उत्तर प्रदेश में लिफ्ट मतलब आफत के डिब्बे! कानून बना पर रुक नहीं रहे एक्सीडेंट?

“उत्तर प्रदेश लिफ्ट एवं एस्केलेटर अधि‍नियम-2024” के लागू होने के बाद भी प्रदेश में लिफ्ट से जुड़ी दुर्घटनाओं में नहीं आई कमी. कानून लागू करने से जुड़ी खामियों का फायदा उठा रहे बिल्डर

image of a lift
सांकेतिक तस्वीर

लखनऊ में अशोक मार्ग पर मौजूद जवाहर भवन के पीछे चार मंजिला प्रेम प्लाजा है. इसमें कई ऑफिस हैं. बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर स्थित एक प्राइवेट कंपनी में लखनऊ सदर के रहने वाले अपूर्व और सआदतगंज के ओजस्वी शर्मा काम करते हैं. अपूर्व और ओजस्वी की 14 जुलाई को नाइट शिफ्ट थी. दोनों ड्यूटी कर 15 जुलाई की रात करीब ढाई बजे ऑफिस से घर के लिए निकले थे. 

अपूर्व और ओजस्वी बिल्डिंग से नीचे आने के लिए लिफ्ट में गए. लिफ्ट दूसरे मंजिल पर खटपट की आवाज कर रुक गई. दोनों ने लिफ्ट खोलने की बहुत कोशिश की लेकिन असफल रहे. इस पर उन्होंने कंपनी के साथी कर्मचारियों को फोन कर बताया कि लिफ्ट नहीं खुल रही है. सूचना मिलने पर कंपनी के अन्य कर्मचारी भी मौके पर आ गए. काफी कोशिशों के बाद भी लिफ्ट न खुलने पर लिफ्ट मैकेनिक को सूचना दी. 

दो घंटे तक तमाम कोशिशों बाद भी वह लिफ्ट नहीं खुल पाई. इधर लिफ्ट में फंसे रहने के कारण अपूर्व और ओजस्वी की तबीयत भी बिगड़ने लगी थी. इसके बाद पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी गई. मौके पर पहुंची पुलिस को भी लिफ्ट खोलने में सफलता नहीं मिली. पुलिस कर्मियों ने फायर ब्रिेगेड को सूचना दी. मौके पर पहुंचे दमकल कर्मियों ने आधे घंटे की मशक्कत के बाद अपूर्व और ओजस्वी को लिफ्ट से बाहर निकाला. दोनों को पास के सिविल अस्पताल ले जाया गया. जहां प्राथमिक उपचार देकर उनकी छुट्टी कर दी गई. अपूर्व और ओजस्वी के लिफ्ट में फंसे होने के चलते चार घंटे से अधिक तक डर का माहौल बना रहा. 

यूपी में लिफ्ट से जुड़ी दुर्घटनाओं का यह पहला वाकया नहीं है. बीते एक साल के दौरान प्रदेश के करीब हर शहर से लगातार लिफ्ट से जुड़ी दुर्घटनाओं की जानकारी सामने आ रही है. लखनऊ में इकाना स्टेडियम के पास एक ऊंचे अपार्टमेंट की 15वीं मंजिल पर रहने वाले एक बुजुर्ग दंपति अपने फ्लैट में पांच दिनों से फंसे हुए थे, जब उनके टावर की दोनों लिफ्टों ने काम करना बंद कर दिया था. यह घटना तब सामने आई जब उनके बेटे मेजर शिवम श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री के पोर्टल पर 6 जून को तत्काल मदद की मांग करते हुए शिकायत दर्ज कराई. कश्मीर में तैनात मेजर शिवम के माता-पिता, उमाशंकर श्रीवास्तव (62), एक सेवानिवृत्त सेना कर्मी और रेखा श्रीवास्तव (61), एक सेवानिवृत्त रेलवे कर्मचारी हैं और फ्लैट नंबर 1502 में रहते हैं. 

