बधाई हो उत्तर प्रदेश पुलिस! 'इन्फ़्लुएन्सर' हुए हैं

उत्तर प्रदेश पुलिस में हालिया हुई ऐतिहासिक 60,244 सिपाही भर्ती के बाद सोशल मीडिया पर इन भावी पुलिस वालों ने एक तरह से बवाल ही काट रखा है. यूपी पुलिस की सोशल मीडिया पॉलिसी और हेडक्वार्टर से जारी आदेश भी नाकाम साबित हुए!

उत्तर प्रदेश पुलिस में ताजा भरती हुए रंगरूटों में से कुछ के इन्स्टा अकाउंट

गर्मी की दुपहरी का एक दृश्य देखें. एक व्यस्त चौराहे पर सेना की वर्दी में एक ऑन ड्यूटी जवान एक सिविलियन को बेतरह पीट रहा है. मामला इतना भर है कि सिविलियन ऑटो ड्राइवर ने मांगे जाने पर भी सेना के ट्रक को पास नहीं दिया. वहीं पास में खड़ा ट्रैफिक पुलिस का जवान मामले में बीच बचाव के लिए भी आगे नहीं बढ़ता.

अंग्रेज़ी का एक शब्द है ‘आर्म्ड फ़ोर्स’, मतलब सशस्त्र बल. और अंग्रेजों की ही एक नीति है, जिसे ब्रिटिश इंडिया के चौदहवें गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने लागू किया था. सेना नागरिकों से पर्याप्त दूर रहेगी. इसीलिए ईस्ट इंडिया कंपनी के सशस्त्र बल की छावनियां अलग बसाई गईं. जो अब ‘कैंटोनमेंट’ के नाम से भारत के ज़्यादातर शहरों में पाई जाती हैं और आज़ादी के बाद यहां भारतीय सशस्त्र बल तैनात रहता है.

भारत से ठगी और ठगों को जड़ से मिटाने वाले विलियम बेंटिक ने ये नीति क्यों बनाई थी? क्योंकि बेंटिक बल और बुद्धि का घालमेल होने से रोकना चाहता था. बल के साथ आए अनायास अहंकार और उत्तेजना को ‘रेगुलेट’ करना चाहता था. इसीलिए उसने मुगलों से ठीक उलट सेना को शहरों की सरहद पर रखा.

ये सब आपको इसलिए जानना चाहिए ताकि ‘फ़ोर्स’ का कांसेप्ट आपको क्लियर रहे.आर्म्ड फ़ोर्स के लिए तो बनी हुई नीति कारगर थी. लेकिन अंग्रेज एक मामले में फंस गए. हुआ ये कि 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद जब अंग्रेज भारत पर क़ाबिज़ हुए तो उन्होंने मुगलों की ‘क़ाज़ी-कोतवाल’ वाली पुलिसिंग व्यवस्था को बेहद भ्रष्ट पाया. कई सालों तक इससे जूझते हुए अंग्रेजों की तरफ से वॉरेन हेस्टिंग्स ने पहली बार 1774 में पुलिस रिफॉर्म को अंजाम दिया. जो बाद में जाकर 1861 का पुलिस एक्ट भी बना. पुलिस फ़ोर्स तो जनता के बीच रहने के लिए ही बनी थी. इसलिए इनके लिए बाक़ायदा ‘आचरण नियमावली’ बनी.

हेस्टिंग्स इंडियन पुलिसिंग सिस्टम में दो बदलाव लाना चाहता था. पहला, ईमानदारी (सरकार के लिए) और साफ छवि (जनता के लिए). आज़ादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों को खोज-खोज कर निकालने से (जो कि उनका काम था ही) पुलिस ने अंग्रेजों के प्रति अपनी ईमानदारी तो साबित की, लेकिन इसका एक दूरगामी असर ये हुआ कि जनता के बीच पुलिस की इमेज भयानक तौर पर खराब हुई.

