कंधे पर मरीज, टॉर्च जलाकर ऑपरेशन... झारखंड में हेल्थ सिस्टम की ये तस्वीरें बदलती क्यों नहीं?

आए दिन खाट पर मरीजों की तस्वीरें या ऐसी दूसरी घटनाओं की हकीकत तब समझ आती है जब झारखंड में आम लोगों के स्वास्थ्य और हेल्थ सिस्टम से जुड़े आंकड़े इनके साथ जुड़ते हैं

 बीते 14 दिसंबर को गुमला जिले की सुकरी देवी को अस्पताल पहुंचाते ग्रामीण
बीते 14 दिसंबर को गुमला जिले की सुकरी देवी को अस्पताल पहुंचाते ग्रामीण

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में बीते 120 सालों से लौह अयस्क का खनन हो रहा है. अरबों डॉलर के लौह अयस्क निकाले जा चुके हैं. इनमें हेमेटाइट को उसके उच्च ग्रेड के कारण श्रेष्ठ माना जाता है. इंडियन मिनरल्स ईयरबुक 2021 के मुताबिक झारखंड में हेमेटाइट श्रेणी के लौह अयस्क का कुल 4,71 करोड़ टन यानी देशभर का 20 फीसदी भंडार यानी करोड़ों-अरबों डॉलर अब भी मौजूद हैं. 

इसी पश्चिमी सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड के बड़ा बालजोड़ी गांव के डिंबा चतोंबा का चार महीने का बेटा बीमार पड़ा. वे उसे बीते 19 दिसंबर को बेहतर इलाज के लिए लिए सदर अस्पताल ले गए, लेकिन बेटे की जान नहीं बच पाई. इसके आगे की विडंबना देखिए कि शव घर ले जाने के लिए उन्हें न तो शव वाहन मिले, न ही एंबुलेंस. डिंबा के पास कुल 100 रुपए थे. जिसमें से उन्होंने 20 रुपए में प्लास्टिक का झोला खरीदा. बाकि पैसे सदर अस्पताल से घर जाने के लिए बस के किराए के लिए रखा. उस प्लास्टिक के झोले में बेटे का शव रखा और 63 किलोमीटर दूर नोवामुंडी पहुंचे. इसके बाद वहां से शव को हाथ में लिए वे 9 किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव बड़ा बालजोड़ी पहुंचे. 

राज्य के गुमला जिले में बीते 40 सालों से बॉक्साइट का खनन हो रहा है. जिले में सालाना 50-60 करोड़ रुपए रेवेन्यू कलेक्शन केवल इसी खनन से आता है. इसी जिले के झलकापाट गांव की सुकरी देवी गर्भवती थीं. बीते 14 दिसंबर को जब उन्हें प्रसव पीड़ा हुई तो गांव की महिलाएं एवं पुरुष उन्हें खाट पर लादकर पास के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए. स्थिति गंभीर होने की वजह से उन्हें सदर अस्पताल रेफर किया गया. लेकिन अस्पताल पहुंचते-पहुंचते उनकी भी मौत हो गई.

झारखंड उर्जा संचरण निगम ने दावा किया है कि मार्च 2026 से झारखंड के पास जरूरत से 1000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन की क्षमता होगी. क्षमता और उसके इस्तेमाल की स्थिति को ऐसे समझिये, बीते 13 दिसंबर को हजारीबाग जिले के केरेडारी प्रखंड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें डॉक्टर को टॉर्च की रोशनी में दो महिलाओं का नसबंदी ऑपरेशन करते हुए देखा गया. वह भी तब जब महिला का प्रेग्नेंसी पॉजिटिव पाई गई थी. जबकि ऐसी स्थिति में ऑपरेशन करने की सख्त मनाही है. अस्पतालों की सुविधा बढ़ाने के बजाय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसका वीडियो शूट करने वाली स्वास्थ्य सहिया (स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ता) को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. झारखंड में शायद ही कोई हफ्ता हो जब खाट पर मरीजों, गर्भवती महिलाओँ के ढ़ोने की खबर न आती हो. 