रेखा के पैर में फ्रैक्चर है और वे अपनी चोट और उम्र के कारण सीढ़ियों से नीचे नहीं उतर पा रही थीं. रेखा को डॉक्टर के पास जाना था, लेकिन लिफ्ट खराब होने के कारण नीचे नहीं उतर सकीं. उमाशंकर ने सीढ़ियों का इस्तेमाल करके सामान लाने की कोशिश की, लेकिन सीढ़ियों से एक ही बार में थक गए. सोसाइटी से लिफ्ट ठीक करने की गुहार लगाई लेकिन तीन दिन तक कोई जवाब न मिलने पर, उन्होंने अपने बेटे से संपर्क किया, जिसने तुरंत शिकायत दर्ज कराई. मुख्यमंत्री को दी गई अपनी शिकायत में मेजर शिवम ने लिखा, "मैं कश्मीर में देश की सेवा करता हूं, लेकिन लखनऊ में बिल्डर और अधिकारियों की लापरवाही के कारण अपने बुज़ुर्ग माता-पिता को परेशान होते देखकर खुद को असहाय महसूस करता हूं. एक राजनीतिक दल से जुड़ा बिल्डर और आरडब्ल्यूए सदस्य उदासीन बने हुए हैं." 

शिकायत के बाद, पांच सैन्यकर्मियों और स्थानीय पुलिस की एक टीम अपार्टमेंट पहुंची. चूंकि दोनों लिफ्टें काम नहीं कर रही थीं, इसलिए वे दंपत्ति के लिए ज़रूरी सामान लेकर 270 सीढ़ियां चढ़कर 15वीं मंजिल पर पहुंचे. पुलिस के दखल के बाद दोनों लिफ्ट ठीक की जा सकीं. अपार्टमेंट के आरडब्ल्यूए सचिव राजेश गुप्ता के मुताबिक नवनिर्मित टावर में उचित बिजली व्यवस्था का अभाव है और अभी तक कंपलीशन सर्टिफिकेट जारी नहीं किया गया है. 

नियमों के अनुसार, बिल्डर को कब्जे के बाद दो साल तक रखरखाव का काम संभालना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. लखनऊ के वरिष्ठ वकील और रियल स्टेट से जुड़े मुद्दों को उठाने वाले शैलेंद्र कुमार सिंह बताते हैं “नई बनने वाली सोसायटियों में बिना कंपलीशन सर्टिफिकेट लिए ही बिल्डर फ्लैट को बेच दे रहे हैं. कंपलीशन सर्टिफिकेट न लेने से संबंधित विकास प्राधिकरण इनकी जांच नहीं कर पाता. कई बार प्राधि‍करण और बिल्डर की मिलीभगत भी सामने आती है. यह बिल्डर अपनी सोसायटी में लगी लिफ्ट की विद्युत सुरक्षा निदेशालय से जांच भी नहीं कराते. इसी कारण लिफ्ट संचालन की गुणवत्ता हमेशा संदेह में रहती है और कई बार ये दुर्घटना की वजह बन रही हैं.”

नोएडा में हुई लिफ्ट दुर्घटनाओं की जांच में सामने आया है कि बिल्डर अपनी सोसायटी में लगी लिफ्ट का “एनुअल मेंटेंनेस कांट्रैक्ट” (एएमसी) नहीं करते. ऐसे में लिफ्ट के नियमित परीक्षण न होने से ब्रेक फेल और केबल टूटने जैसी तकनीकि खामियां अक्सर दुर्घटनाओं को जन्म दे रही हैं. लिफ्ट से होने वाली दुर्घटनाओं से बचाने के लिए पिछले साल विधानसभा और उसके बाद विधान परिषद से पारित होकर “उत्तर प्रदेश लिफ्ट एवं एस्केलेटर विधेयक-2024” कानून बना है. 

