वोटर लिस्ट की साफ-सफाई या साजिश! यूपी में SIR ने कैसे शुरू की राजनीतिक लड़ाई?
वर्ष 2003 के बाद पहली बार उत्तर प्रदेश में वोटर लिस्ट का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) शुरू हुआ है

बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) का काम पूरा होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 27 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश, बंगाल, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ सहित 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में SIR के दूसरे चरण की घोषणा की.
इसके 24 घंटे के भीतर उत्तर प्रदेश में 28 अक्टूबर से शुरू हुआ SIR सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक ऐसा चुनावी अभ्यास बनता दिखा जिसने 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सियासी तापमान बढ़ा दिया है.
22 साल बाद यानी 2003 के बाद पहली बार पूरे राज्य के 1,62,486 बूथों पर एक साथ यह विशाल प्रक्रिया चलाई जा रही है. भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के मुताबिक, 15.44 करोड़ वोटरों वाले राज्य में अब हर वोटर की जानकारी की जांच होगी. मृत, डुप्लीकेट या माइग्रेट कर चुके लोगों के नाम हटेंगे, और जो नए वोटर बने हैं, उन्हें जोड़ा जाएगा. साथ ही, आयोग ने साफ किया है कि विदेशियों या अवैध प्रवासियों के नाम, अगर लिस्ट में पाए जाते हैं, तो उन्हें हटाया जाएगा. यही एक लाइन राजनीतिक बहस का केंद्र बन गई है.
BJP की नजर ‘अवैध प्रवासियों’ पर
SIR की घोषणा के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश BJP ने अपनी रणनीति तय कर ली. पार्टी ने साफ किया कि वह चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोटर लिस्ट से ‘अवैध प्रवासियों’, मुख्य रूप से रोहिंग्या और बांग्लादेशी, को हटाने में सहयोग करेगी. लखनऊ में अगस्त के महीने में हुई एक संगठनात्मक बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और सभी ज़िला-क्षेत्रीय अध्यक्षों ने इस पर रोडमैप तैयार किया है. एक वरिष्ठ BJP नेता ने कहा, “हम आयोग को केवल जानकारी देकर मदद कर सकते हैं. अंतिम निर्णय वही करेगा.”
हालांकि राज्य में रोहिंग्या या बांग्लादेशी आबादी के कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं, लेकिन पुलिस ने वाराणसी जोन में लगभग 300 संदिग्ध लोगों की पहचान की है. BJP नेताओं का तर्क है कि यह प्रक्रिया वोटर लिस्ट की “शुद्धता और पारदर्शिता” सुनिश्चित करेगी. पार्टी के प्रवक्ता हीरो बाजपेयी कहते हैं, “हर चुनाव से पहले SIR होता है. हमारा मकसद सिर्फ इतना है कि हर वोट सही हाथ में हो और कोई अवैध नाम लिस्ट में न रहे.” लेकिन विपक्ष इस ‘साफ-सफाई’ की भाषा को संदेह की नजर से देख रहा है.
सपा का पलटवार : ‘वोटर लिस्ट में सफाई नहीं, साजिश है’
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का आरोप है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में 18,000 वोटरों के नाम “गैरकानूनी तरीके से” काट दिए गए थे. इस संबंध में उन्होंने चुनाव आयोग में हलफनामा भी दायर किया था, जिस पर अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है. 11 अगस्त को अखिलेश दिल्ली पहुंचे थे, जहां उन्होंने संसद के पास बैरिकेडिंग पर चढ़कर धरना दिया. यह वही दिन था जब बिहार में SIR के खिलाफ INDIA ब्लॉक के सांसदों का विरोध मार्च चल रहा था.
तब अखिलेश ने उस मंच से कहा था, “यूपी में अधिकारियों ने BJP के इशारे पर काम किया. मुस्लिम वोटरों और PDA समुदाय को वोट डालने से रोका गया.” सपा नेताओं का आरोप है कि SIR की आड़ में BJP उन इलाकों से वोटरों के नाम कटवाने की कोशिश कर रही है जहां विपक्षी दलों का वोट बैंक मजबूत है. लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और सपा के वरिष्ठ नेता सुधीर पंवार कहते हैं, “चुनाव आयोग कहता है कि हर शिकायत के लिए हलफनामा दीजिए, लेकिन जब हमने दिया, तो कार्रवाई नहीं हुई. अब वही आयोग बड़ी सफाई का अभियान चला रहा है, जिसमें राजनीतिक उद्देश्य छिपे हैं.”
