उत्तर प्रदेश : यहां सूरज की ताकत पानी दे रही और रोजगार भी!
उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन की परियोजनाओं में सोलर पावर का इस्तेमाल करोड़ों लोगों की जिंदगी बदल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अभिनव प्रयोग के लिए नमामि गंगे विभाग के अपर मुख्य सचिव अनुराग श्रीवास्तव को “प्राइम मिनिस्टर अवॉर्ड फॉर एक्सीलेंस इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन” से सम्मानित किया है

लखनऊ जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर मोहनलालगंज तहसील की सरथुआ ग्राम पंचायत में रहने वाली बड़ी आबादी पिछले कुछ वर्षों से पलायन करके शहर में बसने लगी थी. वजह पानी की समस्या थी. सरथुआ के रहने वाले किसान राम दशरथ बताते हैं “बिजली की आवाजाही से टंकी से पानी की सप्लाई पर असर पड़ता था. बत्ती न आने से पानी की समस्या भी खडी हो जाती थी क्योंकि टंकी में पानी नहीं भर पातr था. इस वजह से गांव में रहने वाले कई लोगों ने मोहनलालगंज तहसील मुख्यालय के आसपास किराए पर मकान लेकर रहना शुरू किया”
लेकिन पिछले दो वर्षो से सरथुआ गांव में से बाहर गए लोग वापस लौटने लगे हैं. बड़ी वजह पानी की समस्या से निजात मिलना है. यहां पानी की नई टंकी बनी है जो बिजली के भरोसे नहीं बल्कि यह सोलर ऊर्जा से संचालित होती है. केवल सरथुआ के रहने वाले नहीं बल्कि प्रदेश की सवा दो करोड़ से अधिक की आबादी के घर तक नल से पानी पहुंचाने की योजना को अमलीजामा पहनाया गया है.
इसमें खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन की 80 प्रतिशत से अधिक परियोजनाएं सोलर पावर पर आधारित हैं. उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन के अंतर्गत यूपी में कुल 41539 परियोजनाएं हैं जिसमें से 33,157 जल जीवन मिशन के प्रोजेक्ट्स में सोलर एनर्जी का उपयोग किया जा रहा है. जिससे रोजाना 900 मेगावाट बिजली पैदा हो रही है. ऐसा करने वाला उत्तर प्रदेश देश का अग्रणी राज्य बनकर उभरा है. 17वें सिविल सर्वेट दिवस के मौके पर 21 अप्रैल को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी में नमामि गंगे विभाग के अपर मुख्य सचिव अनुराग श्रीवास्तव को “प्राइम मिनिस्टर अवॉर्ड फॉर एक्सीलेंस इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन” से सम्मानित किया. केंद्र सरकार द्वारा ‘इनोवेशन स्टेट’ की कैटेगरी में यह सम्मान यूपी में जल जीवन मिशन की परियोजनाओं में सोलर पावर के इस्तेमाल का अभिनव प्रयोग करने के लिए दिया गया है.
प्रधानमंत्री मोदी को यूपी की चुनौतियों का आभास था इसीलिए वर्ष 2019 में उन्होंने बुंदेलखंड क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पाइप्ड वॉटर स्कीम की आधारशिला रखी थी. पानी से जुड़े कार्यों के चलते पद्मश्री से सम्मानित होने वाले उमाशंकर पांडेय बताते हैं, “उत्तर प्रदेश में 2.66 करोड़ ग्रामीण परिवार रहते हैं. साल 2019 तक केवल 1.94 फीसद घरों में ही नल से पानी की सुविधा थी. चुनौती बस इतनी ही नहीं थी कि गरीबों के घर तक पानी पहुंच जाए. इससे ज्यादा बड़ी चुनौती यह थी कि लोगों को इसका लाभ लंबे वक्त तक मिलता रहे.”