कारखाना अधिनियम-1948 के तहत स्थापित लिफ्ट को छोड़कर बाकी सभी लिफ्ट व एस्केलेटर इस नए कानून के दायरे में आएंगे. इसमें प्रावधान है कि प्रदेश में निजी व सार्वजनिक परिसरों में नई लिफ्ट और एस्केलेटर की स्थापना के लिए रजिस्ट्रेशन व सभी लिफ्ट व एस्केलेटर विनिर्माताओं, कमीशनिंग व मेंटेनेंस एजेंसियों का रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य होगा. पहले से स्थापित लिफ्ट और एस्केलेटर के लिए अधिनियम लागू होने के छह माह के अंदर पंजीयन कराना अनिवार्य होगा. लिफ्ट व एस्केलेटर निर्माण के लिए बीआइएस मानकों व सुसंगत बिल्डिंग कोड का पालन अनिवार्य होगा. लिफ्ट में यात्रियों को सुरक्षा के लिए ऑटो रेस्क्यू डिवाइस लगाना अनिवार्य होगा ताकि बिजली आपूर्ति बाधित होने या कोई अन्य खराबी पर अंदर फंसे यात्री नजदीकी फ्लोर पर पहुंचे और लिफ्ट का दरवाज खुद खुल जाए. लिफ्ट में आपातकालीन घंटी, पर्याप्त रोशनी की भी व्यस्था की जाए. 

लिफ्ट एक्ट लागू होने के बाद करीब डेढ़ साल बाद भी हालात के न सुधरने पर इसके क्र‍ियान्वयन पर सवाल उठ रहे हैं. यूपी में सबसे ज्यादा लिफ्ट नोएडा और ग्रेटर नोएडा में लगी हैं. विकास प्राधिकरण के मुताबिक नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 80 हजार से अधिक लिफ्ट संचालित हो रही हैं. इन सबका 31 मार्च तक रजिस्ट्रेशन होना था. इसके बाद तीन महीने का ग्रेस पीरियड भी दिया गया लेकिन मई तक केवल आठ हजार लिफ्ट का ही सहायक निदेशक विद्युत सुरक्षा कार्यालय में रजिस्ट्रेशन कराया गया है. 

हालांकि अधिकारी अब रजिस्ट्रेशन कराने पर तीन गुना शुल्क वसूलने की बात कह रहे हैं. शैलेंद्र सिंह बताते हैं, “लि‍फ्ट संचालन का कानून तो बन गया लेकिन नियम और क्रियान्वयन अभी भी अधूरे हैं. कानून पारित होने के बावजूद इसके लिए जागरूकता अभियान नहीं चले जिससे लोगों को ऐसे किसी कानून की जानकारी ही नहीं है. लिफ्ट एक्ट में मासिक/वार्षिक मेंटेनेंस, रजिस्ट्रेशन, ऑटो रेस्क्यू उपकरण, सीसीटीवी, स्वास्थ्य बीमा जैसे प्रावधान तो हैं लेकिन इनका पालन धीमी गति से हो रहा है.” 

शैलेंद्र के मुताबिक लिफ्ट ऑपरेटर और तकनीशियनों के प्रशिक्षण, उनके स्तर और मानकों का स्पष्ट नियम स्थापित नहीं हुआ है. लिफ्ट में निर्धारित क्षमता से अधिक भार न उठाने के लिए लगने वाले सेंसर भी कई बार खराब मिले हैं. सुरक्षा जांच में भ्रष्टाचार या सोसायटीज़ द्वारा मेंटेनेंस फीस का दुरुपयोग भी दुर्घटनाओं के पीछे जिम्मेदार है. 

