कोडीन कफ सिरप के मुद्दे पर यूपी विधानसभा में उबाल; क्या है BJP की रणनीति?
कोडीन कफ सिरप के मुद्दे पर विधानसभा से सड़क तक बीजेपी और सपा आमने-सामने हैं. दोनों के लिए 2027 के विधानसभा चुनाव के लिहाज से यह एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है

उत्तर प्रदेश की राजनीति में कोडीन-आधारित कफ सिरप (CBCS) का मामला अब किसी एक आपराधिक रैकेट तक सीमित नहीं रह गया है. यह सत्ता, विपक्ष, जांच एजेंसियों और आने वाले विधानसभा चुनावों के बीच एक ऐसी सियासी जंग में बदल चुका है, जहां हर पक्ष अपने-अपने हिसाब से नैरेटिव गढ़ने में जुटा है.
यूपी विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के पहले दिन से लेकर दूसरे दिन तक विधानसभा का माहौल, आरोप-प्रत्यारोप और प्रतीकात्मक विरोध इस बात के गवाह बने कि कोडीन सिरप का मुद्दा 2027 के चुनावी एजेंडे में जगह बना चुका है. 19 दिसंबर को शीतकालीन सत्र शुरू होने से ठीक पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोडीन कफ सिरप रैकेट को लेकर समाजवादी पार्टी पर सीधा हमला बोला.
मुख्यमंत्री का कहना था कि करोड़ों रुपये की अवैध तस्करी से जुड़े जिन आरोपियों को FSDA, यूपी पुलिस और STF ने गिरफ्तार किया है, उनके समाजवादी पार्टी (सपा) से “संबंध” सामने आए हैं. योगी आदित्यनाथ ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य स्तरीय SIT गठित की गई है, जो न केवल तस्करी की कड़ियों को जोड़ रही है, बल्कि यह भी जांच कर रही है कि इस अवैध कारोबार से मिला पैसा किन-किन लोगों और नेटवर्क तक पहुंचा. मुख्यमंत्री ने अखिलेश यादव पर तीखा तंज कसते हुए कहा कि वे “चेहरे पर धूल लगी होने के बावजूद चश्मा साफ करने की कोशिश कर रहे हैं.” उनके इस बयान को सपा पर नैतिक हमला माना गया, जिसका संदेश साफ था- सरकार इस मामले को विपक्ष की कथित संलिप्तता के रूप में पेश करना चाहती है.
मुख्यमंत्री के आरोपों के जवाब में समाजवादी पार्टी ने भी सख्त तेवर दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सपा विधायक बृजेश यादव साइकिल से विधानसभा पहुंचे, जिसके हैंडल पर कफ सिरप की बोतल का बड़ा कटआउट लगा था. उस पर लिखा था, “जादुई सिरप. पीने वाला मर जाता है, बेचने वाला दौलतमंद हो जाता है. सत्ता का संरक्षण पाता है, फिर विदेश निकल जाता है.” इस प्रतीकात्मक विरोध का संदेश साफ था, सपा इस पूरे मामले को सत्ता के संरक्षण और प्रशासनिक विफलता से जोड़कर देख रही है. एक अन्य विधायक मुकेश वर्मा ने “कफ सिरप के नाम पर नशे का कारोबार” लिखे प्लास्टिक बैनर पहनकर सरकार को घेरने की कोशिश की.
सदन के भीतर टकराव
22 दिसंबर को विधानसभा का दूसरा दिन पूरी तरह हंगामे में बदल गया. सपा विधायकों ने सदन की कार्यवाही शुरू होते ही आरोप लगाया कि कोडीन सिरप के कारण बच्चों की मौत हुई है और इस पर तत्काल चर्चा होनी चाहिए. संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश में कफ सिरप से किसी बच्चे की मौत नहीं हुई है. इसके बावजूद सपा विधायक वेल में आ गए और “कोडीन पर चर्चा करो” के नारे लगाने लगे.
नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडे ने सरकार पर हमला तेज करते हुए कहा कि कोडीन नेटवर्क सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में फैला है. उन्होंने दावा किया कि WHO ने भी इस पर संज्ञान लिया है और कई बच्चों की मौत हुई है. पांडे का सवाल था कि अगर सरकार की इंटेलिजेंस एजेंसियां सक्रिय थीं, तो इस नेटवर्क का खुलासा पहले क्यों नहीं हुआ. मुख्यमंत्री द्वारा सपा नेताओं के आरोपियों से जुड़े होने के आरोप पर प्रतिक्रिया देते हुए पांडे ने कहा कि इस मुद्दे पर खुली चर्चा होनी चाहिए. उनका तर्क था कि अगर सपा का कोई भी व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो, लेकिन साथ ही सरकार यह भी बताए कि इस नेटवर्क में शामिल अन्य राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण किसे प्राप्त था.
स्पीकर सतीश महाना के नियम 56 के तहत चर्चा कराने के आश्वासन के बाद सपा ने फिलहाल अपना विरोध समाप्त किया, लेकिन यह साफ हो गया कि यह मुद्दा सत्र के आगे के दिनों में भी गरमाएगा.
