उत्तर प्रदेश : योगी आदित्यनाथ क्यों जता रहे हैं महिला IAS अफसरों ज्यादा भरोसा?
उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में महिला IAS अफसरों की बढ़ती हिस्सेदारी अब चर्चा का बड़ा विषय है. 16 सितंबर की जारी हुई तबादला सूची ने इस धारणा को और पुख्ता किया है

यूपी की नौकरशाही इन दिनों एक बड़े बदलाव की गवाह बनी है. 16 सितंबर की शाम को जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर 16 IAS अधिकारियों के तबादले हुए तो राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा महिला अफसरों की हुई.
वजह साफ थी कि इन तबादलों में 10 महिला अफसर शामिल थीं और उन्हें बेहद अहम जिम्मेदारियां सौंपी गईं. यह कोई इत्तेफाक नहीं है. योगी सरकार में पिछले कुछ समय से महिला IAS अधिकारियों की तैनाती और भूमिका लगातार बढ़ रही है. चाहे वह जिले के जिलाधिकारी (डीएम) हों, मंडल के कमिश्नर या फिर सचिवालय के अहम विभाग, महिला अफसर अब सत्ता के हर स्तर पर नजर आ रही हैं.
तबादला सूची पर गौर करें तो पता चलता है कि मुख्यमंत्री ने जिन पदों पर महिला अफसरों को तैनात किया है, वे यूपी प्रशासन के सबसे जिम्मेदार पदों में से एक गिने जाते हैं. सौम्या अग्रवाल को प्रयागराज का मंडलायुक्त बनाया गया तो अनामिका सिंह को बरेली का कमिश्नर. दोनों ही मंडल कानून-व्यवस्था और राजनीतिक संवेदनशीलता के लिहाज से अहम माने जाते हैं. किंजल सिंह को परिवहन आयुक्त बनाया गया है. खास बात यह है कि परिवहन विभाग सरकार की छवि और राजस्व, दोनों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है.
मोनिका रानी को प्रभारी महानिदेशक, स्कूल शिक्षा की जिम्मेदारी दी गई है, जबकि इस पद पर तैनात रहीं कंचन वर्मा को आयुक्त एवं सचिव राजस्व परिषद बनाया गया है. मनीषा त्रिघाटिया को सचिव महिला कल्याण एवं बाल विकास तथा पुष्टाहार के पद पर तैनाती दी गई है. अपर्णा यू. को पहले से मिल रही ताकतवर जिम्मेदारियों के साथ अब महानिदेशक, चिकित्सा शिक्षा का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया है. महिला IAS अफसर बी. चंद्रकला और चैत्रा वी. की मुख्यधारा में वापसी हुई है. चंद्रकला को सचिव वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन तथा सीईओ क्लीन ए मैनेजमेंट प्रॉजेक्ट अथॉरिटी का प्रभार दिया गया है, वहीं चैत्रा वी. को महानिदेशक आयुष बनाया गया है. लखनऊ मंडल की आयुक्त रोशन जैकब को सचिव-आयुक्त खाद्य एवं औषधि के पद पर भेजा गया है.
इन सभी नामों को देखने के बाद यह कहना मुश्किल नहीं है कि मुख्यमंत्री योगी महिला अफसरों पर विशेष भरोसा दिखा रहे हैं. यह भरोसा किसी एक तबादला सूची की देन नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में लगातार देखा गया है कि महिला आईएएस अधिकारियों को जिलों और विभागों की अहम जिम्मेदारी दी जा रही है. बीजेपी की महिला नेता अनीता अग्रवाल बताती हैं, “मुख्यमंत्री योगी की पहचान एक सख्त और अनुशासनप्रिय नेता के तौर पर है. वे प्रशासन को तेज, पारदर्शी और परिणामोन्मुखी बनाने पर जोर देते हैं.”
यूपी में तैनात नहीं एक सेवानिवृत्त महिला IAS अफसर के मुताबिक सीएम योगी की धारणा यह है कि महिला अफसर आमतौर पर ज्यादा ईमानदार और संवेदनशील होती हैं. वे जनता से सीधे संवाद कर पाती हैं और उनके फैसलों में पारदर्शिता झलकती है. यही वजह है कि उन्हें प्रशासनिक ढांचे के अहम हिस्सों में जगह दी जा रही है. लखनऊ में अवध कालेज की प्राचार्य बीना राय कहती हैं, “मुख्यमंत्री योगी का फोकस नतीजों पर है. पिछले कुछ तबादलों को देखकर यह स्पष्ट होता कि महिला अफसरों को लेकर मुख्यमंत्री की राय है कि वे काम में पारदर्शी और गंभीर होती हैं. जिलों और विभागों में जनता से संवाद बढ़ाने के लिए वे उन्हें भरोसेमंद मानते हैं. यही कारण है कि उन्हें एक के बाद एक जिम्मेदारी मिल रही है.”
