नेशनल मैथेमेटिक्स डे : तस्वीरों में जानिए रामानुजन सहित कुछ प्रमुख भारतीय गणितज्ञों के अनसुने किस्से
श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में देश में हर साल 22 दिसंबर को 'नेशनल मैथमैटिक्स डे' मनाया जाता है

कल्पना कीजिए, आज से दस हजार साल पहले आदिमानव युग है. दो आदिमानव A और B इस बात पर लड़ रहे हैं कि A ने उन पांच शकरकंदों में से दो खा लिए हैं, जिन्हें B ने मांद में संभाल कर रखा था. A को इस बात का आभास है कि वहां शकरकंदों की संख्या कम है, लेकिन वो इसे अभिव्यक्त कैसे करे? मामला उलझ गया है, झगड़ा शुरू हो गया है. साथ ही, शुरू हो गया है गणित का विकासक्रम, जो आज न जाने कहां से कहां तक पहुंच चुका है.
गणित के इस विकास में भारतीयों ने प्रमुख भूमिका निभाई है. प्राचीन भारत की बात करें तो 'फादर ऑफ इंडियन मैथमैटिक्स' कहे जाने वाले आर्यभट्ट से लेकर, भास्कर प्रथम, भास्कर द्वितीय, ब्रह्मगुप्त (फादर ऑफ अलजेब्रा), महावीर आदि के नाम सामने आते हैं. वहीं, बाद के वर्षों में भी कई प्रमुख नाम इसमें शामिल हैं. इनमें से एक मुख्य नाम श्रीनिवास रामानुजन का है, जिनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में देश में हर साल 22 दिसंबर को 'नेशनल मैथमैटिक्स डे' मनाया जाता है.
आज के समय में भी भारत गणित को समृद्ध कर रहा है. पिछले सौ सालों में देखें तो कई सारे नाम हमारे सामने मौजूद हैं. आइए इनमें से कुछ प्रमुख नामों की दिलचस्प कहानी पर चर्चा करते हैं. शुरुआत करेंगे रामानुजन से.
1. श्रीनिवास रामानुजन
भारत के महान गणितज्ञों में से एक रामानुजन, जिनकी जयंती पर साल 2012 से नेशनल मैथेमेटिक्स डे मनाने की शुरुआत हुई है. लेकिन क्या आप जानते हैं जब इंग्लैंड के मशहूर गणितज्ञ जी. एच. हार्डी ने रामानुजन को पत्र लिखकर कैंब्रिज आने का न्योता दिया, तो पूर्वाग्रहों के चलते रामानुजन ने इंकार कर दिया था. दरअसल, उस समय यह धारणा थी कि ब्राह्मणों को समुद्र पार नहीं करना चाहिए. रामानुजन की मां उनके कैंब्रिज जाने के विचार के खिलाफ थीं. साल 1914 में जब रामानुजन को मां की सहमति मिली, तो ही वे कैंब्रिज के लिए रवाना हुए.
2. राज चंद्र बोस
साल 1901 में बंगाल में जन्मे राज ने 'कॉम्बिनैट्रिक्स' में महत्वपूर्ण योगदान दिया. कॉम्बिनैट्रिक्स, गिनने और अरैंज करने के लिए एक गणितीय प्रक्रिया होती है, जिसका इस्तेमाल कंप्यूटर साइंस में होता है. इनसे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है. इनके पिता प्रताप चंद्र बोस बहुत सख्त किस्म के आदमी थे, और उम्मीद करते थे कि राज प्रत्येक विषय में अपनी कक्षा में प्रथम आएं. एक बार, आठवीं कक्षा में भूगोल की मध्यावधि परीक्षा देते समय राज बीमार हो गए. रिजल्ट आया तो राज कक्षा में सेकंड आए थे. इस पर पिता बहुत बिगड़े, और उन्होंने राज को 'विश्व का भूगोल' नाम की एक 200 पेज की किताब को याद करने का आदेश दिया. राज ने इसे चुनौती की तरह लिया, और दो महीने से भी कम समय में उसे पूरी तरह कंठस्थ कर लिया था.
