राजस्थान : जहरीले कफ सिरप के मामले में स्वास्थ्य विभाग पर क्यों उठ रहे सवाल?

राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग पर सबसे बड़ा आरोप यह लग रहा है कि वह जहरीला कफ सिरप बनाने वाली कंपनी को बचाने की कोशिश कर रही है

Cough Syrup case action
यही कफ सिरप पीने से राजस्थान में बच्चों की मौत हुई है

राजस्थान में बीते एक-डेढ़ हफ्ते के दौरान खांसी का सिरप पीने से तीन बच्चों की मौत और एक डॉक्टर समेत 10 लोगों बीमार होने के खबरों के बीच सबसे अजीब रवैया प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग की तरफ से देखने को मिल रहा है. राजस्थान में ऐसा लग रहा है जैसे स्वास्थ्य महकमा अब भी दागी कंपनी को बचाने में जुटा है. 

भरतपुर में 'डेक्स्ट्रोमेथॉरफन एचबीआर सिरप आईपी 13.5 एमजी 5 एमएल' को पीने से जिस बच्चे की मौत हुई, स्वास्थ्य विभाग ने उसकी मां को ही मौत का जिम्मेदार ठहरा दिया. विभाग की ओर से भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार सीकर के खोरी गांव के नित्यांश को बुखार और जुकाम होने पर सीकर जिले के चिराना स्थित सामुदायिक केंद्र में दिखाया गया था. पर्ची में 'डेक्स्ट्रोमेथॉरफन एचबीआर सिरप आईपी 13.5 एमजी 5 एमएल' सिरप नहीं लिखी गई थी. 

रिपोर्ट आगे कहती है कि बच्चे की मां खूशबू शर्मा ने 28 सितंबर की रात बच्चे को खांसी आने पर घर में रखी डेक्स्ट्रोमेथॉरफन सिरप पिलाई थी जिसके बाद एक दिन तक बच्चा पूरी तरह ठीक रहा मगर अगले दिन सुबह 5 बजे बेहोश मिला. 

यह स्थिति तब है जबकि राजस्थान के स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त बांटी जाने वाले इस दवा को पीने से अब तक 3 बच्चों की मौत हो चुकी है. भरतपुर में एक डॉक्टर ने यह दावा करते हुए खुद दवा पी ली कि इसमें कोई खराबी नहीं है. करीब 8 घंटे बाद वे डॉक्टर अपनी कार में बेहोश मिले. डॉक्टर ने एक एंबुलेंस ड्राइवर को भी यह दवा पिलाई थी और उसे भी बाद में अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. जयपुर में इस दवा को पीने से दो साल की एक बच्ची की मौत हो गई. सीकर में भी 5 साल के एक बच्चे की मौत का कारण इसी दवा को बताया जा रहा है. 

पूरे प्रदेश से जब बच्चों के बीमार होने की शिकायतें आनी लगीं तो सरकार ने डेक्स्ट्रोमेथॉरफन  हाइड्रोब्रोमाइड सिरप पर पाबंदी लगाकर तीन सदस्यीय कमेटी बना दी. 

केयसंस फार्मा ने यह दवा तैयार की थी. डेक्स्ट्रोमेथॉरफन सिरप को लेकर इस कंपनी के साथ ही राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेट (RMSCL) भी सवालों के घेरे में है. दरअसल इसने कुछ माह पहले ही इस सिरप की क्वालिटी जांच की और जांच रिपोर्ट में इसे पूरी तरह सुरक्षित बताया. अब RMSCL पर इस कंपनी को बचाने के आरोप लग रहे हैं क्योंकि तीन बच्चों की मौत के बाद भी कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है. 

RMSCL ने 14 फरवरी 2025 को इसी कंपनी की एक अन्य खांसी की सिरप एक्सपेक्टोरांट 50 एमएल (692) को अमानक श्रेणी का पाए जाने पर एक वर्ष के लिए प्रतिबंधित किया था. इसी कंपनी की एम्ब्रोक्सोल हाइड्रोक्लोराइड, टरब्यूटालाइन सल्फेट, गुआइफेनेसिन और मेन्थॉल सिरप (कफ सिरप कफ निस्सारक) 50 मिली कोड 692 पहले से प्रतिबंधित हैं. 

फरवरी 2023 में इस कंपनी की एक दवा में मेंथॉल की मात्रा कम पाए जाने के कारण इसे सरकारी टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने से एक साल के लिए प्रतिबंधित किया गया था मगर विडंबना देखिए कि कुछ दिन बाद ही इस कंपनी को फिर से बहाल कर दिया गया. पिछले दो साल में इस कंपनी के 40 सैंपल जांच में फेल हो चुके हैं. चिकित्सा मामलों के जानकार डॉ. नरेंद्र गुप्ता आरोप लगाते हैं, ''सरकार और स्वास्थ्य विभाग सरकारी दवा कंपनी राजस्थान ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (RDPL) को बंद करके कमीशन के लालच में निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने में जुटे हैं. जांच में बार-बार सैंपल फेल होने के बाद भी इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं किया जाना सरकारी मिलीभगत को दिखाता है.’’ 

काबिलेगौर है कि राजस्थान में दवा बनाने वाली एक मात्र सरकारी कंपनी RDPL पिछले 9 साल से बंद पड़ी है. इसी का फायदा उठाकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी मुफ्त दवा योजना में निजी कंपनियों की दवाइयों की खरीद को धड़ाधड़ छूट दे रहे हैं. 45 साल पहले गुणवत्तापूर्ण दवाइयां बनाने के लिए इस कंपनी को शुरू किया गया था. 

2021 में यही खांसी की सिरप पीने से दिल्ली में भी तीन बच्चों की मौत हो चुकी है. दिल्ली में 29 जून से 21 नवंबर 2021 के बीच डेक्सट्रोमेथॉर्फन सिरप की विषाक्तता के 16 मामले सामने आए थे. RMSCL की कार्यप्रणाली पर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि पिछले कुछ अरसे में प्रदेश में कई कंपनियों की दवाइयों के सैंपल फेल हो चुके हैं मगर इनमें से एक भी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई. दवा कंपनियों को बचाने के लिए विधानसभा में कानून तक बना दिया जिसमें यह प्रावधान किया गया कि किसी कंपनी की दवा में अगर कोई भी एक सॉल्ट शून्य है तो उस दवा को नकली नहीं माना जा सकता. 

राजस्थान के औषधि नियंत्रक राजाराम शर्मा ने यह कहते हुए इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ लिया कि कंपनी प्रतिबंधित होगी तो बाजार में दवा कहां से आएगी. ऐसे बयानों के बाद फार्मा कंपनियों के लिए लापरवाही आसान हो जाती है और आखिर में इसकी कीमत प्रदेश की जनता को जान गंवाकर या सेहत का नुकसान झेलकर चुकानी पड़ती है.  

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