वरुण गांधी और संघमित्रा मौर्य के लिए क्या है भाजपा का प्लान?
भाजपा ने इस बार पीलीभीत सांसद वरुण गांधी और बदायूं सांसद संघमित्रा मौर्य का टिकट काट दिया है

यूपी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए बरेली क्षेत्र की दो लोकसभा सीटों पर सबकी नजरें गड़ी थीं. सबसे ज्यादा इंतजार पीलीभीत लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार का था जहां से वरुण गांधी सांसद हैं. वहीं पिता स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा से रिश्ते खराब होने के चलते बदायूं लोकसभा सीट से सांसद संघमित्रा मौर्य के टिकट पर भी दुविधा बनी हुई थी.
भाजपा ने 24 मार्च को जब लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पांचवीं सूची जारी की तो यूपी में सबसे बड़ी खबर यही थी कि गांधी परिवार के वंशज वरुण गांधी को उत्तर-पूर्वी यूपी की पीलीभीत लोकसभा सीट से टिकट काट दिया गया है. बीजेपी आलाकमान ने योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और पूर्व कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद को पीलीभीत से मैदान में उतारने का फैसला किया है.
हालांकि, वरुण गांधी की मां मेनका गांधी को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से टिकट दिया गया है. भाजपा की पांचवी सूची भी संघमित्रा मौर्य के लिए भी झटका साबित हुई. भाजपा ने बदायूं लोकसभा सीट से संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर पार्टी के पुराने विश्वसनीय नेता दुर्विजय सिंह शाक्य को उम्मीदवार बनाया है.
वरुण गांधी और संघमित्रा मौर्य का टिकट कटते ही इन नेताओं के अगले कदम के बारे में कयासबाजी शुरू हो गई थी. ऐसी अटकलें लग रही थीं कि ये दोनों नेता जल्द ही भाजपा से अलग राह पकड़े दिखाई दे सकते हैं. हालांकि पिछले हफ्ते समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से वरुण गांधी को भाजपा से टिकट न मिलने की दशा में सपा से प्रत्याशी बनाए जाने संबंधी सवाल पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया था.
इसके बाद सपा ने भगवंत शरण गंगवार को पीलीभीत लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाकर वरुण गांधी की साइकिल पर सवारी की गुंजाइश कम कर दी थी. हालांकि इस बात के भी कयास लगाए जा रहे थे कि वरुण गांधी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के टिकट पर भी यूपी की किसी लोकसभा सीट से उम्मीदवार हो सकते हैं. और तब उन्हें कांग्रेस और सपा का समर्थन भी मिल सकता है.
टिकट कटने के बाद वरुण की चुप्पी भी इन अटकलों को हवा दे रही थी. इसी बीच पश्चिम बंगाल से कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया था कि वरुण का संबंध गांधी परिवार से है इसलिए भाजपा ने उनका टिकट काट दिया. अधीर रंजन ने कहा था, "वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल होना चाहिए. अगर वे कांग्रेस में आते हैं तो हमें खुशी होगी. वरुण एक कद्दावर और बेहद काबिल नेता हैं. उनका गांधी परिवार से संबंध है इसलिए बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. हम चाहते हैं कि अब वे कांग्रेस में शामिल हो जाएं."
वरुण गांधी के लिए समस्या वर्ष 2014 में भाजपा के नए संगठन के साथ सामंजस्य न बिठा पाने के चलते हुई. भाजपा के वर्तमान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. वरुण गांधी के राजनाथ सिंह के साथ अच्छे संबंध के चलते उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के साथ पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया था. बरेली में रुहेलखंड विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर रामकरन सिंह बताते हैं, "वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के नए संगठन के साथ तारतम्य न बिठा पाना और स्पष्ट तौर पर खुद को भविष्य में यूपी के मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करना वरुण गांधी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ."
2021 में, वरुण गांधी ने लखीमपुर खीरी घटना में अपराधियों की गिरफ्तारी की मांग की थी, जहां कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को कथित तौर पर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे द्वारा चलाए जा रहे वाहन ने कुचल दिया था. घटना में आधा दर्जन से अधिक लोग मारे गये थे. सितंबर 2023 में, वरुण ने अपने पिता के नाम पर अमेठी में संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस एक मरीज की मौत के बाद निलंबित किए जाने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला बोला था.
