उत्तर प्रदेश: कौन बनेगा कैसरगंज लोकसभा सीट का 'भूषण'?

यौन उत्पीड़न के आरोप में घिरने के बाद भाजपा ने सांसद बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काटकर बेटे को थमाया. ब्राह्मण मतदाताओं की सबसे ज्यादा संख्या वाली कैसरगंज सीट पर सपा और बसपा ने इसी जाति का उम्मीदवार उतारकर चुनावी जंग को दिलचस्प बनाया

कैसरगंज लोकसभा सीट पर चुनाव प्रचार करते भाजपा उम्मीदवार करण भूषण सिंह
कैसरगंज लोकसभा सीट पर चुनाव प्रचार करते भाजपा उम्मीदवार करण भूषण सिंह

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में शायद कैसरगंज ही वो सीट थी जिस पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को उम्मीदवार की घोषणा करने के लिए सबसे ज्यादा मशक्कत करनी पड़ी. इसी बीच पांचवें दौर के लोकसभा चुनाव के लिए इस सीट पर नामांकन भी शुरू हो गया लेकिन भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले.

कैसरगंज सीट से मौजूदा भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के कथित यौन उत्पीड़न के आरोप के बाद पार्टी उम्मीदवारों के कई विकल्पों पर विचार कर रही थी. इन विकल्पों में से एक बृजभूषण सिंह को उम्मीदवार न बनाकर उनके परिवार के किसी सदस्य को चुनाव लड़ाना भी शामिल था. लेकिन बृजभूषण इसके लिए तैयार नहीं थे.

दोनों पक्षों के अड़े रहने के कारण कैसरगंज सीट पर उम्मीदवारी का फैसला हो नहीं पा रहा था और अब नामांकन की अंतिम तारीख (3 मई) भी नजदीक आ गई थी. नामांकन के ठीक एक दिन पहले भाजपा ने रायबरेली के साथ-साथ कैसरगंज सीट के लिए भी उम्मीदवार की घोषणा कर दी और यहां से चुनावी बैटन बृजभूषण के सबसे छोटे बेटे करण भूषण सिंह को थमा दी.

कैसरगंज सीट से करण भूषण को मैदान में उतारकर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है. गोंडा में एक स्कूल के प्रबंधक अजय प्रकाश बताते हैं, "भाजपा ने कथित यौन उत्पीड़न के आरोपी और छह बार के सांसद को मैदान में न उतारकर महिला सम्मान और सुरक्षा पर विपक्ष को बैठे-बिठाए कोई मुद्दा न पकड़ाने की कोशिश की है. साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए कि कैसरगंज और आस-पास के इलाकों में भाजपा का प्रभाव कम न हो इसलिए बृजभूषण सिंह के परिवार के व्यक्ति को ही टिकट दिया है." पिछले लोकसभा चुनाव में बृजभूषण ने यहां से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के चंद्रदेव राम यादव को 2.61 लाख से अधिक वोटों से हराया था.

एक मंझे हुए पहलवान की तरह हर बार विवादों की 'धूल' झाड़कर खड़े होने वाले बृजभूषण, इस बार यौन शोषण के आरोपों में बुरी तरह घिरे और इसकी कीमत उन्हें कैसरगंज सीट से टिकट कटने के रूप में चुकानी पड़ी है. हालांकि बृजभूषण के लिए राहत की बात यह कि इस पूरे प्रकरण ने उनके ही परिवार के एक सदस्य के लोकसभा चुनाव में पदार्पण की राह खोली है. करण भूषण, जिनकी उम्र 31 साल है, बृज भूषण के तीन बेटों में सबसे छोटे हैं. चुनावी महासमर में पहली बार उतर रहे करण भूषण ने राजनीति का ककहरा अपने पिता से ही सीखा है. इनके माता-पिता, दोनों संसद की दहलीज लांघ चुके हैं. 

भाई प्रतीक भूषण गोंडा सदर से भाजपा के विधायक हैं. करण राष्ट्रीय कुश्ती संघ के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं. अब वे यूपी कुश्ती संघ के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. इसके अलावा वे उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक नवाबगंज के अध्यक्ष भी हैं. करण भूषण राष्ट्रीय ट्रैप शूटर हैं, वे फुटबॉल भी खेलते हैं. कुश्ती और बैडमिंटन के खेल में भी उनकी विशेष रुचि है. करण की पत्नी नेहा सिंह एक स्कूल की प्रबंधक हैं. हालांकि, छह बार सांसद (पांच बार भाजपा से और एक बार समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर) रहे बृजभूषण के बेटे करण भूषण को अपने पिता के नाम का सहारा है. बृजभूषण ने खुद को प्रचार अभियान की सुर्खियों से दूर रखते हुए इस बार चुनाव को लो-प्रोफाइल रखा है. वे अपने बेटे के चुनाव प्रचार का प्रबंधन ज्यादातर विश्नोहरपुर गांव से पर्दे के पीछे से कर रहे हैं, जहां वे रहते हैं.

