बिहार : कौन हैं जगलाल चौधरी, जिनकी जयंती में भाग लेने राहुल गांधी पटना आ रहे हैं?
बिहार के पहले दलित मंत्री और पहली दफा बिहार में मद्यनिषेध लागू करने वाले नेता जगलाल चौधरी गांधी और आंबेडकर दोनों के विचारों को मानते थे

बिहार की कांग्रेस यूनिट के नेता बीते दो-चार दिनों से कुछ चौंके हुए हैं. दरअसल अभी दो दिन पहले ही उन्हें पता चला कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी 5 फरवरी को फिर से पटना आने वाले हैं. कांग्रेस नेता 18 जनवरी को ही राजधानी आए थे. इस बार राहुल गांधी जगलाल चौधरी जयंती समारोह में शामिल होने आ रहे हैं.
यह वो नाम है जिसके बारे में बिहार में ही ज्यादातर लोग ठीक से नहीं जानते, लेकिन उनके जयंती समारोह में आने की वजह से कांग्रेस नेता तो सुर्खियों में हैं ही, ज्यादा से ज्यादा लोग स्वतंत्रता सेनानी जगलाल चौधरी के बारे में भी जिज्ञासा जता रहे हैं. हालांकि यहां उनकी पूरी कहानी जानने से पहले उनसे जुड़ा एक किस्सा साझा करना जरूरी है.
जगलाल चौधरी पासी समाज से आते थे, जिस समाज का पारंपरिक पेशा ताड़ी बेचना रहा है. उनके पिता खुद ताड़ी बेचते थे, इसी आमदनी से उनका घर चलता था. मगर जब 1937 में वे बिहार सरकार के मंत्री बने तो उन्होंने राज्य के पांच जिलों में शराबबंदी यानी सरकारी भाषा में कहें तो मद्यनिषेध लागू कर दिया. इन पांच जिलों में एक जिला उनका अपना सारण भी शामिल था. उन्होंने यह फैसला लेते वक्त एक बार भी यह नहीं सोचा कि उनकी अपनी जाति के लोग क्या कहेंगे.
इन्हीं जगलाल चौधरी की आज130वीं जयंती है. और इस जयंती समारोह में शामिल होने के लिए देश के विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी पटना आ रहे हैं. बिहार का अखिल भारतीय पासी समाज हर साल पटना में अपने स्तर से जगलाल चौधरी की जयंती मनाता है. मगर इस साल का आयोजन कुछ खास है.
जगलाल चौधरी स्मृति संस्थान के सचिव विश्वनाथ चौधरी बताते हैं, "इस साल का आयोजन कई संगठन मिलकर कर रहे हैं और इस जगलाल चौधरी जयंती समारोह समिति के संयोजक विनोद कुमार चौधरी हैं. खास बात यह है कि इस बार के आयोजन में हमने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को आमंत्रित किया था और वे यहां आने के लिए तैयार हो गये."
इधर बिहार प्रदेश कांग्रेस की तरफ से भी इस आयोजन को लेकर तैयारियां हैं. कहा जा रहा है कि इस आयोजन में कई कांग्रेसी नेता शामिल होंगे. दिलचस्प है कि अभी 18 जनवरी को ही राहुल गांधी पटना आये थे, वह भी संविधान सुरक्षा सम्मेलन के आयोजन में. वह आयोजन भी कांग्रेस के बजाय एक अन्य संगठन ने कराया था.
उस दौरे में राहुल कांग्रेस कार्यालय सदाकत आश्रम और लालू-राबड़ी आवास तो गये ही थे, बीपीएससी अभ्यर्थियों से भी मुलाकात की थी. इस बार उनका कार्यक्रम क्या होगा इसकी अभी तक जानकारी नहीं है. वैसे विश्वनाथ चौधरी के मुताबिक वे दोपहर एक बजे आयोजन स्थल श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल पहुंचेंगे और दो बजे तक वहां रह सकते हैं. आयोजन दोपहर 11 बजे शुरू होगा.
आजादी के दौर के नेता जगलाल चौधरी के बारे में विश्वनाथ चौधरी जानकारी देते हैं कि उनका जन्म सारण जिले के गड़खा प्रखंड में 5 फरवरी, 1895 को हुआ था. हालांकि अभिलेखागार से प्रकाशित उनके भाषणों की पुस्तक में उनकी जन्मतिथि 5 फरवरी, 1894 बताई गई है. वे बेहद गरीब दलित परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता का नाम मुसन चौधरी और माता का नाम तेतरी देवी था.
उनके परिवार में गरीबी का आलम यह था कि घर में जिस रोज मोटा चावल पकता वह खुशी का दिन होता, नहीं तो मक्के के घट्ठे से ही उनका भोजन चलता. मगर इस भीषण गरीबी में ताड़ी (एक तरह का नशीला पेय) बेचकर उनके पिता मुसन चौधरी ने उन्हें पढ़ाया और यह सुनिश्चित किया कि बेटा उनके पारंपरिक पेशे में न आये.
