अभिषेक बनर्जी का समलैंगिक शादी को समर्थन देना बंगाल की राजनीति के लिए अहम क्यों माना रहा है?
भारत में मुख्यधारा की राजनीति सामाजिक प्रतिक्रिया या राजनीतिक नुकसान के डर से LGBTQIA+ अधिकारों का खुलकर समर्थन करने में हिचकिचाती रही है

4 नवंबर को दो युवतियों- मंदिरबाजार की 19 वर्षीय रिया सरदार और बकुलतला की 20 वर्षीय राखी नस्कर—सुंदरबन की हरियाली के बीच स्थित एक साधारण मंदिर में सदियों पुरानी सामाजिक रूढ़िवादिता तोड़ते को तोड़कर विवाह बंधन में बंध गईं. यह घटना पश्चिम बंगाल के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक क्रांतिकारी बदलाव का संकेत मानी जा रही है.
दरअसल, प्रेम की व्यक्तिगत गहरी अभिव्यक्ति के तौर पर सामने आई यह घटना जल्द ही एक राजनीतिक और सांस्कृतिक मील का पत्थर बन गई जब तृणमूल कांग्रेस (TMC) नेता अभिषेक बनर्जी ने सार्वजनिक तौर पर इस विवाह का समर्थन कर दिया.
इन लड़कियों की कहानी जितनी कोमल है, उतनी ही साहसिक भी है. रिया और राखी दोनों पेशेवर डांसर हैं जो दो साल पहले एक स्थानीय मंदिर में मिली थीं. उनकी दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदली और रिया के परिवार के विरोध के बावजूद उन्होंने अपने दिल की सुनने का फैसला किया.
राखी के रिश्तेदारों और कुछ उदार गांववालों के सहयोग से इस जोड़े ने मंदिर में साधारण ढंग से लेकिन बेहद उत्साह के साथ समारोह आयोजित किया- स्थानीय लोगों के आशीर्वाद के साथ उन्होंने एक-दूसरे को माला पहनाई. राखी ने पूरे विश्वास के साथ कहा, “हम दो साल से रिश्ते में हैं. और पूरी जिंदगी साथ रहना चाहते हैं.”
रिया ने कम उम्र में ही अपने माता-पिता को गंवा दिया था और उसका पालन-पोषण चाचा-चाची ने किया था. उसने पूरी साफगोई के साथ अपने प्रेम को अभिव्यक्त किया. उसने कहा, “मुझे वह पसंद आई, इसलिए हमने शादी कर ली. मैं जिंदगी भर उसके साथ रहूंगी. प्यार ही सबसे जरूरी है.”
हालांकि उनका विवाह कानूनी न होकर प्रतीकात्मक ही था क्योंकि भारत में समलैंगिक विवाह मान्य नहीं हैं. लेकिन यह शादी दक्षिण 24 परगना के डेल्टाई गांवों में एक महत्वपूर्ण सामाजिक बदलाव को दर्शाती है. बहरहाल, इससे जुड़ा उल्लेखनीय घटनाक्रम तो विवाह के बाद सामने आया.
10 नवंबर को स्थानीय TMC इकाई ने मथुरापुर के सांसद बापी हलदर के नेतृत्व में इस जोड़े के लिए एक सम्मान समारोह आयोजित किया. इसके साथ ही TMC के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी समर्थित यह कार्यक्रम समावेशिता का एक अभूतपूर्व उत्सव बन गया.
जैसे ही भीड़ जुटी, अभिषेक ने नवविवाहित जोड़े से फोन पर बात की, जिसका प्रसारण हलदर ने लाउडस्पीकर पर किया. अभिषेक ने कहा, “रिया और राखी मैं आपको तहे दिल से बधाई देता हूं. आपने हमारे समाज में प्रेम की पारंपरिक धारणाओं को तोड़ दिया है, और हमें दिखा दिया कि सच्चा प्यार क्या होता है- ऐसा प्यार जिसमें कोई बंधन नहीं होता. आपको पता होगा कि यह आसान नहीं होने जा रहा, लेकिन आप पीछे नहीं हटीं. मैं उन गांव वालों को भी धन्यवाद देता हूं जिन्होंने आपका साथ दिया और इसे संभव बनाया. आपकी बहादुरी, ताकत और प्यार आने वाली पीढ़ियों तक हमारे साथ रहेगा. प्यार का मतलब इंसानियत है, और इंसानियत ही समाज का असली चेहरा है.”
अभिषेक ने आगे कहा, “यह सिर्फ दो लोगों की शादी नहीं है, बल्कि बंगाल और देश का गौरव है. आपने इन दोनों लोगों के साथ खड़े होने के लिए प्रेम की पारंपरिक धारणाओं को तोड़ दिया.”
अभिषेक ने डायमंड हार्बर निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के साथ अपने जुड़ाव को दोहराते हुए यह आश्वासन भी दिया कि वे खुद इलाके का दौरा करेंगे और गांव के विकास के लिए काम करते रहेंगे. बांग्ला में एक सोशल मीडिया पोस्ट में अभिषेक ने कहा, "सामाजिक बंधनों को तोड़कर सुंदरबन की दो युवतियां विवाह बंधन में बंध गईं- ये बंगाल और पूरे देश के लिए उज्ज्वल उदाहरण है. जीवन भर साथ रहने का उनका निर्णय स्वतंत्र भारत की भावना, स्वतंत्र विचार, मानवता और साहस को दर्शाता है. उन्होंने सच्चे प्यार को चुनने के लिए सामाजिक पूर्वाग्रह, धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक बाधाओं की संकीर्ण सीमाओं को तोड़ा है. उनका पवित्र बंधन अमर रहे.”
