बिहार चुनाव : महिलाओं की ज्यादा वोटिंग पर क्यों उठ रहे सवाल; किसे मिलेगा इसका फायदा?

बिहार चुनाव के पहले चरण में पहले कुल 65.06 फीसदी वोट पड़े. इनमें पुरुष वोटर जहां 61.57 फीसदी थे, वहीं महिला वोटरों की संख्या 69.03 फीसदी रही

बिहार में पहले चरण के बाद अब दूसरे चरण के प्रचार में नेता दमखम लगाए हुए हैं.  (Photo: PTI)
नीतीश कुमार के हर कार्यकाल में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले ज्यादा वोट डाले हैं

बिहार में वोटिंग के पहले चरण को ऐतिहासिक बताने वाले चुनाव आयोग ने दो दिन बीत जाने के बाद भी वोटर टर्न आउट की आधिकारिक जानकारी सार्वजनिक नहीं की है. इस बीच सरकारी सूत्रों से जो जानकारी सामने आई है, उससे पता चलता है कि आयोग जिस वोटर टर्न आउट को ऐतिहासिक बता रहा है, उसमें महिलाओं की बड़ी भूमिका है. 

आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस चरण के चुनाव में महिला और पुरुष वोटरों के बीच लगभग 7.5 फीसदी का अंतर है और इसकी वजह वे जीविका दीदियां हैं, जो पूरे वोटिंग के दौरान घर-घर जाकर महिलाओं को बूथ पर लाने में जुटी रहीं. अब राजनीतिक हलकों में यह सवाल गूंज रहा है कि महिलाओं के भारी संख्या में बूथ पर पहुंचने के मायने क्या हैं? 

नीतीश राज में महिलाओं का वोट हमेशा पुरुषों से अधिक रहा

आयोग के आंकड़े बताते हैं कि पहले चरण में कुल 65.06 फीसदी वोट पड़े. इनमें पुरुष वोटर जहां 61.57 फीसदी थे, वहीं महिला वोटरों की संख्या 69.03 फीसदी रही. इस तरह पुरुषों के मुकाबले 7.46 फीसदी महिलाओं ने इस चुनाव में अधिक मत डाले. हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव में भी महिला वोटरों की संख्या पुरुषों से लगभग 5 फीसदी अधिक थी. उस साल 53.2 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 58.2 फीसदी पुरुषों ने वोट डाले थे. 

2015 में महिलाओं ने पुरुषों से तीन फीसदी अधिक वोट किया था, तब पुरुषों ने 56.8 फीसदी वोट डाले थे और महिलाओं ने 59.9 फीसदी. यह नीतीश के कार्यकाल के हर चुनाव में हुआ, जब महिलाओं ने अधिक वोट डाले. 2010 में 51.11 फीसदी पुरुषों के मुकाबले 54.44 फीसदी महिलाओं ने वोट किया. 2005 के अक्तूबर-नवंबर वाले चुनाव में भी महिलाओं (47.03 फीसदी) ने पुरुषों (44.62 फीसदी) से 2.4 फीसदी अधिक वोट किया. जबकि उससे पहले बिहार के हर चुनाव में महिला वोटरों की संख्या पुरुषों से काफी कम हुआ करती थी. उसी साल फरवरी में हुए चुनाव में दोनों के बीच लगभग 7.5 फीसदी का अंतर था. पुरुषों ने अधिक वोट डाले थे.

इस बार कई सीटों पर 70 से 80 फीसदी तक महिला वोट पड़े

आंकड़े बताते हैं कि कम से कम तीन विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जिनमें अस्सी फीसदी से अधिक महिलाओं के वोट पड़े हैं. ये सीट हैं मीनापुर (82.56%), बरुराज (82.31%) और साहेबगंज (80.13%).  दिलचस्प है कि तीनों सीटें मुजफ्फरपुर जिले की हैं. पहले चरण की 121 सीटों में से 65 ऐसी हैं, जिन पर 70 फीसदी से अधिक महिलाओं ने मताधिकार का प्रयोग किया. 

हालांकि इस बीच कुम्हार(39.13%), बांकीपुर(39.87%) और दीघा(41.45%) जैसी राजधानी पटना वाली शहरी सीटें ऐसी रहीं, जहां 40 फीसदी के करीब महिलाओं ने ही वोटिंग की. स्पष्ट है कि इसकी वजह इन इलाकों में जीविका दीदियों का सक्रिय नहीं होना रहा होगा. मगर पूरी सूची में ये अपवाद की तरह हैं.

