ऊपर बर्फ नीचे आग! इन दिनों कश्मीर के हरे-भरे जंगल क्यों धधक रहे हैं?

जम्मू-कश्मीर में 'फॉरेस्ट फायर' (जंगल की आग) का आलम यह है कि जून के आधे महीने में देश में यह टॉप पर रहा. ये घटनाएं उस समय हुई हैं जब इलाके में भीषण गर्मी का दौर चल रहा है

(फोटो: आबिद भट)
(फोटो: आबिद भट)

हिमालय के पश्चिमी हिस्से में मौजूद है पीर पंजाल पर्वतमाला, जो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में स्थित है. यह कश्मीर घाटी को जम्मू क्षेत्र से अलग करती है, और अपनी ऊंची, बर्फ से ढंकी चोटियों और रिज के लिए जानी जाती है.

लेकिन 'स्नोलाइन' (हिम रेखा) के नीचे इसके मशहूर जंगल, जहां चीड़, फर, ओक, स्प्रूस और देवदार के शानदार पेड़ खड़े हैं, धीरे-धीरे सुलग रहे हैं और फिर अचानक तेजी से जल उठते हैं, जैसे अपनी छुपी हुई नाराजगी जाहिर कर रहे हों.

स्नोलाइन वह ऊंचाई होती है जहां से ऊपर पहाड़ों पर पूरे साल या लंबे समय तक बर्फ जमी रहती है, और उससे नीचे की सतह आमतौर पर बर्फ रहित होती है.

बहरहाल, जम्मू-कश्मीर में 'फॉरेस्ट फायर' (जंगल की आग) का आलम यह है कि जून के आधे महीने में देश में यह टॉप पर रहा. इस दौरान यहां कुल 338 फॉरेस्ट फायर की घटनाएं हुईं. अप्रैल से अब तक जम्मू-कश्मीर में जंगल में आग लगने की 883 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें से ज्यादातर जम्मू क्षेत्र में हैं.

ये घटनाएं उस समय हुई हैं जब इलाके में भीषण गर्मी का दौर चल रहा है, जिसमें जून की शुरुआत में जम्मू में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस और कश्मीर में 33 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. इस साल श्रीनगर में 1978 के बाद का सबसे गर्म महीना जून के रूप में दर्ज किया गया.

1 से 9 अप्रैल के बीच जंगलों में पहली बार आगलगी की कई घटनाएं सामने आईं. तब करीब 80 दमकलकर्मी समय की परवाह किए बगैर तेज हवाओं का सामना करते हुए आग बुझाने में लगे रहे. यह आग 7,000 हेक्टेयर जंगल में फैल गई थी, जिसने पेड़ों की जड़ें, चीड़ की सूईयां, फर के फल और सूखे पत्तों जैसी चीजों को जला डाला. आखिरकार बारिश ने कुछ राहत पहुंचाई.

लेकिन उससे पहले तीखी और धुएं से भरी हवा ने समूचे वातावरण को भर दिया, जिससे अनंतनाग जिले की कोकरनाग घाटी की वो साफ-सुथरी और शांत वादियां भी दूषित हो गईं, जिनसे होकर वहां के प्रसिद्ध झरनों का पानी बहता है. कोकरनाग के रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर फारूक अहमद मीर ने इंडिया टुडे को बताया, "पिछले 30 सालों में मैंने कभी इतने बड़े पैमाने पर जंगलों को जलते नहीं देखा. हम दमकलकर्मी कई दिनों से बिना नींद के आग से जूझ रहे हैं."

अगर बसंत के मौसम में कश्मीर के जंगलों में आग लगना एक दुर्लभ बात मानी जाती है, तो दक्षिण कश्मीर में दर्जनों जंगलों का जलना, जिनमें अनंतनाग के साथ कुलगाम जिला भी शामिल है, एक अभूतपूर्व घटना है.

अनुमान के मुताबिक, इसके पीछे जलवायु परिवर्तन ही सबसे बड़ा कारण है. पहले, घाटी में भारी बर्फबारी वाली सर्दियां और बसंत में बर्फ का पिघलना मिट्टी को नम रखता था, जिससे आग नहीं लगती थी. लेकिन अब लंबे समय तक सूखा और कम बर्फबारी ने जंगलों और मिट्टी, दोनों को सूखा और आग के प्रति असहाय बना दिया है.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल के पहले छह दिनों में दक्षिण कश्मीर में रिकॉर्ड 179 फॉरेस्ट फायर की घटनाएं हुईं, जिससे 397 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ. पिछले साल से तुलना की जाए तो यह तीन गुना बढ़ोत्तरी है. अप्रैल 2024 से मार्च 2025 के बीच ऐसी सिर्फ 63 घटनाएं हुईं थीं, और कुल 71 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ था.

अनंतनाग के जिला वन अधिकारी मुदस्सिर महमूद कहते हैं, "आमतौर पर पतझड़ में हमें कुछ ही आगलगी की घटनाएं देखने को मिलती हैं, लेकिन इस बार की स्थिति हमारे लिए चौंकाने वाली है." जिले के वन विभाग के पास कुल 80 लोग हैं, जिनमें से 30 अस्थायी मजदूर हैं, और वे इस अफरा-तफरी से मुश्किल से निपट पा रहे हैं. हालात ऐसे हो गए कि वन विभाग को स्थानीय लोगों से मदद की अपील करनी पड़ी.

