उत्तर प्रदेश : योगी सरकार आउटसोर्स कर्मचारियों और गिग वर्कर्स पर अब क्यों हुई मेहरबान?

उत्तर प्रदेश में सरकारी विभागों में 11 लाख से अधिक संविदा कर्मचारी और ऑनलाइन प्लेटफार्म से जुड़े 5 लाख से अधिक गिग वर्कर हैं

As per Budget 2025, each gig worker will be registered on the e-Shram portal and be assigned a 12-digit UAN.
उत्तर प्रदेश में हर गिग वर्कर का अपना एक यूनीक आईडी नंबर होगा

यह पिछले साल की बात है. लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान सस्थान (एसपीजीआई) में उस वक्त चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई थी जब 6 सितंबर 2024 को यहां कार्यरत 15 सौ आउटसोर्स कर्मचारियों ने काम का बहिष्कार कर दिया था. 

पीजीआई में कार्यरत डाटा एंट्री ऑपरेटर, पेंशेंट अटेंडेंट, हेल्पर जैसे आउटसोर्स कर्मचारियों ने बढ़ा मानदेय न देने, समय पर वेतन न मिलने जैसी विसंगतियों को लेकर बड़े आंदोलन की चेतावनी दी थी. 

पीजीआई में आउटसोर्स कर्मचारियों के प्रदर्शन के बाद यूपी पावर कार्पोरेशन और दूसरे सरकारी विभागों में भी संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों ने उत्पीड़न के विरोध में प्रदर्शन किया था. सरकारी विभागों में बड़ी संख्या में तैनात आउटसोर्स कर्मचारियों में बढ़ते असंतोष को देखते हुए यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 20 फरवरी को पेश बजट में बड़ा निर्णय लेते हुए आउटसोर्स कर्मचारियों का पारिश्रमिक 9 से 10 हजार प्रतिमाह से बढ़ाकर न्यूनतम 16 से 18 हजार रुपए करने का एलान कर दिया. इसके अलावा आउटसोर्स कर्म‍ियों की नियुक्त‍ि प्रक्र‍िया को सुनियोजित व पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से “यूपी आउटसोर्स सेवा निगम” की घोषणा भी की. 

यूपी के 93 विभागों में 11 लाख से ज़्यादा संविदा कर्मचारी काम कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश सरकार उनके मामलों के प्रबंधन के लिए एक अलग निगम बनाने की योजना को अंतिम रूप देने जा रही है. इसमें केंद्रीकृत भर्ती से लेकर उनके वित्तीय और नौकरी की सुरक्षा के पहलुओं की देखभाल और अनुबंध रोजगार में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और ओबीसी के लिए आरक्षण सुनिश्चित करना शामिल है. 

यह प्रस्ताव अभी कैबिनेट के सामने रखा जाना है. बजट में “यूपी आउटसोर्स सेवा निगम” की घोषणा के छह महीने बाद 25 अप्रैल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आउटसोर्स कर्मचारियों के श्रम अधिकारों और उचित पारिश्रमिक को सुव्यवस्थित करने के लिए एक निगम - उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम (यूपीसीओएस) की स्थापना पर एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की. 

बैठक के दौरान, मुख्यमंत्री ने आउटसोर्स कर्मचारियों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला, जैसे वेतन कटौती, देरी से भुगतान, ईपीएफ/ईएसआई लाभ से इनकार, पारदर्शी भर्ती की कमी और कार्यस्थल पर उत्पीड़न - और प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया. प्रस्तावित निगम के ढांचे को आकार देते हुए मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि सेवा प्रदाता एजेंसी संबंधित विभाग के सक्षम प्राधिकारी की संस्तुति के बिना किसी भी कर्मचारी को न हटाए. उन्होंने आगे निर्देश दिया कि हर महीने की पांच तारीख तक पूरा पारिश्रमिक सीधे कर्मचारियों के बैंक खातों में जमा किया जाना चाहिए और ईपीएफ और ईएसआई अंशदान समय पर जमा किया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए. 

बैठक में सीएम योगी ने कहा, "नियमों का उल्लंघन करने वाली एजेंसियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी - जिसमें ब्लैकलिस्टिंग, डिबारमेंट, वित्तीय दंड और कानूनी कार्यवाही शामिल है. इस आशय के प्रावधान निगम के ढांचे में स्पष्ट रूप से परिभाषित किए जाएंगे." इसके अलावा, मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि आउटसोर्सिंग निगम के माध्यम से सभी नियुक्तियों में आरक्षण मानदंडों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए ताकि विपक्षी दलों को सरकार को घेरने का मौका न मिले. 

