विपक्षी तो ठीक, नजूल भूमि पर नया कानून बनाकर अपने ही विधायकों से क्यों घिर रही योगी सरकार?
विधानसभा में 31 जुलाई को पारित उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक-2024 के नियम-कानूनों का विपक्षी दलों के अलावा सत्तारूढ़ दल के विधायक भी कर रहे विरोध. सड़क पर उतरकर आंदोलन करने की तैयारी में विपक्षी दल

जुलाई की 31 तारीख को जहां उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई झमाझम मॉनसूनी बारिश में शहर के लोग मजे से तर-बतर हो रहे थे, घनघोर बारिश का आलम यह हुआ कि जल्द ही पूरे शहर में जलभराव की स्थिति पैदा हो गई, और इसकी तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल होने लगीं.
लेकिन इधर यूपी विधानसभा में चल रहे मॉनसून सत्र का हाल कुछ दूसरा ही था. जैसे ही संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने सदन में उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (लोकप्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) विधेयक-2024 पेश किया, सदन का तापमान एक दम से बढ़ गया. विधेयक के पेश होते ही विपक्ष जैसे आगबबूला हो गया.
नौबत यह हो गई कि इस विधेयक को कठोर और जनविरोधी करार देते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक सदन के वेल में पहुंच गए, और जमकर नारेबाजी शुरू कर दी. वे विधेयक को वापस लेने की मांग करते हुए धरना देने लगे. दिलचस्प बात ये कि विपक्षी दलों के इस विरोध में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों और सहयोगियों का भी समर्थन मिला.
हर्षवर्धन वाजपेयी, सिद्धार्थनाथ सिंह समेत भाजपा के कुछ विधायकों, सत्ताधारी पार्टी की सहयोगी निषाद पार्टी और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी नजूल की जमीन के नए कानून का विरोध किया. हालांकि सरकार ने विरोध के बावजूद इस नजूल विधेयक को सदन से पारित करा लिया.
दरअसल, आजादी से पहले अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने वाले राजा-रजवाड़े जब युद्ध में परास्त हो जाते थे, तो ब्रिटिश सेना उनसे उनकी जमीनें छीन लेती थी. लेकिन भारत को जब आजादी मिली तो इन जमीनों पर से भी अंग्रेजों का कब्जा छूटा. अब इन जमीनों को राजघरानों को वापस नहीं किया जा सकता था, क्योंकि राजघरानों के पास इन पर अपना स्वामित्व साबित करने के लिए उचित दस्तावेज नहीं थे.
इस तरह, इन जमीनों को नजूल भूमि के रूप में चिह्नित किया गया, और संबंधित राज्य सरकारों को इनका स्वामित्व सौंप दिया गया. विभिन्न राज्यों की सरकारें आम तौर पर इन नजूल भूमि का इस्तेमाल सार्वजनिक उद्देश्यों, जैसे - स्कूल, अस्पताल, ग्राम पंचायत भवन आदि के निर्माण के लिये करती हैं. कई शहरों में नजूल भूमि के रूप में चिह्नित भूमि के बड़े हिस्से को आम तौर पर पट्टे पर हाउसिंग सोसाइटियों के लिये इस्तेमाल किया जाता है.
उत्तर प्रदेश में करीब 25 हजार हेक्टेयर से ज्यादा नजूल की जमीनें हैं, जिन्हें सरकारी अनुदान अधिनियम, 1895 और उसके बाद के सरकारी अनुदान अधिनियम, 1960 के तहत जारी अनुदान के रूप में विभिन्न निजी व्यक्तियों और निजी संस्थाओं को पट्टे पर दिया गया है.
बहरहाल, विधेयक पेश करते हुए संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने सदन को जानकारी दी कि सार्वजनिक महत्व की विभिन्न प्रकार की विकास गतिविधियों के कारण भूमि की निरंतर और तत्काल जरूरत है, जिसे संबंधित हितधारकों को विकास गतिविधियों में उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जा सके. उन्होंने कहा कि विकास गतिविधियों में उपयोग के लिए भूमि उपलब्ध कराने के लिए भूमि अधिग्रहण करना होगा, जिस पर भारी खर्च आएगा और प्रक्रिया में काफी देरी होगी.
उत्तर प्रदेश सरकार ने समय-समय पर जनहित में नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड घोषित करने की नीति बनाई है. खन्ना ने कहा, "पहले की नीतियों के कारण कई तरह के दावे हुए हैं और भूमि बैंकों पर बोझ बन गई हैं. भूमि की जरूरत को देखते हुए अब इन नीतियों को जारी रखना और जनहित को देखते हुए नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड में बदलने की अनुमति देना उत्तर प्रदेश सरकार के हित में नहीं है."
उन्होंने आगे कहा, "अगर राज्य सरकार अपनी नजूल भूमि पर फिर से कब्जा करती है तो यह सुनिश्चित करेगी कि भूमि अधिग्रहण कानूनों के तहत भूमि अधिग्रहण किए बिना सरकार को भूमि उपलब्ध हो."
