उत्तर प्रदेश : अब विधानसभा में कौन संभालेगा अखिलेश यादव की कुर्सी?
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के यूपी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद नए नेता प्रतिपक्ष के लिए पार्टी के कई नेताओं के नामों पर चल रही अटकलें. शिवपाल यादव के अलावा कुर्मी और दलित जाति के नेताओं के नाम सबसे ज्यादा चर्चा में

समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने 12 जून को करहल विधानसभा सीट और उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफा देकर राष्ट्रीय राजनीति की ओर रुख किया है. उन्होंने कन्नौज लोकसभा सीट को बरकरार रखा है. उनके इस फैसले को एक अहम रणनीतिक कदम माना जा रहा है.
कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में सपा को जिस तरह की सफलता मिली है और उसने जो माहौल बनाया है, उसमें अखिलेश भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को किसी भी प्रकार का मौका देने की संभावना को कम करना चाहते हैं.
सपा प्रमुख के इस कदम से हालांकि इस बात पर विराम लग गया है कि वे यूपी विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद बरकरार रखेंगे या कन्नौज लोकसभा सीट छोड़ेंगे. राज्य की राजनीति में अब चर्चा विधानसभा में अगले नेता प्रतिपक्ष पर टिक गई है. हालांकि, लोकसभा में सपा संसदीय दल का नेतृत्व कौन करेगा, इस पर अभी औपचारिक फैसला होना बाकी है. लेकिन संभावना जताई जा रही है कि अखिलेश खुद यह बागडोर संभालेंगे.
अब तक अखिलेश सांसद के तौर पर ही संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेते थे. अब वे राष्ट्रीय राजधानी में अपनी पार्टी का नेतृत्व करेंगे और विपक्ष की रणनीतियों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेंगे. सपा अब राष्ट्रीय स्तर पर अग्निपथ योजना, जाति जनगणना और आरक्षण जैसे मुद्दों को आक्रामक तरीके से उठा सकेगी. हालिया आम चुनाव में यूपी में 80 में से 37 सीटें जीतकर अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दर्ज कराने के बाद सपा के सामने अब विधानसभा में विपक्ष के नए नेता को चुनने की चुनौती है.
2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में सपा 111 सीटें जीतकर भाजपा के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही थी, जिसके बाद अखिलेश ने विपक्ष के नेता का पद संभाला था. कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या यादव परिवार ही नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर काबिज होगा या फिर पार्टी के किसी अन्य वरिष्ठ नेता को इस पद पर बिठाया जाएगा. सपा कार्यकताओं के बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव, जो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, इस पद के लिए सबसे आगे माने जा रहे हैं.
छह बार विधायक रह चुके शिवपाल इससे पहले पार्टी की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष और यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर रह चुके हैं. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले शिवपाल के अपने भतीजे अखिलेश से रिश्ते खराब हो गए थे. शिवपाल ने 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का भी गठन कर लिया था. लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव से पहले वे अपनी पार्टी का सपा में विलय कर वापस सपा में आ गए.
शिवपाल ने इटावा जिले की जसवंतनगर विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले शिवपाल और अखिलेश के बीच रिश्ता तब और मजबूत हुआ जब सपा प्रमुख ने शिवपाल के बेटे आदित्य यादव को बदायूं लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की हरी झंडी दी, जहां उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को हराकर जीत भी हासिल की. शिवपाल के पास सदन में अनुभव के साथ-साथ सत्ताधारी दल से मुकाबला करने की संगठनात्मक क्षमता भी है.
राजनीतिक विश्लेषक और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर विनम्र वीर सिंह बताते हैं, "पार्टी के मौजूदा शानदार प्रदर्शन के बावजूद अखिलेश की प्राथमिकता लोकसभा जनादेश को आगे ले जाना और यह सुनिश्चित करना होगा कि 2027 के विधानसभा चुनावों में भी लोगों का समर्थन बरकरार रहे. इसलिए पार्टी को एक ऐसे नेता की जरूरत है जो विधानसभा में आक्रामक वक्ता के रूप में पेश आए, आवश्यकता पड़ने पर विभिन्न मुद्दों पर त्वरित प्रतिक्रिया दे सके और आपत्तियां उठा सके. इतना ही नहीं विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष ऐसा भी हो जिसके पीछे विधायक लामबंद रहें जैसा कि अखिलेश यादव के साथ होता था."
सपा के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक आजम खान को एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. वहीं पार्टी के पूर्व विधायक राम गोविंद चौधरी, जिनका 2017-2022 तक विपक्ष के नेता के रूप में कार्यकाल पार्टी के इतिहास में "अनुकरणीय" माना जाता है, 2022 का विधानसभा चुनाव हार गए थे. चौधरी महत्वपूर्ण मुद्दों पर मुखर होने के लिए जाने जाते थे और सदन के नियमों से भी अच्छी तरह वाकिफ थे.
मौजूदा विधानसभा में सबसे अनुभवी सपा विधायक लालजी वर्मा हैं, जो छह बार विधायक रह चुके हैं. वे 2022 के चुनावों से पहले सपा में शामिल होने से पहले सदन में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक थे. उन्होंने कटेहरी से जीत हासिल की थी. हालांकि, वह जल्द ही विधायक पद से भी इस्तीफा दे देंगे क्योंकि अब वे लोकसभा चुनाव में अंबेडकर नगर से जीत चुके हैं.
अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि अखिलेश यादव विपक्ष के नेता के पद पर गैर-यादव ओबीसी नेता, दलित या मुस्लिम पार्टी के विधायक पर विचार करके पीडीए का फार्मूला अपना सकते हैं, जिसका उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया था. दलित विधायकों में कौशांबी जिले के मंझनपुर से सपा विधायक इंद्रजीत सरोज के नाम की चर्चा है.उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन बहुजन समाज पार्टी से शुरू किया था, लेकिन बाद में सपा में चले गए.
गैर-यादव ओबीसी में अंबेडकर नगर के प्रमुख ओबीसी नेता रामअचल राजभर के नाम पर विचार चल रहा है. राजभर ने भी अपना राजनीतिक जीवन बसपा से शुरू किया था और मायावती सरकार (2007-2012) के दौरान विभिन्न सरकारी और संगठनात्मक पदों पर कार्य किया था. बसपा से निकाले जाने के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले वह सपा में शामिल हो गए और अंबेडकर नगर जिले की अकबरपुर विधानसभा सीट से जीत हासिल की.
मुरादाबाद जिले की कांठ विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ सपा नेता कमाल अख्तर की सपा गलियारों में चर्चा है. वे 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव सरकार में मंत्री भी रहे हैं. इसी अवधि में विधानसभा अध्यक्ष रहे सपा के ब्राह्मण चेहरे माता प्रसाद पांडेय की भी चर्चा हो रही है. सात बार विधायक रह चुके पांडेय को सामाजिक और सार्वजनिक मुद्दों पर सत्तारूढ़ दल को प्रभावी ढंग से चुनौती देने के लिए सदन प्रबंधन का अनुभव है.
81 वर्षीय माता प्रसाद को अच्छे वक्ता के रूप में देखा जाता है, लेकिन अपनी उम्र को देखते हुए वे नियमित रूप से सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं होते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में जिस तरह समाजवादी पार्टी को पासी और कुर्मी बिरादरी का समर्थन मिला है, उससे इन्हीं बिरादरी के ही किसी नेता को यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की अटकलें लग रही हैं.