BJP ने धर्मेंद्र प्रधान को ही बिहार चुनाव प्रभारी क्यों बनाया?
BJP ने बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले धर्मेंद्र प्रधान को बिहार का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है. ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि नाजुक समय में धर्मेंद्र प्रधान को ही बिहार की जिम्मेदारी सौंपने की क्या वजह है?

25 सितंबर को BJP ने तीन राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी और सह प्रभारी नियुक्त किए हैं. धर्मेंद्र प्रधान को बिहार, भूपेंद्र यादव को पश्चिम बंगाल और बैजयंत पांडा को तमिलनाडु की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
यह पहला मौका नहीं है, बल्कि धर्मेंद्र प्रधान तीसरी बार बिहार के BJP प्रभारी बने हैं. इस बार उनके साथ उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल को सह-प्रभारी बनाया गया है.
बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर के पहले सप्ताह में होने की उम्मीद है. ऐसे में हर किसी के मन में यह सवाल उठ रहा है कि चुनाव से ठीक एक महीने पहले धर्मेंद्र प्रधान को ही ये जिम्मेदारी सौंपने की क्या वजह है?
BJYM अध्यक्ष और BJP महासचिव जैसे ताकतवर पदों पर रहे
धर्मेंद्र प्रधान का जन्म 26 जून 1969 को ओडिशा के तालचेर में हुआ. उनके पिता देबेंद्र प्रधान अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री थे. यही वजह थी कि धर्मेंद्र प्रधान की रुचि बचपन से ही राजनीति में रही.
1985 में तालचेर कॉलेज में चुनाव जीतकर अध्यक्ष बनने के करीब 10 साल बाद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन ABVP के राष्ट्रीय सचिव बन गए. साल 2000 में ओडिशा के पल्लहारा सीट से विधायक बनने के बावजूद धर्मेंद्र प्रधान राष्ट्रीय राजनीति में एक्टिव रहे.
उनके असाधारण संगठनात्मक कौशल को देखते हुए BJP ने उन्हें कई अहम जिम्मेदारियां सौंपी. वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी रह चुके हैं.
इससे पहले 10 मौकों पर धर्मेंद्र प्रधान को अलग-अलग राज्यों में चुनाव प्रभारी बनाया गया है. इनमें छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, हरियाणा, बिहार (दो मौकों पर), ओडिशा, मध्य प्रदेश शामिल हैं.
धर्मेंद्र प्रधान के चुनाव जिताने का स्ट्राइक रेट 82 फीसद
धर्मेंद्र प्रधान के चुनाव प्रभारी रहते हुए BJP को 11 में से 9 मौकौं पर जीत हासिल हुई है. सिर्फ कर्नाटक एक ऐसा राज्य है, जहां प्रधान अपनी पार्टी को जीत दिलाने में सफल नहीं हो सके. इस हिसाब से देखें तो उनके बीजेपी को चुनाव जिताने का स्ट्राइक रेट 82 फीसद है.
2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी नियुक्त किया था. उन्होंने सत्ता विरोधी लहर रोकने की पूरी कोशिश की पार्टी की हार को टाल नहीं पाए. इस चुनाव में बीजेपी 224 सदस्यीय विधानसभा में महज 66 सीटें जीत पाई थी.
अगले ही साल 2024 में एक बार फिर से प्रधान को हरियाणा विधानसभा चुनाव की जिम्मदारी सौंपी गई. उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और सत्ता विरोधी लहर होने के बावजूद BJP को लगातार तीसरी बार जीत दिलाई.
सत्ता विरोधी लहर के बावजूद 90 में से 48 सीटें जीतीं. यह 2014 के बाद से हरियाणा में बीजेपी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी था. इस चुनाव के दौरान धर्मेंद्र प्रधान ने रोहतक, कुरुक्षेत्र और पंचकूला में शिविर लगाए थे और जमीनी स्तर पर ध्यान केंद्रित किया था.
धर्मेंद्र प्रधान को ही क्यों बनाया गया बिहार चुनाव प्रभारी?
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले धर्मेंद्र प्रधान की नियुक्ति प्रतीकात्मक और रणनीतिक दोनों है. ऐसा माना जाता है कि 2022 में उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को NDA के पाले में वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
इतना ही नहीं धर्मेंद्र प्रधान ने पार्टी हाईकमान के जरिए उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का आश्वासन दिलवाया था, ताकि सरकार आसानी से चल सके. ऐसा करके उन्होंने बिहार के जटिल जातिगत समीकरणों को साधते हुए प्रदेश में BJP की स्थिति मजबूत करने की कोशिश की.
नीतीश कुमार कुर्मी, जबकि धर्मेंद्र प्रधान चासा समुदाय से आने वाले प्रमुख OBC नेता हैं. बिहार जैसे राज्य में जहां जातिगत राजनीति की जड़ें काफी मजबूत है, दोनों नेताओं की लामबंदी NDA के लिए काफी फायदेमंद साबित होती रही है.
प्रधान ने बिहार प्रभारी बनाए जाने के कुछ ही समय बाद एक टीवी चैनल से कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले कुछ महीनों में पांच बार बिहार आए हैं. नीतीश जी का अपना एक अलग ही आभामंडल है और उनके नेतृत्व में NDA सरकार ने बिहार में बहुत कुछ किया है. NDA एकजुट है और बिहार में आगामी चुनाव जीतेगी."
उन्हें चुनाव प्रबंधन के साथ ही साथ संगठन चलाने का भी शानदार अनुभव है. बिहार की राजनीति की गहरी समझ होने के कारण पार्टी ने इस नाजुक समय में उनपर भरोसा किया. 2010 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने प्रधान को बिहार BJP का सह प्रभारी बनाकर भेजा था. इसके बाद 2015 में अमित शाह ने उन्हें बिहार का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया.
वे एक दशक से भी अधिक समय से बिहार में पार्टी की रणनीति तैयार करने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं. उन्होंने 2010 के विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. परिणाम ये हुआ कि NDA ने 243 में से 206 सीटें जीती थीं.
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने बिहार की 40 में से 31 सीटें हासिल की थीं. इस वक्त भी प्रधान ही बिहार के प्रभारी थे. उनके काम को करीब से देखने वाले BJP नेताओं का मानना है कि वे हर रोज निर्वाचन क्षेत्र की समीक्षा करते हैं.
लोगों के बीच पार्टी की बात पहुंचाने के लिए रणनीतियां बनाते हैं. कल्याणकारी योजनाओं को जमीनी स्तर तक पहुंचाना सुनिश्चित करते हैं. कार्यकर्ताओं में जोश भरने के साथ ही वह चुनावी तैयारियों की हर स्तर पर समीक्षा करते हैं. शायद यही वजह है कि पार्टी ने आखिरी वक्त में चुनाव से ठीक पहले उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी है.