कौन हैं मौलाना तौक़ीर रज़ा, जो बार-बार विवादों में आ जाते हैं?

उत्तर प्रदेश के बरेली में 26 सितंबर को हुई हिंसा के बाद पुलिस ने मौलाना तौक़ीर रज़ा को गिरफ्तार किया है

 Maulana Tauqeer Raza
मौलाना तौक़ीर रज़ा (फाइल फोटो)

बरेली का बिहारीपुर करोलान इलाका हमेशा से संवेदनशील माना जाता है. तंग गलियां, भीड़भाड़ वाले बाजार और अलग-अलग समुदायों की मिली-जुली आबादी. 26 सितंबर की दोपहर बिहारीपुर करोलान इलाके में जैसे ही जुमे की नमाज़ खत्म हुई, नौमहला मस्जिद से बाहर निकले लोगों का हुजूम “आई लव मुहम्मद” अभियान के समर्थन में जुलूस निकालने के इरादे से आगे बढ़ा. 

प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी थी. जब पुलिस ने भीड़ को रोकने की कोशिश की तो देखते ही देखते माहौल गरमा गया और खलील स्कूल के पास से लेकर श्यामगंज की गलियों तक पत्थरों की बरसात शुरू हो गई. गाड़ियों के शीशे टूटे, दुकानों के शटर पर डंडे बरसे, महिलाएं और बच्चे घरों में दुबक गए. दुकानदार राजीव गुप्ता बताते हैं, "हमने शटर गिरा दिए थे लेकिन पत्थर अंदर तक आ रहे थे, पुलिस भी घबराई हुई थी."  

करीब आधे घंटे तक इलाके में अफरा-तफरी मची रही. पुलिस ने लाठीचार्ज कर भीड़ को पीछे धकेलने की कोशिश की, हालांकि सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गए जिनमें पुलिसकर्मी ढाल थामे दौड़ते दिखाई दे रहे थे. इस हिंसा में दो दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए जिनमें 12 पुलिसकर्मी भी शामिल थे. एसपी सिटी राहुल भाटी ने बताया, "ज्यादातर लोग नमाज़ के बाद शांतिपूर्वक घर चले गए थे लेकिन अचानक एक समूह सक्रिय हुआ जिसने माहौल बिगाड़ा. यह सुनियोजित लग रहा है." 

रात होते-होते पुलिस ने सबसे बड़ा कदम उठाया और इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) प्रमुख मौलाना तौक़ीर रज़ा (70) को उनके सौदानगर स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया और भोर होते-होते उन्हें जेल भेज दिया गया. डीआईजी बरेली ए.के. साहनी ने बताया, "जांच से साफ है कि घटना अचानक नहीं हुई बल्कि इसे भड़काने की तैयारी पहले से की गई थी. सबूत बताते हैं कि भीड़ को संगठित तरीके से उकसाया गया." अब तक 25 नामजद और 200 अज्ञात लोगों पर एफआइआर दर्ज हो चुकी है. 60 से ज्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और पुलिस ने बलवा, शांति भंग, सरकारी कार्य में बाधा डालना और धार्मिक भावनाएं भड़काने जैसी धाराओं में मुकदमे दर्ज किए हैं. जानकारी के मुताबिक मौलाना पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) और गैंगस्टर एक्ट लगाने की भी तैयारी हो रही है ताकि वे जल्द बाहर न निकल पाएं. 

घटना के अगले दिन लखनऊ में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, “एक मौलाना भूल गया कि राज्य में शासन किसका है. वो यह सोच बैठा था कि वह धमकी देकर व्यवस्था को रोक सकता है, लेकिन हमने साफ कर दिया कि न तो नाकाबंदी होगी और न ही कर्फ्यू.” इसी भाषण में उनका आगे कहना था, "कानून से ऊपर कोई नहीं है. माहौल बिगाड़ने वालों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा. पुलिस को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं." 

यह साफ संकेत है कि सरकार इस बार किसी भी तरह की ढिलाई नहीं बरतना चाहती. स्थानीय लोगों को भी महसूस हो रहा है कि इस बार रुख अलग है. एक बुजुर्ग नसीम अहमद कहते हैं, "मौलाना का असर मोहल्लों में है. लोग उनके बुलावे पर आ जाते हैं. लेकिन अब माहौल बदल रहा है. लोग खुद पूछ रहे हैं कि हर बार क्यों हमको नुकसान उठाना पड़ता है.”