3 मई को जब करण गोंडा में अपना नामांकन पत्र दाखिल करने गए तो बृजभूषण उनके साथ नहीं थे. हालांकि उनका शक्ति प्रदर्शन तब भी जारी था. बाद में उन्होंने अपने बेटे के लिए वहां एक बड़ी रैली आयोजित की, जिसमें यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हुए. उन्होंने कार्यक्रम में भाग लिया लेकिन इसे लो प्रोफाइल ही रखा. 

करण भूषण रोज सुबह दस बजे पिता का आशीर्वाद लेकर विश्नोहरपुर स्थित आवास से अपना काफिला लेकर चुनाव प्रचार के लिए निकल पड़ते हैं. गांव में प्रचार के लिए पहुंचने पर 33 वर्षीय करण भूषण एक अनुभवी राजनेता की तरह बुजुर्गों के पैर छूना नहीं भूलते. मंच से अपने भाषण में करण भूषण भाजपा सरकार की योजनाओं को गिनाने के साथ ही अपने पिता के कार्यों का भी जिक्र करते हैं. बहराइच जिले के पयागपुर विधानसभा क्षेत्र में एक रैली में उन्होंने कहा, "मैं आज आपके सामने एक बेटे, भतीजे या दोस्त की तरह खड़ा हूं. आपने 35 वर्षों तक मेरे पिता को अपना समर्थन और आशीर्वाद दिया है. मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि मैं आपको उनकी कमी महसूस नहीं होने दूंगा."

करण के साथ भाजपा के पयागपुर विधायक सुभाष त्रिपाठी ने सभा से कहा कि उन्हें सिर्फ बृजभूषण के लिए ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी वोट करना चाहिए. उन्होंने सड़क संपर्क, बिजली और रोजगार सहित विभिन्न मोर्चों पर 10 वर्षों में मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया. करण के बड़े भाई प्रतीक भूषण सिंह, जो गोंडा सदर से भाजपा विधायक हैं, के सामने दोहरी जिम्मेदारी है. गोंडा सदर सीट गोंडा लोकसभा क्षेत्र के तहत ही आती है. प्रतीक भूषण भी अपने विधानसभा सीट पर भाजपा को बढ़त दिलाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं. साथ ही वे करण भूषण के लिए काम कर रहे वॉर रूम की निगरानी भी कर रहे हैं. 

कैसरगंज सीट से नाम वापसी की आखिरी तारीख बीत जाने के बाद इसका एक और अनोखा चुनावी रूप सामने आया. लोकसभा क्षेत्र बनने के 47 साल बाद ऐसा पहली बार हो रहा है जब सिर्फ चार प्रत्याशी ही मैदान में हैं. इससे पहले यहां के सियासी मैदान में हमेशा प्रत्याशियों की संख्या अच्छी-खासी रही है. वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में सपा संस्थापकों में रहे बेनी प्रसाद वर्मा खुद पहली बार 28 लोगों को हराकर यहां से संसद भवन पहुंचे थे. वर्ष 1977 में गोंडा वेस्ट संसदीय क्षेत्र का नाम बदलकर कैसरगंज रख दिया गया. इससे पहले भी यह सीट हमेशा हिंदूवादी नेताओं के कारण चर्चा में रहती थी. देश की बड़ी हिंदूवादी नेता रहीं शकुंतला नायर गोंडा वेस्ट संसदीय सीट से तीन बार जीत कर संसद पहुंच चुकी हैं. 

अजय प्रकाश बताते हैं, "पहली बार वर्ष 2024 में ऐसा हुआ जब नामांकन की मियाद खत्म होने के एक दिन पहले दो बड़े राजनीतिक दलों ने अपने पत्ते खोले. बड़े दलों का इंतजार करते-करते निर्दलीय लड़ाकों ने भी तैयारी पूरी नहीं की और 12 में से आठ के पर्चे खारिज हो गए और केवल चार ही उम्मीदवार मैदान में बचे." इन चार उम्मीदवारों के बीच ही कैसरगंज सीट के जातिगत समीकरणों को साधने की होड़ है. कैसरगंज सीट का जातिगत गणि‍त ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाताओं के इर्दगिर्द घूमता है. इस सीट पर 19 लाख से कुछ अधिक मतदाता हैं. इनमें ब्राह्मण 4.5 लाख, मुस्लिम 3.5 लाख, दलित 3.25 लाख, यादव 2.25 लाख, कुर्मी 2.25 लाख, ठाकुर 1.5 लाख और बाकी अन्य मतदाता हैं.