बद से बदतर हुई स्वास्थ्य व्यवस्था की पूरी कहानी 

झारखंड में किसी जिले का एक सामान्य आदमी जो बीमार पड़ता है, उसके स्वास्थ्य तक पहुंच की यात्रा को ऐसे समझिए. किसी भी कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में सिवाय बीपी टेस्ट के और कोई भी जांच उपलब्ध नहीं है. यह मरीज अब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र यानी पीएचसी की तरफ बढ़ता है. अपने गांव से कभी 40 तो कभी 70 किलोमीटर दूर तक भी. राज्य के लगभग सभी पीएचसी में कंप्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी), लीवर फंक्शन टेस्ट (एलएफटी), रीनल फंक्शन टेस्ट (आरएफटी), थायरॉयड जांच के टेस्ट नहीं होते. 

अगर किसी मरीज को पेट संबंधी बीमारी है, जिसके लिए अल्ट्रासाउंड सबसे बेसिक जांच है, वह सदर अस्पतालों के अलावा कहीं उपलब्ध नहीं है. उसमें भी कभी मशीन खराब तो कभी मरीजों की संख्या अधिक होने से केवल इस जांच के लिए गांव से सदर अस्पताल तक 100 किमी से भी अधिक की यात्रा और फिर दो से तीन दिन तक अस्पताल के आसपास रुकने की व्यवस्था करनी होती है. 

पिछले साल की एक तस्वीर जब लातेहार जिले के गांव से एक गर्भवती महिला को लादकर 13 किलोमीटर दूर समुदायिक केंद्र पहुंचाया गया

अधिकतर घरों में बीपी-शुगर के मरीज हैं. एक्सीडेंट के केस तो करीब-करीब रोजाना की बात हैं. इन सब के लिए सीटी स्कैन बेसिक जांच है. कार्डियोलॉजी पेशेंट के लिए ईसीजी जांच बेहद अहम है. जिला अस्पताल के अलावा यह कहीं उपलब्ध नहीं है. सरकारी अस्पतालों में अगर डॉक्टर ने पांच दवाई लिखी हैं, तो बमुश्किल दो ही उपबल्ध हो पाती हैं. पेन किलर, कफ कोल्ड, एंटी बायोटिक के अलावा कोई दवाई नहीं मिलती. कई बार वह भी नहीं. 

राज्य के 100 में से 67 बच्चे एनीमिया के शिकार हैं. रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया द्वारा सात मई 2025 को जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में मातृ मृत्यु दर पहले 56 थी जो घटकर अब 51 हो गई है. यानी एक लाख शिशुओं के जन्म पर इतनी महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान या प्रसव के 45 दिनों के भीतर हो जाती है. राज्य में शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 में 38 है. जबकि अनुसूचित जाति (SC) समुदाय में 44.1 और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय में 44.4 है. पांच वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर (प्रति 1,000) में राज्यभर में 45.4 है. जिसमें SC में 57.2 तो ST में 55.8 है. 

राज्य के पांच साल से कम उम्र के 67 फीसदी बच्चे एनीमिया के शिकार हैं. वहीं 15–49 वर्ष आयु वर्ग की लगभग 65 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है. जबकि इसी आयु वर्ग के लगभग 30 फीसदी पुरुष एनीमिक हैं. लगभग 57 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. 

झारखंड के पांच साल से कम उम्र के 67 फीसदी बच्चे एनीमिया के शिकार हैं (फोटो : आनंद दत्त)

बीते साल 2 अगस्त 2024 को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की ओर से लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया गया था कि झारखंड में 8,544 एलोपैथिक डॉक्टर (सरकारी और गैर सरकारी) हैं. जबकि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य की आबादी करीब 3 करोड़ 30 लाख है. हालांकि इस वक्त अनुमानित आबादी 4 करोड़ से अधिक बताई जा रही है. इस लिहाज से देखें तो प्रति 4,682 व्यक्ति पर 1 डॉक्टर है. जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित प्रति 1000 व्यक्ति पर 1 डॉक्टर के मुकाबले काफी कम है. 

