हिमाचल में भूमि कानून में संशोधन से बेटियों को मिले पंख

करीब 50 वर्षों के बाद हिमाचल सरकार ने लैंड सीलिंग ऐक्ट में बदलाव करके राज्य के परिवारों को ज्यादा जमीन खरीदने की इज़ाजत दे दी ताकि वे अपनी पुत्री को भी इसमें शामिल कर सकें.

बच्चों के साथ मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू
बच्चों के साथ मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू

-डी.डी. गुप्ता 
       
हिमाचल प्रदेश में अब बेटियों की भी खुद की जमीन होगी. जहां वे ना सिर्फ खेती बागवानी या कोई कारोबार कर सकती हैं, बल्कि खुद का आशियाना भी बना कर रह सकती हैं. यूं तो जमीन में बेटियों को थोड़ी बहुत हिस्सेदारी इस राज्य में कानूनी तौर पर मिलती थी परन्तु जहां जमीन का रकबा बड़ा हो वहां राजस्व भू खरीद अधिनियम में बेटियों पर बंदिश थी. कानून के मुताबिक, पुत्री की जगह केवल पुत्र को ही जमीन का या उसके नाम पर लेने का अधिकार था. करीब 49 वर्षों के बाद हिमाचल सरकार ने लैंड सीलिंग ऐक्ट में बदलाव करके एक परिवार को ज्यादा जमीन खरीदने की इज़ाजत इसलिए दी ताकि वह अपनी पुत्री को भी इसमें शामिल कर सके. पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सुखविंदर सिंह सरकार ने यह बिल संशोधन के लिए पेश किया और बजट सत्र के आखिरी दिन इसे पारित भी कर दिया. बिल के पारित होने से सन् 1974 के बाद पहली बार हुए संशोधन के जरिए पहाड़ी प्रदेश की महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है.

दरअसल हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद सन् 1971 में एक लैंड सीलिंग ऐक्ट लाया गया था. तब डॉ. वाई. एस. परमार हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री थे. इस ऐक्ट के प्रावधान के मुताबिक, पति, पत्नी और उनके तीन नाबालिग बच्चें हो तो उन्हें राज्य में 150 बीघा भूमि खरीदने की इजाजत दी गई. यानी भू-खरीद की उपरी सीमा 150 बीघा कर दी गई. इससे ज्यादा कोई भूमि हो तो वह सरकारी रकबे में समायोजित हो जाती थी. इसके अतिरिक्त यदि परिवार में अतिरिक्त बच्चे हों, यानी चैथी या पांचवीं औलाद तो परिवार उन दो के नाम पर कुल जमीन का एक पांचवां हिस्सा ले सकता था. बाकी बची जमीन सरकार को वापस चली जाने का कानून था. इस व्यवस्था के दौरान आज़ादी से पहले राजसी या रजवाड़ों की जमीनों को 300 बीघा रखने तक सीमित कर दिया और बाकी की जमीन सरकार के पास समायोजित हो जाती थी.

राज्य के प्रधान सचिव (राजस्व) ओंकार शर्मा कहते हैं कि जब 1974 में यह बिल राष्ट्रपति के यहां मंजूरी के लिए गया तब वहां पर एक अतिरिक्त यूनिट में पुत्री शब्द को हटाने का सुझाव आया और तब 1974 में यह बिल पुत्र अथवा पुत्री के बजाए केवल पुत्र के नाम पर पारित हो गया. इसी वजह से जब परिवारों में जमीन खरीद सीमा का विषय आया तब 150 बीघा तय होने के कारण बेटियों के लिए पिता जमीन खरीद नहीं सकता था. यही कारण भी रहा कि जब बेटियां शादी ब्याह करके गई तो उन्हें अपने पिता की जमीन का वह हिस्सा नहीं दिया जा सकता था जो बेटा ले लेता था.

ऐसे में बेटे-बेटियों के बीच इस भेद को दूर करने के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार ने सत्ता के करीब 100 दिनों में बिल में संशोधन  का फैसला लिया.

मुख्यमंत्री की पहल
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू कहते हैं, "देश आजाद हुए 75 वर्ष हो गए और हिमाचल बने 51 साल, ऐसे में अभी भी प्रदेश में बेटियोें के लिए अतिरिक्त भूमि खरीद पर रोक तर्कसंगत नहीं थी. मैंने सोचा था कि जब भी राज्य में सरकार हमारी बनेगी, मैं इसमें बदलाव करूंगा. आज के दौर में बेटे-बेटी में कोई भेदभाव नहीं है."
गौरतलब है कि पूर्व में राजसी वंशजों की बेटियों को हिमाचल की जमीन में हिस्सा इसी कमी के कारण नहीं मिला पाया था. 

बढ़ी जमीन खरीद की सीमा
अब नई व्यवस्था में लैंड सीलिंग ऐक्ट (हिमाचल प्रदेश भू-जोत अधिकतम सीमा (संशोधन) अधिनियम 2023 में एक व्यक्ति के पास 150 बीघा जमीन पहले लेने का अधिकार है वहीं बेटी के नाम पर या बेटी के लिए व्यक्ति 150 बीघा अतिरिक्त भूमि ले सकता है. यानी कुल 100 बीघा जमीन की खरीद हो पाएगी. यह कबायली और अन्य सभी क्षेत्रों के लिए भी लागू होगी.

उद्योगों को भी छूट 
प्रधान सचिव (राजस्व) ओंकार शर्मा कहते हैं, “हमें 150 की खरीद सीमा को 300 तक सोलन पावर हाऊस लगाने के लिए भी कर दिया है. अब उद्योगों, हाइड्रोपावर में छूट के लिए भी अब अधिकतम खरीद सीमा 300 बीघा  होगी." कुल मिला कर हिमाचल में बेटियों को उनकी बराबरी का हक देने के साथ-साथ इंडस्ट्री, हाइड्रोपावर व सोलर उर्जा के लिए भी जमीन खरीद  को लचीला बना दिया गया है.

हालांकि कानून में इस संशोधन से कबायली इलाकों में महिला को पैतृक संपति में हक को लेकर कोई बदलाव नहीं होगा. वर्तमान में कबायली इलाकों के कानून के मुताबिक, बेटी को विवाह के बाद पिता की संपति में हिस्सा नहीं मिला. वहीं कई स्थानों में आज भी स्थानीय कानून के तहत बहु-पति विवाह प्रथा चल रही है, ताकि जमीन या संपति का बंटवारा होने से बचाया जा सके.

राजस्व विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, हाल ही में बिल में जो संशोधन हुआ है वह अग्रिम माना जाएगा. पिछले समय के लिए यह लागू नहीं होगा. वहीं, हिमाचल  विधानसभा में इस बिल पर विपक्षी दल भाजपा ने मौन साध रखा है. उसने न तो इसके पक्ष में बोला है, न ही इसके विरोध में. सूत्र बताते हैं कि भू-खरीद सीमा को लचीला बनाने का फैसला उनकी ओर से भी सही माना जा रहा है.

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