वक्फ़ पर कानूनी लड़ाई के बीच UMEED पोर्टल ने कैसे बढ़ाया टकराव?
सबसे ज्यादा वक्फ़ संपत्तियों वाले उत्तर प्रदेश में इस मसले पर सबसे ज्यादा विरोध और हलचल देखने को मिल रही है

भारत में वक्फ संपत्तियों को लेकर विवाद दशकों से चलता आया है, लेकिन 2025 में यह बहस अचानक तीखी हो गई है. संसद में पारित वक्फ संशोधन कानून, केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया नया UMEED पोर्टल और इसके विरोध में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का राष्ट्रव्यापी आंदोलन- इन तीनों ने मिलकर इस मुद्दे को कानूनी, राजनीतिक और सामाजिक सभी स्तरों पर एक बड़े टकराव का मंच बना दिया है.
इसका सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश में दिखाई दे रहा है, क्योंकि वक्फ संपत्तियों की संख्या और उनकी सामाजिक अहमियत यहां सबसे ज्यादा है. यही वजह है कि देशभर का ध्यान इस समय यूपी और उसकी जमीनी हलचल पर केंद्रित है. वक्फ संपत्तियां दरअसल धार्मिक और सामाजिक जीवन का अहम हिस्सा हैं. इनमें मस्जिदें, कब्रिस्तान, दरगाहें, इमामबाड़े, मदरसे और अन्य संस्थान शामिल हैं.
इनकी देखरेख मुतवल्ली यानी केयरटेकर करते हैं और संपत्ति से होने वाली आय धार्मिक और शैक्षिक गतिविधियों पर खर्च की जाती है. आंकड़े बताते हैं कि देशभर में लगभग 8 लाख वक्फ संपत्तियां दर्ज हैं, जिनमें करीब 6 लाख हेक्टेयर ज़मीन आती है. उत्तर प्रदेश अकेले में ही 1.26 लाख वक्फ संपत्तियां मौजूद हैं. इनमें से सबसे ज्यादा 6,010 गोंडा जिले में दर्ज हैं, जिनमें से 4,265 कब्रिस्तान हैं. बाराबंकी में 4,785, सहारनपुर में 4,208, आज़मगढ़ में 4,185 और फर्रुखाबाद में 3,654 संपत्तियां दर्ज हैं. बाराबंकी की 4,785 संपत्तियों में 2,139 कब्रिस्तान, 391 मज़ारें और 421 इमामबाड़े/कर्बला शामिल हैं. ये आंकड़े ही बताते हैं कि क्यों यूपी इस विवाद का केंद्र बना हुआ है.
सरकार का कहना है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी और दुरुपयोग की समस्या गंभीर है. आंध्र प्रदेश में उदाहरण सामने आया था जहां राज्य वक्फ बोर्ड ने सरकार की हजारों एकड़ जमीन को वक्फ संपत्ति के रूप में अधिसूचित कर दिया. इसी तरह के विवादों को देखते हुए संसद ने इस साल “वक्फ संशोधन अधिनियम 2025” पारित किया. इसमें सबसे बड़ा बदलाव यह था कि ‘यूजर द्वारा वक्फ’ यानी (user by waqf) की अवधारणा को खत्म कर दिया गया. अब तक यह प्रावधान किसी भी ऐसी संपत्ति को वक्फ घोषित करने की अनुमति देता था जिसका धार्मिक उपयोग लंबे समय से हो रहा हो. सरकार का तर्क है कि इस प्रावधान का सबसे ज्यादा दुरुपयोग हुआ है और यही अतिक्रमण और विवादों की जड़ है.
सुप्रीम कोर्ट ने 16 सितंबर को अपने अंतरिम आदेश में कहा कि दुरुपयोग को देखते हुए यदि विधायिका इस प्रावधान को खत्म करना चाहती है तो इसे प्रथम दृष्टया मनमाना नहीं कहा जा सकता. अदालत ने साफ किया कि याचिकाकर्ताओं की यह आशंका निराधार है कि सरकार इस प्रावधान के खत्म होने के बाद सभी वक्फ संपत्तियों पर कब्जा कर लेगी.
लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का आरोप है कि यह संशोधन मुस्लिम संस्थाओं की स्वायत्तता पर सीधा हमला है. बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. एस. क्यू. आर. इलियास का कहना है, “सरकार बार-बार वक्फ बोर्ड को कमजोर करने की कोशिश कर रही है. वक्फ संपत्तियां केवल जमीन का टुकड़ा नहीं बल्कि धार्मिक और सामाजिक जीवन की धरोहर हैं. नए कानून के जरिए सरकार इन पर नियंत्रण करना चाहती है. यह संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है.” बोर्ड के अन्य सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली कहते हैं, “हम केवल मुसलमानों की चिंता नहीं कर रहे हैं. यह सवाल सभी धर्मों की धार्मिक संपत्तियों की सुरक्षा का है. आज वक्फ पर हमला हो रहा है तो कल मंदिरों और गुरुद्वारों की संपत्तियां भी सुरक्षित नहीं रहेंगी.”
