AIADMK और BJP की 'मजबूरी की शादी' क्या 2026 के तमिलनाडु चुनाव तक चल पाएगी?

करीब दो महीने हुए होंगे जब AIADMK और BJP ने 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के लिए अपने गठबंधन को औपचारिक रूप से दोबारा शुरू किया था. लेकिन अब इस गठबंधन में दरार नजर आने लगी है

इस साल अप्रैल में AIADMK और बीजेपी दोनों दोबारा साथ आईं
इस साल अप्रैल में AIADMK और बीजेपी दोनों दोबारा साथ आईं

करीब दो महीने हुए होंगे जब ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दोबारा साथ आईं. इन दोनों पार्टियों ने अगले साल होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के लिए अपने गठबंधन को औपचारिक रूप से दोबारा शुरू किया था. लेकिन अब इस गठबंधन में दरार नजर आने लगी है.

इसी साल के अप्रैल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने धूमधाम से AIADMK और बीजेपी के बीच साझेदारी की घोषणा की थी. लेकिन हाल में कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए, जिससे यह पार्टनरशिप राजनीतिक मिलन कम और एक कमजोर समझौता ज्यादा लग रहा है. एक ताजा विवाद उस समय उभरा जब दो धार्मिक मंचों पर घटनाएं हुईं.

पहला आयोजन, कोयंबटूर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शताब्दी समारोह और दूसरा, मदुरै में मुरुगन भक्त सम्मेलन. इन दोनों कार्यक्रमों में AIADMK के वरिष्ठ नेता बीजेपी नेताओं के साथ मंच साझा करते नजर आए, जिनमें पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई भी शामिल थे.

मदुरै के कार्यक्रम में चलाए गए वीडियो में समाजवादी सुधारक पेरियार और सत्तारूढ़ DMK (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के संस्थापक सीएन अन्नादुरई जैसे द्रविड़ प्रतीकों का मजाक उड़ाया गया.

AIADMK में 'A' का मतलब अन्ना से है, ऐसे में पार्टी ऐसी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती. DMK ने तुरंत ही विपक्षी गठबंधन पर हमला बोलते हुए आलोचना शुरू कर दी.

विवाद बढ़ता देख AIADMK के नेता नुकसान की भरपाई में जुट गए. उन्होंने सफाई दी कि इन कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी सिर्फ आध्यात्मिक कारणों से थी, और उनका वहां पेश किए गए या समर्थित किसी भी विचार से कोई लेना-देना नहीं था. विधानसभा में विपक्ष के उपनेता आर. बी. उदयकुमार ने कहा, "AIADMK कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेगी."

लेकिन नुकसान हो चुका था. जो बात सामान्य तौर पर एक छोटी गलती मानी जा सकती थी, उसने AIADMK और बीजेपी गठबंधन के भीतर गहरी असहमति को उजागर कर दिया. एक के बाद एक AIADMK नेताओं ने पार्टी की द्रविड़ विचारधारा को दोहराया और यह संकेत दिया कि मुरुगन सम्मेलन में दिखाए गए वीडियो से बचा जाना चाहिए था.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रियन श्रीनिवासन ने सवाल उठाते हुए पूछा, "AIADMK जैसी पार्टी हिंदू मुन्‍नानी द्वारा आयोजित सम्मेलन के लिए शुभकामना संदेश कैसे भेज सकती है? क्या पार्टी ने अपनी धर्मनिरपेक्ष पहचान छोड़ दी है?"

श्रीनिवासन ने कहा कि DMDK (देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कझगम) और PMK (पट्टाली मक्कल काची) जैसे अन्य सहयोगियों के साथ, AIADMK-BJP में DMK को कड़ी चुनावी टक्कर देने की क्षमता है, लेकिन फिलहाल यह गठबंधन "मजबूरी का विवाह" जैसा प्रतीत होता है.

AIADMK और बीजेपी के रिश्ते कभी आसान नहीं रहे. 2016 में जे. जयललिता के निधन के बाद से AIADMK धीरे-धीरे बीजेपी पर निर्भर होती गई. पहले संसद में समर्थन के लिए और बाद में देश के बदलते राजनीतिक माहौल में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए. वहीं बीजेपी ने इस गठबंधन का इस्तेमाल तमिलनाडु में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए किया, जहां उसकी मूल विचारधारा को अब भी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है.