योगी सरकार के नजूल भूमि संबंधी नए कानून का सर्वाधिक विरोध प्रयागराज में हो रहा है. इस जिले में लगभग 1200 हेक्टेयर नजूल भूमि है, जिन पर पीढ़ियों से लोग घर बनाकर रह रहे हैं. इस उम्मीद पर कि एक दिन फ्री होल्ड का नया कानून उनके आशियाने के सपने को पूरा करेगा, लेकिन अब यहां रहने वाले लाखों लोगों के आशियाने पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. शहरी क्षेत्र की बात करें तो सिविल लाइंस, अशोक नगर, राजापुर, लूकरगंज, शिवकुटी और जार्जटाउन का बहुत बड़ा हिस्सा नजूल की जमीन पर बसा है.
इन इलाकों में नजूल भूमि पर लाखों घर बन चुके हैं. यहां कई पीढ़ियों से लोग आवास बनाकर रह रहे हैं. प्रयागराज में शिवकुटी में रहने वाले अभिज्ञान तिवारी बताते हैं,"योगी सरकार के नए कानून में अब नजूल भूमि की लीज नहीं बढ़ाई जाएगी. जिनकी लीज खत्म हो गई है, उन्हें नई लीज भी नहीं दी जाएगी. विधेयक में ऐसी जमीन को खाली कराकर प्रदेश सरकार के कब्जे में देने का प्रावधान किया गया है. इससे लाखों की संख्या में लोग बेघर हो जाएंगे."
नजूल भूमि पर विधेयक पास होने के बाद भाजपा नेताओं को वोट बैंक की चिंता सताने लगी है. इससे सीधे तौर पर अकेले प्रयागराज के ही 20 हजार परिवार प्रभावित होंगे. यही वजह है कि स्थानीय भाजपा नेताओं ने भी अध्यादेश का विरोध किया है. प्रयागराज के शहरी क्षेत्र में नजूल भूमि ज्यादा है. इसमें भी शहर उत्तरी में नजूल भूमि का सबसे अधिक हिस्सा है. शहर पश्चिमी विधानसभा के अंतर्गत लुकरगंज समेत कई हिस्सों में भी नजूल भूमि है.
यही वजह है कि चुनाव के दौरान नजूल भूमि नीति के सरलीकरण की मांग मुद्दा बनता रहा है. शहर उत्तरी से विधायक रहे कांग्रेस नेता अनुग्रह नारायण सिंह इस मुद्दे को लेकर लगातार संघर्षरत रहे हैं तो भाजपा विधायक भी इसकी मांग उठाते रहे हैं. ऐसे में अब नजूल भूमि अध्यादेश आने से भाजपा नेताओं को अपने वोट बैंक की चिंता सताने लगी है और शहर उत्तरी के विधायक हर्षवर्धन के साथ पश्चिमी के भाजपा विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह ने भी अध्यादेश का विरोध किया है.
सदन में विधेयक पेश होने के बाद इलाहाबाद पश्चिम से भाजपा विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा, "जो लोग पीढ़ियों से लीज की नजूल की भूमि पर रह रहे हैं, लीज पूरा होने पर उनके नवीनीकरण तथा जो लोग फ्री-होल्ड के लिए किश्तें दे रहे हैं, उनके लीज का भी नवीनीकरण किया जाए." इलाहाबाद उत्तर से भाजपा विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी ने प्रयागराज के सागर पेशा इलाके में लीज की भूमि पर रह रहे हजारों परिवारों का हवाला दिया.
उन्होंने कहा, "विधेयक न्यायसंगत नहीं है. हजारों परिवार बेघर हो जाएंगे. संपत्ति का अधिकार स्पष्ट होना चाहिए. गरीबों के पास नजूल की जमीन को फ्रीहोल्ड कराने का अधिकार होना चाहिए." इसी तरह सिद्धार्थनाथ सिंह और हर्षवर्धन वाजपेयी का समर्थन करते हुए रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने कहा, "इस विधेयक के परिणाम गंभीर होंगे. विधेयक किसी के हित में नहीं है, इससे गरीब बेघर हो जाएंगे. फ्रीहोल्ड के लिए जिनकी किश्तें जमा हो गई हैं, ऐसे लोगों को सौदा हो गया है तो जमीन दें. लोग सड़कों पर आ जाएंगे. सरकार इस विधेयक पर फिर से विचार करे. इसे प्रवर समिति को भेजा जाए."
योगी सरकार के इस कानून ने विपक्षी दलों को एक मुद्दा थमा दिया है. कांग्रेस नेता व इलाहाबाद उत्तरी विधानसभा सीट के पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह योगी सरकार के इस विधेयक को पूरी तरह से गरीबों के खिलाफ बता रहे हैं. इस मुद्दे को लेकर लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे पूर्व विधायक का कहना है कि प्रदेश सरकार ने अपने फैसले से हजारों लोगों की मुसीबत बढ़ा दी है.
