उत्तर प्रदेश : 'ऑपरेशन अस्मिता' से धर्मांतरण के बड़े रैकेट का कैसे हुआ पर्दाफाश?
आगरा पुलिस ने धर्मांतरण, ऑनलाइन रेडिकलाइजेशन और ‘लव जिहाद’ जैसी गतिविधियों को रोकने के लिए विशेष अभियान शुरू किया है. इस दौरान यूपी समेत छह राज्यों से 10 लोग गिरफ्तार

आगरा के सदर इलाके में रहने वाले एक जूता व्यवसायी की दो बेटियां हैं. बड़ी बेटी की उम्र है 33 साल और वो एमफिल कर चुकी है और 18 वर्षीय छोटी बेटी ग्रेजुएशन कर रही थी. पढ़ाई के दौरान साल 2020 में बड़ी बेटी की पहचान जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर की रहने वाली लाइफ साइंस की छात्रा साइमा उर्फ खुशबू से हुई थी.
साल 2021 में साइमा बिना बताए जूता व्यवसायी की बड़ी बेटी को अपने साथ घुमाने के बहाने कश्मीर ले गई. वहां अचानक लैंड स्लाइड हो गया था. उनकी गाड़ी फंस गईं. किसी तरह उन्हें निकाला गया. तब साइमा ने खुद को रिटायर्ड इंस्पेक्टर की बेटी बताया था. जम्मू-कश्मीर पुलिस की सूचना पर जूता व्यवसायी अपनी बेटी को वापस लेकर आए थे.
इसके बाद उनकी बेटी की साइमा से फोन पर बातचीत होती रही. बेटी के घर पहुंचने के कुछ दिन बाद परिवार के लोगों को पता चला कि वह पूजा-पाठ करने से इनकार कर रही है. वह इस्लाम को मानने लगी थी. वह कई लोगों से फोन पर बातचीत किया करती थी. डाक से उसके पास इस्लाम से संबंधित किताबें आया करती थीं.
कई बार घर के पास स्थित मस्जिद से सुबह अजान सुनकर वह उठ जाती थी. नमाज पढ़ने लगी थी. इस पर परिवार के लोग घबरा गए. उन्होंने बेटी से बात की मगर वह मानने के लिए तैयार नहीं हुई. उसकी चिकित्सकों से काउंसलिंग कराई गई. परिजनों को उम्मीद नहीं थी कि बड़ी बेटी अपनी छोटी बहन का भी ब्रेन वॉश कर देगी. 24 मार्च को दोनों बहनें घर से निकल गईं. इसके बाद दिल्ली पहुंचीं और वहां से कोलकाता चली गई थीं. अब परिजनों का उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा था.
परिजनों ने आगरा के सदर थाने में गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस को जांच में कुछ नए सबूत मिलने के बाद 4 मई को मामला अपहरण में बदलते हुए जांच साइबर थाना पुलिस को सौंपी गई. अपहरण में साइमा के नामजद होने के बाद जांच में जुटी साइबर थाना पुलिस को एक फेसबुक आइडी मिली. यह जूता व्यवसायी की बड़ी बेटी ने बदले नाम से बनाई थी.
इस पर बुर्के में एके-47 के साथ फोटो लगा रखी थी. दोनों बहनों की लोकेशन कोलकाता के बकरमहल की पता चली. वहां पहुंचकर पुलिस ने उस घर की निगरानी शुरू की दी, जिसमें दोनों बहनें थीं. उनके वहां होने की पुष्टि होने पर पुलिस ने छापा मारा और दोनों बहनों के साथ रह रहे दो युवकों को पकड़ लिया.
हालांकि पुलिस की कार्रवाई इतनी आसान नहीं थी. आगरा पुलिस के ‘ऑपरेशन अस्मिता’ अभियान की इसमें बड़ी भूमिका है. मार्च से यह व्यापक और सख्त अभियान धर्मांतरण, ऑनलाइन रेडिकलाइजेशन और ‘लव जिहाद’ जैसी गतिविधियों को रोकने के लिए चलाया जा रहा है. आगरा के सदर बाजार से अगवा की गईं जूता व्यवसायी की बेटियों की बरामदगी के लिए ऑपरेशन अस्मिता के तहत आगरा पुलिस ने मजबूत प्लानिंग की थी.
आगरा पुलिस कमिश्नरेट के पुलिस आयुक्त दीपक कुमार के निर्देशन में अपर पुलिस उपायुक्त आदित्य ने ऑपरेशन की कमान संभाली. पुलिस आयुक्त दीपक कुमार ने बताया कि दोनों बहनें मोबाइल नहीं ले गई थीं. घर से गए हुए समय बीत चुका था. सोशल मीडिया पर अपने असली नामों से एक्टिव नहीं थीं. परिजनों से विस्तार से कई राउंड की बातचीत में कई जानकारियां मिलीं. इसके आधार पर साइबर सेल ने काम करना शुरू किया.