एक रियल स्टेट एक्सपर्ट और इंजीनियर योगेश यादव लिफ्ट दुर्घटनाओं को रोकने के‍ लिए एक्ट के अलावा भी सरकारी प्रयास पर जोर देते हैं. योगेश कहते हैं, “सभी लिफ्ट का रजिस्ट्रेशन और वार्षिक या मासिक मेंटेंनेंस की सख़्त निगरानी और इसका ऑडिट हो, तकनीकी उपकरणों जैसे ब्रेक, केबल, सेंसर, ऑटो रेस्क्यू डिवाइस, सीसीटीवी का नियमित अंतराल में सख्त निरीक्षण की व्यवस्था हो, लिफ्ट ऑपरेटर व मेंटेनेंस एजेंसी का प्रशिक्षण और सर्टिफिकेशन ज़रूरी किया जाए साथ ही लिफ्ट में विस्फोट, फेल, फंसना आदि पर कड़ा हर्जाना और बीमा की व्यवस्था भी की जाए.” लिफ्ट से जुड़ी दुर्घटनाएं रोकना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है. समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो “उत्तर प्रदेश लिफ्ट एवं एस्केलेटर अधि‍नियम-2024” बिना दांत वाला कानून बनकर ही  रह जाएगा.

हाल-फिलहाल के कुछ मामले 

नोएडा (10 जून, 2025) : ग्रेटर नोएडा पी-4 स्थ‍ित सीनियर सिटिजन सोसायटी में देर रात एक ही परिवार के 6 सदस्य करीब पौने घंटे तक फंसे रहे. पुलिस ने काफी मशक्कत के बाद इन लोगों को लिफ्ट से निकाला. 

गाजियाबाद (28 मई 2025) :  एक 9 वर्षीय बच्चे ने चलते हुए लिफ्ट का गेट खोलने की कोशिश की, जिससे वह लिफ्ट और दीवार के बीच फंस गया. लगभग 4 मिनट तक वह फंसा रहा, लेकिन समय रहते उसे बचा लिय गया. 

नोएडा (26 मई 2025) : ग्रेटर नोएडा वेस्ट स्थ‍ित निजी अस्पताल में देर रात तीमारदारों को लेकर जा रही लिफ्ट बीच में बंद हो गई. इसमें 16 लोग आधे घंटे से अधिक समय तक फंसे रहे.  

गाजियाबाद (5 अप्रैल 2025) : हिंडन ग्रीन वैली ट्राइन टावर्स सोसाइटी में 26वीं मंजिल से लिफ्ट नीचे गिरी. इसमें 10 वर्ष से कम उम्र के 6 बच्चे सवार थे. सभी को मामूली चोटें आईं लेकिन इन्हें सदमे से उबरने में लंबा वक्त लगा. 

लखनऊ (11 जनवरी 2025) :  ट्रांसपोर्ट नगर इलाके में एक 15 वर्षीय किशोर (शरद) लिफ्ट में पैर फंसने से दब गया और दमकल वालों द्वारा निकाले जाने पर अस्पताल में मृत पाया गया. 

अलीगढ़ (16 दिसंबर 2024) : रामघाट रोड स्थ‍ित केके हास्प‍िटल की लिफ्ट में देर रात एक परिवार के 7 लोग घंटे भर से अधिक समय से फंसे रहे. एक महिला बेहोश हो गई थी. पुलिस ने एफआइआर दर्ज की थी. 

मेरठ (13 दिसंबर 2024) : कचहरी परिसर में न्यायालय भवन की सात मंजिला इमारत की लिफ्ट अचानक रुक गई. इसमें शहर विधायक रफीक अंसारी समेत 10 लोग आधे घंटे से अधिक समय तक फंसे रहे. 

वाराणसी (8 दिसंबर 2024) : मंडुवाडीह चौराहे के पास स्थ‍ित विराट एमएस की चैनल लिफ्ट पांचवीं मंजिल से अचानक नीचे गिर गई. इसमें मौजूद पीसीएस अधिकारी की पत्नी नलिनी श्रीवास्तव और घरेलू सहा‍यिका गीता देवी घायल हो गई.

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