जयललिता के रुख से यह फर्क साफ नजर आया. 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार में उन्होंने नरेंद्र मोदी या बीजेपी के साथ किसी भी गठबंधन से साफ इनकार कर दिया था. उन्होंने मतदाताओं से पूछा था, "आपको मोदी चाहिए या मैं?"

श्रीनिवासन ने सवाल उठाया कि क्या आज की AIADMK को अपनी ही विरासत की समझ है. उन्होंने कहा, "एम. जी. रामचंद्रन (AIADMK के संस्थापक) RSS के खिलाफ खुलकर बोलते थे. उन्होंने तो RSS नेताओं से मिलने तक से इनकार कर दिया था. साफ है कि AIADMK आज अपनी मूल सोच को भूल चुकी है. एक वरिष्ठ नेता जैसे एस. पी. वेलुमणि कैसे RSS के कार्यक्रम में हिस्सा ले सकते हैं और मोहन भागवत को एक 'वेल' (दिव्य भाला) भेंट कर सकते हैं? अगर ऐसा ही चलता रहा, तो AIADMK एक राजनीतिक ताकत के रूप में खत्म हो सकती है."

जयललिता की मृत्यु के बाद आंतरिक संघर्ष, नेतृत्व की कमी और राजनीतिक रूप से टिके रहने का दबाव AIADMK को बीजेपी के करीब ले गया. मौजूदा गठबंधन 2023 में एक कड़वे अलगाव के बाद फिर से शुरू हुआ था. उस समय टकराव का मुख्य कारण थे अन्नामलाई.

अन्नामलाई की आक्रामक राजनीति, जो खुलकर हिंदुत्व और अखिल भारतीय राष्ट्रवाद की सोच पर आधारित है, को AIADMK के लिए स्वीकार करना हमेशा मुश्किल रहा है. हाल ही में उन्होंने कहा कि "2026 में गठबंधन नहीं, बल्कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार बनेगी." इस बयान ने पुराने जख्म फिर से हरे कर दिए और भरोसे की कमी और गहरा गई.

इसके बाद बीजेपी की वरिष्ठ नेता तमिलीसाई सौंदरराजन को आगे आकर यह साफ करना पड़ा कि पार्टी की आधिकारिक बात सिर्फ अमित शाह के बयान को माना जाए.

हालांकि अन्नामलाई को प्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष पद से हटाकर उनकी जगह नैनार नागेन्द्रन को नियुक्त किया गया है, लेकिन पार्टी के भीतर उनका प्रभाव अब भी बना हुआ है. खासकर युवा कार्यकर्ताओं के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं, और उनमें से कई उन्हें तमिलनाडु में बीजेपी का भविष्य मानते हैं.

जहां एक तरफ अन्नामलाई के बयान गठबंधन को लगातार अस्थिर कर रहे हैं, वहीं अमित शाह ने हालात को संभालने की कोशिश की है. उन्होंने खुले तौर पर कहा कि तमिलनाडु में होने वाले चुनाव बीजेपी, AIADMK के महासचिव एडप्पाडी के. पलानीस्वामी के नेतृत्व में लड़ेगी. फिर भी स्थिति साफ नहीं है. शाह द्वारा दिए गए "भविष्य की गठबंधन सरकार" वाले बयान को पलानीस्वामी ने तुरंत हल्का करने की कोशिश की और कहा कि सत्ता साझा करने को लेकर कोई चर्चा ही नहीं हुई है.

AIADMK के लिए किसी औपचारिक गठबंधन को स्वीकार करना, खासकर ऐसी राष्ट्रीय पार्टी के साथ जिसे उत्तर भारतीय सांस्कृतिक राजनीति से जोड़ा जाता है, एक बड़ी राजनीतिक कमजोरी साबित हो सकती है. साथ ही पार्टी खुद को राष्ट्रीय स्तर के अहम मुद्दों पर कमजोर या अनिर्णायक नहीं दिखा सकती, जैसे NEET (राष्ट्रीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा), दक्षिणी राज्यों पर हिंदी थोपे जाने की आशंका और आने वाले जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर सीटों के परिसीमन जैसे विषय, जिनका क्षेत्रीय असर बहुत गहरा है.

इनमें से हर मुद्दा AIADMK के लिए एक बड़ी चुनौती है. NEET और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में तीन-भाषा फॉर्मूले पर बीजेपी का कड़ा रुख AIADMK के लिए असहज स्थिति पैदा करता है. खासकर जनसंख्या के आधार पर सीटों के परिसीमन का मुद्दा एक बड़ा राजनीतिक विवाद बन सकता है. DMK पहले ही इस मुद्दे पर कई राज्यों को साथ लेकर विरोध का नेतृत्व कर रही है, ऐसे में AIADMK चुप या सहमति देती हुई नहीं दिख सकती. लेकिन दूसरी ओर, बीजेपी का खुला विरोध करना गठबंधन को पूरी तरह तोड़ भी सकता है.

