राजस्थान की ‘शिक्षावीर’ योजना ने कॉलेजों में पढ़ने-पढ़ाने वालों को क्यों डरा दिया है?

राजस्थान कॉलेज एजुकेशन सोसायटी (राजसेस) के तहत खोले गए 374 कॉलेजों में भजनलाल सरकार ‘शिक्षावीर’ योजना के तहत शिक्षक भर्ती करेगी

राजस्थान के CM भजनलाल शर्मा
राजस्थान के CM भजनलाल शर्मा

सेना में अग्निवीर योजना से प्रेरणा लेकर राजस्थान सरकार कॉलेजों में 'शिक्षावीर' की भर्ती करने जा रही है. भजनलाल सरकार ने पहले से चली आ रही विद्या संबल योजना को बंद करके कॉलेजों में पांच साल के लिए भर्ती की यह नई व्यवस्था लागू करने का फैसला किया है. इस पर उच्च शिक्षा से जुड़े लोगों के बीच तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है.  

इससे पहले की अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल में राजस्थान कॉलेज एजुकेशन सोसायटी (राजसेस) के तहत खोले गए कॉलेजों में संविदा के आधार पर भर्ती की जाएगी. दरअसल विद्या संबल योजना में नियुक्त किए गए सहायक आचार्यों को फिक्स पे के तहत 50 हजार रुपए मासिक वेतन दिया जाता है. 

विद्या संबल योजना अशोक गहलोत सरकार लेकर आई थी. पहले विद्या संबल योजना के तहत नियुक्त सहायक आचार्यों को महंगाई भत्ते का भुगतान नहीं किया जाता था मगर राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के बाद से इन्हें महंगाई भत्ता भी मिल रहा है.

लेकिन अब संविदा के आधार पर नियुक्त किए जाने वाले शिक्षकों को सिर्फ 28 हजार रुपए का वेतन मिलेगा और महंगाई भत्ता भी नहीं मिलेगा. राजसेस के तहत प्रदेश में 374 कॉलेज संचालित हैं. इनमें से 302 कॉलेज पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल में खोले गए थे और 72 कॉलेज भजनलाल सरकार ने खोले हैं. पिछले चार-पांच साल में खोले गए इन कॉलेजों में अब तक एक भी स्थाई भर्ती नहीं हुई है. पहले इन कॉलेजों में विद्या संबल योजना के तहत 4 हजार सहायक आचार्य लगाए गए थे मगर संविदा आधार पर नई भर्ती होने के बाद इनका क्या होगा, यह अभी तय नहीं हुआ है. 

भजनलाल मंत्रिमंडल के फैसले के अनुसार 376 में से 335 कॉलेजों में सरकार पांच साल के लिए संविदा के आधार पर शिक्षक लगाएगी.  इन कॉलेजों में शैक्षणिक संवर्ग के 5 हजार 229 पद स्वीकृत हैं मगर सरकार सिर्फ 3 हजार 540 पदों पर ही भर्ती करेगी और वह भी अस्थायी.

यूजीसी गाइडलाइन के खिलाफ भी है फैसला 

राजस्थान सरकार का यह फैसला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की गाइडलाइन के भी विरुद्ध जाता है. इनके अनुसार गेस्ट फैकल्टी को प्रति लेक्चर 1500 रुपए या अधिकतम 50 हजार रुपए महीना भुगतान किए जाने का प्रावधान है. इसके साथ ही यूजीसी गाइडलाइन के अनुसार कॉलेजों में संविदा में कार्यरत सहायक आचार्य को भी न्यूनतम 57,700 रुपए महीना देना अनिवार्य है. 

राजस्थान के पड़ोसी हरियाणा और मध्य प्रदेश में कॉलेजों में अस्थायी तौर पर भर्ती किए गए शिक्षकों को 57 हजार 700 रुपए महीना वेतन दिया जाता है. गुजरात में शिक्षकों की भर्ती अस्थायी तौर पर की गई है मगर उन्हें वेतन यूजीसी गाइडलाइन के अनुसार दिया जा रहा है. ऐसे में राजस्थान में कम वेतन को लेकर बखेड़ा खड़ा हो सकता है. राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व शोध छात्र डॉ. रामसिंह सामोता कहते हैं, '' इस मॉडल में शिक्षकों के शोषण की छूट दी गई है. सरकार की इस पांच साल के लिए की जाने वाली अस्थायी शिक्षा वीर योजना का विरोध किया जाएगा.  पांच साल नौकरी के बाद इन्हें न समायोजन का लाभ मिलेगा और न ही बोनस व शैक्षणिक अनुभव प्रमाण पत्र मिलेंगे.''  

इस व्यवस्था से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर भी बुरा असर पड़ सकता है. इस हवाले से राजस्थान यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन (रूक्टा) के महामंत्री डॉ. बनेय सिंह कहते हैं, “लगता है सरकार ने उच्च शिक्षा को पूरी तरह से तबाह करने की ठान ली है. राजसेस के तहत कॉलेज खोलना ही गलत था और अब इनमें संविदा आधार पर शिक्षक लगाना बेरोजगार युवाओं और इनमें पढ़ने वाले बच्चों के साथ सबसे बड़ा धोखा साबित होने वाला है.”   

राजस्थान के पूर्व शिक्षा मंत्री और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहते हैं, “ भजनलाल सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को खुश करने के लिए गुजरात का यह मॉडल लेकर आई है जिसमें न कॉलेजों का भला है न शिक्षकों का और न इनमें पढ़ने वाले छात्रों का.”

यह भी चौंकाने वाली बात है कि राजस्थान में राजसेस के तहत खोले गए इन कॉलेजों में भवन, लाइब्रेरी और लैब जैसी सुविधाओं का भी अभाव है. 374 में से 319 कॉलेजों के पास खुद का भवन नहीं है. ये कॉलेज प्राथमिक स्कूलों के एक या दो कमरों में चल रहे हैं. अभी तक इन कॉलेजों में लाइब्रेरियन, शारीरिक शिक्षक जैसी एक भी भर्ती नहीं हुई है. 

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