3. पी.सी महालनोबिस
इन्हें भारतीय सांख्यिकी का वास्तुकार कहा जाता है. महालनोबिस ने सैंपलिंग थ्योरी पर काम किया, जो आगे चलकर 'महालनोबिस डिस्टेंस' के रूप में विकसित हुआ. महालनोबिस डिस्टेंस इस बात का माप है कि कोई बिंदु, बिंदुओं के समूह से कितनी दूर है. कैंब्रिज विश्वविद्यालय से गणित और भौतिकी पढ़ने के बाद साल 1915 में जब महालनोबिस भारत आए, तो उन्होंने बंगाल के प्रेसीडेंसी कॉलेज में छात्रों को भौतिकी पढ़ाना शुरू कर दिया. साथ ही, अलग से वे छात्रों को सांख्यिकी भी पढ़ा रहे थे. उनके दोस्त रवींद्रनाथ टैगोर को जब यह बात पता चली, तो उन्होंने महालनोबिस की मुलाकात कलकत्ता विश्वविद्यालय के जाने माने विद्वान ब्रजेंद्रनाथ सील से कराई. सील ने महालनोबिस को विश्वविद्यालय के एग्जाम रिकॉर्ड्स के विश्लेषण का जिम्मा सौंपा. इसके बाद महालनोबिस को और भी महत्वपूर्ण काम मिले. आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें दूसरी पंचवर्षीय योजना के निर्माता के तौर पर जिम्मेदारी सौंपी, जिसे उन्होंने बेहतर ढंग से निभाया. उनके कामों को देखते हुए साल 1968 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. महालनोबिस के जन्मदिन पर ही देश में राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस मनाया जाता है.
5. शकुंतला देवी
मानव कंप्यूटर के नाम से प्रसिद्ध शकुंतला देवी का जन्म 4 नवंबर,1929 को बैंगलोर में हुआ था. जब वे तीन साल की थीं, तभी उनके पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचान लिया था. दरअसल, उनके पिता जो एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, घर से भागकर सर्कस में काम करने लगे थे. बचपन में नन्ही शकुंतला के साथ खेलते हुए, जब उन्होंने देखा कि बच्ची ताश के नंबरों को आसानी से याद कर ले रही है, तो उन्होंने इसे सर्कस में दिखाना शुरू कर दिया. बिना किसी औपचारिक शिक्षा के शकुंतला का गणना कौशल ऐसे ही निखरता रहा. महज 6 साल की उम्र में उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय में अपनी अंकगणितीय क्षमताओं का प्रदर्शन किया. साल 1982 में उनका नाम गिनीज बुक में भी दर्ज हुआ, उन्होंने मात्र 28 सेकेंड के भीतर 13 अंकों की दो संख्याओं का गुणा बिना किसी कंप्यूटर की मदद से कर दिखाया था.
6. डॉ. नीना गुप्ता
साल 1984 में जन्मी नीना गुप्ता एक गणितज्ञ हैं, जो कम्युटिटिव अलजेब्रा और एफिन अलजेब्रीक ज्यामिति में विशेषज्ञता रखती हैं. वर्तमान में भारतीय सांख्यिकीय संस्थान में कार्यरत नीना को बचपन से ही गणित के सवालों को हल करना पसंद था. वे इसमें घंटों समय गुजारती थीं. शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित नीना ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वो बारहवीं कक्षा में पढ़ रही थी, तो क्लास में हर कोई इंजीनियरिंग या मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए उत्सुक रहता था. उस समय उनकी मुलाकात एक सीनियर से हुई जो कलकत्ता विश्वविद्यालय से गणित (ऑनर्स) की पढ़ाई कर रही थीं. उन्होंने ही नीना को पाठ्यक्रम के बारे में बताया, और पहली बार नीना को तभी अपने जुनून में विश्वास दिखा था.
7. रमन परिमाला
इनका जन्म 21 नवंबर, 1948 को तमिलनाडु में हुआ था. एक विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ के रूप में प्रसिद्ध परिमाला ने बीजगणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनके कार्यों को देखते हुए उन्हें कई प्रतिष्ठित अवार्ड मिले, जिनमें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, इंफोसिस पुरस्कार प्रमुख हैं. इसके अलावा उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार भी हासिल हुआ है. स्टेला मॉरिस कॉलेज में जब परिमाला पढ़ रही थीं, तो एक समय में उन्होंने विषय के रूप में संस्कृत काव्य लेने का विचार किया था. लेकिन संख्याओं के मोह ने उन्हें कस कर जकड़ा हुआ था. परिमाला कहती भी हैं कि गणित में कविता-सी सुंदरता है.