खाली पड़ती अण्णा की लोकपाल आंदोलन क्लास
ये नाराजगी अन्ना से नहीं अन्ना आंदोलन से निकले नेताओं की खेप से है!

सक्षम किसान, सशक्त लोकपाल और चुनाव सुधार की मांगों को लेकर सामजसेवी अण्णा हजारे के आंदोलन का आज पांचवां दिन है, पहले दिन से ही जिस जन सैलाब की उम्मीद थी वो नहीं दिख रहा है. 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में जहां हजारों लोगों ने आंदोलन का समर्थन किया था, वहीं इस बार वो साथ मिलता नहीं दिख रहा है.
दिल्ली के रामलीला ग्राउंड में घुसते ही लगता नहीं है जैसे यह वहीं जगह है जहां 2011 में ऐसा आंदोलन हुआ था जिसने भारत के राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल मचा दी थी, दूर से देखने में लगता है जैसे शादी के बाद बारात जा चुकी हो.
खाली पड़ा पंडाल, कुछ लोग आराम से लेटे हुए अपनी थकान दूर कर रहे हों, 2011 आंदोलन के जैसा न तो जोश था और न ही वो माहौल, और अंदर जाने के बाद देश भक्ति के गाने सुनाई दिए तो लगा ऐसा कुछ पिछले आंदोलन में भी हुआ था. पंडाल में आराम करतें हुए लोगों से पता लगता है की वे किसान हैं जो सरकर से नाराज और अपनी मांगो को पूरी करने के लिए यहां बैठे हैं.
वहीं, आंदोलन से जुड़े एक सहायक राजेश खन्ना के मुताबिक पुलिस और प्रशासन की सख्ती की वजह से लोगों की तादाद कम है, पुलिस ने रामलीला मैदान के गेट बंद कर रखे हैं लोग कैसे आएंगे? लेकिन दूसरी तरफ पुलिस और सुरक्षा कर्मियों का कहना है कि अराजक तत्व यहां न आएं इसलिए एहतियातन गेट बंद किए गए हैं.
आंदोलन से 3 दिन से जुड़े अंबाला के कुछ किसानों ने बताया वे बेहद तकलीफों के बाद यहां पहुंचे हैं. केंद्र सरकार द्वारा किए वादों के पूरा न होने से ये सभी नाराज हैं. किसानों ने ये भी कहा कि जब हमारी मांगे पूरी नहीं होंगी हमे सुख सुविधाएं नहीं मिलेंगी, हमारी स्थिति में सुधर नहीं होगा तो हमारे पास आत्महत्या के सिवा कोई रास्ता नहीं बचता हैं, अपने परिवार को बुरे हाल में अब देखने की हिम्मत नहीं है.
गोरखपुर से आए एक किसान ने बताया कि जेब और पेट दोनों खाली हैं, उनके पास खाने तक के पैसे नहीं बचते, तो बच्चों को सुनहरा भविष्य कैसे देंगे?
आंदोलन के चौथे दिन महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्री गिरीश दत्तात्रेय महाजन रामलीला मैदान पहुंचे, करीब आधे घंटे तक अण्णा से मुलाकात की, इस बीच रामलीला मैदान में मौजूद सभी किसान संगठनों के प्रतिनिधि और जन समर्थकों के बीच एक उम्मीद की किरण जागी kf उनकी मांगे पूरी हो जाएंगे, सरकार की तरफ़ से आए फरमान को जानने के लिए उत्सुकता से इंतजार करने लगे. बैठक के बाद महाजन ने बताया कि सरकार ने सोच-विचार के बाद उनकी दस-ग्यारह मांगों को पूरा करने के लिए तैयार हो गई हैं.
मुलाकात के बाद अण्णा बोले कि सरकार के आश्वासनों पर यकीन नहीं किया जा सकता, इसलिए सरकार को लिखित स्वीकृति देनी होगी. उसके बाद ही अनशन के समाप्त करेंगे. अण्णा ने कहां कि सरकार अनाज का आयात करती है, जिससे किसान परिवारों को नुकसान उठाना पड़ता है. सरकार को अनाज आयात के बजाए किसानों की फसलों पर ध्यान देना चाहिए, जिससे फसलों की उचित कीमत किसानों तक पहुंच सकेंगी.
दिल्ली के रामलीला मैदान पर एक नए आंदोलन की जरूरत बताते हुए अण्णा ने महाराष्ट्र सदन में एक प्रेसवार्ता में कहां था कि एनडीए और यूपीए दोनों सरकारों ने लोकपाल को कमज़ोर किया हैं, 23 मार्च से सक्षम किसान, सशक्त लोकपाल और चुनाव सुधार की मांगों को लेकर अण्णा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
अण्णा हजारे शारीरिक अस्वस्थता के कारण शनिवार को मंच से हट गए थे, उनकी तबियत खराब हो गई थी. डॉक्टर की टीम का कहना है कि 81 साल की उम्र में पानी न पीने के कारण शरीर कमजोर हो गया है. कड़ी धूप में अन्न त्याग कर अण्णा के अनशन में साथ दे रहे लोगों की तबियत साथ नहीं दे रही है.
पिछले आंदोलन में एक बदलाव की लहर उठी थी, जिसने कई चेहरों को राजनीती में पहचान दी थी, हालांकि इस बार के आंदोलन न उतना दमदार और न ही उतना कारगर होता है.
आराम करते हुए थके किसान देखे जा सकतें है. पंडाल तो लगभग खली पड़ा है, लेकिन मंच से बजते देश भक्ति के गीत सुनकर लोगों में कुछ देरके लिए तो जोश जगता है, लेकिन गानों से जोश जगता है क्रांति नहीं.
इस बार के आंदोलन की मांगे वहीं है लेकिन फिर 7 साल क्यों लगे अण्णा को दूसरे आंदोलन के लिए, क्या 7 साल में अण्णा को नहीं पता लगा के सरकार लोकपाल को कमज़ोर कर रही हैं, 2019 लोकसभा चुनाव अगले साल है, ठीक उससे एक साल पहले ये आंदोलन आखिर क्यों?
क्यों 7 साल तक आंदोलन नहीं किया और अचानक चुनाव से एक साल पहले अण्णा दिल्ली पहुंच गए. जनता का साथ नहीं मिल पाना आंदोलन का ठंडे बास्ते में जाना कहीं न कहीं इशारा करता है कि लोगो में अण्णा के प्रति विश्वास कम हो गया हैं.
आंदोलन में हार्दिक पटेल के आने की खबर थी मगर आधिकारिक लोगों ने किसी तरह की पुष्टि नहीं करी है.
लेकिन ऐसा बताया जा रहा है कि वो यहां आ सकते हैं. जब तक कुछ ठोस कदम नहीं उठते देशभक्ति गानों से कोशिश जारी रखनी पड़ेगी वरना आंदोलन की हालत और बुरी हो जाएगी.
मोहम्मद असीम इंडिया टुडे मीडिया इंस्टीट्यूट के छात्र हैं और इंडिया टुडे में प्रशिक्षु हैं.
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