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ कैसरगंज से पार्टी के उम्मीदवार भगतराम मिश्र

बंटवारे में कैसरगंज सीट इंडिया गठबंधन के घटक दल सपा के पास गई है. यहां पर सपा के उम्मीदवार भगत राम मिश्रा एक वकील हैं और बहराईच जिला अदालत में साथी अधिवक्ताओं के साथ काफी समय बिताते हैं. भगतराम को क्षेत्र के वकीलों का काफी समर्थन प्राप्त है. कैसरगंज तहसील से लेकर निर्वाचन क्षेत्र की अन्य सभी तहसीलों में मिश्रा को वकीलों का जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है. कैसरगंज बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बृजेश मिश्र बताते हैं, "मुस्लिम और यादव मतदाताओं के साथ अगर भगतराम को कैसरगंज के ब्राह्मण और ठाकुर मतदाताओ के कुछ हिस्से का समर्थन मिलता है, तो नवोदित करण भूषण के लिए चीजें कठिन हो जाएंगी." भगत राम 2019 में श्रावस्ती लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार रहे दद्दन मिश्रा के सौतेले चचेरे भाई हैं. दद्दन पिछला आम चुनाव लगभग 5,320 वोटों के मामूली अंतर से हार गए थे. 

बसपा ने कैसरगंज सीट से बहराइच जिले के पयागपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत (पयागपुर कैसरगंज लोकसभा का हिस्सा है) राम नगर खजुरी गांव के रहने वाले नरेंद्र पांडे को उम्मीदवार बनाया हैं. नरेंद्र की ट्रांसपोर्टर के तौर पर एक व्यावसायिक पहचान है. बसपा इससे पहले भी कैसरगंज में ब्राह्मण मतदाताओं की बहुलता के कारण 2009 के लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण चेहरे के रूप में सुरेंद्र नाथ अवस्थी उर्फ पुत्तू अवस्थी पर और 2014 में पार्टी विधायक रहे कृष्ण कुमार ओझा पर दांव लगा चुकी है. मगर उस दौरान 2009 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ हाई कोर्ट के वरिष्ठ और चर्चित अधिवक्ता एलपी मिश्रा को भाजपा ने कैसरगंज से मैदान में उतारा था, जिसमें तत्कालीन सपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे बृजभूषण शरण ने एलपी मिश्रा को चुनाव में हरा दिया था. 

उस दौरान बसपा और भाजपा दोनों पार्टियों से ब्राह्मण चेहरों के चलते बड़ी तादाद में ब्राह्मण मतदाताओं में बिखराव देखने को मिला. बसपा ने दलित ब्राह्मण मुस्लिम समीकरण को साधते हुए लगभग 56 फीसदी वोटों को प्राप्त करने की गुणा गणित के हिसाब से एक बार फिर ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाया है. कैसरगंज के एक ग्राम प्रधान आनंद प्रकाश शुक्ला बताते हैं कि इस बार भी सपा और बसपा के उम्मीदवारों के बीच ब्राह्मण मतों का कुछ बंटवारा होगा और करण भूषण की राह आसान हो जाएगी.
 
कैसरगंज सीट में पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं- कटरा नजर, कर्नलगंज, कैसरगंज, तरबगंज और पयागपुर. उनमें से दो, कैसरगंज और पयागपुर, बहराइच जिले का हिस्सा हैं और शेष तीन निकटवर्ती गोंडा जिले का हिस्सा हैं. कैसरगंज लोकसभा सीट का नाम कैसरगंज विधानसभा सीट से मिलता जुलता है. पांच विधानसभा सीटों वाले इस लोकसभा क्षेत्र में कहीं करण भूषण का समर्थन दिख रहा है तो कहीं भगत राम के प्रति झुकाव नजर आया है. कैसरगंज कस्बे के पास अपने बेटों के साथ ईंट भट्ठा चलाने वाले बुजुर्ग गंगा नाथ तिवारी ने टीवी पर पहलवानों का विरोध देखा था. उन्होंने स्वीकार किया कि उनके परिवार की महिलाएं इससे प्रभावित हुईं. हालांकि उन्होंने कहा, "यहां इस चुनाव में यह कोई मुद्दा नहीं है." उन्होंने इस बार कैसरगंज लोकसभा सीट पर प्रमुख चुनावी मुद्दों में कानून व्यवस्था, अयोध्या में राम मंदिर और अनुच्छेद 370 को खत्म करने के साथ बेरोजगारी और आरक्षण को गिनाया.

Read more!