क्रिश्चियनों का कौन सा संगठन ‘उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी विधेयक’ का विरोध कर रहा है और क्यों?
जुलाई की 30 तारीख को उत्तर प्रदेश विधानसभा में धर्मांतरण विरोधी विधेयक (संशोधित) पारित किया गया है

उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून में हाल ही में किए गए संशोधनों पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) ने यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा है. ज्ञापन में कहा गया है कि इससे कानून के दुरुपयोग को बढ़ावा मिलेगा. इस ज्ञापन में फोरम ने पुलिस के कथित पक्षपात के बारे में भी बात की है.
यह संशोधन विधेयक 30 जुलाई को यूपी की विधानसभा से पारित हुआ है. इसी हवाले से यूसीएफ ने यह भी मांग की है कि इसे निरस्त किया जाए. संगठन का तर्क है कि प्रस्तावित नया बिल संविधान से मिली धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है और इसके प्रावधान अस्पष्ट हैं जिससे इनका व्यापक दुरुपयोग हो सकता है.
19 अगस्त को लखनऊ में आयोजित मीडिया सम्मेलन में फोरम के पदाधिकारी ए.सी. माइकल ने कहा कि राज्य का मौजूदा धर्मांतरण विरोधी कानून अपने आप में दुरुपयोग के दायरे में है. उन्होंने कहा, "इसके दुरुपयोग के व्यापक मामले सामने आए हैं. व्यक्तिगत दुश्मनी और दुर्भावनापूर्ण इरादे से लोगों को परेशान किया गया है, जिससे अदालतों पर अनावश्यक बोझ पड़ा है."
फोरम ने कहा कि मौजूदा आपराधिक कानून धोखाधड़ी और/या जबरन धर्मांतरण से संबंधित मामलों को संभालने के लिए पहले से ही मौजूद हैं, "फिर भी यह कानून गैरकानूनी धर्मांतरण को रोकने की आड़ में बिना वजह लोगों को सताता है." धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए भीड़ और पुलिस की ओर से धर्मांतरण विरोधी कानूनों के "हथियारीकरण" को उजागर करने के लिए ज्ञापन में मीडिया रिपोर्टों का हवाला दिया गया है, जिनके मुताबिक आरोपियों के खिलाफ झूठे मामले सालों तक लटके रहते हैं. इससे आरोपी के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होता है.
इससे एक महीने पहले, जुलाई में यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले पर चिंता व्यक्त की थी. दरअसल तब हाई कोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत आरोपित एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था, "अगर धार्मिक समारोहों में अवैध धर्मांतरण जारी रहा, तो देश की बहुसंख्यक आबादी आगे जाकर अल्पसंख्यक बन सकती है."
1 जुलाई के दिए गए इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, ईसाई संगठन ने पूछा, "क्या अदालतों को बहुसंख्यकवादी थिएटरों में 'रूपांतरित' किया जा रहा है?" मंच का कहना था कि ईसाई "भारत के उतने ही नागरिक हैं जितना कोई और है और वे कानून के तहत समान सुरक्षा के हकदार हैं."
यूसीएफ ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में ईसाइयों को निशाना बनाकर की जाने वाली हिंसा का सामना करना पड़ रहा है और हाई कोर्ट स्वैच्छिक व जबरन धर्म परिवर्तन के बीच अंतर करने में विफल रहा है.
यूपी के धर्मांतरण कानून में हालिया संशोधन का बिल राज्य के मूल धर्मांतरण विरोधी कानून के प्रावधानों को और अधिक कठोर बनाता है और आलोचकों के अनुसार, दुरुपयोग के लिए अतिसंवेदनशील बनाता है. इस बिल में अधिकतम सजा को 10 साल से बढ़ाकर आजीवन कारावास कर दिया है, जमानत पाने की प्रक्रिया को और अधिक कठिन बना दिया है और 'विदेशी फंडिंग' का पहलू भी जोड़ दिया है.
कानून में किए गए बदलावों के तहत अब कोई भी व्यक्ति जो धर्मांतरण के इरादे से किसी महिला, नाबालिग या किसी व्यक्ति को धमकाता है, हमला करता है, शादी करता है, शादी का वादा करता है, साजिश रचता है या तस्करी में लिप्त होता है, उसे गंभीर अपराध माना जाएगा. ऐसे अपराधों के लिए 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा होगी.
2017 से, कई बीजेपी शासित राज्यों ने विवाह, छल, जबरदस्ती या प्रलोभन के माध्यम से धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करने के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए या संशोधित किए हैं. इन चार सालों में यूपी के धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में प्रयागराज में सरकारी सहायता प्राप्त सैम हिगिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी और विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति राजेंद्र बिहारी पाल की गिरफ्तारी हुई और सात अन्य पर लोगों के ईसाई धर्म में सामूहिक धर्मांतरण का आरोप लगा था.
इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने पाल को जमानत दे दी थी. लीगल रिसर्च ग्रुप ‘आर्टिकल 14 ‘ ने उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत दर्ज सौ से अधिक एफआईआर रिपोर्टों का विश्लेषण किया और पाया कि उनमें से 63 तीसरे पक्ष की शिकायतों पर आधारित थीं, जिनमें 26 "हिंदुत्व" राजनीतिक विचारधारा से जुड़े संगठनों की थीं.
फोरम ने भी इस रिपोर्ट को संज्ञान में लेते हुए कहा, "शोधकर्ताओं ने इस बात को डॉक्यूमेंट किया है कि किस तरह से धर्मांतरण विरोधी कानूनों का इस्तेमाल धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए किया जाता है. झूठे मामले सालों तक चलते रहते हैं, जो धर्मांतरण के आरोपी ईसाइयों के खिलाफ क्रूरता और हिंसा को उचित ठहराते हैं, उनके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं."
फोरम ने ईसाइयों के खिलाफ हिंसा के बारे में चिंता जताई है और इस मुद्दे से निपटने के लिए राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को कुछ सुझाव भी दिए हैं. उसने धर्मांतरण विरोधी कानून को निरस्त करने और 2024 संशोधन विधेयक को निलंबित करने का सुझाव दिया है. इसके अतिरिक्त, उसने धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा और शिकायतों के निष्पक्ष निपटारे को सुनिश्चित करने के लिए पुलिस और न्यायिक अधिकारियों के लिए बेहतर प्रशिक्षण की वकालत की है.