, चिले, इंग्लैंड और कनाडा समेत भारत के दर्जनों फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई जा चुकी फिल्म ‘‘बिस्कुट’’ बेस्ट निर्देशन, ऐक्टर, संगीत, समेत बेस्ट सामाजिक फिल्म और बेस्ट ऑडियंस पुरस्कार हासिल कर चुकी है. देश में यह पहली बार 7 फरवरी, 2022 को गोरिल्ला शॉर्ट्स यूट्यूब चैनल पर रिलीज की गई. यह फिल्म उनके पहले से चल रही ऑफबीट सीजन 1 सिरीज का हिस्सा है. गोरिल्ला शॉर्ट्स की दूसरी फिल्में जैसे ‘‘स्टेशन मास्टर फूल कुमार’’ और ‘‘चढ्ढी’’ चर्चित हो चुकी हैं. ‘‘बिस्कुट’’ यह बताती है कि लोकतंत्र में आम आदमी का वोट ही बदले और बदलाव का सबसे ताकतवर हथियार है. मुख्य कलाकारों में नेटफ्लिक्स सिरीज़ ‘‘सैक्रेड गेम्स’’ से चर्चा में आए चितरंजन त्रिपाठी ने गांव के दबंग सरपंच नवरतन सिंह की भूमिका निभाई है. नायक दलित भूरा की भूमिका निभाई है अमरजीत सिंह ने जो कि वेबसिरीज़ ‘‘मिर्ज़ापुर’’ और ‘‘पाताल लोक’’ में ज़ोरदार भूमिका में रहे हैं. बिस्कुट बनाने वाले 'सत्तन' यानी चेतन शर्मा चर्चित फिल्म ‘‘आंखो देखी’’ से लेकर ‘‘पगलैठ’’ तक दर्शकों में अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे हैं. 
 
इसके निर्माता संदीप शांत डेट्रॉइट की टीएसएस फिल्म्स के सीईओ हैं और उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में ही पले-बढे़, इसलिए वे चाहते थे कि फिल्म किसी सेट पर न होकर उनके गाँव में ही शूट की जाए. मुंबई फिल्म इंडस्ट्री से पूरा शूटिंग क्रू और मुख्य ऐक्टर्स बलरामपुर के दूरदराज गांव सूरत सिंह डीग में लगभग दस दिनों के लिए ठहराए गए और शूटिंग सात दिनों में खत्म हुई. इस गांव के दर्जनों ऐसे गांववालों ने भी फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिन्होंने अपने जीवन में कभी फिल्म कैमरा तक नहीं देखा था.

निर्देशन के साथ साथ 'बिस्कुट' फिल्म का स्क्रीनप्ले अमेरिका के वर्जीनिया राज्य में रहने वाले अमिष श्रीवास्तव ने लिखा है. लखनऊ में पले-बढ़े अमिष ने फिल्म स्टडीज के लिए मशहूर अमेरिकी यूनिवर्सिटी यूसीएलए एक्सटेंशन से स्क्रीनप्ले की पढ़ाई की है, और न्यूयॉर्क में फिल्म डायरेक्शन सीखा. उनके अनुभवों के बारे में उनसे बातचीत का अंशः

अमे‌रिका में बैठे-बैठे ‘‘बिस्कुट’’ की कहानी कैसे सूझी ?
लगातार खबरों में शोषित वर्ग के खिलाफ अत्याचार की खबर सुनते रहते थे और ये भी लगता था कि इन्हें इतना कमजोर किया गया है तो ये ताकतवर लोगों से बदला लेंगे भी कैसे. इसी उधेड़बुन में चुनावों का ख्याल आया. अमेरिका में रहने पर भी लोकतंत्र की समझ और मज़बूत हुई और जाना की बदला तो चुनावों में ही लिया जा सकता है! तो बस यही सोचते सोचते यह कहानी मेरे मन में आई. 