कौन हैं तौक़ीर रज़ा

सुन्नी मुसलमानों के बरेलवी मसलक (विचारधारा) से ताल्लुक रखने वाले मौलाना तौक़ीर रज़ा खां आला हजरत खानदान से आते हैं. वे आला हजरत दरगाह के प्रमुख मौलाना सुभान रज़ा खां उर्फ सुभानी मियां के सगे भाई हैं. पांच भाइयों में सुभानी मियां सबसे बड़े व तौक़ीर रज़ा तीसरे नंबर पर हैं. इनके भतीजे मुफ्ती अहसन रज़ा खां दरगाह के सज्जादानशीन है. 

राजनीति में कदम रखने वाले तौक़ीर रज़ा अपने परिवार के पहले सदस्य नहीं हैं. इनके पिता हजरत रेहान रज़ा खां कांग्रेस के एमएलसी रहे थे. धर्म के साथ राजनीति में भी दिलचस्पी रखने वाले मौलाना तौक़ीर रज़ा ने सन 2000 में राजनीतिक दल इत्तेहाद- ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) की स्थापना की थी. शुरुआत में नगर निकाय चुनाव में पूरे जिले में प्रत्याशी उतारे और 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2009 में मौलाना कांग्रेस के पाले में चले गए. वर्ष 2012 में तौक़ीर रज़ा ने पाला बदलकर सपा से समझौता कर लिया था. इनकी पार्टी के टिकट पर 2012 में शहजिल इस्लाम ने भोजीपुरा से विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. वर्ष 2012 में यूपी में सपा सरकार बनने पर मौलाना तौक़ीर रज़ा को दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री भी बनाया था मगर कुछ महीने बाद मुजफ्फरनगर दंगे हो गए और उनका राज्यमंत्री का पद वापस ले लिया गया. इसके बाद उन्होंने सपा से इस्तीफा दे दिया. वे आम आदमी पार्टी के मुखिया केजरीवाल से मिले और दिल्ली में उनका प्रचार किया. बीएसपी के संपर्क में भी रहे.

तौक़ीर रज़ा ने वर्ष 2014 में पहले देश की सभी मसलकों को एकजुट कर एक मंच पर लाने की कोशिश शुरू की थी. इस दौरान वे देवबंद भी गए थे. इस पर आला हजरत दरगाह ने उनका विरोध किया था. सुभानी मियां ने उन्हें लेकर फतवा भी जारी कर दिया था. बाद में तौक़ीर रज़ा के माफी मांगने पर मामला शांत हुआ था. हालांकि, इसके कुछ दिनों बाद ही तौक़ीर रज़ा ने देवबंदी मुसलमानों द्वारा भेदभाव का दावा करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से अलग ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (जदीद) की स्थापना की है और वर्तमान में इसके प्रमुख भी हैं. 

वर्ष 2023 में ज्ञानवापी मामले पर उन्होंने कहा था कि मुस्लिम युवा सड़क पर उतर आए तो गृहयुद्ध हो जाएगा और फिर मैं भी नहीं रोक पाऊंगा. इसी तरह पिछले एक दशक में उन्होंने खुले मंच से कई बार विवादित बयान दिए हैं. तौक़ीर रज़ा रज़ा लेखिका तस्लीमा नसरीन पर भी विवादित बयान देकर भी घिर थे. उन पर फतवा जारी किया था. आमतौर पर पिछले एक दशक में मौलाना तौक़ीर रज़ा के कार्यक्रमों को दरगाह से खुला समर्थन मिलता नहीं दिखाई दिया, मगर 9 फरवरी 2024 को जब तौक़ीर रज़ा ने गिरफ्तारी देने का एलान किया तो दरगाह प्रमुख सुभानी मियां भी उनके समर्थन में उनके घर पहुंचे थे.  

मौलाना तौक़ीर रज़ा के खिलाफ अब तक 17 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. वर्ष 1982 में पहला केस दंगे और अन्य आरोपों में दर्ज हुआ. 1987 से 2000 के बीच बलवा, आपराधिक विश्वासघात और महिला पर हमले जैसे गंभीर मामले दर्ज हुए. 2010 में बरेली दंगों के साजिशकर्ता के तौर पर नाम आया. 2019 में लोकसेवक का आदेश न मानने और धमकी देने का केस हुआ. वर्ष 2020 में संभल में धमकी देने का और 2023 में धार्मिक भावनाएं भड़काने का मामला दर्ज हुआ. 