वहीं राज्य में कुल 2,280 मेडिकल ऑफिसर के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 1,613 पद ही वर्तमान में भरे हुए हैं, 667 पद अब भी खाली हैं. जामताड़ा में 45.16 फीसदी, धनबाद में 42.95 और कोडरमा में 42.86 फीसदी पद खाली हैं. झारखंड में कुल 1,325 ग्रेड ‘ए’ नर्स पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 810 पद वर्तमान में भरे हुए हैं, 515 पद अब भी खाली हैं. जिसमें पूर्वी सिंहभूम में 82.83 फीसदी, रामगढ़ में 71.88 और पलामू में 68.24 फीसदी पद खाली हैं. डॉक्टर और नर्स का अनुपात 1:1.5 है और प्रति 10,000 आबादी पर केवल 3 सार्वजनिक स्वास्थ्यकर्मी हैं. जबकि अनुशंसित संख्या 6 है. इससे मरीजों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. 

झारखंड इकॉनोमिक सर्वे 2024-25 के मुताबिक राज्य के सरकारी अस्पतालों में इन पेशेंट, यानी जिन्होंने एडमिट होकर इलाज कराया उनकी संख्या जहां साल 2020-21 में 5,77,456 थी, वहीं साल 2023-24 में यह बढ़कर 19,87,099 हो गई. वहीं आउट पेशेंट यानी जो इलाज कराने आए और डॉक्टर से दिखाकर चले गए, उनकी संख्या साल 2020-21 में 1,00,33,361 थी, जो साल 2023-24 (सितंबर तक) में बढ़कर 2,04,82,460 हो गई. सरकार के मुताबिक ऐसा आयुष्मान कार्ड, बढ़ती स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से है.

झारखंड में 15–49 वर्ष आयु वर्ग की लगभग 65 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है (फोटो : आनंद दत्त)

हाल ही में बगाइचा सामाजिक केंद्र की ओर से एक हेल्थ रिपोर्ट जारी की गई है. इसमें बताया गया है कि इन मरीजों के इलाज के लिए झारखंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन डॉसियर 2021 के अनुसार, उप-स्वास्थ्य केंद्र 3,848 हैं, जबकि आवश्यकता 6,848 की है. पीएचसी 291 हैं, जबकि आवश्यकता 1,091 की है. सीएचसी 17 हैं, जबकि आवश्यकता 272 की है. 

वहीं सरकारी और निजी दोनों को मिलाकर कुल 4,835 स्वास्थ्य संस्थान हैं. इसके अतिरिक्त, झारखंड में सरकारी अस्पतालों में कुल 13,909 बिस्तर उपलब्ध हैं. रांची में सबसे अधिक 2,211 बिस्तर हैं, इसके बाद धनबाद (1,244) और बोकारो (876) हैं. पाकुड़ में सबसे कम मात्र 169 बिस्तर उपलब्ध हैं. 

इकॉनोमिक सर्वे 2024-25 के रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022-23 में झारखंड में जननी सुरक्षा योजना के तहत संस्थागत प्रसव जहां 7,54,807 हुए. वहीं 2023-24 का आंकड़ा 5,66,993 पर ही रह गया. वित्तीय वर्ष 2024-25 (सितंबर 2024 तक) के दौरान 2,63,244 संस्थागत प्रसव दर्ज किए गए हैं. पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 40 फीसदी बच्चे बौनेपन से ग्रस्त हैं, 22.4 फीसदी दुबलेपन से पीड़ित हैं और 39.4 फीसदी कम वजन वाले हैं. साथ ही, 6 से 59 माह आयु वर्ग के लगभग 68 फीसदी बच्चे एनीमिया से ग्रस्त हैं. 