ECI का संतुलन साधने वाला रुख
इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच चुनाव आयोग खुद को “तकनीकी प्रक्रिया” पर केंद्रित रखना चाहता है. मुख्य चुनाव अधिकारी नवदीप रिनवा कहते हैं, “हमारा लक्ष्य एक साफ, समावेशी और एरर-फ्री वोटर लिस्ट बनाना है. हर योग्य नागरिक का नाम शामिल होगा, और किसी को बिना वजह हटाया नहीं जाएगा.”
ECI ने निर्देश दिया है कि किसी भी पोलिंग स्टेशन पर 1,200 से अधिक वोटर नहीं होंगे. इसके लिए बूथों की संख्या और लोकेशन की भी समीक्षा होगी. BLO, ERO और जिला चुनाव अधिकारियों को ERO नेट, BLO ऐप और वोटर हेल्पलाइन ऐप का इस्तेमाल सिखाया गया है. रिनवा बताते हैं कि 28 अक्टूबर से 3 नवंबर तक ट्रेनिंग और प्रिंटिंग का काम चलेगा, 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक BLO घर-घर जाकर एन्यूमरेशन फॉर्म भरेंगे. 8 दिसंबर को ड्राफ्ट रोल प्रकाशित होगा, और 7 फरवरी 2026 को फाइनल लिस्ट सामने आएगी.
ECI के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, “हमने बिहार के अनुभव से सीखा है. किसी का नाम हटाने से पहले पूरी जांच होगी, और हर व्यक्ति को नोटिस मिलेगा. यह किसी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा नहीं, बल्कि प्रक्रिया का हिस्सा है.”
वोटर लिस्ट का ‘डेटा गेम’
SIR के साथ ही एक दिलचस्प डेटा गेम भी शुरू हो गया है. BJP ने अपने संगठनात्मक ढांचे के जरिए हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम 15,000 नए वोटर जोड़ने का लक्ष्य रखा है. यह पार्टी कैडर के लिए ‘मिशन 2027’ का शुरुआती टास्क बन चुका है. दूसरी ओर, सपा और कांग्रेस अपने स्थानीय नेटवर्क को सतर्क कर रही हैं. उन्हें डर है कि वोटर वेरिफिकेशन के नाम पर विपक्षी समर्थन वाले समुदायों के नामों पर कैंची चल सकती है.
लखनऊ, मेरठ, कानपुर और आजमगढ़ जैसे जिलों में दोनों पार्टियों के बीच जमीनी खींचतान शुरू हो चुकी है. वहां के BLO पर राजनीतिक दबाव की शिकायतें भी आ रही हैं. एक जिला चुनाव अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हर पार्टी अपने हिसाब से दबाव डाल रही है. कोई कहता है अमुक मोहल्ले के वोटरों को दोबारा जांचो, तो कोई कहता है यह नाम गलत हटाया गया है.”
विपक्ष का डर और आयोग की चुनौती
SIR के चलते अब यूपी में दो समानांतर नैरेटिव बन गए हैं. BJP इसे “लोकतांत्रिक स्वच्छता अभियान” कह रही है, जबकि विपक्ष इसे “राजनीतिक छंटनी” बता रहा है. राजनीतिक विश्लेषक ब्रजेश मिश्र कहते हैं, “चुनावी रोल की जांच अपने आप में जरूरी है, लेकिन जिस माहौल में यह हो रही है, वहां राजनीतिक शक से इनकार नहीं किया जा सकता. विपक्ष को लगता है कि ‘अवैध प्रवासी’ शब्द के पीछे कुछ समुदायों को टारगेट किया जा सकता है.”
ECI के सामने चुनौती दोहरी है, एक ओर पारदर्शिता बनाए रखना, दूसरी ओर राजनीतिक दलों के विश्वास को कायम रखना. ऐसे में फरवरी 2026 में जब फाइनल वोटर लिस्ट प्रकाशित होगी, तब यह साफ हो जाएगा कि यूपी के 15.44 करोड़ वोटरों की संख्या कितनी बढ़ी या घटी. लेकिन उससे पहले यह प्रक्रिया 2027 के चुनावों का राजनीतिक मूड सेट कर चुकी होगी. राजनीतिक गलियारों में अब चर्चा यही है कि वोटर लिस्ट की यह “क्लीनिंग ड्राइव” सिर्फ डेटा का मामला नहीं, बल्कि भरोसे का भी है. ECI कह रहा है कि हर वोटर को मौका मिलेगा. BJP कह रही है कि वोटर लिस्ट शुद्ध होनी चाहिए. और अखिलेश यादव कह रहे हैं कि यह ‘सफाई’ नहीं, ‘सियासी सफाया’ है. सवाल यह है कि जब चुनावी भरोसे की बुनियाद ही वोटर लिस्ट होती है, तो क्या यह रिवीजन उसे और मज़बूत करेगा या और संदिग्ध बना देगा?