हालांकि कई मामलों में चार्जशीट अधूरी रही या फाइलें ही अदालत से गायब हो गईं. पूर्व पुलिस अधिकारी राकेश शुक्ला कहते हैं, "2010 के दंगों में पुख्ता सबूत थे लेकिन दबाव इतना था कि उनका नाम चार्जशीट से हटा दिया गया. यही वजह है कि उनका हौसला और बढ़ गया." स्थानीय वरिष्ठ वकील नीलम वर्मा कहती हैं, "कानून के नजरिए से यह मामला गंभीर है. बार-बार ऐसे मामलों में पुलिस कार्रवाई को टालने से आम जनता का भरोसा घटता है." 

स्थानीय लोग मानते हैं कि मौलाना तौक़ीर रज़ा की पकड़ मोहल्लों में गहरी है लेकिन नुकसान हमेशा आम आदमी को झेलना पड़ता है. दुकानदार राजीव गुप्ता कहते हैं, "हर बार यही होता है. भीड़ निकलती है, पथराव होता है, पुलिस लाठीचार्ज करती है और फिर हम जैसे छोटे व्यापारी सबसे ज्यादा नुकसान उठाते हैं." दूसरी तरफ कुछ लोग उन्हें मुसलमानों की आवाज मानते हैं. एक छात्रा ने कहा, "वे हमारी बात उठाते हैं, लेकिन यह तरीका सही नहीं है. इससे बदनामी होती है." 

विश्लेषकों के मुताबिक इस बार सरकार का रवैया पहले से कहीं ज्यादा सख्त है. वरिष्ठ अफसर रहे सुरक्षा विशेषज्ञ राघव त्यागी कहते हैं, "तौक़ीर रज़ा जैसे नेताओं को बार-बार राजनीतिक दलों ने संरक्षण दिया, यही वजह है कि वे जेल जाकर भी जल्दी बाहर आ जाते थे. लेकिन इस बार सरकार उन्हें मिसाल बनाना चाहती है." बरेली के राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजीव त्रिपाठी का कहना है, "योगी सरकार इस केस से दो संदेश देना चाहती है. पहला यह कि कानून व्यवस्था से खिलवाड़ अब बर्दाश्त नहीं होगा. दूसरा यह कि सरकार किसी भी समुदाय के दबाव में नहीं झुकेगी. यह सख्ती उनके राजनीतिक एजेंडे से भी जुड़ी है." 

मौलाना तौक़ीर रज़ा के आह्वान पर पिछले वर्षों में कई बार बरेली शहर में उपद्रव हुए हैं. 26 सितंबर की हिंसा के पहले भी 2010 में बरेली दंगों में उनके समर्थकों ने आगजनी और पथराव किया था. उस दौरान पुलिस ने 42 मुकदमों में 183 लोगों को नामजद किया लेकिन उनके नाम को एफआईआर से बाहर रखा गया. तत्कालीन आईजी सिक्योरिटी आरपी सिंह ने गोपनीय जांच कर रिपोर्ट शासन को भेजी थी जिसमें उनके और उनके करीबियों के नाम उजागर हुए थे. 26 सितंबर की घटनाओं ने बरेली को फिर से झकझोर दिया है. टूटी गाड़ियां, दीवारों पर लगे पत्थरों के निशान और पुलिस की मौजूदगी अब भी उस दिन की कहानी कहते हैं. हालांकि पहले वे गिरफ्तार होकर बाहर आ जाते थे, लेकिन इस बार गैंगस्टर एक्ट और NSA की तैयारी ने उनके भविष्य पर सवाल खड़ा कर दिया है.

वकील नीलम वर्मा बताती हैं, " अगर NSA जैसी कार्रवाई लागू होती है तो यह माइलस्टोन साबित होगी. इससे यह संदेश जाएगा कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है." बरेली के डीआईजी साहनी कहते हैं, "हमारा उद्देश्य केवल कानून का पालन कराना है. किसी भी तरह की राजनीतिक दबाव से यह कार्रवाई प्रभावित नहीं होगी." 

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