BJP वाल्मीकि के सहारे दलित वोटबैंक रिझाने में कितनी कामयाब होगी?

योगी सरकार ने वाल्मीकि जयंती पर अवकाश बहाल कर वाल्मीकि समुदाय को लुभाने पर जोर देना शुरू कर दिया है

वर्ष 2022 में लखनऊ में महर्षि‍ वाल्मीकि की प्रतिमा का अनावरण करते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
वर्ष 2022 में लखनऊ में महर्षि‍ वाल्मीकि की प्रतिमा का अनावरण करते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातियों की गणित अब सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि हर निर्णय, हर प्रतीक और हर नीति के पीछे उसका गहरा असर देखा जा रहा है. पंचायत और विधानसभा चुनावों की आहट के बीच अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने विपक्ष के जाति से जुड़े नैरेटिव की काट के लिए नया पासा फेंका है. 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 27 सितंबर को श्रावस्ती में वाल्मीकि जयंती पर सार्वजनिक अवकाश बहाल करने की घोषणा कर दी थी. उस क्रम में शासन ने 3 अक्टूबर को आदेश जारी किया कि 7 अक्टूबर को पूरे प्रदेश में अवकाश रहेगा. इस दिन मंदिरों पर रामायण पाठ और धार्मिक आयोजन होंगे. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब विपक्षी दल खासकर समाजवादी पार्टी (सपा) पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्गों के साथ नई सामाजिक गोलबंदी की कोशिश में जुटे हैं. 

मुख्यमंत्री योगी का यह कदम BJP की रणनीति का स्पष्ट संकेत है कि पार्टी अपने परंपरागत वोटरों को साधने और दलित राजनीति में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए अब प्रतीकात्मक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर सक्रिय हो गई है.

अवकाश के पीछे की राजनीति

पहले भी वाल्मीकि जयंती पर सरकारी अवकाश होता था, लेकिन 2017 में योगी सरकार बनने के बाद कई छुट्टियां रद्द कर दी गई थीं. तर्क था कि राज्य को विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए काम के दिन बढ़ाने होंगे. हालांकि पिछले कुछ महीनों से वाल्मीकि समाज लगातार जयंती पर अवकाश बहाल करने की मांग कर रहा था. संभल, शाहजहांपुर, बरेली जैसे जिलों में ज्ञापन सौंपे गए. 

26 सितंबर को डॉ. आंबेडकर ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य डॉ. लालजी प्रसाद निर्मल ने एक प्रतिनिधिमंडल को लेकर मुख्यमंत्री से मुलाकात कर यह मांग दोहराई. डॉ. निर्मल कहते हैं, “मुख्यमंत्री ने हमारी बात सुनी और तुरंत निर्णय लिया. यह केवल अवकाश नहीं, बल्कि वाल्मीकि समाज के सम्मान की स्वीकृति है. इस समाज ने हमेशा प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी पर भरोसा जताया है.” 

BJP के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि “यह फैसला चुनावी नहीं, सांस्कृतिक है. वाल्मीकि समाज हमारी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा है. उन्हें सम्मान देना हमारी प्राथमिकता है.” हालांकि राजनीतिक विश्लेषक इसे पूरी तरह सांस्कृतिक नहीं मानते. राजनीतिक विश्लेषक और बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में इतिहास विभाग के प्रोफेसर सुशील पांडेय कहते हैं, “राजनीति में समय और प्रतीक दोनों महत्वपूर्ण होते हैं. योगी सरकार का यह कदम एक तीर से दो निशाने साधने जैसा है. एक ओर वाल्मीकि समाज को सम्मान देना और दूसरी ओर विपक्ष के जातीय गठजोड़ की धार कुंद करना.”

वाल्मीकि समाज का राजनीतिक वजन और वोटिंग पैटर्न

उत्तर प्रदेश में दलित आबादी करीब 21 फीसदी है, जिसमें वाल्मीकि समाज की हिस्सेदारी लगभग सवा दो करोड़ के आसपास मानी जाती है. पश्चिमी यूपी, बुंदेलखंड और मध्य यूपी के कई जिलों में यह समाज निर्णायक भूमिका में है. नगर निकायों, सफाई सेवाओं और सरकारी ठेकों से जुड़े कामों में यह वर्ग बड़ी संख्या में है, लेकिन पिछले दशक में इसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ी हैं. 

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में वाल्मीकि समाज ने BSP के बजाय BJP की ओर रुख किया था. पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर BJP को इस समाज का साथ मिला, जिससे उसे निर्णायक बढ़त मिली. वर्ष 2022 में जब योगी सरकार दोबारा सत्ता में लौटी, तो इस समाज से आने वाले अनूप प्रधान को खैर विधानसभा सीट से जीत के बाद मंत्री बनाया गया. अनूप प्रधान कहते हैं, “BJP ने हमें पहचान दी है. पहले दलित राजनीति सिर्फ एक जाति तक सीमित थी, अब हर समाज की भागीदारी है. वाल्मीकि समाज को अब लगता है कि उसकी आवाज सत्ता तक पहुंचती है.”
प्रतीकात्मक राजनीति और प्रधानमंत्री मोदी का संदेश

BJP की राजनीति में प्रतीकों का इस्तेमाल हमेशा सुनियोजित रहा है. दिसंबर 2023 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या पहुंचे, तो उन्होंने वहां नवनिर्मित हवाई अड्डे का उद्घाटन किया, जिसका नामकरण “महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा” किया गया था. इससे पहले इसका नाम “मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एयरपोर्ट” था. मोदी ने अपने भाषण में संस्कृत में वाल्मीकि के श्लोकों का उल्लेख करते हुए कहा था, “वाल्मीकि के बिना राम की कथा अधूरी है.” सुशील पांडेय बताते हैं, “यह नामकरण मात्र नाम बदलना नहीं था, बल्कि दलित समाज को हिंदू गौरव की कथा में बराबरी से स्थान देने की रणनीति थी. मोदी का यह कदम सांस्कृतिक समावेशन का संदेश देता है.” 

