समाजवादियों के गढ़ में क्या भाजपा को हैट्रिक मारने से रोक पाएगी साइकिल?
इटावा (सुरक्षित) लोकसभा सीट पर भाजपा से रामशंकर कठेरिया, सपा से जितेंद्र दोहरे और बसपा से सारिका सिंह बघेल चुनाव मैदान में. मुलायम परिवार के प्रभाव वाली इस सीट पर सपा को भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 250 किलोमीटर दूर यमुना नदी के किनारे बसे इटावा का एक समृद्ध इतिहास रहा है. ऐसा माना जाता है कि मध्ययुगीन काल में कांस्य युग से ही यह जमीन अस्तित्व में थी. आर्यन जाति के लोग जो यहां रहते थे उन्हें पांचाल के नाम से जाना जाता था.
यहां तक कि पौराणिक किताबों में, इटावा महाभारत और रामायण की कहानियों में प्रमुख रूप से प्रकट होता है. बाद के वर्षों के दौरान, इटावा चौथी शताब्दी ईस्वी में गुप्त राजवंश के शासन के अधीन था. इटावा 1857 के विद्रोह के दौरान एक सक्रिय केंद्र था और ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने विद्रोह के दौरान यहां शरण ली थी.
कहा जाता है कि इटावा का नाम ईंट बनाने के नाम पर लिया गया शब्द है क्योंकि इसकी सीमाओं के पास हजारों ईंट भट्ठे हैं. इतिहास की तरह इटावा लोकसभा सीट का भूगोल भी बड़ा दिलचस्प है. तीन जिलों के मतदाता इटावा का सांसद चुनते हैं.
इस लोकसभा सीट में इटावा जिले की इटावा और भरथना (सुरक्षित) विधानसभा सीटें हैं. दिबियापुर और औरेया विधानसभा सीट औरेया जिले का हिस्सा हैं जबकि इटावा लोकसभा सीट के तहत आने वाली सिंकदरा विधानसभा सीट कानपुर देहात में आती है.
यह सीट समाजवादियों का गढ़ रही है. इसकी रोचक बात यह है कि जब देश में कांग्रेस की तूती बोलती था तो 1957 के चुनाव में कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया निर्दलीय चुने गए थे. इटावा लोकसभा सीट पर स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1952 से अब तक 17 चुनाव हुए हैं जिन्होंने राजनीतिक के कई रंग भी दिखाए हैं.
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का गृह जनपद होने के कारण इटावा लोकसभा सीट पर उनका जबरदस्त प्रभाव था. वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसा भी समय आया जब मुलायम सिंह ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम को जिताने के लिए अपने ही प्रत्याशी को चुनाव हरवा दिया था.
दरअसल मुलायम सिंह की समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) के उम्मीदवार राम सिंह शाक्य इटावा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव से तीन दिन पहले ही सजपा और बसपा का गठबंधन हो गया. मुलायम सिंह ने अपनी पार्टी के प्रत्याशी को दरकिनार कर इटावा सीट से चुनाव लड़ रहे कांशीराम को लोकसभा में भेजने के लिए उनके समर्थन में अपील जारी कर दी.
इसका असर हुआ और कांशीराम एक लाख 45 हजार वोट पाकर भाजपा के उम्मीदवार से जीत गए. सजपा उम्मीदवार तीसरे नंबर पर आया. यहीं से कांशीराम और मुलायम सिंह की दोस्ती की नींव पड़ी. जानकार बताते हैं कि कांशीराम ने ही मुलायम सिंह यादव को अपनी खुद की पार्टी बनाने का सुझाव दिया था. इसके बाद ही मुलायम ने वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया था.
भले ही व्यक्तिगत व्यक्तिगत तौर पर कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया और राम सिंह शाक्य के सिर पर तीन-तीन बार इटावा लोकसभा सीट से जीत का सेहरा बंधा लेकिन पाटी के तौर सिर्फ समाजवादी पार्टी (सपा) को ही हैट्रिक लगाने का सौभाग्य मिला है. हालांकि पिछले दो लोकसभा चुनावों के दौरान इटावा लोकसभा सीट से सपा को अपने ही गढ़ में मात खानी पड़ रही है.