अनुग्रह नारायण सिंह कहते हैं, "1992 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह सरकार ने नजूल भूमि को फ्री होल्ड करने के लिए कानून बनाया था. आज योगी आदित्यनाथ की सरकार उस कानून को खत्म कर रही है. यह लैंड बैंक बनाया जा रहा है, जिससे हजारों गरीब लोगों के घरों की जमीन लेकर कॉरपोरेट लोगों को दिया जा सके."
प्रयागराज के टैगोर टाउन क्षेत्र में कुछ जमीन फ्री होल्ड हुई, लेकिन कुछ जमीन आज भी नजूल है. इलाहाबाद विकास प्राधिकरण के एक सेवानिवृत्त अधिकारी बताते हैं, "वर्ष 2013 में जब नजूल भूमि को फ्री होल्ड करने की बात आई तो तब जिले में लगभग 2200 लोगों ने पांच करोड़ रुपये प्रशासन के पास जमा किए थे. इन लोगों का पैसा आज भी जमा है. इस प्रत्याशा के साथ पैसा जमा किया गया था कि जब भी नया कानून बनेगा उनकी जमीन फ्री होल्ड होगी. अब इन लोगों की उम्मीद को भी झटका लगेगा."
स्थानीय लोग बताते हैं कि नजूल की जमीन पर काबिज कुछ लोगों ने न्यायालय में याचिका दाखिल कर रखी है तो अन्य नई नीति के इंतजार में थे. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 5 मार्च को योगी कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (लोक प्रयोजनार्थ एवं प्रबंध और उपयोग) अध्यादेश-2024 के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसे राज्यपाल की स्वीकृति से लागू किया था. अब विधेयक के रूप में विधान सभा से पारित होकर इसने कानून की शक्ल अख्तियार कर ली है.
प्रयागराज के जिला प्रशासन के अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि नजूल भूमि अध्यादेश से कई प्रमुख सरकारी कार्यालय तथा बड़े शिक्षण संस्थानों के भी प्रभावित होने की आशंका बन गई है. सिविल लाइंस स्थित नजूल भूमि पर कई विभागों का प्रदेश मुख्यालय है. सिविल लाइंस, जार्जटाउन, मम्फोर्डगंज, टैगोर टाउन समेत कई जगहों पर नजूल भूमि पर कई बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी हैं और संबंधित भूखंड फ्री होल्ड नहीं हुए हैं.
हालांकि विधेयक पेश करने के बाद संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने सदन को आश्वासन दिया कि विधेयक में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को राहत दी गई है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार विपक्ष द्वारा उठाए गए बिंदुओं का संज्ञान लेगी और कमजोर वर्गों को बेदखल नहीं किया जाएगा.
उन्होंने कहा, "संविधान के तहत नजूल की जमीन सरकार की होती है और लोगों को उसका मालिकाना हक नहीं मिल सकता. अगर कानून के तहत प्राधिकरण द्वारा इन्हें आवंटित किया गया है तो किसी भी व्यक्ति को संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा. जिन लोगों ने पैसा जमा किया है, उनका पट्टा नवीनीकृत किया जाएगा. जिन लोगों ने शर्तों का उल्लंघन नहीं किया है और लीज बरकरार रखी है, उन्हें राहत मिलेगी और उनकी लीज का नवीनीकरण किया जाएगा. विधेयक के तहत नियम बनाने का अधिकार राज्य सरकार को है. नियमों में शर्तों को परिभाषित किया जाएगा. शैक्षणिक संस्थानों को नहीं हटाया जाएगा. लोगों के अधिकारों की रक्षा की जाएगी. लोगों को समझना चाहिए कि सरकारी जमीन का इस्तेमाल जनहित और विकास के लिए किया जाता है."
उन्होंने आगे कहा, "अगर लोगों ने नियमों का उल्लंघन नहीं किया है तो वे 30 साल के लिए अपनी लीज का नवीनीकरण करा सकते हैं. अगर लोग लीज का नवीनीकरण नहीं कराना चाहते हैं तो उनके पास अपना पैसा वापस लेने का विकल्प होगा."
योगी सरकार का नजूल की जमीन से जुड़ा ताजा कानून भले ही विकास योजनाओं के लिए जमीन उपलब्ध कराने की मंशा से लाया गया हो, लेकिन इससे लाखों की संख्या में लोगों के बेघर होने का खतरा भी मंडराने लगा है. इस कानून ने विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा थमा दिया है. अगर आने वाले दिनों में विपक्षी दल नजूल की जमीन पर काबिज लोगों के पक्ष में सड़क पर संघर्ष करते दिखाई दें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि विपक्ष को भरोसे में न लेकर इसके लिए जरूरी खाद-पानी तो सरकार ने मुहैया ही करा दिया है.