उत्तर प्रदेश : पढ़ाई शुरू हुए साढ़े तीन महीने बीते, लेकिन एक करोड़ छात्रों को अभी-भी किताबों का इंतजार!

यूपी बोर्ड से संबद्ध प्रदेश के 27 हजार से अधिक माध्यमिक विद्यालयों के कक्षा 9 से 12 तक के एक करोड़ से अधिक विद्यार्थियों को नहीं मिल पा रहीं एनसीइआरटी पर आधारित किताबें

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

लखनऊ के निशातगंज स्थ‍ित एक सरकारी माध्यमिक विद्यालय की कक्षा 9 की छात्रा पिछले तीन महीने से अपने पिता के साथ किताबों की दुकानों पर लगातार जा रही है. लेकिन हर बार उसे निराशा ही मिल रही है. छात्रा ने शहर के दूसरे हिस्सों में भी खोजबीन की, लेकिन तय पाठ्य पुस्तकें कहीं नहीं मिलीं. नाम न छापने की शर्त पर यह छात्रा बताती है, “दुकानदार भी यह नहीं बता पा रहे हैं कि किताबें कब मिलेंगी. उनके पास दूसरे प्रकाशकों की किताबें हैं, जो काफी महंगी हैं.”

छात्रा अब उन लोगों की तलाश कर रही है जिन्होंनें ने हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है और उनके पास यूपी के माध्यमिक स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली नौंवी की किताबें अनुपयोगी पड़ी हों. किताबों के बिना पढ़ाई का यह दर्द केवल एक छात्रा का नहीं है बल्कि यूपी बोर्ड से संबद्ध प्रदेश के 27 हजार से अधिक माध्यमिक विद्यालयों के कक्षा 9 से 12 तक के एक करोड़ से अधिक विद्यार्थियों का भी है जिन्हें किताबों की तलाश में इधर-उधर भटकना पड़ रहा है. 

पहली अप्रैल से नया शैक्षिक सत्र 2024-25 शुरू होने के साढ़े तीन महीने बाद भी सरकारी वादे के मुताबिक विद्यार्थ‍ियों को सस्ती किताबें नहीं मिल पाई हैं. हर साल आमतौर पर जुलाई के पहले सप्ताह तक राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीइआरटी) के पाठ्यक्रम पर आधारित पाठ्यपुस्तकें विद्यार्थियों के लिए किताबों की दुकानों पर उपलब्ध हो जाती हैं. 

इस साल जुलाई का दूसरा सप्ताह बीत जाने के बावजूद पाठ्यपुस्तकों का कोई अता-पता नहीं है. असल में रॉयल्टी और जीएसटी को लेकर एनसीईआरटी और यूपी बोर्ड के बीच विवाद के चलते बोर्ड की पाठ्यपुस्तकें अब तक नहीं छप पाई हैं. एनसीईआरटी को वर्ष 2021 के लिए प्रकाशकों से 2 करोड़ रुपये से अधिक की रॉयल्टी और जीएसटी नहीं मिली है. राज्य माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार, जिन प्रकाशकों को 2021 में पाठ्यपुस्तकों के प्रकाशन का काम सौंपा गया था, उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर दावा किया है कि कोविड काल में पुस्तकों की बिक्री न होने से उन्हें नुकसान हुआ है और इसलिए वे रॉयल्टी और जीएसटी का भुगतान करने में असमर्थ हैं.  उनका कहना है कि यह मामला अभी भी हाईकोर्ट में लंबित है. दूसरी ओर, यह लंबित रॉयल्टी और जीएसटी न मिलने के कारण एनसीईआरटी ने अभी तक इस वर्ष पुस्तकें प्रकाशित करने का अधिकार नहीं दिया है.

यूपी में माध्यमिक शिक्षा विभाग के पूर्व निदेशक वासुदेव यादव बताते हैं, “वर्तमान सरकार विद्यार्थ‍ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है. सरकार को अगर एक अप्रैल से किताबें उपलब्ध करानी थीं तो छह महीने पहले ही इसकी योजना बन जानी चाहिए थी. अगर कोई दिक्कत थी तो उसे दूर करना चाहिए था.” 

हालांकि यूपी बोर्ड और राज्य सरकार के अधिकारियों ने इस वर्ष किताबें प्रकाशित करने की अनुमति मांगने के लिए केंद्र सरकार और एनसीईआरटी से कई बार पत्राचार किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. यूपी माध्यमिक शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, “हम केंद्र सरकार के साथ इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि छात्रों को हाल के वर्षों के अभ्यास के अनुसार यूपी में सस्ती कीमतों पर पाठ्यपुस्तकें मिल सकें.” उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक कुमार के मुताबिक, "प्रकाशकों को एनसीईआरटी को रॉयल्टी और जीएसटी का भुगतान करना था, लेकिन वे इस पर मुकदमा करने चले गए हैं. एनसीईआरटी ने अभी तक इस सत्र में पुस्तकों को प्रकाशित करने की अनुमति नहीं दी है. हम इस बारे में एनसीईआरटी के साथ लगातार पत्राचार कर रहे हैं और इस मुद्दे को जल्द ही प्राथमिकता के तौर पर हल किया जाएगा.” 

