यूपी में पहली बार डिजिटल अरेस्ट करने वाले को मिली सजा; कैसे पकड़ा गया था ये साइबर ठग?

इस साइबर ठग ने बीते साल लखनऊ की एक डाक्टर को 10 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट करके वसूले थे 85 लाख रुपए

Devashish found guilty in digital arrest case (Photo- ITG)
डिजिटल अरेस्ट केस में दोषी पाया गया देवाशीष (Photo- ITG)

लखनऊ में कानपुर रोड स्थि‍त इंद्रप्रस्थ अपार्टमेंट में रहने वाली सौम्या गुप्ता किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमयू) में डॉक्टर हैं. पिछले साल 15 अप्रैल को जब डॉ. सौम्या केजीएमयू में विभागीय काम निबटा रही थीं तभी इनके मोबाइल पर एक फोन आया. फोन करने वाले ने खुद को कस्टम ऑफिसर बताया. 

कॉलर ने डॉ. गुप्ता से कहा कि विदेश से आए उनके एक कार्गो में जाली पासपोर्ट, नकली एटीएम कार्ड और 140 ग्राम एमडीएम (एक साइकोएक्टिव ड्रग) है. इसकी जांच चल रही है. इसके बाद कॉलर ने एक दूसरे व्यक्त‍ि को सीबीआई अफसर बताकर डॉ. सौम्या गुप्ता से बात कराई. 

दूसरे व्यक्ति ने धमकाते हुए कहा कि अगर उन्होंने सही जानकारी नहीं दी तो आधे घंटे में उनको पुलिस गिरफ्तार कर लेगी. इस तरह फोन करने वाले की बातों से डॉ. सौम्या गुप्ता घबरा गईं. उन्हें डिजिटल अरेस्ट कर लिया गया था और अपराधी जैसा कहते गए गुप्ता वैसा ही करती गईं. 

डिजिटल अरेस्ट होने के बाद आरोपियों ने डॉ. सौम्या गुप्ता से 40 लाख रुपए जांच के नाम पर ट्रांसफर कराए और कुछ समय बाद इसे वापस उनके पास भेज दिया यह कहते हुए कि ये रुपए जांच में सही पाए गए हैं. इससे डॉ. सौम्या गुप्ता को पूरी तरह भरोसा हो गया कि फोन करने वाले असल के ही सीबीआई और ईडी अफसर हैं. लेकिन उनकी घबराहट और बढ़ गई. इसके बाद आरोपियों ने उन्हें 10 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट रखा और जांच के नाम पर कई बार कॉल करके कुल 85 लाख रुपए अलग-अलग बैंक खातों में ट्रांसफर कराए. 

कई दिन बीतने के बाद डॉ. सौम्या को कुछ शक हुआ. उन्होंने इस घटना का जिक्र अपने परिचितों से किया तो पता चला कि वे डिजिटल अरेस्ट यानी डिजिटल ठगी का शि‍कार हो गई हैं. इसके बाद 1 मई 2024 को उन्होंने लखनऊ के साइबर क्राइम थाना में रिपोर्ट दर्ज कराई और पुलिस जांच शुरू हुई.

पुलिस कार्रवाई का ब्योरा देते हुए लखनऊ के डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (डीसीपी) क्राइम कमलेश दीक्षि‍त बताते हैं, “आरोपी को पकड़ने के लिए कई टीमों का गठन किया गया. एक टीम के प्रभारी साइबर थाना के इंचार्ज बृजेश कुमार यादव को भी बनाया गया. पुलिस ने आरोपियों द्वारा डॉ. सौम्या गुप्ता को भेजे गए कुछ दस्तावेजों की जांच की तो पता चला कि ये फर्जी हैं. जिन बैंक अकाउंट में डॉ. सौम्या ने पैसे ट्रांसफर किए थे वे भी फर्जी दस्तावेजों से खुले हुए पाए गए. ऐसे में आरो‍पी तक पहुंचना काफी मुश्क‍िल लग रहा था.” 

