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Homeवेब एक्सक्लूसिवफोटो गैलरीकुत्तों से लगाव से लेकर बिजनेस को शीर्ष पर पहुंचाने तक, तस्वीरों में जानिए रतन टाटा की कहानी

कुत्तों से लगाव से लेकर बिजनेस को शीर्ष पर पहुंचाने तक, तस्वीरों में जानिए रतन टाटा की कहानी

टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार (9 अक्टूबर) रात 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया. पिछले कुछ दिनों से मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनकी लंबी बीमारी का इलाज चल रहा था

रतन टाटा एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार से थे
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भारत के सबसे बड़े समूह टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार (9 अक्टूबर) रात 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया. पिछले कुछ दिनों से मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनकी लंबी बीमारी का इलाज चल रहा था. टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने उनके निधन की घोषणा करते हुए एक बयान में कहा, "टाटा समूह के लिए श्री टाटा एक अध्यक्ष से कहीं बढ़कर थे. मेरे लिए वे एक मेंटर, मार्गदर्शक और मित्र थे. उन्होंने खुद के उदाहरण के जरिए प्रेरणा दी. उत्कृष्टता, अखंडता और नवाचार के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के साथ टाटा समूह ने उनके नेतृत्व में अपने वैश्विक फलक का विस्तार किया और   इस दौरान समूह हमेशा अपने नैतिक मानदंडों के प्रति सच्चा रहा."(फोटो कैप्शन - रतन टाटा एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार से थे)

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1991 से 2012 तक टाटा समूह का नेतृत्व करने वाले रतन टाटा की विरासत न केवल महान बिजनेस उपलब्धियों की है, बल्कि "भारत और भारतीयों को सर्वोपरि" रखने के सिद्धांत में गहराई से गूंथी हुई है. 28 दिसम्बर 1937 को मुम्बई में जन्मे रतन टाटा एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार से थे. रतन टाटा टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के परपोते थे. उन्होंने 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वास्तुकला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उसके कुछ समय बाद ही पारिवारिक व्यवसाय में अपना करियर शुरू किया. (फोटो कैप्शन - रतन टाटा ने 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वास्तुकला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की)

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रतन टाटा टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के परपोते थे. उन्होंने 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वास्तुकला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उसके कुछ समय बाद ही पारिवारिक व्यवसाय में अपना करियर शुरू किया. उन्होंने 1991 में चेयरमैन का पद संभाला था, उस समय समूह के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय था. उस समय समूह का राजस्व केवल 5.8 बिलियन डॉलर था. उनके नेतृत्व में कंपनी ने अपनी पहुंच का विस्तार किया और अपने हितों में विविधता लाई, जिसके परिणामस्वरूप 2011-12 तक कंपनी का राजस्व 100 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया. (फोटो कैप्शन - रतन टाटा बेंगलुरु के येलहंका एयर बेस पर भारत के सबसे बड़े एयर शो एयरो इंडिया 2011 के दौरान एक एफ16 लड़ाकू विमान के कॉकपिट में बैठे हुए)

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टाटा इंडिका को टाटा मोटर्स ने 1998 में लॉन्च किया था और यह डीजल इंजन वाली पहली भारतीय हैचबैक थी. यह टाटा मोटर्स की भी पहली पैसेंजर हैचबैक थी. 2004 के आखिर से मॉडल को यूरोपीय और अफ्रीकी देशों में भी निर्यात किया गया था. हालांकि करीब 14 साल बाद इस कार को अप्रैल 2018 में बंद कर दिया गया था. (फोटो कैप्शन - रतन टाटा ने जमीनी स्तर पर खेलों को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित किया)

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शायद 2008 में लांच की गई टाटा नैनो से बेहतर कोई अन्य प्रोजेक्ट भारत के प्रति रतन टाटा की प्रतिबद्धता को नहीं दर्शाती. उनका सपना दुनिया की सबसे सस्ती कार बनाना था, जिसकी कीमत एक लाख रुपये हो ताकि भारतीय मध्यम वर्ग को किफायती परिवहन सुविधा मिल सके. (फोटो कैप्शन - नैनो कार के लॉन्च के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ रतन टाटा)

