दो दिन में दो हत्याएं! यूपी पुलिस के लिए लिव-इन रिलेशन के विवाद कैसे बढ़ा रहे चुनौतियां?

यूपी पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच साल में लिव-इन से जुड़े विवादों, चोरी, हिंसा और हत्या के मामलों में 40 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है

man at crime scene
लखनऊ में महिला ने किया लिव-इन पार्टनर का मर्डर (सांकेतिक तस्वीर)

लखनऊ में दो दिन के भीतर दो लिव-इन रिश्ते मौत पर खत्म हुए. दोनों वारदातें अलग थीं, हालात अलग थे, लेकिन नतीजा एक ही बात की ओर इशारा करता है. लिव-इन रिश्तों की दुनिया जितनी खुली, स्वतंत्र और आधुनिक दिखती है, उसकी जटिलताएं उतनी ही गहरी होती जा रही हैं. 

एक तरफ सामाजिक दबाव और असुरक्षा, दूसरी तरफ भरोसे और निजता की लड़ाई. और बीच में उन लोगों की जिंदगी, जो खुद को ऐसे रिश्तों में सुरक्षित समझते हैं लेकिन अक्सर किसी न किसी मोड़ पर हिंसा, अविश्वास या सामाजिक बेरुखी से घिर जाते हैं.

लखनऊ में 7 दिसंबर की रात बीबीडी थाना क्षेत्र के ग्रीन सिटी में जिस तरह इंजीनियर सूर्य प्रताप सिंह की हत्या हुई, उसने इस बहस को तेज कर दिया है. 46 वर्षीय रत्ना ने और अपनी दो बेटियों ने मिलकर अपने 33 वर्षीय लिव-इन पार्टनर का गला काट दिया. आरोप है कि सूर्य बड़ी बेटी पर बुरी नजर रखता था, इसी बात पर विवाद बढ़ा और हत्या हो गई. रत्ना करीब दस घंटे तक लाश के साथ उसी कमरे में बैठी रही और सुबह पुलिस को फोन कर सब कुछ बता दिया.

सूर्य देवरिया का रहने वाला था और एक कंपनी में एग्जिक्यूटिव इंजीनियर के तौर पर दस साल से काम कर रहा था. वह जानकीपुरम में रहता था, लेकिन परिवार के विरोध और रत्ना से बढ़ते रिश्ते उसे उसके घर तक खींच लाए. वे 2012 से एक-दूसरे के करीब आए थे. रत्ना के पति की मौत के बाद वह अकेली थी, दो बेटियों को संभाल रही थी. इस खालीपन में शुरू हुआ संबंध धीरे-धीरे लिव-इन का रूप ले चुका था. पुलिस के मुताबिक पिछले कुछ समय से दोनों के बीच लगातार तनाव चल रहा था. मृतक के पिता नरेंद्र सिंह ने रत्ना और उसकी बेटियों पर साजिशन हत्या का आरोप लगाया है. मामला अभी जांच में है.

घटना के अगले ही दिन लखनऊ के विकासनगर सेक्टर-1 में 24 वर्षीय नेहा मौर्य की मौत ने मामले को और भयावह बना दिया. नेहा एक सैलून में मेकअप आर्टिस्ट थी और पिछले एक साल से अजीत नाम के शख्स के साथ रह रही थी. अजीत शादीशुदा है, दो बच्चे गांव में रहते हैं. उसने नेहा के परिवार को बताया कि दोनों ने मंदिर में शादी कर ली थी, हालांकि परिजनों के पास इसका कोई सबूत नहीं है. 8 दिसंबर की रात नेहा घर में फंदे से लटकी मिली. अजीत उसे ट्रॉमा सेंटर ले गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. परिवार का कहना है कि यह मौत आत्महत्या से ज्यादा संदिग्ध है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार है.