पिछले कुछ समय से वरुण गांधी ने भाजपा के कार्यक्रमों से भी किनारा कर लिया था. इस वजह से पार्टी नेतृत्व वरुण गांधी से नाराज चल रहा था. वहीं सुल्तानपुर से सांसद मेनका गांधी को केंद्र की भाजपा सरकार में मंत्री न बनाए जाने पर भी उन्होंने कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी. वे लगातार अपने संसदीय क्षेत्र में डटी रहीं. इसी कारण वरुण गांधी को तो अपनी उम्मीदवारी से हाथ धोना पड़ा, लेकिन मेनका गांधी को सुल्तानपुर से उम्मीदवार बनाया गया.
वहीं, वर्ष 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान संघमित्रा मौर्य का फाजिलनगर विधानसभा सीट से सपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे अपने पिता स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में पहुंचना भाजपा नेतृत्व को काफी अखरा था. हालांकि विधानसभा चुनाव के बाद संघमित्रा मौर्य पूरी मेहनत के साथ भाजपा के कार्यक्रमों में जुटी रहीं. यहां तक कि पिता स्वामी प्रसाद मौर्य के सनातन धर्म पर दिए जा रहे विवादास्पद बयानों से भी खुद को दूर रखा. स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा छोड़ने के बाद नई पार्टी के गठन के बाद भी संघमित्रा मौर्य ने खुद को भाजपा का ही सिपाही बताया था.
बावजूद इसके संघमित्रा मौर्य का टिकट इसलिए कटा क्योंकि भाजपा संगठन यह मान रहा था कि आगामी लोकसभा चुनाव में संघमित्रा को बदायूं से प्रत्याशी बनाया तो सनातन पक्षधर मतदाता बड़ा विरोध कर सकते हैं जिससे पार्टी को नुकसान होता.
हालांकि लोकसभा उम्मीदवार न बनाए जाने पर संघमित्रा मौर्य ने कहा, "बदायूं से मेरा पारिवारिक रिश्ता है और यह रिश्ता आजीवन बना रहेगा. पार्टी ने जो निर्णय लिया है वह मुझे स्वीकार है. पहले की तरह मैं कदम से कदम मिलाकर पार्टी के साथ चलूंगी. मेरे बारे में पार्टी ने कुछ अच्छा ही सोचा होगा. बदायूं से भाजपा उम्मीदवार दुर्विजय सिंह शाक्य मेरे बड़े भाई है. जैसे मैं अपना चुनाव लड़ती वैसे ही उन्हें चुनाव लड़वाउंगी."
उधर वरुण गांधी की टीम ने भी स्पष्ट कर दिया है कि पीलीभीत सांसद इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. वरुण गांधी सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर अपनी मां मेनका गांधी का चुनाव प्रचार करेंगे. इससे पहले यूपी भाजपा अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह ने वरुण गांधी गांधी का टिकट काटे जाने पर कहा था कि इस बार पार्टी ने उन्हें चुनाव लड़ने का अवसर नहीं दिया है, लेकिन वे हमारे साथ हैं. उनके बारे में पार्टी नेतृत्व ने जरूर कुछ बेहतर ही सोच रखा होगा.
उम्मीदवार न बनाए जाने के बाद वरुण गांधी और संघमित्रा मौर्य की प्रतिक्रिया यह इशारा कर रही है कि भाजपा ने इन दोनों नेताओं के लिए भविष्य का प्लान तय कर रखा है अगर ये लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी के साथ बने रहें. मेनका गांधी के साथ वरुण गांधी को टिकट न देकर भाजपा ने परिवारवाद के आरोपों से फिलहाल दूरी बनाने की रणनीति अपनाई है.
जानकारी के मुताबिक वरुण गांधी और संघमित्रा मौर्य को टिकट न देने और उसके बाद की योजना पर भाजपा नेतृत्व इन दोनों नेताओं से चर्चा कर चुका है. प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, "वरुण गांधी अगर पूरी शिद्दत से लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के साथ जुड़े रहे तो पार्टी इन्हें विधान परिषद् में सदस्य बनाने के साथ योगी मंत्रिमंडल में भी शामिल करने पर विचार कर सकती है. जबकि संघमित्रा मौर्य को भी विधान परिषद् में सदस्य बनाकर प्रदेश संगठन में अच्छी भूमिका दी जा सकती है." संघमित्रा मौर्य और वरुण गांधी का रवैया ही अब इनके भाजपा के साथ रिश्ते की दूरी तय करेगा.