यूपी: गायों के लिए ₹2000 करोड़ का बजट; लेकिन आवारा पशु अभी भी समस्या क्यों बने हुए हैं?

यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2025-26 के राज्य बजट में गायों के लिए 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का आवंटन किया. लेकिन राज्य में आवारा पशु अभी भी समस्या बने हुए

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ गाय के बछड़ों के संग (फाइल फोटो)
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ गाय के बछड़ों के संग (फाइल फोटो)

साल 2017 में, यानी जब से योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं, राज्य सरकार ने दावा किया है कि उसने गौ संरक्षण को प्राथमिकता दी है, इसे लगातार ग्रामीण विकास, नेचुरल फार्मिंग और पशु कल्याण से जोड़ा है.

सरकार का दावा है कि गौ संरक्षण के लिए चलाई जा रही योजनाएं आवारा पशुओं की समस्या को दूर करने का एक व्यापक प्रयास है, जो खेतों और ग्रामीण जीवन को प्रभावित करते हैं. साथ ही, इनसे रोजी-रोटी और पारंपरिक खेती के तरीकों को भी बढ़ावा मिल रहा है.

ऐसी ही एक योजना है - मुख्यमंत्री सहभागिता योजना. इसके तहत, सरकार का दावा है कि 2.37 लाख से ज्यादा आवारा गायों को लोगों को सौंपा गया है, जिन्हें प्रत्येक गाय की देखभाल के लिए हर रोज 50 रुपये दिए जाते हैं. फरवरी तक यह 30 रुपये प्रति गाय था, जिसके बाद इसमें 20 रुपये और बढ़ा दिया गया. इस प्रोग्राम का उद्देश्य न सिर्फ पशुओं की देखभाल करना है, बल्कि मवेशियों को गोद लेने वाले लोगों की आजीविका को भी बेहतर बनाना है.

हालांकि, कई जिलों में ऐसा देखने को मिला है कि किसान अपने गैर-उत्पादक मवेशियों को छोड़ दे रहे हैं और सरकार उन्हें पकड़ कर इकट्ठा कर रही है. यह सिलसिला जारी है जो बताता है कि समस्या जमीन पर बनी हुई है.

आवारा मवेशियों की संख्या में बढ़ोत्तरी एक अव्यवस्थित लाइवस्टॉक इकोनॉमी (पशुधन अर्थव्यवस्था) से जुड़ी हुई है, जो राज्य द्वारा लगाई गई पाबंदियों और उन्हें सख्ती से लागू करने के उपायों से प्रभावित है.

उत्तर प्रदेश गोहत्या निवारण कानून, 1955 ने लंबे समय से सीमित औषधीय उद्देश्यों को छोड़कर राज्य में गोकशी और गोमांस की बिक्री और ट्रांसपोर्ट पर बैन लगा रखा है. योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद तो इसे लागू करने में और सख्ती और तेजी आई है. इसके साथ कभी-कभी सतर्कता गतिविधियों और सामुदायिक स्तर पर गोरक्षा की खबरें भी आती हैं.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पिछले आठ सालों में राज्य ने 7,713 गौशालाएं स्थापित की हैं, जिनमें आज 16 लाख से ज्यादा आवारा मवेशी हैं. 2025-26 के राज्य बजट में आवारा गायों की देखभाल के लिए 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का आवंटन किया गया है. इसमें बड़े गौ संरक्षण केंद्र स्थापित करने के लिए 140 करोड़ रुपये, वहीं पशु चिकित्सालयों और पशु सेवा सुविधाओं को अपग्रेड करने के लिए 123 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.

सरकार ने यह भी दावा किया है कि अब तक व्यापक अभियान के तहत 14.5 करोड़ पशुओं का टीकाकरण किया जा चुका है. इसमें गांठदार त्वचा रोग के खिलाफ 1.92 करोड़ टीके शामिल हैं. एक टोल-फ्री हेल्पलाइन (1962) पशुपालकों को पशु चिकित्सा सहायता प्रदान करती है.

पशुधन आधारित आय को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अन्य योजनाएं भी हैं. मुख्यमंत्री प्रगतिशील पशुपालक प्रोत्साहन योजना और स्वदेशी गोवंश संवर्धन योजना को मवेशी पालन को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है. नंदिनी कृषक समृद्धि योजना के तहत, डेयरी किसानों को डेयरी इकाइयां स्थापित करने के लिए 50 फीसद सब्सिडी मिलती है. उचित रखरखाव तय करने के लिए गायों के आश्रय स्थलों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के जरिए प्रति पशु 1,500 रुपये हर महीने मिलते हैं.

इसी मार्च में सरकार ने गोपालन और प्राकृतिक खेती दोनों को बढ़ावा देते हुए 'अमृत धारा' योजना शुरू की थी. आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाली इस योजना के तहत 10 लाख रुपये तक का लोन दिया जाता है, जिसमें 3 लाख रुपये तक का ऋण बिना किसी गारंटर के उपलब्ध है. दो से 10 गाय रखने वाले किसानों को ये लोन देने के लिए दस बैंकों को सूचीबद्ध किया गया है.

अमृत ​​धारा के शुभारंभ पर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गोपालन पर आधारित प्राकृतिक खेती से स्वास्थ्य के बेहतर नतीजे हासिल हो सकते हैं और गायों के आश्रयों के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता हो सकती है. उन्होंने जैविक खेती में गाय के गोबर और मूत्र का इस्तेमाल करके गायों के आश्रयों को आर्थिक इकाइयों में बदलने की योजनाओं पर भी प्रकाश डाला.

सप्लीमेंटरी बजट में सरकार ने गौशालाओं के रखरखाव के लिए 1,001 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं. अधिकारियों का कहना है कि अगले चरण में गौशालाओं को जैविक और प्राकृतिक खेती की पहलों के साथ एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा ताकि उन्हें वित्तीय रूप से टिकाऊ बनाया जा सके.

हालांकि, सरकार की पहल और गो संरक्षण के लिए बढ़े हुए बजटीय समर्थन के बावजूद, आवारा पशुओं का मुद्दा पूरे उत्तर प्रदेश में एक बड़ी चुनौती बना हुआ है, खासकर किसानों के लिए, जिससे देहाती इलाकों में वित्तीय नुकसान और निराशा बढ़ती जा रही है.

कई किसान फसल को नष्ट होने से बचाने के लिए अपने खेतों को रेजर या बिजली के तारों से घेराबंदी करते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार ने नवंबर 2023 में दो महीने का अभियान शुरू किया था, जिसे 15 फरवरी, 2024 तक कई बार बढ़ाया गया. कथित तौर पर इस अभियान के कारण 2.65 लाख से अधिक अतिरिक्त बेसहारा मवेशियों को पकड़कर आश्रय दिया गया.

खेती को नुकसान पहुंचाने के अलावा, आवारा बैल और गायें सड़कों पर भी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करती हैं, खासकर रात के समय जिससे हाईवे पर दुर्घटनाएं होती हैं.

इस जोखिम को कम करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने दिसंबर 2024 में प्रमुख हाईवे के किनारे पशु आश्रय बनाने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट की घोषणा की. इस पहल का उद्देश्य पशुओं से संबंधित दुर्घटनाओं को कम करना और सड़क सुरक्षा में सुधार करना है, साथ ही हाईवे पर घूमते पाए जाने वाले पशुओं की देखभाल करना है.

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