इतना पैसा कहां से इकट्ठा किया?
मेरी एक फुल फीचर फिल्म "आदि" का स्क्रीनप्ले 2019 में सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में चुना गया था. वहां मैं अपने पुराने मित्र संदीप शांत के साथ जा रहा था. हम दोनों शिकागो के एयरपोर्ट पर दूसरी फ्लाइट का वेट करते हुए कॉफ़ी पी रहे थे, तब मैंने उन्हें 10 मिनट में बिस्कुट की खानी सुनाई! कहानी खत्म होते ही उन्होंने कहा, ‘‘बनाओ ये फिल्म, मैं इसे प्रोड्यूस करूंगा.’’ फिर वापस आकर संदीप जब अपने घर बलरामपुर गए तो समय लगाकर उन्होंने ऐसे गांव को ढूंढा जिसकी बात मैंने अपनी फिल्म की कहानी में उन्हें बताई थी. उन्होंने वैसे ही घरों और हवेली का वीडियो बनाकर मुझे भेजा और कहा फिल्म तो यहीं बनेगी. मैंने कहा कि मुंबई से फिल्म क्रू और ऐक्टर्स लाने में बहुत मंहगा पड़ेगा. वे बोले, ‘‘फिल्म रियल लगनी चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे तुमने मुझे बताया था. पैसे की चिंता तुम मत करो.’’ बस फिर मुंबई में किसी सेट पर फिल्म शूट करने का ख्याल छोड़ दिया. सुरेश मैथ्यू को मैंने एग्जीक्यूटिव प्रोडूसर बनने के लिए मनाया. फिर उन्होंने ही टीम इकट्ठी की.  

एक्टर्स कैसे मिले ?
सुरेश ने ‘‘सैक्रेड गेम्स’’ के कास्टिंग निर्देशक शिवम् गुप्ता से मेरी बात कराई. तब मुझे मुख्य किरदार "भूरा" के लिए बहुत ऑडिशंस करने पड़े. जब सत्तन के लिए चेतन शर्मा का नाम आया तो मुझे लग गया की वे फिट होंगे. चितरंजन त्रिपाठी को कहानी सुनाई और कहा 45 डिग्री तापमान में गांव में रहना पड़ेगा. सब कहानी सुनकर तैयार हो गए. बाकी करीब एक दर्जन कलाकार और चाहिए थे. उसके लिए गांव में पहुंकर ही लोगों से बात की और जिसे भी ऐक्टिंग में दिलचस्पी थी, उसे हमने मौका दिया. 

इस फिल्म को बनाने से पहले क्या किया आपने ?
मैं अमेरिका गया 2007 में. उससे पहले भारत में रहते हुए ही मैंने कई टीवी चैनल्स में काम किया है. 2003 के अमेरिका-इराक युद्ध को बगदाद, तुर्की और कुवैत से कवर किया है. तालिबान के जाने के बाद अफगानिस्तान की हालत पर मैंने बड़ी रिपोर्टिंग की है. फिर भारत-पाकिस्तान के बीच करगिल युद्ध भी कवर किया है. अमेरिका में मैंने हेलल और होप नाम की एक डाक्यूमेंट्री बनाई—आइसिस द्वारा किडनैप की गई यजीदी लड़कियों पर—जो कि दुनिया के दर्जनों फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई और मुझे बुलाया गया.

आगे का क्या इरादा है?
कहानियां कई हैं दिमाग में लेकिन आजकल किसी गंभीर विषय पर फिल्म बनाना मुश्किल हो गया है. सरकारों का रुख बदलता रहता है. आप नजर में रहते हैं, चाहे पत्रकार हों या फिल्म निर्देशक. तो कहानियां लिखी पड़ी हैं. ऐक्टर्स घबरा जाते हैं तो कभी निर्माता. लेकिन मैं बनाऊंगा तो गंभीर मसलों पर ही. पुराने रशियन फिल्म मेकर आंद्रे तारकोव्स्की के बाद ग्रीस के निर्देशक कोस्टा गावरास मेरे सबसे पसंदीदा निर्देशक हैं जो बड़े बड़े मसलों पर ही बहुत सधी हुई फिल्में बनाते थे.

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