लालकृष्ण आडवाणी की वो रथयात्रा जो राम मंदिर आंदोलन की बुनियाद बनी, देखें तस्वीरें
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के पक्ष में लोगों को एकजुट करने के लिए पहले पैदल यात्रा करने की योजना बनाई थी, हालांकि बाद में इसे रथ यात्रा का रूप दे दिया गया

राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े पुरोधा रहे भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में ना आने की अपील की है. दोनों की उम्र और स्वास्थ्य का हवाला देते हुए चंपत राय ने कहा कि दोनों बुजुर्ग हैं, इसलिए उनसे सम्मलित ना होने का अनुरोध किया गया है. इसी बहाने तस्वीरों में देखिए कैसे राम मंदिर आंदोलन के लिए हुई रथ यात्रा के सारथी रहे थे लालकृष्ण आडवाणी.
1990 की सितम्बर में लालकृष्ण आडवाणी ने लोगों को राम मंदिर आंदोलन के पक्ष में एकजुट करने के लिए एक पदयात्रा करने का फैसला किया. जब प्रमोद महाजन को इस बारे में पता चला तो उन्होंने कहा कि पैदल तो काफी वक्त लग जाएगा. आडवाणी ने फिर जीप यात्रा के लिए कहा तो महाजन ने एक मिनी बस को रथ का रूप देकर यात्रा करने का सुझाव दिया.
टोयोटा में बैठकर गुजरात के सोमनाथ से 'रथ यात्रा' शुरू हुई और देश के दूसरे हिस्सों से गुजरते हुए अयोध्या जाने का रूट तय हुआ. रथ यात्रा लोगों को खींचने में काफी कारगर सिद्ध हुई. हिंदुत्व समर्थकों ने मंदिरों में जाकर घंटियां बजाईं, थालियां पीटीं और रथ का जोरदार स्वागत किया, लोगों ने पहिए की धूल माथे पर लगा ली.
जैसी उम्मीद थी, इस रथ यात्रा ने देशभर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का माहौल पैदा कर दिया और गुजरात, कर्नाटक, यूपी, आंध्र प्रदेश में दंगे छिड़ गए. इसी को ध्यान में रखते हुए बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को 22 अक्टूबर की रात को गिरफ्तार कर लिया. रथ यात्रा बिहार से ही होकर उत्तर प्रदेश में दाखिल होने वाली थी.
अपनी इस यात्रा के बारे में लालकृष्ण आडवाणी अपनी आत्मकथा, 'मेरा देश, मेरा जीवन' में लिखा कि यह उनके राजनीतिक जीवन का एक रोमांचक वक्त था. हालांकि यह उससे कहीं बढ़कर था. इस यात्रा ने एक मजबूत हिंदू भावना को जागृत किया और भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा सीटें 1989 में 85 से बढ़कर 1991 के आम चुनावों में 120 हो गईं.
इस यात्रा के बाद आडवाणी ने 4 और यात्राएं की जिनमें से एक स्वर्ण जयंती रथ यात्रा भी थी. ये भारत की आजादी के 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित की गई थी जिसमें अभी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे. 1990 की उस रथ यात्रा का नतीजा 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के रूप में सामने आया.