इन दो घटनाओं ने राज्य में लिव-इन रिश्तों को लेकर एक नई बहस खड़ी कर दी है. क्या ये रिश्ते सुरक्षा देते हैं या और अधिक असुरक्षित बना देते हैं? क्या यह आधुनिकता की ओर कदम है या बिना सुरक्षा तंत्र के सामाजिक ढांचे की खामियों का शिकार? क्या साथ रहने की आजादी उन लोगों को हिंसा और दबाव के घेरे में धकेल रही है जिनके पास कानूनी सुरक्षा भी सीमित है? बीते कुछ वर्षों में यूपी में लिव-इन रिलेशनशिप के मामलों में तीव्र बढ़ोतरी हुई है. खासकर बड़े शहरों जैसे लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, कानपुर और वाराणसी में. लेकिन इन रिश्तों का अंजाम हमेशा सुगम नहीं होता. 

वर्ष 2023 में गाजियाबाद में श्रद्धा वॉलकर हत्याकांड जैसी घटना ने लोगों को झकझोर दिया था, जिसमें राहुल नाम के युवक ने अपनी लिव-इन पार्टनर की हत्या कर दी थी. नोएडा में भी बीते साल 19 वर्षीय लड़की का शव कट्टे में मिला था, जिसके साथ उसके लिव-इन पार्टनर का विवाद था. कानपुर में एक महिला ने अपने रिश्ते को खत्म करने की कोशिश की, लेकिन उसके साथी ने उस पर तेजाब फेंक दिया.

बलरामपुर अस्पताल के अधीक्षक और मानसिक रोग विशेषज्ञ देवाशीष शुक्ल के मुताबिक इन मामलों में एक पैटर्न साफ दिखता है, ज्यादातर झगड़े बेवफाई, शक, आर्थिक तनाव, घरेलू हिंसा और पारिवारिक अस्वीकृति को लेकर होते हैं. कई बार एक पक्ष रिश्ते को आगे ले जाना चाहता है, दूसरा नहीं. कई बार शादी का वादा किया जाता है लेकिन निभाया नहीं जाता. और कई बार परिवारों से छिपाकर ऐसे रिश्ते चलते हैं, जिससे किसी भी विवाद के समय कोई सपोर्ट सिस्टम मौजूद नहीं होता.

कुछ समय पहले यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने एक कार्यक्रम में लिव-इन रिश्तों पर चिंता जताई थी. बलिया के जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के 7वें दीक्षांत समारोह में 8 अक्टूबर को राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति और लिव इन रिलेशनशिप जैसी प्रवृत्ति पर चिंता जताई थी. उन्होंने कहा था कि शादी जैसी सामाजिक संस्था को दरकिनार कर लिव-इन को बढ़ावा देना युवाओं के भविष्य को असुरक्षित बना रहा है. उनका बयान विवादों में आया, लेकिन लखनऊ की दो घटनाएं उसी चिंता की पुष्टि करती दिखती हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री राजेश्वर कुमार बताते हैं कि लिव-इन खुद में समस्या नहीं है, समस्या यह है कि भारतीय समाज के पारंपरिक ढांचे में इसकी कोई ठोस सुरक्षा व्यवस्था नहीं है. राजेश्वर कुमार कहते हैं, “पश्चिम में लिव-इन के लिए कानूनी ढांचा बहुत मजबूत है. लेकिन भारत में ज्यादातर लोग ऐसे रिश्ते बिना किसी कानूनी सहमति, दस्तावेज या सुरक्षा के निभाते हैं. इस वजह से भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक खतरे अधिक बढ़ जाते हैं.” 

महिला मुद्दों पर कानूनी लड़ाई लड़ने वाली रमा श्रीवास्तव कहती हैं कि लिव-इन से जुड़े विवादों में अक्सर महिलाएं अधिक असुरक्षित होती हैं. वे कहती हैं, “लिव-इन रिश्तों का सबसे बड़ा जोखिम यह है कि इनमें जवाबदेही तय नहीं होती. पुरुष ज्यादा नियंत्रण करने की स्थिति में रहता है, और जब वह किसी दूसरे रिश्ते में होता है या परिवार का दबाव बढ़ता है, तो हिंसा की आशंका बढ़ जाती है.” एक अन्य समाज विज्ञानी डॉ. नीलिमा सिंह का मानना है कि यूपी जैसे राज्यों में लिव-इन रिश्तों की असफलता के पीछे सामाजिक अस्वीकृति का बड़ा हाथ है. वे कहती हैं, “जब दो लोग रिश्ते को समाज से छिपाकर जीते हैं, तो किसी विवाद की स्थिति में उनके पास मदद लेने के लिए कोई नहीं होता. तनाव बढ़ता है और कई बार हिंसक रूप ले लेता है.”

