रिजर्वेशन पर 50 फीसदी की लिमिट; फिर तेलंगाना कैसे देगा 62 फीसदी रिजर्वेशन?
तेलंगाना सरकार ने पिछड़ों के आरक्षण को बढ़ाने का फैसला किया है. ऐसा हुआ तो इससे राज्य में आरक्षण का दायरा बढ़कर 62% हो जाएगा

मार्च की 17 तारीख को तेलंगाना विधानसभा में दो प्रमुख विधेयक पारित हुए. इन दोनों विधेयकों के जरिए सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और शहरी एवं ग्रामीण स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़े वर्गों के लिए रिजर्वेशन की सीमा को बढ़ा दिया गया.
विधानसभा में मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने राज्य में OBC आरक्षण सीमा को 23% से बढ़ाकर 42% करने का ऐलान किया है. अगर यह लागू हो जाता है तो राज्य में आरक्षण की सीमा 62% हो जाएगी. लेकिन, यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन हो जाएगा.
1992 में सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की संविधान पीठ ने इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार केस में ऐतिहासिक फैसला देकर 50% सीमा तय की थी. इसी की वजह से आरक्षण की सीमा बढ़ाने को लेकर बिहार, महाराष्ट्र समेत आधे दर्जन से ज्यादा राज्यों के फैसले पलटे जा चुके हैं. ऐसे में क्या तेलंगाना सरकार 62% आरक्षण दे पाएगी?
OBC आरक्षण बढ़ाने पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने क्या कहा है?
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा- कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वादा किया था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो OBC आरक्षण को बढ़ाकर 42 प्रतिशत किया जाएगा. सत्ता संभालने के तुरंत बाद, हमारी सरकार ने जाति जनगणना शुरू की.
इससे पहले की कांग्रेस सरकार ने OBC आरक्षण को 37 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए राज्यपाल को प्रस्ताव भेजा था. यह सरकार पहले के प्रस्ताव को वापस ले रही है, अब 42 प्रतिशत आरक्षण का नया प्रस्ताव भेज रही है.
हम OBC आरक्षण को 42 प्रतिशत बढ़ाने के लिए आवश्यक कानूनी सहायता भी लेंगे. हम तब तक शांत नहीं बैठेंगे जब तक पिछड़े वर्गों के लिए 42 प्रतिशत आरक्षण हासिल नहीं हो जाता है.
इस तरह तेलंगाना सरकार ने जो दो नए विधेयक पास किए हैं, वो कुछ इस तरह का है-
1. तेलंगाना पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (शैक्षणिक संस्थानों में सीटों का आरक्षण और राज्य के अधीन सेवाओं में पदों पर नियुक्तियों का आरक्षण) विधेयक 2025
2. ‘तेलंगाना पिछड़ा वर्ग (ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में सीटों का आरक्षण) विधेयक 2025
क्या सुप्रीम कोर्ट की 50% लिमिट के बावजूद 62% रिजर्वेशन लागू हो सकता है?
अब तेलंगाना ने 62% रिजर्वेशन का प्रस्ताव पारित कर दिया है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की 50% लिमिट होने के बावजूद इसे लागू कराने के 3 तरीके हो सकते हैं…
पहला तरीका: तेलंगाना सरकार को साबित करना होगा कि ये विशेष परिस्थिति है
1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस का फैसला देते समय कहा था कि रिजर्वेशन की लिमिट 50% होनी चाहिए, लेकिन विशेष परिस्थितियों में इस लिमिट को तोड़ा भी जा सकता है.
मतलब साफ है कि अगर तेलंगाना सरकार कोर्ट को ये बताकर संतुष्ट कर दे कि सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक एवं राजनैतिक रूप से पिछड़ी कुछ विशेष जातियों या वर्ग को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए रिजर्वेशन 50% की सीमा से ज्यादा होना चाहिए. इससे संविधान के मूल ढांचे को नुकसान भी नहीं होगा.
कोर्ट इन तर्कों से संतुष्ट हो जाता है तो रिजर्वेशन 50% से ज्यादा हो सकता है. यही वजह है कि तेलंगाना सरकार ने अपना पक्ष मजबूत करने के लिए जातिगत जनगणना करवाई है. हालांकि, ये कोर्ट पर डिपेंड करेगा कि वो इसे कितना सही मानता है.