कैसे बढ़ी महिलाओं की वोटिंग

कई जानकार मानते हैं कि चुनाव के ठीक पहले बिहार सरकार ने ‘महिला रोजगार योजना’ की शुरुआत की थी और इसने महिलाओं को ज्यादा संख्या में वोटिंग के लिए प्रेरित किया. इस बात को पूरी तरह नहीं माना जा सकता क्योंकि 2005 से अब तक बिहार के चुनावों में महिला वोटरों की भागीदारी बढ़ती रही है, जो पुरुषों के मुकाबले 2.4 फीसदी से बढ़ते-बढ़ते 7.46 फीसदी तक पहुंची है. वैसे जानकारी यह भी है कि इस बार बिहार में ग्रामीण महिला आजीविका मिशन संक्षेप में जीविका संगठन ने वोटिंग बढ़ाने के लिए काफी मेहनत की थी.

चुनाव आयोग ने अपनी प्रेस रिलीज में लिखा है कि इस चुनाव में 90 हजार जीविका दीदी और महिला कैडर की तैनाती बूथों पर पर्दानशीं महिलाओं के निरीक्षण के लिए की गई थी. हालांकि जीविका से जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक हर बूथ पर महिलाओं को पहुंचाने के लिए जीविका के कैडर का इस्तेमाल किया गया. यह सब बड़े संगठित तरीके से हुआ. इन महिलाओं के हाथ में पूरे बूथ की महिलाओं की सूची होती थी और उन्हें दिन में तीन बार सुबह-दोपहर और शाम को राउंड लगाकर एक-एक महिला को बूथ तक पहुंचाना था. उन्हें टारगेट दिया गया था कि वे हर बूथ पर 80 फीसदी के करीब महिलाओं की वोटिंग सुनिश्चित करें और इसकी निगरानी प्रखंड, जिला और राज्य स्तर पर जीविका की टीम के द्वारा की जाती रही. सूचना यह भी है कि अगले चरण में महिलाओं को बूथ तक लाने के लिए इससे भी बड़ी तैयारी की जा रही है. जाहिर है, इस अभियान का असर वोटिंग में नजर आया. मगर यह अभियान कितना जायज था, यह बड़ा सवाल है.

महिलाओं के बीच काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता शाहीना परवीन कहती हैं, “बिहार में जीविका की पहचान नीतीश कुमार के कैडर के तौर पर रही है. वे कोई सरकारी कर्मी नहीं हैं, सामान्य मतदाता हैं, ऐसे में उन्हें चुनाव कार्यों में शामिल करना निष्पक्ष चुनाव के नजरिये से उचित नहीं है. उन्हें वोटर जागरूकता के लिए चुनाव से पहले इस्तेमाल किया जा सकता था. मगर चुनाव के दौरान उनकी ड्यूटी महिला मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने या पर्दानशीं महिलाओं को निरीक्षण करने में लगाने में करना ठीक नहीं.”
शाहीना के मुताबिक हालांकि महिलाओं का बूथ तक बड़ी संख्या में पहुंचना इस बात का भी संकेत है कि एक तरफ जहां सरकार की महिला रोजगार योजना उन्हें आकर्षित कर रही हैं, तो दूसरी तरह महागठबंधन की तरफ से हर साल 30 हजार रुपये दिये जाने की घोषणा भी उन्हें लुभा रही है.

बड़ा सवाल यह है कि आखिर इनमें से किस योजना से महिलाएं ज्यादा प्रभावित रहीं? शाहीना कहती हैं, “चूंकि जीविका संस्था पर सरकार का नियंत्रण है, इसलिए इस समूह से जुड़ी महिलाओं पर गाहे-बगाहे सरकार से जुड़े राजनीतिक दल का पक्ष लेने का दवाब रहता है. हालांकि कई महिलाएं इससे असमहत होकर अलग राय रखती हैं और अलग तरह से फैसले भी लेती हैं.”

मगर फिलहाल जमीनी हालात और दोनों गठबंधन की रैलियों में महिलाओं की मौजूदगी से यह समझा जा सकता है कि जहां महागठबंधन की रैलियों में युवाओं की भीड़ है, एनडीए की रैलियों में महिला ज्यादा दिखती हैं. यानी कुछ हद तक यह कहा जा सकता है कि महिलाओं के ज्यादा वोट देने का फायदा एनडीए को मिलेगा. 

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