आज़ादी के बाद लोकतंत्र में भी इसी ख़राब छवि से भारतीय पुलिसिंग सिस्टम की शुरुआत हुई. पिछले कई दशकों में भारतीय राज्यों की पुलिस के सामने एक बड़ा लक्ष्य रहा है अपनी छवि सुधारने का. थानों में सीसीटीवी कैमरा लगवाने से लेकर ऑनलाइन शिकायत जैसी तमाम कोशिशें भी जनता और पुलिस के बीच स्वस्थ संवाद के लिहाज से नाकाफ़ी ही रहीं.

अब उम्मीद ये बनी कि नई पीढ़ी के ‘जागरूक’ युवा जब तमाम पुलिस फ़ोर्सेज़ का हिस्सा बनेंगे तो कई दशकों से ‘साफ छवि’ के लिए जूझ रहे पुलिस बलों को कुछ समाधान मिलेगा.

लेकिन ये तो उल्टा मामला हो गया

युवाओं और पुलिस बल पर एक-दूसरे का असर मापने के लिए भारत की सबसे बड़ी पुलिस भर्ती मानी जा रही ‘उत्तर प्रदेश पुलिस 60244 सिपाही भर्ती’ से अच्छा सैम्पल और क्या हो सकता है?

‘आरक्षी नागरिक पुलिस सीधी भर्ती 2023’ के तहत एक बार पेपर लीक की समस्या से जूझते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस ने दोबारा परीक्षा करवाकर 60,244 सिपाहियों की भर्ती की. इसे योगी सरकार की एक बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा था.

अपनी इस कामयाबी को धूम धड़ाके के साथ जनता के बीच रजिस्टर करने के लिए 15 जून 2025 को इन सभी चयनित अभ्यर्थियों को लखनऊ में विशाल कार्यक्रम करके ‘जॉइनिंग लेटर’ बांटे गए. इस नई आमद से ज़ाहिराना तौर पर दशकों पुरानी उम्मीद जुड़ी हुई थी कि पुलिस की छवि और साफ होगी.

लेकिन समस्या यहीं से शुरू हुई

क़स्बों गांवों से आए इन साथ हज़ार अभ्यर्थियों में ज़्यादातर ‘इन्स्टाग्रामीण’ थे. इन्स्टाग्राम पर ख़ूब एक्टिव इस नई आमद ने जॉइनिंग लेटर थामते ही सोशल मीडिया पर जो रील बनाने का सिलसिला शुरू किया कि मामला धुंआ-धुंआ हो गया. प्रोबेशन पर जाने से पहले ही इन अभ्यर्थियों ने अपने इन्स्टा प्रोफ़ाइल में नाम के आगे पीछे ‘cop’ लगाकर लाल बत्ती का इमोजी जोड़ दिया. हज़ारों की तादाद में अभ्यर्थियों ने उत्तर प्रदेश पुलिस का लोगो लगा लिया. और तो और, यूपी पुलिस का ध्येय वाक्य ‘सुरक्षा आपकी, संकल्प हमारा’ भी लिख डाला प्रोफाइल में.

इन बेतहाशा रील्स में टैगलाइनों के कुछ नमूने देखिए –

‘सबको आती नहीं मेरी जाती नहीं’

‘हम भी बन जाएंगे सरकारी दामाद’

‘देख रहे हो ‘COP’ का जलवा’

‘वहम निकाल देना कोर्ट कचहरी का तू अपने दिमाग से, हम डरने वाले नहीं हैं किसी के बाप से’

‘क्या बोल रहा था परधान कि लड़का नाकारा है, अब थाने में मिल’

‘जगह और टाइम बता देना टाइगर पहुंच जाएगा औकात दिखाने’

ऐसे बेहिसाब नमूने हैं रील्स के जो इन्स्टाग्राम पर जहां तहां बिखरे हुए हैं. अपनी गाड़ियों पर पुलिस का स्टीकर लगाते हुए रील, घर के आगे पुलिस का बोर्ड लगाते हुए रील, ट्रेनिंग के लिए बक्सों पर नाम और गांव के आगे पुलिस लिखवाते हुए रील...दौड़ते-हांफते-नाचते दनादन पुलिस-पुलिस की रट लगाए बस रील्स ही रील्स सोशल मीडिया पर तैरने लगीं.