अभिषेक का इस जोड़े को सार्वजनिक रूप से समर्थन देना प्रतीकात्मक और रणनीतिक दोनों है- यह संभवत: पहला मौका है जब मुख्यधारा के किसी भारतीय राजनेता ने समलैंगिक विवाह का इस तरह खुलकर समर्थन किया है. ऐसे देश में जहां समलैंगिक संबंधों का जिक्र भी अक्सर असहजता पैदा करता है, उनके इस कदम को सहानुभूति और प्रगतिशीलता पर आधारित एक राजनीतिक बयान के तौर पर देखा जा रहा है.
अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि समलैंगिक विवाह संवैधानिक रूप से वैध नहीं है और समलैंगिक जोड़ों पर विशेष विवाह अधिनियम लागू नहीं होता. हालांकि ये LGBTQIA+ एक्टिविस्ट के लिए एक झटका था, लेकिन इस फैसले ने संसद से समानता के लिए कानूनी उपायों पर विचार करने को भी कहा था ताकि राजनीतिक वर्ग की तरफ से कदम उठाने की गुंजाइश मिले. हालांकि, इस दिशा में ज्यादा कुछ नहीं हुआ.
इस पृष्ठभूमि में, अभिषेक का समर्थन हालांकि कोई नीतिगत दखल नहीं है, लेकिन एक सांस्कृतिक बदलाव का संकेत देता है. यह दिखाता है कि एक अरसे से सामाजिक उदारवाद और बहुलवाद का प्रतीक रहा बंगाल का क्षेत्रीय राजनीतिक नेतृत्व समावेशी बातचीत को हाशिये से मुख्यधारा में लाने के लिए किस तरह तत्पर है.
हमेशा से बंगाल को “प्रगतिशील मूल्यों” वाले राज्य के तौर पर सामने रखने वाली TMC ने इस समर्थन के जरिये कहीं न कहीं यह संकेत देने की कोशिश की है कि उसका नैरेटिव समलैंगिक अधिकारों पर केंद्र सरकार की चुप्पी के एकदम उलट है. यह राज्य के विशिष्ट राजनीतिक चरित्र को भी गहराई से रेखांकित करता है- जो रूढ़िवादिता के बजाय उदारता और विविधता को महत्व देती है.
बंगाल की सामाजिक कल्पना में प्रेम लंबे समय से विद्रोह से जुड़ा रहा है- चाहे वह रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं में हो, हेमंत मुखर्जी के गीतों में या जाति और वर्ग को चुनौती देने वाले निषिद्ध विवाहों की अनगिनत कहानियों में हो. रिया और राखी की शादी और अभिषेक की तरफ से इसका खुलकर जश्न मनाना, उस परंपरा में एक नया अध्याय जोड़ता है जहां अवज्ञा का मिलन गरिमा से होता है, और राजनीति में उदारता की झलक मिलती है.
भारत में मुख्यधारा की राजनीति सामाजिक प्रतिक्रिया या राजनीतिक कीमत चुकाने के डर से LGBTQIA+ अधिकारों को अपनाने में हिचकिचाती रही है. जब 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया तो राजनीतिक दलों ने आम तौर पर चुप्पी साधे रखी. बहुत कम नेताओं ने विमर्श आगे बढ़ाने का फैसला किया. इसीलिए अभिषेक के समर्थन के निहितार्थ काफी गहरे हैं. यह संवैधानिक अधिकारों और जीवंत वास्तविकताओं के बीच खाई को पाटता है. इस जोड़े के साहस को ध्यान में रखकर उन्होंने एक ऐसी पहचान को वैधता प्रदान की जो दोनों के लिए संघर्ष करती दिखती है.
सुंदरबन का आयोजन रूढ़िवादिता को भी चुनौती देता है. यह कोई कुलीन शहरी इलाका नहीं था, बल्कि दो महिलाओं के प्रेम का जश्न मनाने के लिए एक साथ आए साधारण गांवों का समूह था- यह दर्शाता है कि सामाजिक प्रगति अक्सर ऐसी जगह पनपती है, जहां उसकी कल्पना तक न की गई हो.
बहरहाल, रिया और राखी को सम्मानित करना अभिषेक की उभरती राजनीतिक छवि का एक हिस्सा भी हो सकता है- तृणमूल के भीतर एक पीढ़ीगत आवाज जो विकास की राजनीति को सामाजिक सहानुभूति के साथ जोड़ना चाहती है. यह इस विचार की पुष्टि ही करता है कि राजनीति का सबसे बेहतर रूप यही है कि विभाजन करने के बजाय वह पूरी संवेदनशीलता के साथ समाधान निकाले. ये उदारता सार्वजनिक जीवन में अब भी सबसे ज्यादा ताकतवर है.
उस शाम मैंग्रोव से भी भरी खाड़ियों के बीच सूर्यास्त होते ही नवविवाहित जोड़ा हाथ में हाथ डाले खड़ा था- मालाओं में गूंथे फूल मुरझाने लगे थे कि उनके चेहरों की मुस्कान बरकरार थी. उनके लिए ये दिन राजनीति, वैधता या फिर किसी बगावत का परिचायक नहीं था. ये उस प्रेम का दिन था जिसने झुकने से इनकार कर दिया था.
लेकिन बंगाल और शायद भारत के लिए भी इसके मायने काफी ज्यादा थे: एक ऐसे भविष्य की एक झलक, जहां स्वीकार्यता असाधारण नहीं है, और जहां एक नेता के शब्द स्वतंत्रता और उदारता का वादा करते हैं, जिसे सुंदरबन में लाउडस्पीकर पर गूंजते सुना गया था.