पांडेय के मुताबिक पानी की कमी की वजह से यूपी में तमाम तरह की दिक्कतें आम थीं. बुंदेलखंड सूखा प्रभावित था. पानी की कमी वहां बनी ही रहती थी. वहीं, पूर्वी उत्तर प्रदेश की स्थितियां इससे कम भयावह नहीं थीं. वहां संक्रमित पानी की वजह से जापानी एंसेफलाइटिस (और एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम का प्रकोप था. पांडेय बताते हैं, “पहले जो पानी की योजनाएं शुरू की गई थीं, वे बाद में विफल हो गई थीं. ज्यादातर की वजह पानी सप्लाई करने में बिजली का संकट का होना था. बिजली की अनुपलब्धता या बिजली का खर्च, योजना को नाकाम कर देता था. यानी, बड़ी पूंजी लगाकर तैयार की गई योजना के संचालन में लगने वाला नियमित खर्च, बड़ी चुनौती था. लिहाजा, जल जीवन मिशन ने इस दुश्वारी को समाप्त करने के लिए एक कदम उठाया. यह तय किया कि पानी की परियोजनाओं में पारंपरिक बिजली की जगह गैरपरंपरागत ऊर्जा स्रोत का इस्तेमाल किया जाएगा.
जल जीवन मिशन की परियोजनाओं में सोलर ऊर्जा के उपयोग का अभिनव प्रयोग करने वाने अनुराग श्रीवास्तव 1992 बैच के आइएएस अफसर हैं. सिविल इंजिनियरिंग में बीटेक और एमटेक कर चुके अनुराग मौजूदा समय में नमामि गंगे एवं ग्रामीण जलापूर्ति विभाग के अपर मुख्य सचिव हैं. जल जीवन मिशन की योजनाओं में सोलर ऊर्जा के प्रयोग का फैसला कैसे हुआ, इसपर अनुराग श्रीवास्तव बताते हैं, “जब हमने परियोजनाओं की शुरुआत की तब ही एक अध्ययन करवाया था कि आखिर क्यों पेयजल परियोजनाएं फेल हो जाती हैं. कुछ बातें जो निकल के सामने आईं उनमें पहली बात तो थी बिजली की उपलब्धता. अगर जलापूर्ति के समय बत्ती गुल हो जाए तो लोगों को उन्हीं परंपरागत और गंदे जलस्रोतों से पानी लाने को मजबूर होना पड़ता था. अगर ऐसा बार-बार हो तो लोगों का विश्वास ही परियोजनाओं से उठ जाता था और इसके बाद वे पानी इकट्ठा करने के पुराने तौर तरीकों की तरफ वापस लौट जाते थे.”
तब एक और बात सामने आई कि परियोजनाएं तो सरकारी लागत में तैयार हो जाएंगी, लेकिन इसके बाद इनके रखरखाव और संचालन पर आने वाला खर्च कैसे निकलेगा? बिजली के बिल आपूर्ति के साथ आएंगे तो उनका भुगतान भी करना होगा, वह कौन करेगा? इसके अलावा और भी पहलू थे, लेकिन ऊर्जा से जुड़ी यही दो बातें प्रमुख थीं.
अनुराग बताते हैं कि कई विशेषज्ञों से राय लेने के बाद सौर ऊर्जा के इस्तेमाल की परिकल्पना तैयार हुई. जाहिर सी बात है कि यह बड़ा प्रयोग था, लेकिन जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में केंद्र सरकार सौर ऊर्जा को बढ़ावा दे रही है, उससे जल जीवन मिशन के नवाचार को कुछ संबल मिला. इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने भी जल जीवन मिशन की टीम का इस योजना के पक्ष में उत्साहवर्धन किया. इसके बाद एक अभियान चलाकर जल जीवन मिशन की योजनाओं को सोलर पावर से जोड़ा गया.
परियोजनाओं की शुरुआत से ही टेंडर ही इस तरह से किए गए कि सौर ऊर्जा आधारित परियोजनाओं को बढ़ावा मिले. ऐसे सोलर पैनल का इस्तेमाल करने के लिए कंपनियों को कहा गया, जो कि कम से कम 30 साल के लिए टिकाऊ हों. करीब दो वर्ष के समयांतराल में 33,157 सौर ऊर्जा संचालित पानी की आपूर्ति परियोजनाएं अस्तित्व में आईं. इनसे मौजूदा समय में तकरीबन 900 मेगावॉट ऊर्जा उत्पादित की जा रही है. उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन की 80 प्रतिशत से अधिक परियोजनाएं सोलर पावर पर आधारित हैं जो देश के सभी राज्यों के बीच एक मिसाल भी बनी है.