इसी चिंता को लेकर AIMPLB ने देशव्यापी “वक्फ बचाओ अभियान” शुरू किया है. इसका पहला चरण इस साल अप्रैल से मई तक चला था और दूसरा चरण 1 सितंबर से शुरू होकर 30 नवंबर तक चलेगा. इस अभियान के तहत जुमे की नमाज़ से पहले तकरीरें दी जा रही हैं, जिनमें वक्फ के महत्व और कानून के निहितार्थों पर चर्चा होती है और नमाज़ के बाद संपत्तियों की सुरक्षा की दुआ की जाती है. बोर्ड ने अपील की है कि 3 अक्टूबर को लोग सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक अपने प्रतिष्ठान बंद रखें. 11 अक्टूबर को जंतर-मंतर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन होगा और स्वैच्छिक गिरफ्तारियां दी जाएंगी. 16 नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल सभा की योजना है. नवंबर में देशभर में वक्फ मार्च निकाले जाएंगे जो दिल्ली में राष्ट्रपति भवन और राज्यों में राज्यपाल भवन पर जाकर ज्ञापन सौंपने के साथ समाप्त होंगे.
बोर्ड ने उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी में “हम वक्फ संशोधन अधिनियम को स्वीकार नहीं करते” नामक पुस्तिका भी प्रकाशित की है, जिसका अनुवाद क्षेत्रीय भाषाओं में किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर 15 मिनट की एक वीडियो क्लिप अपलोड की जाएगी.
प्रेस कॉन्फ्रेंस, अंतरधार्मिक बैठकें और गोलमेज चर्चाएं भी इस आंदोलन का हिस्सा हैं. AIMPLB के एक सदस्य ने कहा, “हम चाहते हैं कि यह आंदोलन सिर्फ मुसलमानों तक सीमित न रहे. हम दूसरे धर्मों के नेताओं से भी अपील कर रहे हैं कि धार्मिक दान और संस्थाओं की सुरक्षा सबकी साझा जिम्मेदारी है.” इस बीच केंद्र सरकार ने जून में UMEED पोर्टल लॉन्च किया. इसका पूरा नाम Unified Management Empowerment Efficiency Development है.
सरकार का दावा है कि यह पोर्टल सभी वक्फ संपत्तियों का एक डिजिटल रजिस्टर तैयार करेगा. इससे पारदर्शिता बढ़ेगी, अतिक्रमण रुकेगा और मुतवल्लियों की जवाबदेही तय होगी. लेकिन AIMPLB ने इस पोर्टल को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. बोर्ड का कहना है कि जब तक अधिनियम की वैधता अदालत में विचाराधीन है, तब तक पोर्टल का संचालन गैरकानूनी है. डॉ. इलियास ने कहा, “यह कदम सीधा कोर्ट की अवमानना है. हमने सरकार को चेतावनी दी थी लेकिन फिर भी 6 जून को पोर्टल लॉन्च कर दिया गया. इसके जरिए मुतवल्लियों पर अनावश्यक दबाव डाला जा रहा है.”
पोर्टल पर दस्तावेज़ अपलोड करने की समय सीमा 5 दिसंबर तय की गई है. लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में यह प्रक्रिया मुश्किल साबित हो रही है. राज्य में 1.26 लाख संपत्तियां हैं जिनमें से आधी पर मुतवल्ली या समितियां ही नहीं हैं. ग्रामीण इलाकों में जानकारी का अभाव है और बहुत-सी संपत्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नहीं बचा क्योंकि पिछले सर्वेक्षण के मुतवल्ली अब जीवित नहीं हैं. तकनीकी दिक्कतें भी गंभीर हैं. एक मुतवल्ली ने बताया, “हर बार जब मैं फॉर्म भरने और दस्तावेज अपलोड करने की कोशिश करता हूं तो पेज आधे घंटे में बंद हो जाता है. इतनी जानकारी भरने के लिए यह समय पर्याप्त नहीं है. और जब पेज रीफ्रेश होता है तो पूरा भरा हुआ डेटा गायब हो जाता है.”
यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ज़फ़र अहमद फ़ारूक़ी ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा, “हमने सरकार से कहा है कि राजस्व विभाग के अधिकारी और लेखपालों को इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए. वे अपने क्षेत्रों से वाकिफ होते हैं और ग्रामीण इलाकों में जाकर संपत्तियों का सही ब्योरा जुटा सकते हैं. हमने पोर्टल पर सत्र का समय कम से कम दो घंटे करने या सेव का विकल्प देने की मांग भी की है. फिलहाल यह काम बेहद मुश्किल हो रहा है.” उन्होंने आगे कहा, “हमने सरकार से यह भी कहा है कि जिला अधिकारियों को नोडल अधिकारी बनाया जाए ताकि वे तहसीलवार जानकारी की समीक्षा कर सकें. सरकार ने कहा है कि समय सीमा नहीं बढ़ाई जाएगी, लेकिन अगर हम काम पूरा नहीं कर पाए तो हमें समय बढ़ाने की औपचारिक मांग करनी पड़ेगी.”