इटावा के एक डिग्री कालेज में अर्थशास्त्र विभाग की प्रोफेसर पद्मा त्रिपाठी बताती हैं, "समाजवादी पार्टी के अपने ही गढ़ में लगातार दो बार चुनाव हारने के कारणों का अगर विश्लेषण किया जाए तो 2014 में जहां मोदी लहर ने भाजपा को संजीवनी दी वहीं 2017 के बाद मुलायम परिवार में चाचा भतीजे के बीच हुए मतभेदों ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया."
प्रोफेसर पद्मा के मुताबिक 2019 में दो खेमों में संगठन व कार्यकर्ताओं के बंट जाने के कारण सपा को नुकसान हुआ. हालांकि इस चुनाव में सपा बसपा का गठबंधन भी था. तब भी भाजपा अपना परचम लहराने में कामयाब रही. इस चुनाव में चाचा शिवपाल की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) ने भी शंभूदयाल दोहरे को चुनाव मैदान में उतारकर वोटों का नुकसान किया था.
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद शिवपाल यादव के खास रहे पूर्व सांसद रघुराज शाक्य, पूर्व जिला महामंत्री कृष्ण मुरारी गुप्ता, ब्लाक प्रमुख बसरेहर दिलीप यादव भाजपा में शामिल हो गए. इस चुनाव में भी पार्टी हाईकमान की उपेक्षा से नाराज पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया भी भाजपा के खेमे में आ गए हैं.
इटावा के एक सपा नेता बताते हैं, "इटावा की जगह सैफई को मुलायम परिवार का केंद्रबिंदु बनाने का नुकसान सपा को उठाना पड़ा है. इस वजह से अब सैफई परिवार की प्राथमिकता इटावा लोकसभा सीट नहीं बल्कि मैनपुरी सीट हो गई है क्योंकि सैफई गांव मैनपुरी लोकसभा सीट का हिस्सा है. सपा की इसी कमजोरी ने भाजपा को इटावा में पैर जमाने का अवसर दिया है."
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री व सांसद प्रो. रामशंकर कठेरिया को फिर से मैदान में उतारा है. कठेरिया के सामने इटावा लोकसभा सीट को दूसरी बार जीतने के साथ पार्टी की हैट्रिक लगाने की चुनौती है. गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित भाजपा सरकार के कई मंत्री इटावा में सभाएं कर चुके हें.
भाजपा की चुनावी रणनीति को पुश देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा 5 मई को भरथना में उस जगह कराई गई जहां पर इटावा, मैनपुरी और कन्नौज का मिलन बिंदु था. बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे से महज आठ सौ मीटर दूर इटावा लोकसभा के भरथना के ढकपुरा गांव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुलायम सिंह यादव को याद करके मतदाताओं से भावनात्मक जुड़ाव स्थापित करने की कोशिश की.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और सपा में अखिलेश यादव द्वारा केवल अपने ही परिवार के यादव नेताओं को उम्मीदवार बनाने की बात जोरदार ढंग से कहकर मोदी ने यादव मतदाताओं में भी बंटवारे की पृष्ठभूमि तैयार करने की कोशिश की.
इटावा (सुरक्षित) लोकसभा सीट पर दलित मतदाता किंगमेकर की भूमिका में हैं. यहां पर कुल सवा 18 लाख मतदाता हैं. इनमें करीब 4.5 लाख दलित मतदाता हैं. इनमें भी 02 लाख जाटव और 1.25 लाख धानुक और कठेरिया मतदाता हैं. इसके अलावा इटावा लोकसभा सीट पर 2.5 लाख यादव, 02 लाख ब्राह्मण, 1.5 लाख ठाकुर, 1.5 लाख मुस्लिम और 1.25 लाख शाक्य मतदाता हैं.