जांच एजेंसियों की कार्रवाई और आरोपियों के कनेक्शन
सरकार के मुताबिक, FSDA, यूपी पुलिस और STF ने बीते महीनों में कोडीन-आधारित कफ सिरप की अवैध सप्लाई से जुड़े कई ठिकानों पर छापेमारी की है. बड़ी मात्रा में कफ सिरप, फर्जी दस्तावेज, लाइसेंस की अनियमितताएं और करोड़ों रुपये के लेन-देन से जुड़े सबूत बरामद किए गए हैं. कुछ आरोपी ऐसे बताए जा रहे हैं, जिनका दवा सप्लाई चेन से सीधा संबंध है और जिन्होंने वैध कोटे का दुरुपयोग कर अवैध तस्करी की. सरकार का दावा है कि प्रारंभिक जांच में गिरफ्तार कुछ आरोपियों की तस्वीरें और संपर्क समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ सामने आए हैं. यही वह बिंदु है, जिस पर BJP हमलावर है. BJP नेताओं का कहना है कि यह महज संयोग नहीं हो सकता और जांच पूरी होने पर राजनीतिक संरक्षण की परतें खुलेंगी. वहीं सपा का कहना है कि तस्वीरें या जान-पहचान किसी अपराध की पुष्टि नहीं होती. पार्टी का आरोप है कि BJP राजनीतिक लाभ के लिए जांच को दिशा देने की कोशिश कर रही है.
कोडीन फॉस्फेट NDPS एक्ट के तहत नियंत्रित पदार्थ है. इसका इस्तेमाल दवा के रूप में हो सकता है, लेकिन इसके लिए केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो द्वारा कोटा तय किया जाता है. सवाल यह उठ रहा है कि जब कोटा और लाइसेंस की व्यवस्था पहले से मौजूद है, तो फिर इतनी बड़ी मात्रा में कफ सिरप का दुरुपयोग कैसे हुआ. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मामला प्रशासनिक निगरानी की कमजोरी को भी उजागर करता है. लखनऊ स्थित राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर आरके पांडेय के मुताबिक, “अगर सरकार यह कहती है कि उसने समय रहते कार्रवाई की, तो विपक्ष का सवाल जायज है कि यह नेटवर्क इतने लंबे समय तक कैसे सक्रिय रहा. यह मसला सिर्फ विपक्ष पर आरोप लगाने से नहीं सुलझेगा.”
“कोडीन भैया” और नैरेटिव की राजनीति
इस पूरे विवाद में “कोडीन भैया” जैसे शब्द और प्रतीक भी खासे चर्चा में हैं. सपा इसे व्यंग्य और आरोप के तौर पर इस्तेमाल कर रही है, जबकि BJP इसे माफिया संस्कृति की पहचान बताती है. राजनीतिक विश्लेषक अमित राय का कहना है कि ऐसे शब्द जनता के बीच मुद्दे को सरल और भावनात्मक बनाते हैं. वे कहते हैं, “यह अपराध को नैतिक और राजनीतिक मुद्दा बना देता है, जिससे चुनावी असर गहरा होता है,”
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कोडीन सिरप का मामला 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़े चुनावी हथियार के रूप में उभर सकता है. BJP इसे कानून-व्यवस्था और माफिया विरोधी कार्रवाई की अपनी छवि से जोड़ रही है. वहीं सपा इसे सरकार की नाकामी, बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था के सवाल से जोड़ने की कोशिश में है. राजनीतिक विश्लेषक और कान्यकुब्ज कालेज में राजनीतिक शास्त्र विभाग के प्रोफेसर ब्रजेश मिश्र के अनुसार, “BJP इस मामले में आक्रामक इसलिए है क्योंकि वह चाहती है कि विपक्ष हमेशा बचाव की मुद्रा में रहे. दूसरी तरफ, सपा का प्रयास है कि यह सवाल खड़ा किया जाए कि अगर सत्ता में रहते हुए इतना बड़ा नेटवर्क पनपा, तो जिम्मेदारी किसकी है.”
कोडीन-आधारित कफ सिरप रैकेट पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में मची हलचल बताती है कि यह मामला सिर्फ जांच और गिरफ्तारियों तक सीमित नहीं रहेगा. आरोपियों के राजनीतिक कनेक्शन, प्रशासनिक जिम्मेदारी और जांच की दिशा आने वाले समय में इस मुद्दे को और धार देगी. विधानसभा के भीतर और बाहर जारी यह जंग साफ संकेत दे रही है कि 2027 के चुनाव से पहले यूपी की सियासत में कोडीन सिरप एक बड़े मुद्दे के तौर पर स्थापित हो चुका है. अब यह देखना अहम होगा कि SIT की रिपोर्ट किसे कठघरे में खड़ा करती है और यह सियासी लड़ाई किस दिशा में मोड़ लेती है.