वहीं दूसरी ओर, बीजेपी को लगता है कि वह तमिलनाडु में उभर रही है. 2024 के लोकसभा चुनावों में राज्य में 11 फीसद वोट शेयर मिलने के बाद पार्टी के भीतर यह आत्मविश्वास बढ़ा है कि उसे अब बड़ी भूमिका मिलनी चाहिए. बीजेपी के कई नेता ज्यादा सीटों की हिस्सेदारी और चुनावी रणनीति में ज्यादा दखल की मांग कर रहे हैं. लेकिन AIADMK का मानना है कि बीजेपी की यह सफलता मुख्य रूप से दूसरे गठबंधनों के सहारे ही हासिल हुई है.

जैसे-जैसे विधानसभा चुनावों के लिए सीट बंटवारे की बातचीत नजदीक आ रही है, इन मतभेदों के और गहराने की संभावना है. जहां AIADMK एक सीमित और रणनीतिक समझौते को ही प्राथमिकता देना चाहेगी, वहीं बीजेपी माहौल को परखती नजर आ रही है, शायद लंबे समय में खुद को DMK के खिलाफ मुख्य विपक्ष के रूप में स्थापित करने की कोशिश में है.

इस पहले से ही नाजुक माहौल में अभिनेता विजय की राजनीतिक पार्टी 'तमिलगा वेत्त्री कलगम' (TVK) की एंट्री ने और हलचल मचा दी है. हालांकि विजय ने खुद को बीजेपी और DMK दोनों से समान दूरी पर बताया है, लेकिन DMK के प्रति उनकी आलोचना ज्यादा तीखी रही है. ऐसी अटकलें हैं कि बीजेपी और AIADMK दोनों ही उन्हें अपने खेमे में लाने के रास्ते तलाश रहे हैं.

इसी बीच बीजेपी तमिलनाडु में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. यह सिर्फ अगले चुनाव जीतने की बात नहीं है, बल्कि उस भविष्य की तैयारी भी है जब पार्टी राज्य में अकेले चुनाव लड़ सके.

AIADMK के लिए अब यह सिर्फ चुनावी गणित का मामला नहीं रह गया है, बल्कि राजनीतिक अस्तित्व का सवाल बन चुका है. विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी अपनी सहयोगी बीजेपी को इतनी ताकत दे रही है कि वही ताकत भविष्य में उसके खिलाफ इस्तेमाल हो सकती है.

श्रीनिवासन चेतावनी देते हैं, "बीजेपी का असली मकसद AIADMK को निगलना है. DMK और AIADMK के दोध्रुवीय राजनीतिक परिदृश्य में DMK को खत्म करना मुश्किल है क्योंकि उसकी विचारधारा मजबूत है. लेकिन AIADMK को खत्म करना अपेक्षाकृत आसान है - और बीजेपी यही कर रही है, उन्हें गले लगाकर. पलानीस्वामी के नेतृत्व में पार्टी साफ तौर पर बिना किसी दूरदृष्टि के चल रही है."

जैसे-जैसे तमिलनाडु अगले साल होने वाले चुनावों की ओर बढ़ रहा है, राज्य की राजनीति दो बड़े गुटों में बंटती नजर आ रही है. एक ओर DMK के नेतृत्व वाला मोर्चा और दूसरी ओर AIADMK-BJP गठबंधन. सबसे अहम सवाल यह है: क्या AIADMK और बीजेपी वास्तव में एक टीम की तरह मिलकर प्रचार कर पाएंगे? उन्होंने पहले ऐसा किया है, लेकिन अब हर मोड़ पर विरोधाभास उभर रहे हैं और जो ताकत उन्हें एक साथ जोड़े हुए थी, वह कमजोर पड़ती दिख रही है.

अगला संकट - चाहे वह अन्नामलाई का कोई बयान हो, सीटों को लेकर विवाद हो, या मुरुगन सम्मेलन के वीडियो जैसी कोई सांस्कृतिक बहस - इस गठबंधन का भविष्य तय कर सकता है. फिलहाल यह गठबंधन बना हुआ है, लेकिन बड़ी मुश्किल से.

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