इसी बीच इंस्टाग्राम पर एक ‘कनेक्टिंग रिवर्ट आईडी’ मिली. पुलिस ने इसे सर्विलांस पर लगाया तो कोलकाता में सक्रियता की जानकारी हासिल हुई. इसी आईडी से जुड़े दूसरे नामों के प्रोफाइल की गहन जांच हुई. आरोपियों के रैकेट की कड़ी से कड़ी पकड़ने के लिए आगरा पुलिस की तरफ से एक महिला दारोगा ने इंस्टाआईडी पर मतांतरण के लिए संपर्क किया. उस आईडी से रेस्पोंस मिला.
इसके बाद पुलिस ने कड़ियों को आपस में जोड़ना शुरू किया. यहां से पुलिस को एक शख्स आयशा का सुराग मिला. इससे जुड़े बैंक खातों की जानकारी मिली. हर दिन पुख्ता सबूत मिले और जांच ठोस ढंग से आगे बढ़ी. पुलिस को कुल सात आरोपियों के खिलाफ सुराग मिलने के बाद उनके खिलाफ कोर्ट से गैर जमानती वारंट लिए गए.
मजबूत सुराग मिलने के बाद 14 जुलाई को आगरा पुलिस आयुक्त ने 11 टीमों को राज्यों में दबिश के लिए भेजा. कोलकाता में दोनों बहनों की मौजूदगी थी. इसको देखते हुए यहां एसीपी सैयद अरीब अहमद के नेतृत्व में चार टीमों को भेजा गया. अन्य स्थानों पर एक एक टीम में चार से पांच पुलिसकर्मी लगाए गए. इनमें नेतृत्व तेज तर्रार इंस्पेक्टर को दिया गया था. हवाई मार्ग से पुलिस की टीम गोवा भेजी गई. एक ही समय में पुलिस ने सभी छह राज्यों में दबिश दी. 50 पुलिसकर्मियों ने चार दिन तक दिन रात मेहनत की. तब जाकर लापता बहनें बरामद हुई और अवैध धर्मांतरण का सबसे बड़ा अंतरराज्यीय गिरोह दबोचा गया.
पुलिस कार्रवाई के सकारात्मक नतीजे से उत्साहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने लखनऊ स्थित पुलिस मुख्यालय में 19 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अवैध धर्मांतरण के अंतरराज्यीय रैकेट के पकड़े जाने की जानकारी दी. डीजीपी राजीव कृष्ण ने पुलिस कर्मियों को एक लाख रुपये के इनाम की घोषणा की है. अधिकारियों ने बताया कि यह खुलासा उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा शुरू किए गए 'अस्मिता' (पहचान) नामक एक नए अभियान के तहत किया गया है.
पुलिस के मुताबिक इस सांठगांठ का खुलासा आगरा पुलिस के उस अभियान के दौरान हुआ, जिसकी शुरुआत इस साल मार्च में 33 और 18 साल की दो बहनों के लापता होने का मामला दर्ज करने से हुई थी. पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव कृष्ण ने बताया कि गिरफ्तार लोगों की पहचान गोवा निवासी आयशा उर्फ एसबी कृष्णा, दिल्ली निवासी मुस्तफा उर्फ मनोज, देहरादून (उत्तराखंड) निवासी अबुर रहमान, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) निवासी अली हसन उर्फ शेखर रॉय और ओसामा, जयपुर निवासी मोहम्मद अली, जुनैद कुरैशी और मोहम्मद अली, उत्तर प्रदेश निवासी आगरा निवासी रहमान कुरैशी और मुजफ्फरनगर निवासी अबू तालिब के रूप में हुई है.
डीजीपी ने कहा कि जांच में ‘लव जिहाद’ और विदेशी फंडिंग के जरिए धर्म परिवर्तन और कट्टरपंथ फैलाने के सबूत मिले हैं, जो इस्लामिक स्टेट (आईएस) की एक खास शैली है. उन्होंने कहा कि गिरफ्तार किए गए लोगों ने नेटवर्क में कई भूमिकाएं निभाईं, जिनमें धन प्राप्त करना और उसका प्रबंधन करना, कानूनी सलाह देना, नए फोन और सिम कार्ड उपलब्ध कराना, लव जिहाद के जरिए पीड़ितों को फंसाना और धर्म परिवर्तन कराना शामिल है.
अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी), कानून एवं व्यवस्था, अमिताभ यश ने आगे जानकारी देते हुए कहा कि जांच से पता चला है कि गिरफ्तार किए गए लोग कट्टरपंथ और लव जिहाद में शामिल एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा थे, जिसे कनाडा और अमेरिका से फंडिंग मिलती थी. उन्होंने कहा कि प्रारंभिक जांच से इस समूह और प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के बीच संभावित संबंधों का पता चलता है.
पुलिस के मुताबिक पीड़िता को कट्टरपंथी बनाए जाने के असर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पीड़िता की प्रोफ़ाइल तस्वीर में एक लड़की एके-47 असॉल्ट राइफल पकड़े हुए दिखाई दे रही है. अब धर्मांतरण के अंतरराज्यीय रैकेट के पर्दाफाश के बाद यूपी पुलिस को आरोपियों को जल्द से जल्द कोर्ट से सजा दिलाने की चुनौती है. तभी पुलिस की कार्रवाई अंजाम पर पहुंचेगी और ऑपरेशन अस्मिता के प्रति विश्वसनीयता बढ़ेगी.