बचपन से प्रतिभाशाली जगलाल पढ़ाई में आगे बढ़ते रहे. 1912 में छपरा जिला स्कूल से उन्होंने मैट्रीकुलेशन की परीक्षा पास की और अपने जिले के टॉपर बने. इस उपलब्धि पर उन्हें सिल्वर मेडल मिला था. फिर उन्हें स्कॉलरशिप मिली और पटना कॉलेज से 1914 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की. जगलाल के इतने अच्छे नंबर आये कि उन्हें कलकत्ता के कैंपबेल मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए एडमिशन मिल गया. तब उनके जैसे गरीब छात्रों के लिए डॉक्टरी की पढ़ाई आसान नहीं थी, मगर उनके बड़े भाई मीसम चौधरी जो सेना में नौकरी करते थे, उन्हें आर्थिक सहयोग करने लगे ताकि वे डॉक्टरी की पढ़ाई कर सकें.
एक दलित और गरीब युवक के लिए उस जमाने में यह सफर आसान नहीं था. संकट सिर्फ आर्थिक नहीं था, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में उन्हें छुआछूत का भी सामना करना पड़ा. उन्हें कॉलेज के बाकी स्टूडेंट के साथ खाना खाने से रोका जाता था. मगर वहां उन्होंने इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी. जगलाल ने खुद को हॉस्टल के कमरे में बंद कर लिया और 24 घंटे तक भूख हड़ताल कर दी. अंत में छात्र उन्हें अपने साथ मेस में खाने देने के लिए राजी हो गये. इस तरह यह उनको छुआछूत के खिलाफ लड़ाई में पहली जीत मिली थी.
दिलचस्प बात है कि तब तक जगलाल महात्मा गांधी से परिचित नहीं हुए थे लेकिन इस घटना से समझ आता है कि उनके मन में गांधीवादी सत्याग्रह के बीज भरपूर थे. इसलिए असहयोग आंदोलन के वक्त गांधी ने जब छात्रों से इसमें शामिल होने की अपील की तो मेडिकल पढ़ाई के आखिरी वर्ष में होने के बावजूद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और आंदोलन में कूद पड़े. तब से गांधीवादी सत्याग्रह के सेनानी बने रहे.
वे बिहार राज्य कांग्रेस समिति के सदस्य बन गये और 1922 में उन्हें कांग्रेस की कुछ समस्याओं को सुलझाने के लिए पूर्णिया जिले के टीकापट्टी आश्रम भेजा गया. उन्होंने नमक सत्याग्रह और गांधी के अस्पृश्यता विरोधी आंदोलनों में भागीदारी की. कई दफे जेल गये. फिर 1937 में जब बिहार में पहली बार कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री (तब प्रधानमंत्री) श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में अनुग्रह नारायण सिंह और सैयद महमूद के साथ जगलाल चौधरी भी मंत्री बने और उन्हें आबकारी मंत्रालय मिला.
ताड़ी जैसे नशीले पेय बेचकर आजीविका चलाने वाली जाति पासी से संबंधित होने के बावजूद उन्होंने तत्कालीन बिहार के पांच जिले सारण, मुजफ्फरपुर, हजारीबाग, धनबाद और रांची में मद्यपान निषेध लागू किया.
जगलाल चौधरी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल हुए और सरकारी रिपोर्टों में इस बात की जानकारियां मिलती हैं कि उन्होंने इस दौरान सारण में काफी सक्रियता दिखाई थी. इसी आंदोलन के दौरान अंग्रेज पुलिस ने उनके बेटे इंद्रदेव चौधरी की गोली मार कर हत्या कर दी. अगले ही दिन पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया. वे जेल गये और उन पर आर्थिक दंड लगा.
1946 में फिर जब बिहार में श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी तो उन्हें मंत्री बनाकर स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय सौंपा गया. आजादी के बाद भी वे गरखा सुरक्षित सीट से चुनाव जीतते रहे. 9 मई, 1975 को उनका निधन हो गया.
बिहार राज्य अभिलेखागार ने बिहार विधानमंडल में उनके भाषणों को संकलित कर पुस्तक का प्रकाशन किया है. उनके निधन के बाद भारत सरकार ने वर्ष 2000 में उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया था. 1970 में छपरा में जगलाल चौधरी कॉलेज की स्थापना हुई. 5 फरवरी 2018 को जगलाल चौधरी की आदमकद प्रतिमा का अनावरण पटना के कंकड़बाग में राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था.
जगलाल चौधरी गांधी के साथ-साथ बाबा साहब आंबेडकर के विचारों से भी प्रभावित थे. 1953 में उन्होंने 'ए प्लान टू रिकंस्ट्रक्ट भारत' शीर्षक से एक पुस्तक लिखी. इसमें उन्होंने डॉ. आंबेडकर के विचारों का समर्थन करते हुए सभी वर्गों के स्त्री-पुरुषों को समान अधिकार और अवसर प्रदान किए जाने की हिमायत की है. जाति प्रथा को वे हिन्दू समाज के लिए सबसे बड़ा अभिशाप समझते थे तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता और धार्मिक सहिष्णुता व प्रत्येक व्यक्ति को उसके इच्छा के अनुसार धर्म मानने की स्वतंत्रता के पक्षधर थे.
(जगलाल चौधरी के जीवन से जुड़ी सूचनाएं और तस्वीर जगलाल चौधरी स्मृति संस्थान के सचिव विश्वनाथ चौधरी ने उपलब्ध कराई हैं और कुछ सूचनाएं बिहार अभिलेखागार से प्रकाशित पुस्तक बिहार विधानमंडल में 'जगलाल चौधरी के संभाषण' पुस्तक से साभार हैं.)