यूपी में इस विवाद को लेकर समुदाय के भीतर बेचैनी साफ दिखाई देती है. लखनऊ निवासी शबाना बेगम कहती हैं, “हमारे इलाके की मस्जिद का कोई दस्तावेज नहीं है. अगर पोर्टल पर नाम दर्ज नहीं हुआ तो कल को कोई भी इसे सरकार की जमीन बता देगा. यह हमारे लिए चिंता का विषय है.” बरेली के मुतवल्ली मोहम्मद शाहिद कहते हैं, “हम गरीब लोग हैं, हमारे पास दस्तावेज नहीं हैं. बोर्ड को चाहिए कि हमें कानूनी मदद दे वरना ये संपत्तियां खतरे में पड़ जाएंगी.” दूसरी ओर कुछ लोग इसे सुधार की दिशा में कदम मानते हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर अब्दुल वहीद का कहना है, “सच यह है कि वक्फ संपत्तियों पर सबसे ज्यादा कब्जा मुस्लिम नेताओं और समितियों ने ही किया है. अगर डिजिटल रजिस्टर बनता है तो जवाबदेही तय होगी और संपत्तियां सुरक्षित होंगी.”
केंद्र सरकार का कहना है कि इस पहल का मकसद किसी धर्म पर हमला करना नहीं बल्कि पारदर्शिता सुनिश्चित करना है. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “UMEED पोर्टल से हर संपत्ति का पूरा ब्योरा सार्वजनिक होगा. यह पारदर्शिता और ईमानदारी की दिशा में कदम है. किसी को डरने की ज़रूरत नहीं है.” यूपी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी कहा कि वक्फ बोर्ड की मांगों पर विचार किया जा रहा है और लेखपालों व राजस्व अधिकारियों की मदद से अपलोडिंग प्रक्रिया को तेज किया जाएगा.
विपक्षी दल और मानवाधिकार संगठन इस पूरे मामले को अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जोड़कर देख रहे हैं. सपा नेता अदील खान का कहना है, “सरकार का मकसद वक्फ की संपत्तियों पर कब्जा करना है. मुसलमानों की धार्मिक धरोहर को खतरे में डाला जा रहा है.” कांग्रेस नेताओं का भी कहना है कि यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
AIMPLB का दावा है कि सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि सिख और ईसाई संगठन भी इस कानून और पोर्टल का विरोध कर रहे हैं. दिल्ली में हुई एक बैठक में सिख प्रतिनिधि जसपाल सिंह ने कहा, “धार्मिक दान और संस्थानों की सुरक्षा सबका साझा मुद्दा है. सरकार को इसे केवल एक समुदाय से जोड़कर नहीं देखना चाहिए.”
अब अगली लड़ाई अदालत में है. सुप्रीम कोर्ट में AIMPLB की याचिकाएं लंबित हैं. बोर्ड ने मांग की है कि जब तक सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक UMEED पोर्टल पर रोक लगाई जाए. अदालत ने अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है लेकिन ‘यूजर द्वारा वक्फ’ की अवधारणा को खत्म करने वाले प्रावधान को बरकरार रखा है. अब अदालत के अंतिम फैसले पर सबकी नजर है.
इस पूरे विवाद का असर राजनीतिक रूप से भी दिख रहा है. AIMPLB का आंदोलन दिल्ली और राज्यों की राजधानियों तक पहुंच रहा है. विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों पर हमले के रूप में पेश कर रहा है जबकि बीजेपी सरकार इसे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की कवायद बता रही है.
लखनऊ की एक मस्जिद के इमाम बताते हैं, “हम वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए गंभीर हैं. सरकार चाहे तो पारदर्शिता बढ़ाए, लेकिन आस्था और धार्मिक स्वायत्तता से समझौता स्वीकार नहीं किया जाएगा.” ज़मीन पर उतर चुके विरोध और अदालत में चल रही सुनवाई के बीच अब यह साफ है कि आने वाले महीनों में यह विवाद और गहराएगा.
सवाल यही है कि क्या सरकार तकनीकी दिक्कतों और समय सीमा पर नरमी दिखाएगी, क्या सुप्रीम कोर्ट जल्द फैसला देगा और क्या AIMPLB का आंदोलन समुदाय और अन्य वर्गों का समर्थन जुटा पाएगा. फिलहाल इतना तय है कि वक्फ संपत्तियों पर छिड़ा यह संग्राम अब केवल कानूनी व्याख्या का मामला नहीं रहा बल्कि यह धार्मिक आस्था, सामुदायिक पहचान और राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन चुका है और इसकी गूंज यूपी से निकलकर पूरे देश में सुनाई दे रही है.