इन परियोजनाओं को धीरे-धीरे प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में शुरू किया गया. इसका विस्तार 67,013 गांव, 2.07 करोड़ घरों और 13.30 करोड़ आबादी तक है. दूरस्थ क्षेत्रों में अच्छी पहुंच की वजह से यह परियोजना गेम चेंजर साबित हुई. अनुराग श्रीवास्तव बताते हैं “ हमने 12.36 लाख लोगों को जल परियोजनाओं से जुड़े कामों के लिए प्रशिक्षित किया गया है. इनमें प्लंबर हैं, पंप ऑपरेटर हैं और पानी की गुणवत्ता की जांच करने वाली महिलाएं हैं. चूंकि पूरी परियोजनाएं ग्रामीणों के लिए और उनकी ही देखरेख में हैं तो हम इनके दीर्घकालिक संचालन के लिए भी आश्वस्त हैं. ये परियोजनाएं रोजगार भी दे रही हैं तो यह और भी सुखद पहलू है.”
सोलर तकनीक के इस्तेमाल से गांवों में की जाने वाली जलापूर्ति की लागत में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है. साथ ही पानी की सप्लाई के लिए इलेक्ट्रिसिटी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है. “नो मेंटेनेंस” के साथ-साथ इन सौर ऊर्जा संयंत्रों की आयु 30 साल होती है. 30 साल के दौरान इन परियोजनाओं का संचालन सौर ऊर्जा के जरिए होने से करीब 1 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी. इससे करीब 13 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइड का इमिशन प्रतिवर्ष कम होगा.
सौर ऊर्जा संचालित जल आपूर्ति योजनाओं के तमाम लाभ हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां अब भी हैं. सबसे बड़ी चुनौती सर्दी और बरसात के मौसम की है, जब सौर ऊर्जा से नियमित उत्पादन प्रभावित हो जाता है. अनुराग श्रीवास्तव के मुताबिक खराब मौसम की स्थिति में चुनौतियों को कम करने के लिए पोर्टेबल डीजल जेनरेटरों की व्यवस्था की गई है ताकि निर्बाध जलापूर्ति सुनिश्चित रह सके. इसके अलावा, सभी सौर ऊर्जा संचालित जल आपूर्ति योजनाओं के लिए जल वितरण प्रणाली गुरुत्वाकर्षण के आधार पर डिजाइन की गई है. नतीजतन केवल ऊंचे भंडाण जलाशयों (ईएसआर) को भरने के लिए ही बिजली की आवश्यकता होती है. सर्दियों के मौसम में, ईएसआर को दिन के उजाले के दौरान भरा जा सकता है. यह सुनिश्चित करता है कि प्रणाली खराब मौसम की स्थिति में भी काम कर सकती है.
जल जीवन मिशन के मुताबिक परियोजनाओं के लिए दस साल का संचालन और मेंटेनेंस अनुबंध किया गया है. यानी, जो भी फर्म इस वक्त परियोजनाएं लगा रही है, वही अगले दस साल तक इसे संचालित भी करेगी और इसकी मरम्मत भी करेगी. इसके बाद सभी परियोजनाओं के संचालन और उनकी मरम्मत की जिम्मेदारी ग्रामीण समितियों को ही दे दी जाएंगी. इसके लिए “विलेज वॉटर सेनिटेशन” कमेटियां गठित की गई हैं. हालांकि इसके बाद भी सरकार लगातार परियोजनाओं पर अपनी नजर बनाए रखेगी ताकि आपूर्ति किए जा रहे पानी की गुणवत्ता बनी रहे और संचालन बेहतर तरीके से हो. इन्हीं नवाचारों के जरिए यूपी का जल जीवन मिशन देश के दूसरे राज्यों के लिए अनुकरणीय बना है.