दूसरा तरीका: संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करा ले, जिससे कोर्ट में समीक्षा न हो सके
तेलंगाना सरकार के पास दूसरा ऑप्शन ये है कि आरक्षण की सीमा बढ़ाने के प्रस्ताव को संविधान की 9वीं अनुसूची के तहत रखा जाए. इसके लिए राज्य सरकार अपने बिल को केंद्र के पास भेजेगी. अगर केंद्र इसे संविधान की 9वीं में रख लेता है तो उसे इस फैसले को न्यायिक समीक्षा से सुरक्षा मिल जाएगी.
लेकिन, कांग्रेस सरकार के इस प्रस्ताव के लिए केंद्र की NDA सरकार ऐसा करेगी, यह कहीं से संभव नहीं लगता है. यही वजह है कि तमिलनाडु में आज भी 69% आरक्षण है.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में ये भी कहा है कि अगर संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ कोई कानून है तो 9वीं अनुसूची के कानूनों की भी समीक्षा होगी.
तीसरा तरीका: संविधान में संशोधन करके भी 50% के पार भी रिजर्वेशन देना मुमकिन
50% की तय सीमा से ज्यादा रिजर्वेशन देने का एक तरीका संविधान संशोधन है. केंद्र सरकार ने 2019 में संविधान संशोधन करके ही आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में एडमिशन में अलग से 10% रिजर्वेशन दिया था.
हम जानते हैं कि केंद्र सरकार के इस प्रावधान के बाद कुल रिजर्वेशन 49.5% से बढ़कर 59.5% हो गया. यह सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तय 50% की सीमा से ज्यादा था.
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2022 में केंद्र सरकार के इस तरीके को वैध माना था. कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि इस मामले में 50% की सीमा का उल्लंघन संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं है. हालांकि, तेलंगाना सरकार की मांग पर केंद्र सरकार इस तरह का फैसला लेगी, ऐसा नहीं लगता है.
इससे पहले किन राज्यों ने आरक्षण बढ़ाने की कोशिश की और अभी क्या स्टेटस है?
बिहार: 9 नवंबर 2023 को बिहार सरकार ने जातिगत आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 65 फीसद कर दिया. इसमें EWS आरक्षण 10 फीसद जोड़ दें तो ये 75 फीसद हो जाता है. बाद में सरकार के इस फैसले पर पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी. इस तरह बिहार सरकार ये फैसला लागू नहीं कर सकी.
आंध्र प्रदेश: जनवरी 2002 में आंध्र सरकार ने शिक्षकों की भर्ती में एसटी कैटेगरी के लिए 100% रिजर्वेशन कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार का आदेश खारिज करते हुए कहा था कि इस फैसले से OBC और SC भी प्रभावित हुए हैं.
छत्तीसगढ़: सितंबर 2022 में हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के 2011 में पारित एक कानून को रद्द कर दिया, जिसमें SC, ST, OBC का कोटा बढ़ाकर 58% तक कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ऐसी कोई असाधारण परिस्थिति साबित नहीं कर सकी जो 50% की सीमा का उल्लंघन करने लायक हो.
महाराष्ट्र: 2021 में, महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए 16% रिजर्वेशन पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि अदालत में पेश किए गए आंकड़ों में कोई असाधारण स्थिति दिखाई नहीं देती. मराठा समुदाय को 16% रिजर्वेशन दिए जाने के बाद राज्य में कुल रिजर्वेशन का आंकड़ा 68% तक हो गया था.
ओडिशा और राजस्थान: हाईकोर्ट ने 2017 में दोनों ने राज्य के उन कानूनों को रद्द कर दिया, जिनमें कुल रिजर्वेशन 50% से अधिक बढ़ा दिया था.
गुजरात: सरकार ने पटेल आंदोलन को शांत करने के लिए आर्थिक आधार पर 10% रिजर्वेशन दिया था. हाईकोर्ट ने इसे भी रद्द कर दिया था.