मीर बताते हैं, "आग बेकाबू हो गई थी; हमारे पास मस्जिद के लाउडस्पीकर से स्थानीय लोगों को मदद के लिए बुलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. 60 से ज्यादा लोग हमारे साथ शामिल हुए."

इस साल की आग कुछ हद तक विनाशकारी रही, लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर धीरे-धीरे बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है. इसके कुल 42,241 वर्ग किलोमीटर इलाके में से 47.8 फीसद या 20,194 वर्ग किलोमीटर इलाका वन क्षेत्र के अंतर्गत आता है. वर्ल्ड फॉरेस्ट वॉच के अनुसार, 2001 से 2023 तक जम्मू-कश्मीर ने आग के कारण 952 हेक्टेयर ट्री कवर (वृक्ष आवरण) खो दिया है.

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत आने वाला फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) रिमोट सैटेलाइट सेंसर जैसे MODIS (मॉडरेट रिजॉल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर) की मदद से जंगलों में लगने वाली आग पर नजर रखता है. इसकी स्टेट ऑफ द फॉरेस्ट रिपोर्ट-2023 के अनुसार, नवंबर 2021 से जुलाई 2024 के बीच जम्मू-कश्मीर में 9,084 जंगल की आग की घटनाएं दर्ज की गईं. सिर्फ नवंबर 2023 से जून 2024 के बीच ही आग से 438.56 हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंचा.

महमूद कहते हैं कि असल आंकड़े इससे भी ज्यादा है क्योंकि सैटेलाइट सेंसर केवल बड़ी आग की घटनाओं को ही पकड़ पाते हैं. जमीनी रिपोर्टों के आधार पर, उमर अब्दुल्ला सरकार ने मार्च में बताया कि 2024-25 में जम्मू-कश्मीर में 1,243 जंगल की आग की घटनाएं दर्ज की गईं, जिनसे 3,503 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ.

हालांकि इस साल ज्यादातर आग ग्राउंड फायर ही थीं, जिससे पेड़ों को कम नुकसान हुआ. लेकिन इसका असर पूरे पर्यावरण और जैव विविधता, जिसमें खाद्य शृंखला भी शामिल है, पर काफी गंभीर पड़ा है. जंगलों में लगने वाली आग कश्मीर में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष की भी एक बड़ी वजह है, जिसके चलते पिछले तीन वर्षों में 36 लोगों की मौत हो चुकी है.

शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, श्रीनगर में वन्यजीव विज्ञान विभाग के प्रमुख खुर्शीद अहमद कहते हैं, "आवास (जंगल) के नष्ट होने के कारण जंगली जानवर खाने की तलाश में मानव आबादी वाले इलाकों में घुस आते हैं, जिससे इंसानों के साथ उनका टकराव होता है."

अधिकारियों के अनुसार, फॉरेस्ट फायर के लिए सिर्फ जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेदार नहीं है. कोविड-19 महामारी के बाद पहाड़ी और सुंदर जंगलों में ट्रैकिंग (पैदल घूमने) की गतिविधियों में तेजी आई है, साथ ही हर साल गुज्जर और बकरवाल समुदाय का बसंत में कश्मीर की ऊंचाई की ओर, और सर्दियों में जम्मू की ओर होने वाला प्रवास भी इसके लिए जिम्मेदार है.

दुर्भाग्य से जम्मू-कश्मीर इस नुकसान को रोकने में संघर्ष कर रहा है. नेशनल एक्शन प्लान ऑन फॉरेस्ट फायर (NAPFF) 2018 में आग से निपटने के लिए कंट्रोल बर्निंग, क्षमता निर्माण और बायोमास के इस्तेमाल को बढ़ावा देने जैसे उपाय सुझाए गए हैं. लेकिन राज्य स्तर पर जंगल की आग के लिए समिति होने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.

जम्मू-कश्मीर के प्रिंसिपल चीफ वन संरक्षक सुरेश गुप्ता ने इंडिया टुडे को बताया, "हम आग की निगरानी के लिए 120 कंट्रोल रूम बना रहे हैं, और निचले स्तर के जंगलों को सैटेलाइट से मैप कर रहे हैं. साथ ही, आग की रोकथाम और प्रबंधन के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) तैयार कर रहे हैं."

कोकरनाग और अन्य प्रभावित क्षेत्रों के जंगलों के लिए तुरंत एक स्थायी और प्रभावी समाधान योजना की जरूरत है. विशेषज्ञों का कहना है कि वन विभाग की अपनी जंगल में आग नियंत्रण योजना अब पुरानी हो चुकी है. वहां स्टाफ की भारी कमी है. केवल 60 से 80 कर्मचारियों के पास सीमित संसाधन हैं और वे 7,000 से 40,000 हेक्टेयर तक के पहाड़ी जंगलों की निगरानी कर रहे हैं.

यही नहीं, नेशनल कंपनसेटरी अफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग ऑथोरिटी (CAMPA) के तहत 2024-25 में जम्मू-कश्मीर के लिए निर्धारित 727 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किए गए. जब 17 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव अटल डुल्लू ने इस पर आपत्ति जताई, तो इस साल 14,680 हेक्टेयर बंजर हुए जंगलों में पेड़ लगाने और 2,061 किलोमीटर लंबी फायर लाइन (आग को फैलने से रोकने के लिए जमीन की सफाई) बनाने के निर्देश दिए गए.

- कलीम गिलानी.

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