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Homeवेब एक्सक्लूसिवफोटो गैलरीइंदिरा से राहुल गांधी तक कैसे रहे प्रणब मुखर्जी के रिश्ते, देखें तस्वीरें

इंदिरा से राहुल गांधी तक कैसे रहे प्रणब मुखर्जी के रिश्ते, देखें तस्वीरें

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने उन पर किताब लिखी है. किताब लॉन्च के समय उन्होंने प्रणब मुखर्जी के गांधी परिवार से रिश्तों पर कई बातें साझा की हैं

कांग्रेस अधिवेशन में राजीव गांधी (बाएं) के साथ प्रणब मुखर्जी (दाएं)
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भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने उनकी ज़िंदगी पर एक किताब लिखी है- Pranab My Father: A Daughter Remembers. यह किताब और शर्मिष्ठा मुखर्जी और किताब लॉन्च के दौरान उनके बयान सुर्खियों में हैं. शर्मिष्ठा ने कहा है कि भरोसे की कमी की वजह से राजीव गांधी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल से हटा दिया था. अपने पिता के सहयोगियों के बयान के आधार पर उन्होंने कहा है कि राजीव गांधी प्रणब मुखर्जी को अपनी सरकार के लिए चुनौती मानते थे.

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कांग्रेस पार्टी में प्रणब मुखर्जी का राजनैतिक करियर इंदिरा गांधी के दौर से ही मजबूत रहा था. इंदिरा गांधी की सरकार में वे मंत्री थे. हालांकि बेटे राजीव गांधी से प्रणब मुखर्जी की खास नहीं बनी. नब्बे के दशक में एक ऐसा भी मौका आया जब राजीव प्रणब को अपने लिए चुनौती मानने लगे थे. गांधी परिवार के करीबी रहे एमएल फोतेदार ने अपनी किताब 'द चिनार लीव्ज' में एक रोचक किस्सा भी बताया है. 1990 में जब वीपी सिंह की सरकार गिर गई और राजीव गांधी संसद में सबसे बड़े दल के नेता थे तब राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन थे. वेंकटरमन ने फोतेदार से कहा कि राजीव प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री बनाएं. ये बात जानकर राजीव हैरत में थे. फोतेदार लिखते हैं कि "राजीव जी ने ऐसा नहीं किया बल्कि चंद्रशेखर को समर्थन दे दिया."

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मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त प्रणब मुखर्जी का कद पार्टी में इतना बड़ा हो चुका था कि उन्हें 'संकटमोचक' का टैग मिल गया था. संसद से संगठन तक हर समस्या का समाधान प्रणब मुखर्जी ही खोजते थे. इसमें सबसे मददगार होती थी पार्टी लाइन से इतर उनके रिश्ते. 2011 में पीएफआरडीए (पेंशन) विधेयक जब आया तो मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने खूब विरोध किया. बीजेपी को मनाने का जिम्मा उन्हीं के कंधों पर था. प्रणब मुखर्जी ने बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली को अपने दफ्तर में बुलाया. बीजेपी के नेताओं ने विधेयक में कुछ संसोधन का प्रस्ताव रखा जिसे मुखर्जी ने मान लिया और विपक्ष का विरोध खत्म हो गया.

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26 जून, 2012 को प्रणब मुखर्जी बतौर वित्त मंत्री अपना इस्तीफा सौंपने  जा रहे थे. नॉर्थ ब्लॉक के बाहर मीडिया की भीड़ जुटी हुई थी. उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा, "आज मैं एक नए सफर की शुरुआत कर रहा हूं. यही चीज़ मैं मिस करुंगा कि वित्त मंत्रालय के बाहर कार में बैठते वक्त आप लोग मुझे रोकेंगे नहीं. कभी-कभार मैंने आप लोगों को झिड़का है, लेकिन आपने हमेशा मेरा सहयोग किया." कांग्रेस पार्टी में झिड़क कर भी आहत नहीं करने वाले नेता के तौर पर प्रणब मुखर्जी को देखा जाता था. कांग्रेस पार्टी में रहते हुए उन्होंने सरकार और पार्टी को कई संकटों से इसी शैली में उबारा था.

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संकट से बाहर निकालने वाले प्रणब मुखर्जी जब 2013 में पहली बार राष्ट्रपति बने तो ऐसा मौका भी आया जब कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़े कर दिए. सजायाफ्ता सांसद-विधायकों की सदस्यता खारिज होने से बचाने के लिए कांग्रेस सरकार अध्यादेश ले आई. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास मंजूरी के लिए भेजा गया. अध्यादेश के विरोध को देखते हुए उन्होंने सरकार के तीन वरिष्ठ मंत्रियों- कपिल सिब्बल, सुशील कुमार शिंदे और कमलनाथ को तलब कर सफाई मांगी. उनके इस रुख से कांग्रेस को डर था कि कहीं मुखर्जी अध्यादेश लौटा ना दें.

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अक्टूबर, 2017 में इंडिया टुडे के साथ खास बातचीत में प्रणब मुखर्जी ने सोनिया गांधी के साथ अपने रिश्तों पर बात की थी. उन्होंने कहा था, "शुरुआती वर्षों में मेरे प्रति उनके व्यवहार में एक ठंडापन था लेकिन वाजपेयी के सरकार बना लेने के बाद समीकरण में बदलाव आया." दरअसल 1998 में कांग्रेस के पचमढ़ी अधिवेशन में प्रणब मुखर्जी के काम से सोनिया गांधी खासी प्रभावित हुई थीं. घोषणापत्र तैयार करने से लेकर मीडिया को ब्रीफ करने तक की जिम्मेदारी उन्हीं ने संभाली थी. 

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