इस सीट पर मुलायम के परिवार से भले ही कोई मैदान में नहीं रहा हो, पर परिवार का असर इस सीट पर देखने को मिलता रहा है. बहरहाल, 2009 में सपा के प्रेमदास के प्रेम का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोला. इसके बाद तो यहां भगवा रंग चटख हो गया.
इस चटख रंग को फीका करने के लिए प्रत्याशी तय करने में कई दिनों तक उलझी रही सपा ने महेवा से ब्लाक प्रमुख पवित्रा दोहरे के पति जितेन्द्र दोहरे पर दांव लगाया है. बसपा के कैडर वोट में उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है. इसी वजह से सपा ने अपने वोट बैंक पर भरोसे के साथ बसपा के वोट बैंक में भी सेंध लगाते हुए भाजपा को कड़ी टक्कर देने का दांव खेला है.
इटावा के राजनीतिक विश्लेषक और एडवोकेट रमेश अग्निहोत्री बताते हैं, "सपा को सत्ता विरोधी लहर की उम्मीद है. वहीं, जनप्रतिनिधियों के स्तर पर अंतर्विरोध भी भाजपा की कमजोर कड़ी है. हालांकि हाल ही में अमित शाह जनप्रतिनिधियों के बीच एकजुटता की नसीहत दे गए हैं. दूसरी तरफ भाजपा ने नामांकन में केशव प्रसाद मौर्य को बुलाकर पिछड़ों का समीकरण साधने की कोशिश की है."
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इटावा लोकसभा क्षेत्र की पांचों विधानसभा सीटों पर भगवा लहराया था, जबकि 2022 में भरथना व दिबियापुर विधानसभा सीट पर सपा काबिज होने में कामयाब रही. सुरक्षित सीट पर पिछड़ों को साधने के लिए सपा पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) फार्मूले पर भरोसा कर रही है तो भाजपा ने स्वजातीय पिछड़े नेताओं की एक बड़ी फौज इटावा लोकसभा सीट पर उतार दी है.
प्रधानमंत्री मोदी ने इटावा की अपनी रैली में आरक्षण के मसले पर विपक्षी दलों को जमकर घेरा. मोदी बोले, "कर्नाटक में रातोंरात मुस्लिमों को ओबीसी घोषित कर दिया. इसका नतीजा हुआ कि वहां जो ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिला था, उसको चोरी कर ली. यूपी में ऐसा हुआ तो मेरे यादव, मौर्य, लोघ, पाल, जाटव, शाक्य भाई-बहनों के हक का क्या होगा?"
सपा और भाजपा के साथ ही बसपा भी दलितों के साथ पिछड़ों को साधने की कोशिश कर रही है. बसपा ने हाथरस की पूर्व सांसद सारिका सिंह बघेल को प्रत्याशी बनाया है. भले क्षेत्र में बसपा का प्रचार नजर नहीं आ रहा हो, लेकिन कैडर वोट बैंक पर भरोसे के साथ गोपनीय बैठकों का सिलसिला जारी है.
कभी कच्चे सूत और सूती कपड़े, घी, चावल और दाल कारोबार के लिए पहचाना जाने वाले इटावा की पहचान बंद मिलें बनती जा रही हैं. दो एक्सप्रेसवे, तीन नेशनल हाईवे, एक स्टेट हाईवे, चार रेलवे रूट, कई पुलों का निर्माण, एफएम स्टेशन और पासपोर्ट कार्यालय की शुरुआत ने इटावा को नई पहचान देने की कोशिश की है लेकिन विपक्षी दलों द्वारा चुनाव में उठाये जा रहे रोजगार के मुद्दे को जनता के बीच तवज्जो मिल रही है. विकास और रोजगार का मुद्दा ही यहां की चुनावी तस्वीर का रुख स्पष्ट करेगा.