डीसीपी कमलेश दीक्ष‍ि‍त के अनुसार एक बैंक खाते में आरोपी ने अपना असली पैन कार्ड लगा रखा था, यहीं से पुलिस को सबसे बड़ा सुराग मिला. पैन कार्ड की पूरी डिटेल निकलवाई गई तो पता चला कि यह आजमगढ़ में मसौना के रहने वाले देवाशीष राय का था. पुलिस की एक टीम आजमगढ़ के मसौना पहुंची तो पता चला कि वह लखनऊ में गोमतीनगर विस्तार के सेक्टर छह स्थ‍ित मंदाकिनी अपार्टमेंट में रहता है. 

इसके बाद 5 मई, 2024 को पुलिस ने पूरी नाकाबंदी करके उस अपार्टमेंट में छापा मारा और एक फ्लैट से 35 वर्षीय देवाशीष राय को गिरफ्तार कर लिया. कुलदीप दीक्ष‍ित बताते हैं, “देवाशीष राय के फ्लैट से पुलिस की वर्दी, ऑफि‍स का नकली सेटअप, लैपटॉप मोबाइल समेत कई फर्जी कागजात भी बरामद हुए जो कोर्ट से उसे सजा दिलाने में काफी प्रभावी साबित हुए.” 

आमतौर पर डिजिटल अरेस्ट के मामले में आरोपी घटना स्थल से काफी दूर होते हैं. ऐसे में वहां जाकर सबूत इकट्ठा करना एक बहुत मुश्क‍िल काम होता है. इस मामले में पीडि़त और आरोपी दोनों की लोकेशन काफी नजदीक थी. इसके अलावा आरोपी के फ्लैट से वे सारे सबूत बरामद हुए थे जो उसे सजा दिलाने के लिए काफी थे. जरूरत एक प्रभावी पैरवी की थी. दीक्षि‍त बताते हैं, “पुलिस विभाग और सरकारी अभियोग पक्ष की पहली मीटिंग में स्पष्ट हो गया था कि डिजिटल अरेस्ट के इस मामले में आरोपी को सजा जरूर मिलेगी. इसके बाद अभि‍योजन और पुलिस की टीम ने सभी साक्ष्यों की कड़ी से कड़ी मिलाकर एक आरोपी के खिलाफ एक मजबूत जाल बुन दिया.” 

इसका फायदा यह हुआ कि लखनऊ पुलिस ने तय 90 दिन की सीमा से पहले 83 दिन के भीतर ही 2 अगस्त 2024 को मजबूत डिजिटल साक्ष्यों के साथ चार्जशीट स्पेशल सीजेएम कोर्ट (कस्टम) में दाखिल कर दी. इसके बाद फास्ट ट्रैक ट्रायल शुरू हुआ और गिरफ्तारी के 438वें दिन कोर्ट ने ट्रायल पूरी कर आरोपी को सात साल की सजा सुना दी. 

डिजिटल अरेस्ट के जरिए ठगी का आरोपी देवाशीष एमसीए पास है. पुलिस को पूछताछ में पता चला कि देवाशीष ने यूट्यूब देखकर लोगों को डिजिटल अरेस्ट करना सीखा था. देवाशीष के साथ उसके दो साथी भी डि‍जिटल अरेस्ट के अपराध में उसका सहयोग कर रहे थे. इनकी खोज में भी पुलिस जुटी है. इस गैंग ने आठ अन्य लोगों के साथ भी डिजिटिल अरेस्ट को अंजाम दिया है. इसकी भी तफ्तीश अब गति पकड़ चुकी है. कमलेश दीक्ष‍ित बताते हैं, “यह मामला कई मायनों में अनोखा है. यह भारत का पहला ऐसा 'डिजिटल अरेस्ट' साइबर धोखाधड़ी का मामला भी है, जहां आरोपी को अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने तक लगभग एक साल की पूरी अवधि के लिए ज़मानत नहीं दी गई. आमतौर पर, किसी आरोपी को ज़मानत मिल जाती है. इसके अलावा यूपी में पहली बार डिजिटल अरेस्ट के किसी मामले में आरोपी को सजा मिली है.” 

अब लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट इस मामले का डाक्युमेंटेशन करके साइबर अपराध की जांच से जुड़े सभी पुलिस कर्मियों के लिए एक प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने जा रहा है कि ताकि वे ऐसे मामलों की प्रभावी और त्वरित पैरवी कर आरोपियों को सजा दिला सकें. 

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