राज्य में कुल बीमारियों में सबसे अधिक मलेरिया के 37 फीसदी मरीज पाए जाते हैं. मलेरिया के मामलों की संख्या 2020-21 में 24,657 से बढ़कर 2024-25 (सितंबर 2024 तक) में 26,401 हो गई है. इसके बाद टाइफाइड 10 फीसदी है. वर्ष 2022-23 में झारखंड में 7,036 टाइफाइड के मामले दर्ज किए गए. अगले वर्ष 2023-24 में यह संख्या बढ़कर 15,744 हो गई. हालांकि, 2024-25 (सितंबर 2024 तक) में मामलों की संख्या घटकर 7,343 रह गई. 

बीते 15 नवंबर को झारखंड ने राज्य स्थापना का 25वां स्थापना दिवस मनाया है. आखिर क्या वजह है कि राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति बद से बदतर ही रही है. राज्य बनने के बाद पेश हुए पहले बजट में स्वास्थ्य मद में 169 करोड़ रुपए दिए गए थे. वहीं बीते बजट यानी वित्त वर्ष 2024-25 के लिए पारित आम बजट के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग का बजट लगभग 7,470 करोड़ रुपए हो गए हैं. यानी यह 44 गुणा बढ़ चुका है. लेकिन झोले में शव, टॉर्च में ऑपरेशन और खाट पर मरीज की तस्वीर बदस्तूर जारी है. 

बिगड़े हालात की गंभीरता के अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बजट लगभग 7,470 करोड़ रुपए है लेकिन इसमें से अब तक मात्र 68 फीसदी राशि ही खर्च हुई है. यही नहीं, पिछले वित्त वर्ष यानी 2024-25 में तो स्वास्थ्य के लिए कुल आवंटित बजट 7,481 करोड़ में से 7,010 करोड़ रुपए खर्च हो गए. लेकिन स्थिति सबके सामने है. इसमें भी शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य प्रणाली सुदृढ़ीकरण पर किया गया खर्च अन्य खर्चों की तुलना में सबसे अधिक रहा. थैली, खाट, टॉर्च के सहारे चल रहे ग्रामीण इलाके अब भी सरकार की प्राथमिकता में नहीं दिखते.

इन मुद्दों पर शायद ही झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी का कोई बयान जारी होता है. फिलहाल उनका बस यही एक बयान सबसे ज्यादा चर्चा में है कि पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस मुस्लिम युवती का सबसे सामने हिजाब खींच दिया था, उसे अंसारी 3 लाख रुपए की सैलरी पर झारखंड में नौकरी देना चाहते हैं. इसके पहले उन्होंने राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के निदेशक को पद के हटाने धमकी दी तो यह मामला मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा. यानी स्वास्थ्य मंत्री की प्राथमिकता जरूरी मुद्दों को सुलझाने की नहीं दिखतीं.

ईएनटी विशेषज्ञ और बीजेपी स्वास्थ्य प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ अभिषेक रामदीन कहते हैं, “सरकार बड़े दावे (6 नए मेडिकल कॉलेज, आयुष्मान भारत) कर रही है, लेकिन कैग रिपोर्ट्स में स्टाफ कमी और रिम्स जैसे प्रमुख अस्पतालों की लाइलाज स्थिति उजागर हो रही है, जो भ्रष्टाचार और टेंडर घोटालों का संकेत देती है. ग्रामीण सीएचसी-पीएचसी में स्टाफ की 86 फीसदी तक कमी है. आदिवासी क्षेत्रों का तो और बुरा हाल है. जबकि विभागीय मंत्री सोशल मीडिया रील्स में व्यस्त रहते हैं. नीति आयोग में चौथा स्थान वित्तीय दिखावा मात्र है. हकीकत ये है कि वास्तविक सुधार के अभाव में जनता का विश्वास टूट रहा है.”

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