बिहार के उन आठ लोगों की कहानी जो नाव से 400 किमी का सफर कर पहुंचे प्रयागराज!

इन आठ लोगों का नाव से प्रयागराज कुंभ तक की यात्रा का एक वीडियो इस समय सोशल मीडिया पर वायरल है

प्रयागराज कुंभ जाता नाव पर सवार दल/स्क्रीनशॉट
प्रयागराज कुंभ जाता नाव पर सवार दल/स्क्रीनशॉट

"हमने अपनी समझ से हर चीज का इंतजाम कर लिया था, मगर मोबाइल चार्ज करने का इंतजाम करना भूल गए. आधा रास्ता भी पूरा नहीं हुआ था कि सबके मोबाइल डिस्चार्ज हो गए. आगे एक जगह जब हमने फोन चार्ज किया तो धड़ा-धड़ दोस्तों के फोन आने लगे. बताया कि तुम लोग तो वायरल हो गए हो." बक्सर जिले के सुमंत चौधरी ने जब यह कहा तो उनकी बातों में अलग ही खुशी झलक रही थी.

सुमंत चौधरी उन आठ लोगों के समूह के सदस्य हैं, जो पिछले दिनों बक्सर से प्रयागराज तक अपनी छोटी-सी नाव से ही चले गए थे. रास्ते में उनके साथी मन्नु चौधरी ने अपने मोबाइल से वीडियो शूट किया था और अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर डाल दिया था. सुमंत उसी वीडियो के वायरल होने की बात कह रहे थे. महज 409 फॉलोअर्स वाले मन्नु चौधरी के इंस्टाग्राम हैंडल से 13 फरवरी को जारी इस वीडियो को अब तक 8.5 लाख से अधिक लोग देख चुके हैं.

यह वीडियो इसलिए वायरल हो रहा है, क्योंकि सुमंत, मन्नु और उनके साथियों ने बिहार के बक्सर से प्रयागराज महाकुंभ तक की यात्रा अपनी नाव से तय की. इस तरह लंबी यात्रा कर महाकुंभ जाने वाले वे अपनी तरह के अनूठे यात्री हैं. उनकी तसवीरें और उनके वीडियो सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हो रहे हैं और कहा जा रहा है, बिहार इज नॉट फॉर बिगनर (... नॉट फॉर द बिगनर – यह वाक्यांश मजाकिया अंदाज में तब कहा जाता है जब कोई ऐसा अनूठा काम कर देता है जो असंभव तो नहीं होता, लेकिन अमूमन लोग करते नहीं). मतलब कि ट्रेन में जगह नहीं मिली तो अपनी नाव से ही महाकुंभ पहुंच गए!

आपने ऐसा क्यों किया, ट्रेन, बस या कार के बदले नाव से कुंभ क्यों गए? यह सवाल पूछने पर मन्नु कहते हैं, "हमलोग कुंभ जाना चाहते थे, मगर न्यूज में रोज देखते कि ट्रेन बहुत भीड़ है. टिकट लेकर भी लोग ट्रेन पर नहीं चढ़ पा रहे, वहीं बस या कार से जाने पर दिक्कत यह थी कि पूरे रास्ते में जगह-जगह जाम लगा था. तो हम लोग सोचे क्यों न नाव से ही चला जाए. गंगाजी तो प्रयागराज से ही आती हैं."

(बाएं) सुमंत और (दाएं) मन्नु चौधरी

निषाद जाति से आने वाले मन्नु, सुमंत और उनके साथ के दूसरे कई लोगों के पास अपनी नावें हैं, वे मछली पकड़ने का ही काम करते हैं. इसलिए उनके लिए ऐसा सोचना कोई अनूठी बात नहीं थी. मन्नु कहते हैं, "नाव चलाना हम लोगों का दिन-रात का काम है. मछली पकड़ने के लिए हम लोग गाजीपुर और जमुनिया तक चले जाते हैं. हम दोनों के अलावा पदु चौधरी भी हम लोगों की तरह नौजवान हैं, संदीप और अशोक यादव हमारे मित्र हैं, जो निषाद जाति से नहीं हैं. इनके अलावा रवींद्र, रमेश और सुखदेव चौधरी उम्र में हमसे बड़े हैं. रिश्ते में मेरे मामा लगते हैं, 40 से 50 के बीच के होंगे. सब मिलकर तय कर लिये, नाव से ही चलेंगे. नाव में बोट वाली मोटर लगवा लेंगे."

बक्सर के जिस गांव से मन्नु प्रयागराज गए, वह उनका ननिहाल है. वे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के कोटवा नारायणपुर गांव के रहने वाले हैं. उनके बाकी सात साथी बिहार के ही हैं.

