क्या उत्तर प्रदेश में जाटों को साधने की भाजपा की रणनीति फेल हो गई है?
उत्तर प्रदेश में भाजपा ने जाट वोटों को साधने के लिए इसी समाज से आने वाले भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था लेकिन अब एक साल बाद उसके नेता रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को भी अपने पाले में लाने की कोशिश करते दिख रहे हैं

साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले किसान आंदोलन की तपिश झेल रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जाट वोटों को लेकर मुतमईन थी. लेकिन जब मार्च में नतीजे आए तो पता चला कि पश्चिमी यूपी में भाजपा समर्थक वोटबैंक के दरकने की शुरुआत हो चुकी है. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में पहली बार 17 जाट विधायक चुने गए. इनमें 10 भाजपा और 7 समाजवादी पार्टी (सपा)-राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के थे. जबकि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कुल 14 जाट विधायक चुने गए थे और इनमें 13 भाजपा और एक रालोद का था. इस प्रकार विधानसभा में जाट विधायकों की संख्या तो बढ़ी लेकिन भाजपा की हिस्सेदारी घट गई.
इसके बाद भाजपा संगठन डैमेज कंट्रोल में जुटा. विधानसभा चुनाव के करीब छह महीने के बाद 25 अगस्त को पिछले 31 वर्षों से संगठन और सरकार में किसी न किसी प्रकार की भूमिका में रहने वाले भूपेंद्र चौधरी को उत्तर प्रदेश भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. यह पहली बार था जब भाजपा ने यूपी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी किसी जाट नेता को सौंपी थी. लक्ष्य साफ था कि पश्चिमी यूपी में दरकते जाट वोट बैंक को मजबूती के साथ खड़ा करना.
जाट प्रदेश अध्यक्ष बनाकर इस वोटबैंक पर पकड़ मजबूत करने की भगवा रणनीति का पहला इम्तिहान दिसंबर में मुजफ्फरनगर जिले की जाट बहुल खतौली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में लिया गया. सपा-रालोद और आजाद समाज पार्टी (आसपा) के संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर मदन भैया ने भाजपा उम्मीदवार राजकुमारी सैनी को 22 हजार से अधिक वोटों से हराया. मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ दिवानी वकील और इलाकाई राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले रामगौतम बताते हैं, “खतौली के चुनाव में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और इनके करीबी मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बलियान ने पूरी ताकत झोंक दी थी. सरकार भी इन दोनों के साथ थी. इसके बावजूद वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बदले समीकरण में जो जाट मतदाता रालोद से हटकर भाजपा के पक्ष में आया था, उसका एक बड़ा हिस्सा रालोद के पास चला गया है.”
हालांकि भूपेंद्र चौधरी के नेतृत्व में भाजपा ने रामपुर सदर विधानसभा उपचुनाव में जीत हासिल कर इतिहास रचा लेकिन जाट बहुल सीट पर मिली हार ने भगवा खेमे की जाट राजनीति पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया. इसके बाद से ही भाजपा नेताओं के बीच रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी से गठबंधन करने की मांग जोर पकड़ने लगी.
विधानसभा में भले ही सिर्फ आठ विधायक हों और लोकसभा में कोई प्रतिनिधित्व न हो, इसके बावजूद रालोद पश्चिम यूपी के 26 जिलों में फैले जाट मतदाताओं पर खासा असर रखती है. इन जिलों में 27 लोकसभा सीटें आती हैं. यूपी की कुल पिछड़ी जातियों में जाटों का प्रतिशत महज 3.60 है लेकिन पश्चिमी यूपी के छह कमिश्नरी में इनकी आबादी 18 से 20% तक हैं.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का एकतरफा समर्थन करने वाले जाट मतदाताओं के एक बड़े वर्ग ने 2019 के चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को वोट दिया था. जाट-मुस्लिम समीकरण से पश्चिमी यूपी में 5 मुस्लिम सांसद जीते थे. फिर खतौली विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने संकेत दिया कि पश्चिमी यूपी में दोबारा जाट-मुस्लिम समीकरण अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. इससे निबटने के लिए उपचुनाव के बाद भूपेंद्र चौधरी ने अपनी बिरादरी के बीच सक्रियता बढ़ाई.
चौधरी ने पश्चिम यूपी के जाट बहुल इलाकों में आयोजित कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 26 मार्च को मेरठ में आयोजित जाट महासभा के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मौजूद भूपेंद्र चौधरी ने अपने भाषण में कहा, “अकेली बिरादरी राजनीतिक परिणाम नहीं दे सकती. हमें किसी के साथ चलना होगा या फिर किसी को साथ लेकर चलना होगा. ये विचार दिमाग से निकाल दीजिए कि अब हम राज्य को लीड कर सकते हैं क्योंकि अब दूसरे चौधरी चरण सिंह पैदा नहीं हो सकते.” जाट बिरादरी के लोगों से खचाखच भरे हाल में भूपेंद्र चौधरी इशारों में अपनी बिरादरी को जयंत चौधरी के साथ जाने के दुष्परिणाम गिनाकर भाजपा से जुड़ने की अपील कर रहे थे. हालांकि इस बयान की जाट समुदाय में खासी प्रतिक्रिया भी हुई. भूपेंद्र चौधरी की सक्रियता से निबटने के लिए रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भी पश्चिम यूपी में समरसता बैठकों और रैलियों का आयोजन शुरू कर दिया था.