इसी तरह फरवरी 2023 में लखनऊ में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के मुख्य पंडाल का नाम भी महर्षि वाल्मीकि के नाम पर रखा गया. योगी सरकार के कार्यकाल में वाल्मीकि मंदिरों में कौशल विकास केंद्र खोलने की घोषणा की गई. समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई. वे कहते हैं, “हम चाहते हैं कि वाल्मीकि समाज के युवा कौशल और शिक्षा से सशक्त बनें. सिर्फ प्रतीक नहीं, अवसर भी देने की कोशिश है.”

दलित राजनीति का बदलता समीकरण

योगी सरकार चित्रकूट के लालापुर में महर्षि वाल्मीकि की साधना स्थली को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रही है. यहां 12 करोड़ रुपये की लागत से महर्षि वाल्मीकि संग्रहालय बन रहा है. 2022 में आयोजित वाल्मीकि जयंती समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल हुए थे. 

यह कार्यक्रम BJP के लिए एक बड़ा प्रतीक था कि पार्टी दलित समाज को अपने वैचारिक दायरे में शामिल करना चाहती है. बहराइच में वाल्मीकि समाज के नेता डा. सुधाकर वाल्मीकि कहते हैं, “पहले हम सिर्फ वोट देने वाले लोग थे, अब योगी सरकार हमारे समाज की परंपरा और इतिहास की बात करती है. यह बदलाव दिखता है.”

BJP की रणनीति दलित राजनीति की उस पुरानी संरचना को चुनौती देती है, जिसे BSP ने 1990 के दशक में गढ़ा था. तब जाटव समाज पार्टी की रीढ़ था और अन्य दलित जातियां उसके साथ जुड़ी थीं. अब वही छोटे दलित समुदाय BJP की ओर आकर्षित हो रहे हैं. सुशील पांडेय कहते हैं, “BJP ने दलित समाज को ‘हिंदू पहचान’ के साथ जोड़ने का रास्ता निकाला है. वाल्मीकि समाज इस रणनीति का केंद्र है. यह वर्ग खुद को धार्मिक रूप से रामायण और महर्षि वाल्मीकि से जुड़ा महसूस करता है, और BJP इसी भावनात्मक जुड़ाव को राजनीतिक रूप में भुना रही है.” BSP के पूर्व विधायक रामवीर आर्य हालांकि इससे असहमत हैं. वे कहते हैं, “BJP के पास दलित समाज के लिए ठोस नीति नहीं, सिर्फ प्रतीक हैं. महर्षि वाल्मीकि का नाम लेना आसान है, लेकिन वाल्मीकि बस्तियों की हालत अब भी नहीं बदली. रोजगार और शिक्षा के मोर्चे पर कुछ नहीं हुआ.” 

BJP ने संगठन स्तर पर भी वाल्मीकि समाज को जोड़ने के प्रयास बढ़ाए हैं. प्रदेश के दलित मोर्चा और सफाई कर्मचारी प्रकोष्ठ में वाल्मीकि समाज के कार्यकर्ताओं को प्रमुख भूमिकाएं दी गई हैं. पंचायत चुनावों के मद्देनजर पार्टी ने निर्देश दिए हैं कि हर जिले में वाल्मीकि जयंती समारोह को राजनीतिक अभियान की तरह मनाया जाए.

टाइमिंग पर विपक्षी दलों के सवाल 

हालांकि विपक्षी दलों का मानना है कि यह सब “चुनावी टाइमिंग” है. सपा के एक नेता का कहना है, “हर चुनाव से पहले BJP को किसी न किसी समुदाय की याद आ जाती है. जब सत्ता में होती है तो यही समाज उपेक्षित रहता है.” समाजवादी पार्टी ने पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक का नारा देकर सामाजिक गठजोड़ की नई जमीन तैयार की है. अखिलेश यादव लगातार यह संदेश दे रहे हैं कि BJP की “सबका साथ” की नीति दिखावे की है. उनका कहना है कि “दलितों को सम्मान नहीं, सिर्फ दिखावा दिया जा रहा है.” 

सपा प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी कहते हैं, “BJP दलित समाज के नाम पर केवल प्रतीक राजनीति करती है. अवकाश देना या नाम बदलना पर्याप्त नहीं, उन्हें सामाजिक न्याय और आरक्षण के अधिकारों की सुरक्षा चाहिए.” इस पर BJP के प्रदेश मंत्री डा. चंद्रमोहन का जवाब है, “हम केवल घोषणाओं तक नहीं रुकते. प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक दलित समाज के सम्मान और उत्थान के लिए काम कर रहे हैं. वाल्मीकि समाज की पहचान को मुख्यधारा से जोड़ना हमारा दायित्व है.”

आने वाले महीनों में यह तय होगा कि योगी सरकार का यह कदम दलित राजनीति में BJP की पकड़ और मजबूत करेगा या विपक्ष अपने पीडीए नैरेटिव के जरिए इस भावनात्मक समीकरण को पलट पाएगा. फिलहाल इतना तय है कि यूपी की राजनीतिक जमीन पर अब वाल्मीकि समाज सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका में है- और सत्ता के हर खिलाड़ी की निगाह अब उन पर टिकी है.

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