रील्स बनाने की ऐसी होड़ लगी कि प्राइवेट असलहे तक लेकर रील्स बनाई गईं. कोई बुलेट पर दोनों हाथ हवा में लहराते हुए रील बना रहा है तो कोई बाज़ार में गाड़ियों के सामने खड़ा होकर ‘ड्यूटी’ ही करने लग रहा है. जॉइनिंग लेटर लेकर टोल नाके पर अपना लेटर दिखाकर बिना टोल दिए बैरियर उठाने को कहते हुए रील्स बनने लगीं. जबकि अभी इनका प्रोबेशन भी शुरू नहीं हुआ था.

ट्रेनिंग पर पहुंचे इन स्वनामधन्य इन्फ़्लुएन्सरों ने ट्रेनिंग सेंटर पर भी रील बनाकर बवाल मचा रखा है. ट्रेनिंग के पहले दिन से हर एक डीटेल इनके अकाउंट पर मौजूद है. परेड से लेकर ड्रिल तक सब कुछ पूरी तबीयत से दिखाया जा रहा है. ट्रेनिंग सेंटर पर जब एक कैडेट की ‘पहरा ड्यूटी’ लगी तो उसने बाक़ायदा अपने एक साथी से लाठी लेकर ड्यूटी करने की रील बनवाई.

क्या ये वही नई आमद है जिससे ये उम्मीद की जा रही है कि इनके होने से पुलिस की छवि में सुधार होगा? जो अभी से ‘देखने-दिखाने’ को उतावला हो वो तब क्या करेगा जब हथियार और अधिकार के साथ सड़क पर उतरेगा?

इस सवाल पर उत्तर प्रदेश पुलिस के पुराने बैच के सिपाहियों से बातचीत हुई, और वो सब एक सुर में ‘चिंता जता रहे हैं’. और ये चिंता सिर्फ बातचीत तक ही सीमित नहीं है, सोशल मीडिया पर ‘रील उपद्रव’ काट रही इस नई जमात के अकाउंट्स पर सीनियर सिपाही खुलकर इन्हें ‘रीलबाज़’ ‘उधमी’ और ‘इन्फ़्लुएन्सर बनने की चाहत रखने वाले’ जैसे तमगे दे रहे हैं. हद तो तब है जब इनमें से किसी इन्स्टा अकाउंट के परिचय में ‘DM for Paid Collaboration’(पैसे देकर परचार करवाने के लिए मैसेज करें) तक लिख दिया गया है. अपना प्रचार तंत्र मज़बूत करने की इन अभ्यर्थियों में इतनी उत्कंठा है कि एक अभ्यर्थी जब ट्रेनिंग के लिए सेंटर पहुंचा तो अपने निजी बक्से पर अपना इन्स्टाग्राम हैंडल पेंट करवा चुका था.

पुराने बैच से सिपाहियों के कुछ कमेंट्स देखें –

‘अबकी बार 60,000 पुलिस नहीं.....इन्फ़्लुएन्सर भर्ती हुए हैं’

‘बस कर भाई अब क्या देखना पड़ रहा है. पूरे डिपार्टमेंट की तरफ से हम माफ़ी मांगते हैं’

‘थोड़ा जोश ट्रेनिंग सेंटर के लिए बचाओ, क्यों सोशल मीडिया पर पुलिस विभाग का मज़ाक बनवा रहे हो’

अब सवाल ये है कि क्या उत्तर प्रदेश पुलिस की कोई ऐसी नियमावली है जिसका ये नई आमद उल्लंघन कर रही है? अगर नहीं, तो क्या समस्या है?

लेकिन सोशल मीडिया का ये ‘रील उत्पात’ एक नहीं कई नियमावलियों के ख़िलाफ़ है. उत्तर प्रदेश पुलिस बाक़ायदा 8 फरवरी 2023 को अपनी रिवाइज़्ड सोशल मीडिया पॉलिसी ला चुकी है. इसके अलावा गृह मंत्रालय भारत सरकार सभी राज्यों के पुलिस विभागों के लिए ‘नेशनल पुलिस मिशन 2020-21’ के लिए सोशल मीडिया पॉलिसी ला चुका है. इसके अलावा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MIEITY) की गाइड लाइन, उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली, 1956 (यथा संशोधित1998, 2002), उत्तर प्रदेश पुलिस वर्दी विनियम, ऑफीशियल सीक्रेट एक्ट समेत तमाम नियमावलियां हैं जिनका ये अभ्यर्थी जाने-अनजाने उल्लंघन कर रहे हैं.