मई में हुए नगरीय निकाय चुनाव ने वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा संगठन की जमीनी रणनीति की एक बार फिर परीक्षा ली. इन चुनावों में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जोड़ी ने विपक्ष को बुरी तरह मात दी. भाजपा ने पश्चिम यूपी में मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल की चारों महापौर सीटों पर कब्जा जमाया. जबकि वर्ष 2017 के चुनाव में पार्टी को मेरठ में मेयर के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था.
वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा ने पश्चिम में नगर पालिका परिषद की 150 अध्यक्षीय सीटों में से 35 पर जीत हासिल की थी वहीं इस बार यह आंकड़ा बढ़कर 46 पर पहुंच गया. पार्टी ने पश्चिमी यूपी की 24 नगर पालिका परिषद और 18 नगर पंचायत पर कब्जा जमाया. इन चुनावों भारी-भरकम जीत के बावजूद पार्टी को जाट बहुल सीटों पर मिली हार खटक रही है. मुजफ्फरनगर में वर्ष 2017 के नगरीय निकाय चुनाव के मुकाबले इस बार भगवा खेमे का जनाधार घट गया. वर्ष 2017 के चुनाव में बुरी तरह खेत रही रालोद ने खतौली और जानसठ नगर पालिका परिषद पर कब्जा जमाकर अपनी बढ़ती ताकत का एहसास कराया. इस प्रकार मुजफ्फरनगर में शहर पालिका परिषद की सीट छोड़ दें तो यहां भाजपा असरदार साबित नहीं हुई. इसी तरह जाट मतदाताओं का मिजाज बताने वाली बड़ौत, मुरादनगर, हापुड़, अनूपशहर, चंदौसी, गजरौला, अतरौली, खैर, इगलास समेत कई नगर पालिका परिषद में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा.
विधानसभा उपचुनाव हारने के बाद खतौली नगर पालिका परिषद के चुनाव में भाजपा को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी. यहां रालोद-सपा-आसपा के गठबंधन के आगे भाजपा उम्मीदवार तीसरे नंबर पर पहुंच गया. मेरठ विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफसर एस. एस. सैनी बताते हैं, “जाट बहुल नगरीय निकाय सीटों पर भाजपा की हार ने पार्टी की जाट रणनीति को कठघरे में खड़ा कर दिया है. भाजपा के जाट प्रदेश अध्यक्ष की कई कोशिशों के बावजूद जाट मतदाताओं का भाजपा से छिटकने का सिलसिला नहीं रुका है. यही वजह है कि जाट वोटबैंक को लेकर भाजपा की चिंता लगातार बढ़ती जा रही है.”
जाट वोटबैंक को और छिटकने से बचाने के लिए भाजपा नेता अब खुले तौर पर रालोद से गठबंधन की मांग करने लगे हैं. योगी सरकार के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना ने प्रयागराज में 12 जुलाई को यह कहकर हलचल मचा दी थी कि ओम प्रकाश राजभर और जयंत चौधरी के अलावा भी कई राजनीतिक दलों के नेता लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में आ जाएंगे. ओम प्रकाश राजभर भी भाजपा के साथ आने के बाद लगातार जयंत चौधरी के भगवा खेमे में आने की बात कह रहे हैं.
भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) की अध्यक्ष और केंद्र सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी 21 अगस्त को प्रयागराज में जयंत चौधरी से भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल होने की अपील की थी. वहीं 29 जुलाई को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा की नई टीम में यूपी से किसी जाट नेता को जगह न देना जयंत चौधरी को सकारात्मक संदेश देने की रणनीति ही मानी जा रही है. हालांकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कहना है कि जाट वोटबैंक किस तरफ है यह पिछले चुनावों के परिणाम में स्पष्ट हो गया था. हालांकि यूपी भाजपा की कमान जाट नेता के हाथों में सौंपने के बाद भी जयंत चौधरी के प्रति भाजपा नेताओं और संगठन का सकारात्मक रवैया कई सारी अटकलों को जन्म दे रहा है. भाजपा के साथ एक संयोग भी जुड़ा है कि पिछले दो दशकों के दौरान हुए लोकसभा चुनावों में प्रदेश भाजपा की कमान ब्राह्मण नेता के हाथों में रही है. क्या जयंत चौधरी के आने से भाजपा अपने सारे समीकरण साध सकेगी? इस सवाल की कई व्याख्याएं इन दिनों यूपी के राजनीतिक गलियारों में तैर रही है.