भारत में लिव-इन रिलेशनशिप गैरकानूनी नहीं है, लेकिन इसके लिए एक कंप्रीहेंसिव कानून नहीं है. घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिलाओं को कुछ सुरक्षा मिल जाती है अगर वे यह साबित कर दें कि संबंध स्थायी था. लेकिन ज्यादातर कपल ऐसे दस्तावेज नहीं रखते, जिससे उनके अधिकार कमजोर पड़ते हैं. यूपी पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि बीते पांच साल में लिव-इन से जुड़े विवादों, चोरी, हिंसा और हत्या के मामलों में 40 फीसदी वृद्धि हुई है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं, “लिव-इन में रहने वाले कई कपल अपने परिवारों से कट जाते हैं, जिससे विवाद गहराने पर कोई मध्यस्थ नहीं होता. ऐसे में बहुत से मामलों का आखिरी नतीजा हिंसा में दिखता है.”

सूर्य प्रताप और नेहा मौर्य की मौतें भले ही अलग पृष्ठभूमि की हों, लेकिन दोनों में एक समानता साफ है, ये दोनों रिश्ते निजी दायरे में थे, परिवारों से छिपे हुए थे, और इनमें भरोसे की कमी लगातार तनाव पैदा कर रही थी. सूर्य के मामले में रत्ना और उसकी बेटियों का आरोप, कि सूर्य बड़ी बेटी पर बुरी नजर रखता था, एक घरेलू तनाव को हिंसक नतीजे तक ले जाता है. दूसरी तरफ नेहा का मामला उस जोखिम की तरफ इशारा करता है, जहां एक शादीशुदा पुरुष दूसरे रिश्ते में होता है और उसका सामाजिक व भावनात्मक आधार कमजोर होता है. दोनों मामलों में पुलिस को घटना के बाद ही सूचना मिली, यानी कोई ऐसा तंत्र मौजूद नहीं था जो पहले ही विवाद को पहचान सके या किसी को मदद के लिए आगे आने का मौका दे सके.

लखनऊ, नोएडा, गाजियाबाद, कानपुर और प्रयागराज जैसी शहरी जगहों में किराए पर कमरे लेकर या पीजी में रहने वाले युवा धीरे-धीरे लिव-इन संबंधों की ओर बढ़ रहे हैं. रियल एस्टेट सेक्टर के लोगों के मुताबिक, बड़े शहरों में ऐसे जोड़ों के लिए किराए पर घर देना सामान्य हो चुका है. लेकिन ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में इसे अभी भी सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है. यहीं से समस्याओं की शुरुआत होती है. जो कपल परिवारों की स्वीकृति के बिना साथ रहते हैं, वे हमेशा तनाव में रहते हैं. समाज की तरफ से किसी भी तरह की मदद उन्हें नहीं मिलती. यही वजह है कि छोटे झगड़े बड़े विवादों में बदल जाते हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में लिव-इन का चलन बढ़ रहा है, लेकिन इसकी सुरक्षा व्यवस्था अभी बेहद कमजोर है. कुछ सुझाव जो समाजशास्त्री और कानूनी विशेषज्ञ लगातार सरकारों को देते रहे हैं, लिव-इन पार्टनरशिप को रजिस्टर करने की प्रणाली बने. घरेलू हिंसा कानून के तहत पुरुष और महिला दोनों को बराबर सुरक्षा मिले. ऐसे रिश्तों में रहने वाले लोगों को मनोवैज्ञानिक और कानूनी काउंसिलिंग उपलब्ध कराई जाए. पुलिस को लिव-इन विवादों के लिए संवेदनशील प्रशिक्षण दिया जाए. और किराए पर घर लेने के समय कानूनी शर्तें तय हों ताकि किसी विवाद के बाद जांच आसान हो सके.

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