'समाजवाद' आएगा स्क्रीन से! अखिलेश का SPTV और पॉडकास्ट कैसे देगा बीजेपी को टक्कर?
बीजेपी के मीडिया वर्चस्व को चुनौती देने और युवाओं तक सीधी पहुंच बनाने के लिए समाजवादी पार्टी ने ‘SPTV’ लॉन्च किया, अब पॉडकास्ट शुरू करने की तैयारी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक नई हलचल है. समाजवादी पार्टी (सपा) ने चुनावी अखाड़े में उतरने से पहले एक नया औज़ार निकाला है- अपना टीवी चैनल और पॉडकास्ट. यह महज़ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं, बल्कि अखिलेश यादव की दूरगामी रणनीति है, जो बीजेपी के मीडिया प्रभुत्व का जवाब देने और युवा वोटरों को साधने की दिशा में एक प्रयोग है.
समाजवादी पार्टी ने 2 अगस्त 2025 से अपना आधिकारिक यूट्यूब चैनल लॉन्च किया है, जिसका नाम 'समाजवादी पार्टी टीवी (SPTV)’ रखा गया है. इस चैनल पर हर रोज़ रात 9 बजे एक विशेष बुलेटिन 'पार्टी अपडेट्स' प्रसारित किए जाते है. इसमें पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के दिनभर के महत्वपूर्ण बयान और निर्देश दिखाए जाते हैं. समाजवादी पार्टी टीवी के इंचार्ज नावेद सिद्दीकी एक प्रसिद्ध रेडियो जॉकी और समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता हैं. डिजिटल मीडिया में उनकी आवाज़ और प्रस्तुति शैली से वे इंडस्ट्री में पहचाने जाते हैं. नावेद सिद्दीकी हर रात पार्टी अपडेट्स बुलेटिन को अपनी प्रभावशाली अंदाज़ में पेश करते हैं.
पार्टी की गतिविधियों पर दैनिक अपडेट के लिए समर्पित अपना यूट्यूब चैनल SPTV शुरू करने के बाद, सपा अब पॉडकास्ट के क्षेत्र में कदम रखने की तैयारी कर रही है. 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले अपनी डिजिटल पहुंच बढ़ाने के क्रम में समाजवादी पार्टी सितंबर से अपना पॉडकास्ट भी लॉन्च करने वाली है, जिसके पहले एपिसोड में पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के शामिल होने की संभावना है.
पार्टी के स्टूडियो में रिकॉर्ड किए जाने के अलावा, पॉडकास्ट को सपा शासन के दौरान बनी परियोजनाओं, जैसे इकाना स्टेडियम, डायल 100, फीनिक्स पलासियो मॉल, लखनऊ मेट्रो और जनेश्वर मिश्र पार्क, की पृष्ठभूमि में भी शूट किया जाएगा. पूर्व मंत्री और रेडियो जॉकी नावेद सिद्दीकी, जो 2012 से अखिलेश यादव के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं, इस श्रृंखला की मेजबानी करेंगे. पॉडकास्ट में सांसदों, विधायकों और वरिष्ठ नेताओं के साक्षात्कार शामिल होंगे, जिन मुद्दों पर पार्टी का मानना है कि वे जनता से जुड़े हैं. सिद्दीकी के मुताबिक शुरुआती एपिसोड के लिए नेता का नाम अभी तय नहीं हुआ है, हालांकि अखिलेश यादव से सीरीज़ शुरू करने की ज़ोरदार मांग है, जिसके बाद अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद जैसे वरिष्ठ नेता भी हैं.
समाजवादी पार्टी टीवी और पॉडकास्ट लांच करने के पीछे अखिलेश यादव की एक सोची समझी रणनीति है. अखिलेश यादव को लंबे समय से शिकायत है कि प्रदेश का मीडिया और राष्ट्रीय टीवी चैनल बीजेपी का नैरेटिव दोहराते हैं. बेरोज़गारी, महंगाई, किसान संकट या शिक्षा की बदहाली जैसे मुद्दे टीवी स्क्रीन पर कहीं खो जाते हैं. सपा का नया टीवी चैनल और पॉडकास्ट इसी कमी को भरने की कोशिश है. इस मंच से पार्टी अपनी भाषा में अपनी कहानियां सुना सकेगी. कार्यकर्ताओं की गतिविधियां, आंदोलन और छोटे-छोटे जमीनी मुद्दे भी यहां जगह पाएंगे. सपा प्रमुख अखिलेश यादव कहते हैं, “आज की राजनीति में अपनी बात सीधे जनता तक पहुंचाना सबसे बड़ी ज़रूरत है. जब मीडिया दरवाज़ा बंद कर देता है, तो हमें अपना दरवाज़ा खुद बनाना होगा.”