क्या कहती है यूपी पुलिस की सोशल मीडिया पॉलिसी?

उत्तर प्रदेश पुलिस की सोशल मीडिया पॉलिसी का पहला पॉइंट ही ये है कि –

कार्य सरकार के दौरान प्रत्येक पुलिस कार्मिक का यह कर्तव्य है कि, वह प्रदत्त कार्यों को पूर्ण लगन एवं मनोयोग से निष्पादित करें. सरकारी कार्य के दौरान सोशल मीडिया का व्यक्तिगत प्रयोग निश्चित रूप से पुलिसकर्मी के बहुमूल्य समय को नष्ट करता है. अतः राजकीय एवं विभागीय हित में इसे प्रतिबन्धित किया जाता है.

वर्दी में रील बनाने पर इसी सोशल मीडिया पॉलिसी का ये पॉइंट देखें –

कार्य सरकार के दौरान अपने कार्यालय एवं कार्यरथल पर वर्दी में वीडियो / रील्स इत्यादि बनाने अथवा किसी भी कार्मिक द्वारा अपने व्यक्तिगत सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर लाइव टेलीकास्ट को प्रतिबंधित किया जाता है.

ड्यूटी के उपरान्त भी बावर्दी किसी भी प्रकार की ऐसी वीडियो अथवा रील्स इत्यादि जिससे पुलिस की छवि धूमिल होती हो, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किये जाने को प्रतिबंधित किया जाता है.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने सोशल मीडिया पर कंटेंट अपलोड करने को लेकर काफी विस्तृत नीति बनाई है. आदेश भी जारी हो चुके हैं. लेकिन इस आदेश को उन्हीं के विभाग से कोई तवज्जो मिल रही हो, सोशल मीडिया पर बेतरह और बदहवासी में कुछ भी कंटेंट बनाते परोसते ‘बावर्दी कार्मिकों’ को देखकर ऐसा लगता नहीं है.

हैरानी की बात तो ये है

नई सिपाही भर्ती में चुने गए अभ्यर्थियों की रीलबाज़ी विभाग के संज्ञान में ना हो, ऐसा भी नहीं है. पुलिस हेडक्वार्टर से 18 जून 2025 को जारी एक चिट्ठी में स्पष्ट कहा गया है कि “नवनियुक्त आरक्षियों के द्वारा सोशल मीडिया का प्रयोग करते समय विभागीय नीति नियमों एवं अनुशासन का उल्लंघन न किया जाए”

लेकिन इस चिट्ठी ने भी सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सर बनने के रास्ते में रोड़ा बनने का काम नहीं किया. ट्रेनिंग सेंटर से हर दिन की ताज़ा अपडेट, बवाली कैप्शन के साथ बदस्तूर परोसी जा रही है. और इस पर जब हमने पुलिस हेडक्वार्टर के सोशल मीडिया सेल से बात करने की कोशिश की तो जवाब में सन्नाटा और एक दूसरे के पाले में गेंद डालने का पुराना खेल ही दिखा. कोई भी अधिकारी ‘ऑन रिकॉर्ड’ आने को तैयार नहीं. ज़ाहिर सी बात है कि सीएम योगी की इस साल की सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिने जा रहे इन अभ्यर्थियों के बारे में बात करने का खतरा उठाने को कोई क्यों तैयार होगा.

सैकड़ों साल पुरानी और संख्या में दुनिया की सबसे बड़ी पुलिस फ़ोर्स ‘उत्तर प्रदेश पुलिस’ के ये जवान नई परिपाटी चला रहे हैं. जिन्हें बदलाव का ताज़ा झोंका साबित होना था, वो वर्दी की पीठ पर सवार आंधी बनकर उन्हीं लोगों से टकराने को उतावले दिख रहे हैं जिनके बीच से ये निकले हैं.

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