इन लोगों ने यह फैसला जोश में कर लिया, मगर इसकी तैयारी काफी मुश्किल थी. उनके पास एक मोटर पहले से थी, लेकिन एक अलग से मोटर खरीदी गई ताकि अगर एक चलते-चलते ज्यादा गर्म हो जाए तो दूसरी का इस्तेमाल किया जाए. फिर खाने-पीने का सामान, पांच लीटर का गैस का चूल्हा, बर्तन, सब नाव पर रखा गया. एक पेट्रोल का गैलन भी.

मन्नु बताते हैं, "35 हजार रुपए की मोटर आई औऱ दूसरी चीजों में लगभग 20 हजार खर्च हो गए. इस तरह हम आठ लोगों के आने जाने में करीब 55 से 60 हजार रुपए का खर्च आया. बस हम एक काम भूल गए. मोबाइल चार्ज करने का कोई उपाय नहीं कर पाए, ऐसे में जमनिया पहुंचते-पहुंचते हम सबके मोबाइल ऑफ हो गए, वे फिर तभी फिर से चालू हुए जब हमने प्रयागराज में 30 रुपये देकर 10 मिनट के लिए इन्हें चार्ज कराया."

ये आठ लोग 11 फरवरी की सुबह 10 से 11 बजे के बीच बक्सर के कमहरिया गांव से निकले. सुमंत बताते हैं, "हम लोग दिन-रात नाव चलाते रहे. रास्ते में बस दो जगह रुके एक जमनिया में और एक बनारस के आसपास किसी जगह. दोनों जगह पेट्रोल लेने के लिए ही रुके. हमने उस रास्ते का चुनाव किया जिस रास्ते पर जहाज चला करते हैं. गंगा में इस रास्ते को बताने के लिए बांस लगे होते हैं और उनमें मार्किंग होती है. हमने उसी के हिसाब से चलना शुरू किया बस गाजीपुर से जमनिया तक जब रास्ता पता नहीं चल रहा था तो गूगल मैप की मदद ली. उसके बाद तो खैर हमारा मोबाइल ही ऑफ हो गया."

आठ लोगों की टीम थी. लोग बारी-बारी से नाव चलाते, रात के वक्त एक आदमी बड़े वाले टॉर्च से रोशनी दिखाता. कुछ लोग खाना बनाते. लोग बारी-बारी से उसी नाव में आराम भी करते. 11 फरवरी को सुबह साढ़े दस बजे चले ये लोग 13 फरवरी की रात 12 बजे के बाद प्रयागराज के पास उस जगह पहुंचे, जहां पहला पीपा पुल था. इन लोगों ने वहीं अपनी नाव बांध दी और तकरीबन सात-आठ किमी पैदल चलकर संगम पहुंचे और सुबह चार बजे स्नान किया. 13 फरवरी को ही मन्नु ने अपनी वीडियो पोस्ट की. फिर नाव से ये लोग वापस बक्सर लौट आए.

इन लोगों को पता नहीं कि इन्होंने गंगा नदी में कितने किमी की यात्रा नाव से की है. मगर इनलैंड वॉटरवेज के एक अधिकारी अनौपचरिक बातचीत में बताते हैं, “यह नेशनल वॉटरवेज 1 का हिस्सा है और गंगा नदी में बक्सर से प्रयागराज तक की दूरी 425 किमी की है. इन लोगों ने अपस्ट्रीम में यानी धारा के विपरीत नाव चलाई है, ऐसे में सात से आठ किमी प्रति घंटा ही नाव चलाई जा सकती है.” हालांकि सड़क मार्ग से बक्सर से प्रयागराज की दूरी गूगल 252 किमी ही बताता है.

15 फरवरी को यह टोली अपने गांव पहुंची. जब उन्होंने मोबाइल चार्ज करके ऑन किया. उनका वीडियो खबरों में था. पत्रकार उनके इंस्टाग्राम पर उनसे नंबर मांग रहे थे. मन्नु बताते हैं, “हम लोगों ने सोचा नहीं था कि इतने पॉपुलर हो जाएंगे. पता होता तो साथ में पावरबैंक भी रख लेते, वीडियो बनाते चलते.” सुमंत कहते हैं, “गांव में जब हम लोग बोले थे कि नाव से प्रयागराज जाएंगे तो सब हंसता था, बोलता था, ई लोग पगला गया है. जब लौटकर आ गए तो सब खुश है.”

इनमें से ज्यादातर दसवीं पास ही हैं. इनका मुख्य पेशा मछली पकड़ना है और थोड़ी बहुत खेती भी कर लेते हैं. मगर फिलहाल ये लोग सोशल मीडिया में हीरो की तरह देखे जा रहे हैं.

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