दरअसल महिला अफसरों ने अपने काम से यह भरोसा अर्जित किया है. लखनऊ की कमिश्नर रहीं वर्ष 2004 बैच की IAS अफसर रोशन जैकब इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. जहां-जहां रोशन जैकब रहीं, उन्होंने कुछ नया करने की कोशिश की. रोशन जैकब कानपुर, बस्ती, गोंडा, बुलंदशहर जैसे जिलों में जिलाधिकारी भी रही हैं. कानपुर में डीएम रहते हुए रोशन जैकब ने नागरिक शिकायतों की सुनवाई के लिए एक पहल शुरू की थी, तो वहीं उन्होंने 2013 में गोंडा की जिलाधिकारी रहते हुए उन्होंने एलपीजी वितरण जा काम शुरू कराया था.
इसके साथ ही वे यूपी के माइनिंग विभाग में पहली महिला डायरेक्टर बनीं. इस पद पर उनके ही नेतृत्व में यूपी कोविड काल में माइनिंग का काम शुरू करवाने वाला पहला राज्य बना. रोशन जैकब की सबसे ज्यादा सराहना कोविड काल में हुई, जब उन्होंने लखनऊ की प्रभारी जिलाधिकारी के तौर पर काम संभाला. रोशन जैकब ने घरों में हाउस हेल्प या मेड के तौर पर काम करने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य परीक्षण के जरिए कोविड की स्थिति पर नियंत्रण के लिए कदम उठाए थे.
डायरेक्टर माइनिंग के रूप में रोशन जैकब ने अवैध खनन के खिलाफ जिस तरह कार्रवाई की, उससे उनकी छवि एक क्राइसिस मैनेजर के तौर पर बनी. IAS अफसर किंजल सिंह की पहचान भी ऐसी ही बनी है. पिता की शहादत के बाद कठिन परिस्थितियों से गुजरने वाली किंजल सिंह ने बलरामपुर की डीएम रहते हुए स्वास्थ्य सेवाओं और महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया. मेडिकल एजुकेशन विभाग और अब परिवहन विभाग की जिम्मेदारी पाकर वे मुख्यमंत्री के भरोसे को सही साबित कर रही हैं.
अपर्णा यू. की जिम्मेदारियां बढ़ाना भी इसी सोच का हिस्सा है. उन्हें सचिव चिकित्सा शिक्षा के साथ-साथ महानिदेशक मेडिकल एजुकेशन का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. यानी सरकार ने स्वास्थ्य शिक्षा जैसे बेहद चुनौतीपूर्ण क्षेत्र को एक महिला अफसर के हाथों में सौंपा है. बी. चंद्रकला की मुख्यधारा में वापसी इस बात का सबूत है कि मुख्यमंत्री अनुभवशाली महिला अफसरों को भी नया मौका देने के पक्ष में हैं. बीना राय बताती हैं, “महिला अफसरों की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे जनता से सीधे जुड़ती हैं. योजनाओं की मॉनिटरिंग खुद करती हैं और समस्याओं का व्यावहारिक समाधान निकालती हैं. मुख्यमंत्री को भरोसा है कि इनकी मौजूदगी से जनता तक सरकार का संदेश सही ढंग से पहुंचेगा.”
महिला अफसरों की तैनाती से प्रशासन में महिला दृष्टिकोण भी मजबूत हुआ है. महिला सुरक्षा से जुड़े अभियान को अब और गंभीरता से लिया जाता है; बेटियों की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है. जिलों में महिला हेल्प डेस्क, सुरक्षित होस्टल और पोषण आहार से जुड़ी योजनाओं में महिला अफसरों की भूमिका अहम रही है. कानपुर की समाजशास्त्री डॉ. विनीता चौहान कहती हैं, “महिला अफसर केवल आदेश देने तक सीमित नहीं रहतीं. वे महिला और बच्चों की समस्याओं को गहराई से समझती हैं और उनके लिए ठोस समाधान लाती हैं. यही वजह है कि प्रशासन अब ज्यादा संवेदनशील दिखता है.”
उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में महिला डीएम की मौजूदगी भी अब मजबूती से महसूस की जा रही है. देवरिया की दिव्या मित्तल, बांदा की जे. रीभा, महोबा की गजल भारद्वाज, गोंडा की प्रियंका रंजन, लखीमपुरखीरी की दुर्गा शक्ति नागपाल, रायबरेली की हर्षिता माथुर, गौतमबुध नगर की मेधा रूपम, बागपत की अस्मिता लाल, बुलंदशहर की श्रुति, अमरोहा की निधि गुप्ता वत्स और बिजनौर की जसजीत कौर इस समय जिलाधिकारी की जिम्मेदारी संभाल रही हैं.
यह सूची बताती है कि जिलों में प्रशासन को दुरुस्त रखने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महिला अफसरों पर गहरा भरोसा जता रहे हैं. इस भरोसे की कई वजहें हैं. पहली वजह इन अफसरों की साफ-सुथरी छवि और संवेदनशीलता है. दुर्गा शक्ति नागपाल का नाम ही सख्ती और ईमानदारी की मिसाल है. उन्होंने लखीमपुरखीरी में राजस्व व कानून-व्यवस्था के मसलों पर तेज़ी से काम किया. गौतमबुध नगर की मेधा रूपम ने ट्रैफिक व्यवस्था और नागरिक सुविधाओं में सुधार की पहल कर जनता का भरोसा जीता. देवरिया की दिव्या मित्तल ने निवेश और रोजगार बढ़ाने के लिए योजनाओं को प्राथमिकता दी. दूसरी वजह यह है कि महिला अफसर कानून-व्यवस्था और विकास कार्यों में बेहतर संतुलन बनाने में सक्षम साबित हुई हैं.
गोंडा की प्रियंका रंजन ने महिला सुरक्षा को लेकर प्रभावी कदम उठाए तो बागपत की अस्मिता लाल ने पंचायत स्तर तक योजनाओं की निगरानी सख्ती से करवाई. रायबरेली की हर्षिता माथुर ने स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने पर जोर दिया. महोबा की गजल भारद्वाज ने सूखे प्रभावित इलाकों में जल संरक्षण के उपायों को बढ़ावा दिया.
तीसरी अहम वजह यह है कि महिला अधिकारियों पर आमतौर पर भ्रष्टाचार के आरोप कम लगते हैं. यही वजह है कि योगी सरकार उन पर भरोसा करती है. बुलंदशहर की श्रुति और अमरोहा की निधि गुप्ता वत्स ने अपने जिलों में पारदर्शिता और सख्त मॉनिटरिंग को प्राथमिकता दी. बिजनौर की जसजीत कौर ने किसानों से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन में सीधे दखल देकर यह दिखाया कि महिला नेतृत्व कितनी गहराई से जमीनी स्तर पर काम करता है.
इन उदाहरणों से साफ है कि मुख्यमंत्री योगी सिर्फ राजनीतिक संदेश नहीं देना चाहते बल्कि प्रशासनिक मजबूती की एक नई परंपरा गढ़ रहे हैं. महिला डीएम की नियुक्तियां बताती हैं कि सरकार पारदर्शिता, संवेदनशीलता और परिणाम देने की क्षमता को प्राथमिकता देती है.
योगी सरकार की यह रणनीति केवल प्रशासनिक नहीं है. इसमें राजनीतिक संदेश भी छिपा है. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और परंपरागत राज्य में जब महिलाएं प्रशासनिक शीर्ष पदों पर दिखती हैं तो यह समाज में भी महिला सशक्तिकरण का संकेत देती है. बीजेपी की राजनीति में महिला मतदाताओं को साधने पर लगातार जोर रहा है. महिला अफसरों को अहम जिम्मेदारी देकर सरकार यह बताना चाहती है कि वह न केवल राजनीतिक स्तर पर बल्कि प्रशासनिक स्तर पर भी महिलाओं को बराबरी का मौका दे रही है.
हालांकि तस्वीर पूरी तरह परफेक्ट नहीं है. शीर्ष नौकरशाही में महिलाओं की हिस्सेदारी अब भी सीमित है. मुख्य सचिव या अतिरिक्त मुख्य सचिव जैसे पदों पर महिलाओं की मौजूदगी नगण्य है. महिला अफसरों की संख्या बढ़ना अच्छा संकेत है लेकिन उन्हें टॉप पॉलिसी लेवल तक लाना होगा. तभी महिला नेतृत्व की असली ताकत दिखेगी.