इस बीच यह वैकल्पिक व्यवस्था की गई है और छात्रों को यूपी बोर्ड की वेबसाइट से पुस्तकों की सॉफ्ट कॉपी डाउनलोड करने के बाद पढ़ाया जा रहा है. लेकिन दूरदराज के और गरीब विद्यार्थी किताबों को डाउनलोड करने का खर्च उठा पाने में असमर्थ हैं. अधिकारियों के मुताबिक, अगर आज प्रकाशन का अधिकार मिल भी जाता है, तो किताबों को छपने और बाजार तक पहुंचने में कम से कम दो महीने लगेंगे. पहले, राज्य सरकार की ओर से यूपी बोर्ड द्वारा एक टेंडर जारी किया जाएगा और फिर चयनित प्रकाशकों को विभिन्न विषयों की पुस्तकों के प्रकाशन के लिए कम से कम दो महीने का समय देना होगा. ऐसा होने तक माध्यमिक विद्यालयों की अर्धवार्ष‍िक परीक्षाएं भी समाप्त हो जाएंगी. 

शिक्षकों का कहना है कि यूपी बोर्ड ने 12 अप्रैल को शैक्षणिक कैलेंडर जारी किया था और पाठ्यक्रम जनवरी 2025 के पहले सप्ताह तक पूरा करना है. हालांकि, उनका कहना है कि पाठ्य पुस्तकों की कमी के कारण यह एक बड़ी चुनौती है. सत्र 2024-25 में किताबें न छपने से बच्चे परेशान हैं. कई बच्चे यूपी बोर्ड की वेबसाइट www.upmsp.edu.in पर उपलब्ध किताबों की सॉफ्ट कॉपी से काम चला रहे हैं. 
फिलहाल काम चलाने के लिए उन्होंने इन्हें निशुल्क डाउनलोड कर लिया है. कुछ ने पिछले साल छपी किताबें खरीद ली हैं, जो अभी भी बाजार में आए बिना बिकी हैं.

निजी प्रकाशक इस स्थिति का फायदा उठाते हुए मनमानी कर रहे हैं और निर्धारित पाठ्यपुस्तकों के स्थान पर दूसरी किताबें ला रहे हैं, हालांकि इनकी कीमत अधिकृत प्रकाशकों की किताबों से पांच से 30 गुना तक अधिक है. उदाहरण के लिए, एनसीइआरटी की कक्षा 12 की रसायन विज्ञान की दो पुस्तकों की कीमत 38 रुपये है. लेकिन दोनों पुस्तकों को एक साथ छापकर निजी प्रकाशक उन्हें बाजार में 1,175 रुपये में बेच रहे हैं. इसी तरह, भौतिकी की दो पुस्तकें जो 52 रुपये में उपलब्ध हैं, उन्हें निजी प्रकाशक 1,060 रुपये में बेच रहे हैं. हालांकि, शिक्षक इन पुस्तकों की सिफारिश करने से बचते हैं क्योंकि ये निर्धारित पाठ्यपुस्तकें नहीं हैं और तुलनात्मक रूप से बहुत महंगी हैं साथ ही इनमें अक्सर गलतियां भी होती हैं.

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शि‍क्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष और प्रवक्ता डॉ. आर. पी. मिश्र कहते हैं, “बिना किताबों के कैसी पढ़ाई हो रही होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. अगर जीएसटी और रायल्टी को लेकर कोई विवाद था तो उसकी कीमत पर करोड़ों विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर नहीं लगाया जा सकता है. हर साल किताबें देर से छप कर आती हैं. सरकार को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि प्रत्येक वर्ष विद्यार्थियों को शैक्ष‍िक सत्र शुरू होने से पहले ही किताबें मिल सकें.” 

छात्रों और शिक्षकों को किताबों की कमी के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. प्रयागराज के करछना विकास खंड के धरवारा इलाके में मौजूद एक कॉलेज के प्रिंसिपल बताते हैं, "अभी तक किताबें उपलब्ध नहीं होने के कारण शिक्षक पिछले साल उपलब्ध कराई गई किताबों की प्रतियों से काम चला रहे हैं और कक्षाओं में छोटे-छोटे समूहों में छात्रों को पढ़ा रहे हैं." उनके मुताबिक अभिभावक भी अक्सर शिकायत लेकर आते हैं कि बाजार में निर्धारित किताबें उपलब्ध नहीं हैं लेकिन हम उनकी कोई मदद नहीं कर सकते हैं. किताबें तुरंत बाजार में उपलब्ध हों, इसके लिए तत्काल दखल देने की जरूरत है. 

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