अपनी इस पहल के जरिए सपा ने युवा वोटरों पर फोकस किया है. सपा का असली लक्ष्य 18–35 आयु वर्ग के मतदाता हैं, जो सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सबसे सक्रिय हैं. अखिलेश यादव अच्छी तरह जानते हैं कि अगला चुनाव उन्हीं की भागीदारी पर टिकेगा. पॉडकास्ट के जरिए वे सीधे इस पीढ़ी से संवाद कर पाएंगे. छोटे वीडियो, कैज़ुअल बातचीत और प्रश्नोत्तर के जरिये वे खुद को 'युवा नेता, टेक-सेवी और विज़नरी' के रूप में पेश करना चाहते है.
सपा के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, “युवा सिर्फ नारे नहीं, जवाब भी चाहता है. हम उन्हें बेरोज़गारी, शिक्षा और भविष्य की संभावनाओं पर स्पष्ट बात सुनाना चाहते हैं.” सपा का यह प्लेटफॉर्म केवल वोटरों तक पहुंचने का माध्यम नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने की कवायद भी है. बूथ लेवल कार्यकर्ता जब अपने बयान, जमीनी संघर्ष या छोटे कार्यक्रम को “सपा टीवी” पर देखेंगे, तो उनका मनोबल बढ़ेगा. यह संदेश जाएगा कि पार्टी सिर्फ बड़े नेताओं तक सीमित नहीं, बल्कि कैडर की आवाज़ को भी मंच दे रही है. सपा के एक नेता कहते हैं, “पार्टी कार्यकर्ताओं को हमेशा लगता था कि उनकी मेहनत पर्दे के पीछे रह जाती है. अब उन्हें अपनी मेहनत दिखाने का मौका मिलेगा.”
सपा का यह मीडिया प्रयोग पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की छवि की ‘रीब्रांडिंग’ भी करेगा. 2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने, तो उन्हें लैपटॉप बांटने वाले 'आधुनिक युवा नेता' की छवि से पहचान मिली थी. लेकिन 2017 के बाद से उनकी छवि 'कमज़ोर विपक्षी' की बनी. हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह सपा ने बीजेपी को यूपी में पटखनी दी उससे पार्टी की नई छवि निखर कर सामने आई है.
अब पॉडकास्ट और चैनल के जरिए अखिलेश यादव एक बार फिर खुद को 'संवेदनशील, पढ़ा-लिखा और विज़नरी विकल्प' के रूप में रीब्रांड करना चाहते हैं. इंटरव्यू और बातचीत में वे अर्थव्यवस्था, शिक्षा और टेक्नोलॉजी जैसे विषयों पर चर्चा कर बीजेपी से अलग अपनी छवि गढ़ना चाहेंगे. फैजाबाद के प्रतिष्ठित साकेत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य और राजनीतिक विश्लेषक वी. एन. अरोड़ा कहते हैं, “बीते चुनावों में सपा बार-बार मीडिया ट्रायल का शिकार हुई. चाहे अपराध की घटनाएं हों या विपक्ष की बयानबाज़ी, चैनलों पर सपा का बचाव कमजोर पड़ता था. पार्टी समझ गई कि अगर लड़ाई नैरेटिव की है, तो उसे अपना नैरेटिव खुद गढ़ना और प्रचारित करना होगा. सपा टीवी और पॉडकास्ट दरअसल बीजेपी के मीडिया वर्चस्व को सीधे चुनौती देने का मंच है.”
राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि वर्ष 2027 विधानसभा और 2029 लोकसभा चुनाव को देखते हुए सपा की यह पहल दूर तक सोची-समझी रणनीति है. जिस तरह बीजेपी ने 'मन की बात' और 'मोदी ऐप' का इस्तेमाल किया है, उसी तर्ज पर अखिलेश यादव भी जनता से लगातार संवाद की आदत डालना चाहते हैं. इससे वे चुनाव से पहले एक ऐसा नैरेटिव बनाना चाहते हैं जो गतिशील है, यानी कि जनता से लाइव जुड़ाव रखता है. यह आख़िरी क्षण में किया गया प्रचार सरीखा नहीं होगा.
हालांकि सपा के लिए यह रास्ता आसान नहीं है. राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी बीजेपी का दबदबा है- आईटी सेल से लेकर सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स तक. इसके अलावा फंडिंग और कंटेंट की गुणवत्ता भी बड़ी चुनौती होगी. अगर सपा टीवी केवल 'प्रचार' तक सीमित रहा, तो असर भी सीमित होगा. इसके अलावा सपा टीवी को युवाओं को आकर्षित करने के लिए इसे क्रिएटिव, फैक्ट-आधारित और एंटरटेनिंग बनाना होगा.
अगर सपा सारी चुनौतियों से निबट गई तो अखिलेश यादव का यह मीडिया प्रयोग यूपी की राजनीति में एक नई परत जोड़ सकता है और सपा बीजेपी के मीडिया डॉमिनेशन का एक सशक्त विकल्प बन सकती है. फिलहाल इतना तय है कि अखिलेश यादव ने एक बात समझ ली है- चुनाव सिर्फ मैदान में नहीं, स्क्रीन पर भी लड़े जाते हैं. और इस बार वे इस स्क्रीन युद्ध में खाली हाथ नहीं रहना चाहते.