समलैंगिक शादी के कानून पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की ये बातें सबको सुननी चाहिए
समलैंगिक जोड़ों की शादी को वैधानिक मान्यता देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला 17 अक्टूबर को आ तो गया लेकिन इससे एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय में फौरी तौर पर निराशा का माहौल है. वजह यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने कोई ठोस फैसला उनकी शादी को वैधानिक करने के संबंध में नहीं दिया.

सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देना संसद का काम है. सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 के बहुमत से इस मसले पर अपना फैसला सुनाया है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने 10 दिन सुनवाई करने के बाद ये फैसला दिया है. इस संवैधानिक बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल थे. कोर्ट ने सुनवाई के बाद 11 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
सुप्रियो और अभय डांग इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता थे. इसके अलावा 20 और याचिकाएं डाली गई थीं. केंद्र सरकार ने सुनवाई के दौरान कहा था कि अगर समलैंगिक विवाह को मान्यता देनी होगी तो संविधान के 158 प्रावधानों, भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और 28 अन्य कानूनों में बदलाव करना होगा.
हालांकि फैसला समलैंगिक वर्ग के खिलाफ आया है लेकिन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कई बातें ऐसी कहीं जिन्हें ध्यान में रखा जाना चाहिए. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक लोगों को साथी चुनने की आजादी है और सरकार को इन्हें सभी तरह के अधिकार देने चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपनी संस्थागत सीमाओं के कारण स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म नहीं कर सकता.