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अपने कार्यकाल के दौरान रतन टाटा ने जगुआर लैंड रोवर और कोरस स्टील सहित अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के अधिग्रहण में अहम भूमिका निभाई और टाटा समूह को इस्पात, ऑटोमोबाइल, दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया. (फोटो कैप्शन - (बाएं से दाएं) 1993 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (टिस्को) की बोर्ड बैठक में जेआरडी टाटा, रतन टाटा, जेजे ईरानी)

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बिजनेस के अलावा रतन टाटा परोपकार के लिए भी प्रतिबद्ध थे. यह टाटा ट्रस्ट के उनके नेतृत्व में भी स्पष्ट होता था, जो भारत में सामुदायिक विकास और सामाजिक पहलों पर ध्यान केंद्रित करता है. वे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास में सुधार के लिए समर्पित थे जिससे अनगिनत लोगों के जीवन पर स्थायी प्रभाव पड़ा. (फोटो कैप्शन - रतन टाटा को 2008 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था)

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रतन टाटा आजीवन कुंवारे रहे. कुत्तों से उनका काफी लगाव था. शांतनु नायडू (जो बाद में टाटा के सहायक बने) को भी कुत्तों से बहुत प्यार था. नायडू ने अपनी किताब 'आई केम अपॉन ए लाइटहाउस' में लिखा है कि पुणे में सड़क पर कुत्तों को कारों से कुचलते देखकर वह बहुत दुखी होते थे. वह कुत्तों के लिए कुछ करना चाहते थे. उनके दोस्तों ने कुत्तों के लिए चमकदार कॉलर बनाने का फैसला किया ताकि उन्हें दूर से ही पहचाना जा सके.  उन्होंने इस प्रोजेक्ट को 'मोटोपाव्स' नाम दिया. तभी उनके एक मित्र ने सुझाव दिया, "मुझे यकीन है कि मिस्टर रतन टाटा मोटोपॉज के बारे में जानना चाहेंगे. उन्हें कुत्ते पसंद हैं." (फोटो कैप्शन - (बाएं) किशोर वय रतन टाटा अपने कुत्ते के साथ)

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इसके बाद उन्होंने टाटा के कार्यालय में एक व्यक्ति से संपर्क किया और उसे एक पत्र लिखकर इस प्रोजेक्ट पर चर्चा की. शांतनु को टाटा के कार्यालय से एक पत्र मिला. उसमें लिखा था, "पशु कल्याण एक ऐसा क्षेत्र है जिसके प्रति मैं बहुत भावुक हूं. इस विषय पर चर्चा के लिए आपसे मिलना मेरे लिए खुशी की बात होगी. कृपया हमारी मीटिंग हेतु उपयुक्त तारीख के लिए मेरे कार्यालय से संपर्क करें." मीटिंग के कुछ ही महीनों बाद 'मोटापॉज' रतन टाटा द्वारा समर्थित स्टार्ट-अप बन गया. उन्होंने इस पैसे का इस्तेमाल 11 शहरों में अपनी शाखाएं खोलने और पूरे देश में स्वतंत्र शाखाएं खोलने में किया. इससे रिफ़्लेक्टिव कॉलर फ़ैब्रिक की मदद से कुत्तों की दुर्घटनाओं से बचने में मदद मिली. (फोटो कैप्शन - रतन टाटा जीवन भर कुत्तों से प्यार करते रहे)

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इस साल मई में रतन टाटा ने मुम्बई के ताज महल होटल को सख्त निर्देश जारी किए थे कि होटल परिसर में घुसने वाले आवारा पशुओं के साथ "अच्छा व्यवहार" किया जाए. उनके इस कदम की सभी ने सराहना की. बहरहाल, देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण और ब्रिटिश साम्राज्य के सबसे उत्कृष्ट नाइट ग्रैंड क्रॉस सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित रतन टाटा को उनकी व्यावसायिक कुशलता और अटूट ईमानदारी के लिए व्यापक रूप से सम्मान मिलता रहा है. (फोटो कैप्शन - दिसंबर 2012 में सेवानिवृत्त होने के बाद टाटा संस ने रतन टाटा को मानद चेयरमैन की मानद उपाधि प्रदान की)

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