निगम के माध्यम से आउटसोर्सिंग कर्मियों को चिकित्सा सुविधाएं, मातृत्व अवकाश, दुर्घटना बीमा, पेंशन और पारिवारिक पेंशन जैसे लाभ भी प्रदान किए जाएंगे. सरकारी सूत्रों के अनुसार, निगम संबंधित विभाग, निगम और आउटसोर्सिंग एजेंसी को शामिल करते हुए एक संरचित त्रि-पक्षीय समझौते के माध्यम से काम करेगा. 

अधिकारियों के अनुसार, UPCOS एक निदेशक मंडल, एक सलाहकार समिति और राज्य और जिला-स्तरीय समितियों वाले प्रशासनिक ढांचे के तहत काम करेगा. हालाकि‍ महज निगम की घोषणा से ही आउटसोर्स कर्मचारी संतुष्ट नहीं है. यूपी राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरि किशोर तिवारी बताते हैं, “एक ही योग्यता रखने वाले सीधी भर्ती वाले सरकारी कर्मचारी और आउटसोर्स कर्मचारी के वेतन में जमीन आसमान का अंतर होता है. जबकि आउटसोर्स कर्मचारी, सरकारी कर्मचारी की तुलना में अपना काम ज्यादा शि‍द्दत और ईमानदारी से करता है. सरकार को समान कार्य का समान वेतन देने के बारे में भी सोचना चाहिए.” तिवारी की मांग है कि सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि अगर कोई आउटसोर्स कर्मचारी कम से कम 10 साल की सेवा के बाद रिटायर हो तो उसे सरकारी कर्मचारी की ही हैसियत मिलनी चाहिए. 

केवल आउटसोर्स कर्मचारी ही नहीं योगी सरकार गिग वर्कर के कल्याण के लिए नया एक्ट बनाने जा रही है. ऑनलाइन प्लेटफार्म के जरिए टैक्सी ड्राइवर, - डिलीवरी ब्वॉय सहित अन्य कार्यों के जरिए रोजगार पाने वाले या गिग वर्कर की संख्या प्रदेश में तकरीबन पांच लाख है. केंद्र सरकार ने गिग वर्कर को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने का ऐलान किया था. योगी सरकार ने इस पर अमल शुरू कर दिया है. प्रदेश के हर गिग वर्कर का अपना एक यूनीक आईडी नंबर होगा. उनके परिवार की एक फेमिली आईडी होगी. इसी आईडी के जरिए उन्हें विभिन्न विभागों की तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा. 

ऐसी तमाम व्यवस्थाएं प्रदेश के उस नये गिग वर्कर एक्ट में होंगी, जो जल्द यूपी बनाने जा रहा है. राजस्थान, कर्नाटक और झारखंड के बाद इस एक्ट को बनाने वाला यूपी चौथा राज्य होगा. इसके लिए शासन ने तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी है. यह समिति एक्ट के मसौदे को अंतिम रूप देने में जुटी है. नये एक्ट के जरिए निर्माण श्रमिकों के लिए बने बीओसीडब्ल्यू की तर्ज पर गिग वर्करों के लिए एक अलग बोर्ड बनाया जाएगा जो उनकी बेहतरी के लिए कार्य करेगा. शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायती राज, नगर विकास, ग्राम्य विकास, समाज कल्याण सहित अन्य विभागों की योजनाओं का लाभ भी पात्रता के हिसाब से गिग वर्करों और उनके परिवारों को दिलाया जाएगा. श्रम विभाग इसके लिए नोडल की भूमिका अदा करेगा.

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आउटसोर्स कर्मचारी और गिग वर्कर के कल्याण की योजनाएं बनाकर योगी सरकार 2027 के विधानसभा चुनाव में इनका समर्थन पाना चाहती है. लखनऊ के अवध महाविद्यालय की प्राचार्य बीना राय बताती हैं “अपने संख्या बल के हिसाब से आउटसोर्स कर्मचारी और गिग वर्कर अलग विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं. योगी सरकार इन कर्मचारियों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत कर भाजपा के लाभार्थी वोटबैंक को मजबूत करना चाहती है.” 

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